रविवार, 10 फ़रवरी 2013

भानगढ़ क़िला (Bhangarh Fort)


भानगढ़ क़िला (Bhangarh Fort)

राजस्थान के अलवर ज़िले के भानगढ़ शहर में स्थित सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान के पास स्थित भानगढ़ का किला एक मध्ययुगीन किला है। यहाँ का किला बहुत प्रसिद्ध है जो 'भूतहा किला' माना जाता है। यह किला, जो अब खंडहर है, एक पुरानी दीवार से घिरा हुआ है। जिसमें शाम 6 बजे के बाद प्रवेश वर्जित है। ऐसी धारणा है कि इस किले के अंदर सूर्यास्त के बाद जाने वाले लौटकर कभी नहीं आते।

भानगड़ किला का शानदार अतीत
भानगढ़ क़िले को आमेर के राजा भगवंत दास ने 1573 (सत्रहवीं शताब्‍दी) में बनवाया था। मुग़ल शहंशाह अकबर के नवरत्नों में शामिल और भगवंत दास के छोटे बेटे व अम्बर के महान मुगल सेनापति, मानसिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने बाद में (1613) इसे अपनी रिहाइश बना लिया। जिसे बाद में महाराजा सवाई जयसिंह ने जबरन अपने साम्राज्य में मिला लिया। राजा माधो सिंह उस समय अकबर के सेना में जनरल के पद पर तैनात थे। उस समय भानगड़ की जनसंख्‍या तकरीबन 10,000 थी।

क़िले की बनावट
भानगढ़ का क़िला अल्‍वार जिले में स्थित एक शानदार किला है जो कि बहुत ही विशाल आकार में तैयार किया गया है। चारो तरफ से पहाड़ों से घिरे इस किले में बेहतरीन शिल्‍पकलाओ का प्रयोग किया गया है। इसके अलावा इस किले में भगवान शिव, हनुमान आदी के बेहतरीन और अति प्राचिन मंदिर विध्‍यमान है। इस किले में कुल पांच द्वार हैं और एक मुख्‍य दीवार है। इस किले में दृण और मजबूत पत्‍थरों का प्रयोग किया गया है जो अति प्राचिन काल से अपने यथा स्थिती में पड़े हुये है।

भानगढ़ का क़िला चहारदीवारी से घिरा है जिसके अंदर घुसते ही दाहिनी ओर कुछ हवेलियों के अवशेष दिखाई देते हैं। सामने बाज़ार है जिसमें सड़क के दोनों तरफ कतार में बनाई गई दो मंजिली दुकानों के खंडहर हैं। क़िले के आखिरी छोर पर दोहरे अहाते से घिरा तीन मंजिला महल है जिसकी ऊपरी मंज़िल लगभग पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। चहारदीवारी के अंदर कई अन्य इमारतों के खंडहर बिखरे पड़े हैं।

क़िले के अंदर बने मंदिर
किले में प्राकृतिक झरने, जलप्रपात, उद्यान, हवेलियां और बरगद के पेड़ हैं। भगवान सोमेश्वर, गोपीनाथ, मंगला देवी और केशव राय के मंदिर क़िले के अंदर बने प्रमुख मंदिरों में से हैं। इन मंदिरों की दीवारों और खम्भों पर की गई नक़्क़ाशी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह समूचा क़िला कितना ख़ूबसूरत और भव्य रहा होगा। सोमेश्वर मंदिर के बगल में एक बावली है जिसमें अब भी आसपास के गांवों के लोग नहाया करते हैं। यहाँ अलग एक हिलटाप छतरी भी है।

मौजूदा भानगढ़ का खंडहर एक शानदार अतीत की बर्बादी का दुखद दास्तान है। किले के अंदर की इमारतों में से किसी की भी छत नहीं बची है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इसके मंदिर पूरी तरह से सही सलामत हैं। इन मंदिरों की दीवारों और खंभों पर की गई नफीस नक्काशी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह समूचा किला कितना खूबसूरत और भव्य रहा होगा।

भानगड किले पर कालें जादूगर सिंघिया का श्राप
भानगड़ किला जो देखने में जितना शानदार है उसका अतीत उतना ही भयानक है। भानगढ़ के किले का रातोंरात खंडहर में बदल जाने के पीछे कई कहानियां हैं जिनमें तांत्रिक सिंधिया का किस्सा काफी प्रसिद्ध है। आपको बता दें कि भानगड़ किले के बारें में प्रसिद्व एक कहानी के अनुसार भानगड़ की राजकुमारी रत्‍नावती जो कि नाम के ही अनुरूप बेहद खुबसुरत थी। उस समय उनके रूप की चर्चा पूरे राज्‍य में थी और देश के कोने कोने के राजकुमार उनसे विवाह करने के इच्‍छुक थे।

उस समय उनकी उम्र महज 18 वर्ष ही थी और उनका यौवन उनके रूप में और निखार ला चुका था। उस समय कई राज्‍यो से उनके लिए विवाह के प्रस्‍ताव आ रहे थे। उसी दौरान वो एक बार किले से अपनी सखियों के साथ बाजार में निकती थीं। राजकुमारी रत्‍नावती एक इत्र की दुकान पर पहुंची और वो इत्रों को हाथों में लेकर उसकी खुशबू ले रही थी। उसी समय उस दुकान से कुछ ही दूरी एक सिंघीया नाम व्‍यक्ति खड़ा होकर उन्‍हे बहुत ही गौर से देख रहा था।
सिंघीया उसी राज्‍य में रहता था और वो काले जादू का महारथी था। ऐसा बताया जाता है कि वो राजकुमारी के रूप का दिवाना था और उनसे प्रगाण प्रेम करता था। वो किसी भी तरह राजकुमारी को हासिल करना चाहता था। इसलिए उसने उस दुकान के पास आकर एक इत्र के बोतल जिसे रानी पसंद कर रही थी उसने उस बोतल पर काला जादू कर दिया जो राजकुमारी के वशीकरण के लिए किया था। लेकिन एक विश्वशनीय व्यक्ति ने राजकुमारी को इस राज के बारे में बता दिया।

राजकुमारी रत्‍नावती ने उस इत्र के बोतल को उठाया, लेकिन उसे वही पास के एक पत्‍थर पर पटक दिया। पत्‍थर पर पटकते ही वो बोतल टूट गया और सारा इत्र उस पत्‍थर पर बिखर गया। इसके बाद से ही वो पत्‍थर फिसलते हुए उस तांत्रिक सिंघीया के पीछे चल पड़ा और तांत्रिक को कुचल दिया, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गयी। मरने से पहले तांत्रिक ने श्राप दिया कि इस किले में रहने वालें सभी लोग जल्‍द ही मर जायेंगे और वो दोबारा जन्‍म नहीं ले सकेंगे और ताउम्र उनकी आत्‍माएं इस किले में भटकती रहेंगी।

उस तांत्रिक के मौत के कुछ दिनों के बाद ही भानगडं और अजबगढ़ के बीच युद्व हुआ जिसमें किले में रहने वाले सारे लोग मारे गये। यहां तक की राजकुमारी रत्‍नावती भी उस शाप से नहीं बच सकी और उनकी भी मौत हो गयी। एक ही किले में एक साथ इतने बड़े कत्‍लेआम के बाद वहां मौत की चींखें गूंज गयी और आज भी उस किले में उनकी रू‍हें घुमती हैं।

आसपास के गांवों के लोग मानते हैं कि सिंघिया के शाप की वजह से ही किले के अंदर की सभी इमारतें रातोंरात ध्वस्त हो गईं। उनका विशवास है कि रत्नावती और भानगढ़ के बाकी निवासियों की आत्माएं अब भी किले में भटकती हैं और रात्रि के समय इस किले से तरह-तरह की भयानक आवाजें आती हैं।

एक अन्य कहानी के अनुसार भानगढ़ एक गुरु बालू नाथ (बाबा बालानाथ) द्वारा एक शापित स्थान है जिन्होंने इसके मूल निर्माण की मंज़ूरी दी थी लेकिन साथ ही यह चेतावनी भी दी थी कि महल की ऊंचाई इतनी रखी जाये कि उसकी छाया उनके ध्यान स्थान से आगे ना निकले अन्यथा पूरा नगर ध्वस्त हो जायेगा लेकिन राजवंश के राजा अजब सिंह ने गुरु बालू नाथ की इस चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया और उस महल की ऊंचाई बढ़ा दी जिससे की महल की छाया ने गुरु बालू नाथ के ध्यान स्थान को ढंक लिया और तभी से यह महल शापित हो गया।

किलें में सूर्यास्‍त के बाद प्रवेश निषेध
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा खुदाई से इस बात के पर्याप्त सबूत मिले हैं कि यह शहर एक प्राचीन ऐतिहासिक स्थल है। फिलहाल इस किले की देख रेख भारत सरकार द्वारा की जाती है। किले के चारों तरफ आर्कियोंलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) की टीम मौजूद रहती हैं। एएसआई ने सख्‍त हिदायत दे रखा है कि सूर्यास्‍त के बाद इस इलाके में किसी भी व्‍यक्ति के रूकने के लिए मनाही है। इस किले में जो भी सूर्यास्‍त के बाद गया वो कभी भी वापस नहीं आया है। कई बार लोगों को रूहों ने परेशान किया है और कुछ लोगों को अपने जान से हाथ धोना पड़ा है।

इस किले में प्रवेश करने वाले लोगों को पहले ही चेतावनी दे दी जाती है कि वे सूर्योदय के पूर्व और सूर्यास्त के पश्चात् इस इस किले के आस पास समूचे क्षेत्र में प्रवेश ना करें अन्यथा किले के अन्दर उनके साथ कुछ भी भयानक घट सकता है। ऐसा कहा जाता है कि इस किले में भूत प्रेत का बसेरा है, भारतीय पुरातत्व के द्वारा इस खंडहर को संरक्षित कर दिया गया है। गौर करने वाली बात है जहाँ पुरात्तव विभाग ने हर संरक्षित क्षेत्र में अपने ऑफिस बनवाये है वहीँ इस किले के संरक्षण के लिए पुरातत्व विभाग ने अपना ऑफिस भानगढ़ से किमी दूर बनाया है।

दिन में भी इसके अंदर खामोशी रहती है। कई सैलानियों का कहना है कि खंडहरों के बीच से गुजरते हुए उन्हें अजीब सी बेचैनी महसूस होती है। इनके अनुसार किले के अंदर एक छोर पर केवड़े के झुरमुट हैं, जिसकी खुशबू कभी-कभी तेज हवा के कारण चारों तरफ फैल जाती है, जिससे वातावरण और भी रहस्यमयी लगने लगता है।

किलें में रूहों का कब्‍जा
जयपुर और अलबर के बीच स्थित राजस्थान के भानगढ़ के इस किले के बारे में वहां के स्थानीय लोग कहते हैं कि रात्रि के समय इस किले से तरह तरह की भयानक आवाजें आती हैं और साथ ही यह भी कहते हैं कि इस किले के अन्दर जो भी गया वह आज तक वापस नहीं आया है, लेकिन इसका राज क्या है आज तक कोई नहीं जान पाया।

इस किले में कत्‍लेआम किये गये लोगों की रूहें आज भी भटकती हैं। कई बार इस समस्‍या से रूबरू हुआ गया है। एक बार भारतीय सरकार ने अर्धसैनिक बलों की एक टुकड़ी यहां लगायी थी ताकि इस बात की सच्‍चाई को जाना जा सकें, लेकिन वो भी असफल रही कई सैनिकों ने रूहों के इस इलाके में होने की पुष्ठि की थी। इस किले में आज भी जब आप अकेलें होंगे तो तलवारों की टनकार और लोगों की चींख को महसूस कर सकतें है।

इसके अलांवा इस किले में भीतर कमरों में महिलाओं के रोने या फिर चुडि़यों के खनकने की भी आवाजें साफ सुनी जा सकती है। किले के पिछले हिस्‍सें में जहां एक छोटा सा दरवाजा है उस दरवाजें के पास बहुत ही अंधेरा रहता है कई बार वहां किसी के बात करने या एक विशेष प्रकार के गंध को महसूस किया गया है। वहीं किले में शाम के वक्‍त बहुत ही सन्‍नाटा रहता है और अचानक ही किसी के चिखने की भयानक आवाज इस किलें में गुंज जाती है।



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें