शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

भीमबेटका गुफ़ाएँ (Bhimbetka)

भीमबेटका गुफ़ाएँ (Bhimbetka)

स्थिति
भीमबेटका गुफ़ाएँ भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त के रायसेन ज़िले में स्थित है। ये गुफ़ाएँ भोपाल से 46 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण में मौजूद है। गुफ़ाएँ चारों तरफ़ से विंध्य पर्वतमालाओं से घिरी हुईं हैं, जिनका संबंध 'नव पाषाण काल' से है। भीमबेटका गुफाएँ मध्य भारत के पठार के दक्षिणी किनारे पर स्थित विंध्याचल की पहाड़ियों की तराई में मौजूद हैं। इसके दक्षिण में सतपुड़ा की पहाड़ियाँ आरम्भ हो जाती हैं। काले स्लेट पत्थरों और बलुआ मिट्टी से बनी चट्टानें बहुत कुछ गोलाई लिए हुए भी हैं, इसलिए वैज्ञानिक अनुमान लगाते हैं की कभी ये सब पानी के अन्दर रहा होगा।

1957 में की गई खोज
इनकी खोज वर्ष 1957 - 1958 में 'डॉक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर' द्वारा की गई थी। वी. एस. वाकंकर एक बार रेल से भोपाल जा रहे थे तब उन्होंने कुछ पहाड़ियों को इस रूप में देखा जैसा कि उन्होंने स्पेन और फ्रांस में देखा था। वे इस क्षेत्र में पुरातत्ववेत्ताओं की टीम के साथ आये और 1957 में कई पुरापाषाणिक गुफाओं की खोज की।

भीम से संबन्धित
भीमबेटका को भीम का निवास भी कहते हैं। हिन्दू धर्म ग्रंथ महाभारत के अनुसार पांच पाण्डव राजकुमारों में से भीम द्वितीय थे। ऐसा माना जाता है कि भीमबेटका गुफ़ाओं का स्थान महाभारत के चरित्र भीम से संबन्धित है और इसी से इसका नाम 'भीमबैठका' भी पड़ा गया। भीमबेटका का उल्लेख पहली बार भारतीय पुरातात्विक रिकॉर्ड में 1888 में बुद्धिस्ट साइट के तौर पर आया है।

चित्रकारी
पूर्व पाषाण काल से मध्य पाषाण काल तक यह स्थान मानव गतिविधियों का केंद्र रहा। भीमबेटका गुफाओं में बनी चित्रकारियाँ यहाँ रहने वाले पाषाणकालीन (stone age) मनुष्यों के जीवन को दर्शाती है। भीमबेटका गुफ़ाएँ प्रागैतिहासिक काल की चित्रकारियों के लिए लोकप्रिय हैं और भीमबेटका गुफ़ाएँ आदिमानव द्वारा बनाये गए शैल चित्रों और शैलाश्रयों के लिए भी प्रसिद्ध है। गुफ़ाओं की सबसे प्राचीन चित्रकारी को 12000 साल पुरानी माना जाता है। भीमबेटका गुफ़ाओं की विशेषता यह है कि यहाँ कि चट्टानों पर हज़ारों वर्ष पूर्व बनी चित्रकारी आज भी मौजूद है। भीमबेटका में 750 गुफाएं हैं जिनमें 500 गुफाओं में शैल चित्र बने हैं। भीमबेटका गुफ़ाओं में अधिकांश तस्‍वीरें लाल और सफ़ेद रंग के है और इस के साथ कभी कभार पीले और हरे रंग के बिन्‍दुओं से सजी हुई हैं, जिनमें दैनिक जीवन की घटनाओं से ली गई विषय वस्‍तुएँ चित्रित हैं, जो हज़ारों साल पहले का जीवन दर्शाती हैं। इन चित्रो को पुरापाषाण काल से मध्यपाषाण काल के समय का माना जाता है। अन्य पुरावशेषों में प्राचीन क़िले की दीवार, लघुस्तूप, पाषाण निर्मित भवन, शुंग-गुप्त कालीन अभिलेख, शंख अभिलेख और परमार कालीन मंदिर के अवशेष भी यहाँ मिले हैं।

भीमबेटका गुफाओं में प्राकृतिक गेरुआ, लाल और सफ़ेद रंगों से वन्यप्राणियों के शिकार दृश्यों के अलावा घोड़े, हाथी, बाघ आदि के चित्र उकेरे गए हैं। इन चित्र में से यह दर्शाए गए चित्र मुख्‍यत है; सामूहिक नृत्‍य, संगीत बजाने, आखेट का दृश्य, रेखांकित मानवाकृति, शिकार करने, युद्ध, घोड़ों और हाथियों की सवारी, दैनिक क्रियाकलापों से जुड़े चित्र, पशु-पक्षियों के चित्र, शरीर पर आभूषणों को सजाने और शहद जमा करने के बारे में हैं। घरेलू दृश्‍यों में भी एक आकस्मिक विषय वस्‍तु बनती है। शेर, सिंह, जंगली सुअर, हाथियों, कुत्तों और घडियालों जैसे जानवरों को भी इन तस्‍वीरों में चित्रित किया गया है। इन आवासों की दीवारें धार्मिक संकेतों से सजी हुई है, जो पूर्व ऐतिहासिक कलाकारों के बीच लोकप्रिय थे। सेंड स्टोन के बड़े खण्‍डों के अंदर अपेक्षाकृत घने जंगलों के ऊपर प्राकृतिक पहाड़ी के अंदर पाँच समूह हैं, जिसके अंदर मिज़ोलिथिक युग से ऐतिहासिक अवधि के बीच की तस्‍वीरें मौजूद हैं। इस स्‍थल के पास 21 गांवों के निवासियों की सांस्‍कृतिक परम्‍परा में इन पहाड़ी तस्‍वीरों के साथ एक सशक्‍त साम्‍यता दिखाई देती है।

विश्‍व विरासत स्‍थल
यह महत्वपूर्ण धरोहर पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। टीक और साक पेड़ों से घिरी भीमबेटका गुफ़ाओं को यूनेस्को द्वारा विश्‍व विरासत स्‍थल के रूप में मान्‍यता दी गई है। भीम बेटका क्षेत्र को भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण, भोपाल मंडल ने अगस्त 1990 में राष्ट्रीय महत्त्व का स्थल घोषित किया। इसके बाद जुलाई 2003 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया। भीमबेटका गुफ़ा भारत में मानव जीवन के प्राचीनतम चिह्न हैं।


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