अजीबो-गरीब मंदिर
भारत को मंदिरों का देश कहा जाता है। यहां हिन्दुओं की आबादी सबसे ज्यादा है। धर्म में आस्था रखने वाला हर व्यक्ति पूजा-अर्चना के लिए मंदिरों में जाता है। यहां अनेकों देवी-देवताओं के प्रसिद्ध मंदिर हैं। मंदिरों की इस श्रृंखला में कई ऐसे भी मंदिर हैं जो परंपरागत स्वरूप से काफी अलग हटकर हैं। इन मंदिरों में उन जीवों के प्रति आस्था दर्शायी गई है, जिनकी पूजा आदिम समाज में की जाती थी। ऐसे जीवों में सांप और चूहे तक शामिल हैं।
सांप का मंदिर, केरल: हिन्दू धार्मिक मान्यता के मुताबिक सांपों को भगवान का दर्जा प्राप्त है। नागपंचमी और नागुलाचाविथी के अवसर पर सांपों की पूजा की जाती है। उन्हें दूध पिलाया जाता है। केरल के पाम्पुम्मैकाटु और मन्नरास्ला में सांप के दो प्रसिद्ध मंदिर स्थापित हैं। यहां सांपों की कई प्रजातियां प्राकृतिक रूप से निवास करती हैं। देश भर से लोग उनकी पूजा के लिए यहां आते हैं।
रावण मंदिर, कानपुर, यूपी: यूपी के कानपुर के शिवाला में स्थित दशानन (रावण) मंदिर की ख्याति पूरे देश में है। 143 साल पुराने इस मंदिर को 1868 में बनाया गया था। मंदिर में करीब आठ फीट ऊंची रावण की मूर्ति है। मूर्ति में दस सिर और आठ भुजाएं हैं। दशानन मंदिर में दशहरे के दिन बड़ी संख्या में भक्त दर्शन के लिए आते हैं। बल और विद्या के लिए भक्त रावण के आगे मन्नत भी मांगते हैं।
चूहों का मंदिर: राजस्थान के बीकानेर में स्थित करणी माता का मंदिर या कह लीजिए चूहों की रानी का मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध है। यहां चारों तरफ चूहे ही चूहे नजर आते हैं। चूहे यहां बिना किसी डर के घूमते हैं, खाते-पीते हैं। यहां के अद्भुत नजारे को देखने देश-विदेश से पर्यटक भी आते हैं।
काल भैरव, उज्जैन: उज्जैन को देवताओं की नगरी कहते हैं। यहां अनेक चमत्कारिक मंदिर हैं। ऐसा ही एक मंदिर है भगवान कालभैरव का। यहां भगवान कालभैरव की प्रतिमा को शराब का भोग लगाया जाता है और आश्चर्य की बात यह है कि देखते ही देखते वह पात्र जिसमें शराब रखी होती है, खाली हो जाता है। यहां हर रोज श्रृद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है और इस चमत्कार को अपनी आंखों से देखती है।
हिडिम्बा मंदिर, मनाली: हिमाचल प्रदेश के मनाली में समुद्र तल से 1533 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर धूंगरी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर स्थानीय देवी हिडिम्बा को समर्पित है। हिडिम्बा महाभारत में वर्णित भीम की पत्नी थी। मई के महीने में यहां एक खास उत्सव मनाया जाता है। इसमें आस-पास के इलाकों से भारी संख्या में श्रद्धालु एकत्र होते हैं। महाराज बहादुर सिंह ने यह मंदिर 1553 ई. में बनवाया था। लकड़ी से निर्मित यह मंदिर पैगोड़ा शैली में बना है।
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