मंगलवार, 8 जनवरी 2019

सारागढ़ी युद्ध 1897 (Battle of Saragarhi)

कब हुआ था सारागढ़ी का युद्ध (when Battle of Saragarhi took place)

सारागढ़ी युद्ध 12 सितम्बर 1897 को हुआ था। ये युद्ध 10,000 पश्तूनों के खिलाफ हुआ था। इस युद्ध में 36वीं सिख बटालियन के महज 21 सिख सेना के जवानों ने भाग लिया था। जिस समय ये युद्ध हुआ था, उस समय भारत पर ब्रिटिश का राज था। इन 21 सिपाहियों ने उस वक्त भारत पर राज कर रहे ब्रिटिशों की ओर से ये युद्ध लड़ा था।

आखिर क्या है 36वीं सिख रेजिमेंट (The 36th Sikhs regiment)

ब्रिटिश के राज के दौरान भारत में 36वीं सिख रेजिमेंट या बटालियन के सभी सिपाही सिख हुआ करते थे। इस बटालियन में केश धारी सिखों को रखा जाता था। वहीं भारत को अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद से 36वें सिख बटालियन अब चौथे बटालियन की 11वीं सिख रेजिमेंट के रुप में जानी जाती है।

कहां हैं सारागढ़ी जगह (where is saragarhi located)

सारागढ़ी नामक स्थान आजादी से पहले भारत का हिस्सा हुआ करता था। मगर देश के हुए बंटवारे में ये स्थान पाकिस्तान के हिस्से में चला गया था और इस वक्त ये स्थान आधुनिक पाकिस्तान के पास स्थित एक छोटा सा गांव है।

वर्तमान में पाकिस्तान का हिस्सा सारागढ़ी हिंदुकुश पर्वतमाला पर एक छोटा सा गांव है जो हिमालय क्षेत्र के अंतर्गत आता है। यह इलाका हिंदुकुश में उत्तरी पाकिस्तान को मध्य अफगानिस्तान से जोड़ता है।

जानिए इस युद्ध की कहानी का इतिहास (Battle of saragarhi history)

कहा जाता है कि अफ़रीदी और औरकज़ई कबायलियों ने उस समय गुलिस्तान और लोखार्ट के किलों पर कब्जा करने के मकसद से ये युद्ध किया था। ये दोनों किले भारत और अफगान की सीमा के पास स्थित थे और इन दोनों किलों का निर्माण महाराजा रणजीत सिंह द्वारा करवाया गया था। लॉकहार्ट के किले और गुलिस्तान के किले के पास ही सारागढ़ी चौकी हुआ करती थी। वहीं सिपाही द्वारा अफसरों से संचार करने के लिए ये एक प्रमुख केंद्र हुआ करता था। सारागढ़ी चौकी की जिम्मेदारी 36वीं सिख रेजिमेंट के सिपाहियों को दी गई थी। वहीं 21 सितंबर को पश्तूनों (अफ़रीदी और औरकज़ई) ने लोखार्ट किले पर हमले कर दिया था। इस हमले की खबर सिपाही गुरमुख सिंह द्वारा अपने अफसरों तक पहुंचाई गई थी, मगर इतनी जल्दी वहां पर सेना को भेज पाना असम्भव सा था। वहीं 36वीं सिख रेजिमेंट के सिपाहियों ने इस युद्ध का मोर्चा संभाल लिया और करीब 10 हजार पश्तूनों से युद्ध किया और करीब 600 लोगों को मार डाला। हालांकि इस हमले में 36वीं सिख रेजिमेंट के सभी 21 सिपाही भी शहीद हो गए थे। वहीं पश्तूनों की ओर से कोई और नुकसान हो पाता, इससे पहले अंग्रेजी सेना ने वहां जाकर मोर्चा संभाल लिया और इस युद्ध को जीत लिया। वहीं जिस तरह से केवल 21 सिपाहियों ने इन पश्तूनों को बहादुरी से रोके रखा, उसकी बदौलत इनको हराने में अंग्रेजों को काफी सहायता मिली। इतना ही नहीं कहा जाता है कि इन 21 सिपाहियों के पास जब बंदूकों की गोलियां खत्म हो गई, तो उन्होंने 10,000 दुश्मनों का सामना चाकू की मदद से किया।

युद्ध में भाग लेने वाले 21 सिपाहियों के नाम (Saragarhi Day and name of soldiers)

देश के इन बहादुर वीरों की कुर्बानी को आज भी याद की जाती है और हर साल 12 सितंबर को सारगढ़ी दिन के रूप में मनाया जाता है। सिख रेजिमेंट की सभी इकाइयां हर साल इस दिन उन 21 सिपाहियों को याद करती है जिन्होनें सिखों का नाम इतना रोशन किया है। वहीं इस युद्ध को ईशर सिंह की अगुवाई में लड़ा गया था। ईशर सिंह ब्रिटिश सेना में एक हवलदार के रूप में कार्य करते थे। वहीं उनके अलावा इस युद्ध में उनका साथ लांस नायक चंदा सिंह, नायक लाल सिंह सहित कई सिपाही ने दिया था और इन सिपाही के नाम इस प्रकार हैं।

ईशर सिंह के साथ 20 अन्य सैनिकों ने उनका इस युद्ध में साथ दिया उनके नाम निनानुसार हैं

1. गुरमुख सिंह
2. चंदा सिंह
3. लाल सिंह
4. जीवन सिंह
5. बूटा सिंह
6. जीवन सिंह
7. नन्द सिंह
8. राम सिंह
9. भगवान सिंह
10. भोला सिंह
11. दया सिंह
12. नारायण सिंह
13. साहिब सिंह
14. हिरा सिंह
15. सुन्दर सिंह
16. उत्तर सिंह.
17. करमुख सिंह
18. गुरमुख सिंह (Same Name)
19. भगवान सिंह (Same Name)
20. राम सिंह (Same Name)

यूनेस्को द्वारा किया गया शामिल (battle of saragarhi unesco)

संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा इतिहास में लड़ी गई आठ बहादुरी की कहानियों में इस युद्ध को भी शामिल किया गया है। इस युद्ध को जिस प्रकार लड़ा गया, उसको आज भी दुनिया भर में याद किया जाता है। वहीं यूनेस्को द्वारा इस युद्ध को प्रकाशित करने से इस युद्ध के वीर को आज भी याद रखा गया है।

याद में करवाया गुरुद्वारे का निर्माण  (Saragarhi Memorial Gurudwara)

सारागढ़ी युद्ध में भाग लेने वाले सिखों की बहादुरी को मनाने के लिए तीन गुरुद्वारे का निर्माण किया गया है। जिनमें से एक सारागढ़ी में जहां पर युद्ध हुआ था, उधर बनाया गया है। वहीं दूसरा फिरोजपुर और तीसरा अमृतसर में बनाया गया है। अमृतसर में बनाए गए इस गुरुद्वारे पर इन सभी का नाम भी लिखा गया है। ये गुरुद्वारा स्वर्ण मंदिर के नजदीक ही बनाया गया है। इस गुरुद्वारे को 14 फरवरी, 1902 में बनाया गया था।

सारागढ़ी युद्ध पर बन रही हैं फिल्में (Battle of saragarhi documentary movie names)

बॉलीवुड में इस युद्ध को लेकर तीन फिल्में भी बनाई जा रही हैं, पहली फिल्म में अभिनेता अजय देवगन मुख्य किरदार में नजर आएंगे। वही दूसरी फिल्म अभिनेता रणदीप हुड्डा को लेकर डायरेक्टर राजकुमार संतोषी द्वारा बनाई जा रही है और तीसरी फिल्म में अभिनेता अक्षय कुमार नजर आएंगे। अजय देवगन द्वारा इस युद्ध पर बनाई जा रही फिल्म का नाम ‘सन्स ऑफ सरदार’ रखा गया है। वहीं अक्षय कुमार को लेकर बन रही इस फिल्म को नाम ‘केसरी’ बताया जा रहा है। अजय देवगन की फिल्म से जुड़ा एक पोस्टर भी जारी हो गया है। इतना ही नहीं इस युद्ध के ऊपर कई सारी किताबें भी लिखी गई हैं और डॉक्यूमेंट्री भी बनाई गई हैं।

ब्रिटिश द्वारा दिया गया पुरस्कार (Posthumous Honours)

सारागढ़ी युद्ध में शहीद हुए सभी 21 सैनिकों को ब्रिटिश इंडिया द्वारा ‘इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट’ (Indian Order of Merit) पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। ये पुरस्कार इस समय भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाले परमवीर चक्र के समान है। ब्रिटिश द्वारा दिए गए इस पुरस्कार से ये भी साबित होता है कि उस समय दिए गए सिख सैनिकों के बलिदान की कदर अंग्रेजो द्वारा भी की गई थी। इतना ही नई दुनिया के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था जब किसी एक रेजिमेंट के प्रत्येक सदस्य को युद्ध में वीरता प्राप्त होने पर पुरस्कार दिया गया था।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 1897 में जब ये खबर आई थी तो ब्रिटिश संसद (ब्रिटिश पार्लियामेंट 'हाउस ऑफ़ कॉमंस') की कार्यवाही बीच में रोक कर जवानों को श्रद्धांजलि दी गई थी। 12 सितम्बर को Saragarhi Day घोषित किया गया और यह आज भी हर वर्ष ब्रिटेन, इंग्लैंड में मनाया जाता है। भारत में सिख रेजीमेंट इसे रेजीमेंटल बैटल आनर्स डे के रूप में मनाती है।

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