सोमवार, 26 जून 2023

पांडव सेरा में अपने आप उगती है धान की फसल

पांडवों ने द्वापर युग में रोपा था जो धान, पांडवसेरा में आज भी अपने आप उगता है

देवताओं की भूमि उत्तराखंड में देव शक्तियों का कुछ न कुछ प्रमाण कलियुग में भी मिलता है। यहां किसी न किसी तरह से देव शक्तियां अपने होने का एहसास कराती हैं। आज भी कई आश्चर्यजनक तथ्य ऐसे हैं जो लोगों को दांतो तले उंगली दबाने को मजबूर करते हैं। गढ़वाल के रुद्रप्रयाग में पांडव शेरा नामक स्थान पर आज भी द्वापर युग में पांडवों द्वारा रोहित धान की फसल आज भी अपने आप उगती है।

पूजे जाते हैं पांडवों के शस्त्र

गढ़वाल की धरती में इन आश्चर्यजनक पहलुओं से आज भी कई लोग अनभिज्ञ हैं। रुद्रप्रयाग के मद्महेश्वर पांडव शेरा नंदी कुंड के 25 किलोमीटर पैदल मार्ग पर स्थित पांडव सेरा में आज भी पांडवों के शस्त्र पूजे जाते हैं। द्वापर युग में पांडवों ने यहां धान की फसल रोपी थी। रुद्रप्रयाग से 16 हजार फ़ीट की ऊंचाई पर पांडव सेरा में आज भी धान की फसल अपने आप ही उगती है।

पांडव आगमन के साक्ष्य

उस समय पांडवों ने जो सिंचाई गूल बनाई थी वह आज भी मौजूद हैं और पांडवों की हिमालय आगमन की साक्ष्य हैं। पांडव सेरा को लेकर कई प्राचीन मान्यताएं जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि केदारनाथ धाम में जब पांडवों को भगवान शंकर के पृष्ठ भाग के दर्शन हुए तो पांडवों ने द्रौपदी सहित मद्महेश्वर धाम होते हुए मोक्ष धाम बद्रीनाथ के लिए प्रस्थान किया था।

पूर्वजों का तर्पण

मद्महेश्वर धाम में पांचों पांडवों ने अपने पूर्वजों का तर्पण किया था इसके साक्ष्य आज भी एक शिला पर मौजूद हैं। मद्महेश्वर धाम से जब पांडवों ने बद्रिकाश्रम के लिए प्रस्थान किया था तो कुछ समय के लिए उन्होंने पांडव सेरा में प्रवास किया था। पांडव सेरा में आज भी पांडवों के अस्त्र शस्त्रों की पूजा की जाती है। पांडवों ने अपने प्रवास के दौरान यहां धान की फसल की रोपाई की थी। वह धान की फसल आज भी अपने आप उगती है और पकने के बाद धरती में ही समा जाती है।

अपने आप उगता है धान

धान उगने फिर फसल के पकने और धरती में समाने की प्रक्रिया को देखने के लिए सैलानी लालायित रहते हैं लेकिन यह दृश्य किसी किसी को ही नसीब हो पाता है। पांडव सेरा से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर बने नंदी कुंड में स्नान करने से मानव अंतःकरण शुद्ध होने की मान्यता भी है। पांडव सेरा एक प्रसिद्ध ट्रैकिंग रूट है। यहां जाने वाले ट्रैकर इसके अतुल सौंदर्य और अद्भुत नजारों को देख कर मोहित हो जाते हैं।

ब्रह्मकमल से भर जाता है भूभाग

प्राचीन मान्यताओं से जुड़े इस मनमोहक और अप्रतिम सौंदर्य से भरपूर स्थान पर आकर पर्यटक प्रकृति के दीवाने हो जाते हैं। यह भूभाग बरसात के समय ब्रह्मकमल सहित अनेक प्रजातियों के फूलों से भर जाता है। मद्महेश्वर धाम से धोला क्षेत्रपाल, नंद बराड़ी खर्क, काछीनि खाल, पनोर खर्क, द्वारिगाड, पंडो खोली और सेरोगाड पड़ावों से होते हुए पांडव सेरा तक पहुंचा जा सकता है। मद्महेश्वर से पांडव सेरा- नंदीकुंड तक प्रकृति ने पूरे भूभाग को अद्भुत सौंदर्य से सजाया है।


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