शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

सराहन घाटी

सराहन घाटी

हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला और किन्नौर जिले की सीमा पर बसा सराहन स्वर्ग का एहसास कराने वाला एक सुंदर और अद्भुत पर्यटक स्थल है जो सराहन घाटी के नाम से भी जाना जाता है। यह क्षेत्र कई वर्षों तक पर्यटन के लिहाज से बचा रहा मगर अब पिछले कुछ वर्षों से इस तरफ पर्यटकों की भीड़ बढ़ने लगी है। इसलिए अब सरकार ने भी इसे पर्यटन के लिए लिहाज से उपयुक्त समझा है।

इसका इतिहास देखें तो पता चलता है कि यह शहर शिमला पहाड़ियों के सबसे बड़े राजवंश रामपुर की प्राचीन राजधानी था। आज यह एक शांत पर्यटन स्थल के रूप में अपनी पहचान बना चुका है। सतलुज घाटी में यह छोटा सा पर्वतीय शहर समुद्रतल से 7,589 फुट (1920 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित है। इतिहास में इसको बुशहर नाम से भी जाना जाता है। इसके अतिरिक्त 51 शक्तिपीठों में से एक भीमाकाली माता का मंदिर भी इसी शहर में है। हिंदू और बौद्ध (पश्चिमी हिमालयन) वास्तुशिल्प से निर्मित यह मंदिर लगभग 2,000 वर्ष पुराना है, मगर इसका जीर्णोद्धार कर इसको पुनः वही आकार दिया गया है।

पत्थरों और लकड़ी के इस्तेमाल से बना यह मंदिर शत-प्रतिशत भूकंपरोधी है। मंदिर के प्रांगण में खड़े होकर आप हिमालय को साक्षात निहार सकते हैं। इस मंदिर के नजदीक ही आपको एक पक्षी-विहार है जिसमें यहां के राज्य-पक्षी मोनाल सहित लगभग हर प्रकार के पहाड़ी पक्षी हैं। सरकार और स्थानीय लोगों के प्रयासों से रास्तों के दोनों तरफ लगाए गए तरह-तरह के फूल लहराते हुए पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।

सराहन से लगभग सात किलोमीटर की दूरी पर यदि घाटी से थोड़ा नीचे उतरेंगे तो वहां आपको सतलज नदी का मनोहारी दृश्य मिलेगा। इसके अतिरिक्त सराहन से कुछ ही दूरी पर कामरू का ऐतिहासिक किला, चितकुल घाटी और बस्पा नदी जैसे अन्य पर्यटन स्थल भी हैं जहां आप आसानी से आ-जा सकते हैं।

शहर अत्यधिक बड़ा न होने के कारण यहां यातायात के साधनों की आवश्यकता कम ही होती है इसलिए कुछ स्थानों पर पैदल भी घूमा जा सकता है। फिर भी यहां टैक्सी, बस आदि की सुविधा आसानी से मिल जाती है और महंगी भी नहीं है। पर्यटकों की सुविधा के लिए सरकार ने यहां आम से खास तक, सभी के बजट के अनुसार होटल और रेस्ट हाउस आदि का भी विशेष प्रबंध किया है।

यहां आने के लिए सर्दियां उचित समय नहीं है क्योंकि इस मौसम में यहां पर तापमान शून्य से भी नीचे ही रहता है। यहां आने के लिए मार्च से जून और सितंबर से अक्टूबर का समय बहुत ही अच्छा समय है। दिन के समय यहां का तापमान लगभग 30 से 32 डिग्री तक रहता है। मगर रात को ठंड बढ़ जाती है।

सराहन एक ऐसा स्थान है जहां से बर्फ से ढकी पर्वतों की बड़ी श्रंखला नजर आती है। बर्फ से ढकी चोटियों के शानदार दृश्य हर सैलानी को प्रभावित करते हैं। इन चोटियों में प्रमुख है श्रीखंड पीक। शिवलिंग नुमा यह पीक सराहन को एक अलग ही भव्यता प्रदान करती है। सराहन की खूबसूरती में इसके सेब के बागों का भी बहुत बड़ा योगदान है।

यदि अपनी गाड़ी से जा रहे हैं तो ध्यान दें कि शिमला से राष्ट्रीय राजमार्ग 22 से होते हुए रास्ते में थेयोग, नारकंडा, रामपुर और जैओरी नामक कुछ छोटे-छोटे पर्यटन स्थल भी आते हैं जहां आपको पेट्रोल पंप की सुविधा मिलेगी। शिमला से सराहन के बीच लगभग 180 किलोमीटर के इस रास्ते पर जब आप निकलेंगे तो आपका सामना देवदार के घने जंगलों, कई सारे छोटे-बड़े झरनों, खेतों एवं छोटे-छोटे अनेक गांवों से होगा।

इन गांवों से होकर जाने पर आपको उनके पारंपरिक पहनावे और संस्कृति की भी झलक देखने को मिलेगी। सराहन जाने के लिए सड़क मार्ग ही है जो शिमला से टैक्सी, जीप या बस द्वारा भी जाया जा सकता है। यह दूरी लगभग 6-7 घंटे में आसानी से तय की जा सकती है।

यह रास्ता अधिकतर सतलुज नदी के किनारे से गुजरता है, इसलिए इसकी तेज धारा आपको एक नए संगीत से रू-ब-रू कराएगी। इसके अतिरिक्त जैसे-जैसे आप सराहन के नजदीक पहुंचेगे वैसे-वैसे आपको मार्ग के किनारे अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियां भी नजर आने लगेंगी। पर्यटकों को सराहन पहुंचना कठिन जरूर लगता है, लेकिन वहां पहुंचकर जब प्रकृति का अद्भुत स्वरूप देखने को मिलता है तो उनकी सारी थकान दूर हो जाती है।

ये भी जान लें

दिल्ली से सराहन की दूरी करीब 550 किलोमीटर है।
शिमला से फागू, थ्योग, नारकंडा, रामपुर और ज्योरी होकर सराहन पहुंचते हैं।
चंडीगढ़ या शिमला तक ट्रेन से पहुंचकर वहां से बस या टैक्सी से सराहन जा सकते हैं। 
सराहन में ठहरने के लिए हिमाचल पर्यटन का होटल श्रीखंड एवं कुछ निजी होटल भी हैं। 
मानसून में अभी वक्त है, इसलिए यह समय वहां जाने के लिए उपयुक्त है।  
सुबह और शाम के समय मौसम काफी ठंडा रहता है, इसलिए ऊनी वस्त्र ले जाना उचित है। 
ट्रैकिंग का शौक हो तो उसकी बुकिंग शिमला से करना उचित रहेगा।

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