शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

चीन की महान दीवार (Great Wall of China)

चीन की महान दीवार (Great Wall of China)

चीन की विशाल दीवार मिट्टी और पत्थर से बनी एक किलेनुमा दीवार है। चीन दीवार कईं सारी दीवारों के टुकड़े हैं जो विभिन्न राजाओं ने अलग अलग काल में बनवाये हैं। जिसे चीन के विभिन्न शासको के द्वारा पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर सोलहवी शताब्दी तक बनवाया गया। प्राचीनकाल में क्रूर और अत्याचारी लोग चीन के उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम से इस देश पर आक्रमण करते रहते थे। ये लोग चीन में मनमानी कर लूट-मार मचाते थे। इन लोगों से तंग आकर चीन के निवासियों ने अपनी रक्षा के लिए हैरत में डालने वाली मजबूत और ऊंची दीवार बनाई थी। कहते हैं कि इसे चीन के राजाओं ने उत्तरी सीमा पर बनाई थी ताकि उत्तरी हमलावरों (मंगोल आक्रमणकारियों / उत्तरी देशों) को रोका जा सके।

चीन की यह दीवार संसार की सबसे लम्बी मानव निर्मित रचना है। इसकी विशालता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की इसको अन्तरिक्ष से भी देखा जा सकता है। कहते हैं कि मानव निर्मित यह एक ही ऐसी कृति है जो चाँद से देखी जा सकती है। यह दीवार 6400 किलोमीटर (4000 मील / 10000 ली, चीनी लंबाई मापन इकाई) के क्षेत्र में फैली है। इसका विस्तार पूर्व में शंहाईगुआन से पश्चिम में लोपलेक तक है, और कुल लंबाई लगभग 6700 कि.मी. (4160 मील) है। हालांकि पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के हाल के सर्वेक्षण के अनुसार समग्र महान दीवार, अपनी सभी शाखाओं सहित 8851.8 कि.मी. (5500.3 मील) तक फैली है। यह दीवार 6,259.6 किमी ईंटों से, 359.7 किमी खाई व 2,232 किमी प्राकृतिक रक्षात्मक बाधायें जैसे पहाड़ियाँ व नदियाँ हैं। इस तरह इसकी कुल लम्बाई करीबन नौ हजार किमी तक पहुँच जाती है। चीन की इस दीवार की चौड़ाई इतनी रखी गयी थी जिसपर 5 घुड़सवार या 10 पैदल सैनिक बगल-बगल में गश्त लगा सकें। इस दीवार की नींव 15 से 25 फुट चौड़ी है, लेकिन ऊपर आकर 12 फुट रह गई है। ऊंचाई 20 से 30 फुट तक है। इसकी सबसे ज़्यादा ऊँचाई 35 फुट है। पुराने समय में तीर या भाले इतनी ऊँचाई को पार करके नहीं जा सकते थे और यह सुरक्षा देती थी। बाद में इसमें निरीक्षण मीनारें बना कर दूर से आते शत्रुओं पर निगाह रखने के लिये भी इस्तेमाल किया गया और चीन को दूसरे देशों से अलग करने के लिये भी। दो-दो सौ गज की दूरी पर 40 फुट ऊंची मीनारें बनाई गई हैं। अलग-अलग ऊंचाईयां रखने का यही कारण है कि कहीं दीवार नीची घाटियों पर बनी है तो कहीं इसके नीचे पहाड़ आ गए हैं। कहीं-कहीं तो यह समुद्र के धरातल से 4000 फुट ऊंची है। यह दीवार चीन और मंचूरिया की सीमा पर समुद्र के किनारे पेकिंग (आजकल का बीजिंग) नगर से शुरू होकर दक्षिण-पश्चिम तक चली गई है।

अपने उत्कर्ष पर मिंग वंश की सुरक्षा हेतु दस लाख से अधिक लोग नियुक्त थे। यह अनुमानित है कि इस महान दीवार की निर्माण परियोजना में लगभग 20 से 30 लाख लोगों ने अपना जीवन लगा दिया और 3000 जानें गईं और कई मजदूर इसे अपनी पूरी ज़िन्दगी भर बनाते रहे। तिब्बत और तुर्किस्तान की सीमा पर इस दीवार को विशेष रूप से मजबूत बनाया गया है, क्योंकि चीन वालों को उस ओर से शत्रुओं का अधिक डर था। कालगन, पीनमन आदि दर्रो की ओर खास-खास दरवाजे बनाए गए थे और उन पर सेना तैनात रखी जाती थी। चीन में यह व्यवस्था आज भी है। धीरे-धीरे यह बड़ी दीवार कहीं-कहीं पर टूटने लगी। सोलहवीं शताब्दी में इसकी मरम्मत हुई।

चीन में राज्य की रक्षा करने के लिए दीवार बनाने की शुरुआत हुई आठवीं शताब्दी ईसापूर्व में जिस समय कुई (Qi) , यान (Yan) और जाहो (Zhao) राज्यों ने तीर एवं तलवारों के आक्रमण से बचने के लिए मिटटी और कंकड़ को सांचे में दबा कर बनाई गयी ईटों से दीवार का निर्माण किया। ईसा से 221 वर्ष पूर्व चीन किन (Qin) साम्राज्य के अनतर्गत आ गया। इस साम्राज्य ने सभी छोटे राज्यों को एक करके एक अखंड चीन की रचना की। किन साम्राज्य से शासको ने पूर्व में बनायी हुई विभिन्न दीवारों को एक कर दिया जो की चीन की उत्तरी सीमा बनी। पांचवीं शताब्दी से बहुत बाद तक ढेरों दीवारें बनीं, जिन्हें मिलाकर चीन की दीवार कहा गया। प्रसिद्धतम दीवारों में से एक 220 - 206 ईसा पूर्व में चीन के प्रथम सम्राट किन शी हुआंग ने बनवाई थी। उस दीवार के अंश के कुछ ही अवशेष बचे हैं। यह मिंग वंश द्वारा बनवाई हुई वर्तमान दीवार के सुदूर उत्तर में बनी थी। मिंग शासन के दौरान सबसे ज्यादा हिस्सा बनकर तैयार हुआ। नए चीन की बहुत लम्बी सीमा आक्रमणकारियों के लिए खुली थी इसलिए किन शासको ने दीवार को चीन की बाकी सीमाओं तक फैलाना शुरू कर दिया। इस कार्य के लिए अथम परिश्रम एवं साधनों की आवश्यकता थी। दीवार बनाने की सामग्री को सीमाओं तक ले जाना एक कठिन कार्य था इसलिए मजदूरों ने स्थानीय साधनों का उपयोग करते हुए पर्वतों के निकट पत्थर की एवं मैदानों के निकट मिटटी एवं कंकड़ की दीवार का निर्माण किया। कालांतर में विभिन्न साम्राज्य जैसे हान, सुई ने दीवार की समय समय पर मरम्मत करवाई और आवश्यकतानुसार दीवार को विभिन्न दिशाओं मे फैलाया। आज यह दीवार विश्व में चीन का नाम ऊंचा करती है, व युनेस्को द्वारा 1987 से विश्व धरोहर घोषित है। चीन की दीवार आधुनिक विश्व के सात आश्चर्यों में से एक है।

लम्बी दीवार की दर्रे

चीन की लम्बी दीवार के बारे में बहुत सी दिलचस्प कहानी चीन में प्रचलित है, लम्बी दिवार अपनी बेजोड़ लम्बाई के कारण तो विश्वविख्यात ही है, साथ ही बड़ी संख्या में निर्मित उसके दुर्गम दर्रे भी बेमिसाल है ।

लम्बी दीवार का निर्माण चीन के प्रथम सामंत सम्राट छिन शहुंग के शासन काल में किया गया था, और मिंग राजवंश के काल में इस का पुनर्निर्माण किया गया, जो छै हजार किलोमीटर लम्बी है। लम्बी दीवार पर बड़ी संख्या में दर्रे बनाये गए, जिनमें से कुछ दर्रे विशेष महत्व रखते थे। लम्बी दीवार का प्रथम दर्रा शानहाईक्वान दर्रा कलहाता है, जो दुनिया के प्रथम दर्रे के नाम से मशहूर है, शानहाईक्वान दर्रा उत्तर चीन के हपै प्रांत व ल्याओ निन प्रांत की सीमा पर खड़ा है, यह लम्बी दीवार का आरंभ स्थल है। शानहाईक्वान दर्रा उत्तर में य्येन शान पर्वत से सटा हुआ है और दक्षिण में पो हाई समुद्र के तट तक पहुंचता है। दर्रे के क्षेत्र में प्राकृतिक सौंदर्य बहुत आकर्षक है, पर्वत पर हरियाली छायी है और समुद्र की जल राशि स्वच्छ और लहरेदार है। दर्रे का मुख्य दरवाजा पर्वत और समुद्र के बीच ऊंचा खड़ा नजर आता है। दर्रे पर आरोहित हुए दूर दृष्टि दौड़ाए, तो आलीशान और भव्य सुन्दर पहाड़ी समुद्री नजारा दिखता है, इसी कारण इस दर्रे का नाम शान हाई क्वान अर्थात गिर सागर का दर्रा रखा गया।

शानहाईर्क्वान दर्रे का निर्माण मिंग राज्य काल में राजवंश के मशहूर सेनापति श्यु ता द्वारा किया गया था। श्यु ता सैन्य मामले में बड़े दूर्दर्शी और विवेकशील थे, देश के सामरिक स्थानों पर कड़ा नियंत्रण रखने की दृष्टि से उसने.यहां शान हाई क्वान दर्रा बनवाया। दर्रे के चार दरवाजे हैं, पूर्वी दरवाजे की दीवार के ऊंपरी भाग में एक विशाल तख्ता लगाया गया है, जिस पर बड़े बड़े अक्षर में दुनिया का प्रथम दर्रा आलेख अंकित है, यह तख्ता लम्बाई में 5.90 मीटर, चौड़ाई में 1.45 मीटर तथा ऊंचाई में 1.09 मीटर विराट है। तख्ते पर अंकित वह बड़े बड़े अक्षरों का नाम मिन राजवंश के प्रसिद्ध लिपिकार, सरकारी पदों के लिए परीक्षा में उत्तीर्ण विद्वान श्योश्यान के हाथों लिखा गया, पर तख्ते पर इस लिपिकार का नाम नहीं लिखा गया। कहा जाता था कि लिपिकार श्यो श्यान जब दुनिया का प्रथम दर्रा अक्षर लिख रहा था, उसने एक ही सांस में ये बड़े बड़े शब्द लिख डाले थे, लिखने के बाद उसने फिर इन शब्दों को कड़ी निगाह से जायजा, उनमें से एक शब्द पर संतोष नहीं आया, उसने फिर कई बार वह शब्द लिखा, पर असंतुष्ट रहा, तब वह थोड़े विश्राम के लिए मदिरा दुकान आया और मदिरा लेते हुए इन शब्दों के बारे में सोच रहा। इसी वक्त दुकानदार आ पहुंचा और उसने आदत्त में अपने कंधे पर रखे तौलिया उतार कर मेज पर पानी की एक लकीर खींची, पानी की लकीर देखकर श्यु श्यान के दिमाग में एक विचार धौंका और उसने खुशी के मारे उछल कर कहा कि बहुत अच्छा, बहुत अच्छा। दरअसल श्यु श्यान पानी की उस लकीर पर इतना प्रभावित हो गया था, क्योंकि वह लकीर देखने में चीनी अक्षर - प्रथम के रूप में उच्चतम कोटि की लगती थी। श्यु शयान ने तुरंत इसकी नकल उतारी और तख्ते पर पुनः दर्रे का नाम लिखा, पुनः लिखा गया यह नाम चीन के इतिहास में एक बेजोड़ लिपिकला की कृति के लिए आज तक भी मशहूर रहा है। इस असाधारण सफलता के कारण श्यु श्यान ने आलेख पर अपना लिखने की परम्परा त्याग दी, इस तरह इस मशहूर तख्ते पर लिपिकार का नाम नहीं है, यह हालत चीन के इस प्रकार के मामले में अन्य मौके पर देखने को नहीं मिलती है।

लम्बी दीवार का पश्चिमी छोर चायुक्वान दर्रा है, जो उत्तर पश्चिम चीन के कांसू प्रांत के चायु शहर में स्थित है, यह दर्रा मिंग राजवंश के हुङ वु काल (ईसा 1372) में बनाया गया था। दर्रा चायु पहाड़ पर खड़ा होने के कारण उस का नाम चायुक्वान पड़ा। इस दर्रे के निर्माण के बाद यहां फिर कभी युद्ध नहीं हुआ था, इसलिए दर्रे का नाम शांति दर्रा भी आया।

उत्तर चीन के शानसी प्रांत के फिंग तिंग जिले में लम्बी दीवार पर न्यांग जी क्वान भी काफी मशहूर है, न्यांग जी क्वान दर्रा खतरनाक और दुर्गम पहाड़ी चोटी पर बनाया गया है, चारों ओर नीची ऊंची पहाड़ी चट्टानें खड़ी है, जिस पर सैन्य चढ़ाई करना अत्यन्त कठिन था और प्रतिरक्षा करना आसान था, इसलिए यह दर्रा शानसी प्रांत का अभेद्य दुर्ग भी कहलाता था। इस दर्रे का नाम पहले वीचेक्वान था। चीन के थांग राजवंश के काल में प्रथम सम्राट ली य्वन की तीसरी बेटी राजकुमारी फिंगयांग दर्जनों हजार सैनिकों का कमान करते हुए इस जगह तैनात थी, राजकुमारी फिंग यांग युद्धकला में कुशल और बड़ी तेजस्वी थी, उसकी सेना को तत्काल न्यांगजी सेना अर्थात कुमारी की फौज कलहाती थी। इसके आधार पर दर्रे का नाम भी बदल कर न्यांगजी क्वान (क्वान का मतलब दर्रा) पड़ा। आज भी इस दर्रे के पूर्वी दुर्ग की दीवार पर शाही कुमारी दर्रा शब्द अंकित हुआ देखने को मिलता है।

उत्तर पश्चिमी चीन के कांसू प्रांत के तुनहुंग जिले के उत्तर पश्चिम में स्थित शोफांगफान नगर में लम्बी दीवार का युमनक्वान दर्रे का खंडहर मौजूद है, यह दर्रा प्राचीन काल में सिन्चांग के हथ्येन जिले से जेड सामग्री को भीतरी इलाके में पहुंचाया जाने का एक मुख्य मार्ग था, इसलिए दर्रे का नाम युमन क्वान अर्थात जेड दरवाजा दर्रा पड़ा।

उत्तर चीन में पेइचिंग के अधीन छांगफिंग इलाके में फैली लम्बी दीवार पर च्युयङ क्वान खड़ा है, तत्काल में लम्बी दीवार के निर्माण के दौरान सरकारी दफतर इस जगह स्थानांतरित हो कर निर्माण कार्य की देखरेख कर रही थी और इस दर्रे का पास खड़े च्यन्तु पहाड़ पर कंट्रोल था, इसलिए दर्रे का नाम च्युयङ क्वान यानी नियंत्रण दर्रा रखा गया।

शानसी प्रांत के फ्यानक्वान जिले में स्थित फ्यानथोक्वान दर्रा चीनी भाषा में एक विचित्र नाम है, असल में यह दर्रा एक असमतल स्थान पर खड़ा है, भू-स्थिति पूर्व में ऊंची तथा पश्चिम में नीची है और बड़ा ढालवां होती है, इसलिए इस दर्रे का नाम फ्यानथोक्वान अर्थात ढालवां दर्रा रखा गया।

शानसी प्रांत के तै श्यान जिले में फैली एक संकरी पहाड़ी वादी में यांमनक्वान शान से खड़ा है, दर्रे के दोनों ओर सीधी खड़ी पहाड़ी चट्टानें हैं, चट्टान इतनी सीधी और ऊंची है, राजहंस भी उसे पार नहीं कर सकता और उसे वादी में उतर कर नीचे के दर्रे से गुजरना पड़ता है, इसी दृश्य को देखते हुए इस दर्रे का नाम यांमनक्वान अर्थात राजहंस द्वार रखा गया।



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