सोमवार, 12 अगस्त 2019

अजित डोभाल

अजीत डोभाल (Ajit doval)
दिलचस्प तथ्य भारत के शीर्ष जासूस NSA अजीत डोभाल से जुड़े हुए।

हम जब भी भारत में जासूसी मिशन के बारे में बात करते हैं तो हमारे जेहन में केवल एक नाम आता है और वह नाम है अजित डोभाल (Ajit Doval)। उनकी बेजोड़ रणनीतियाँ आतंकवादियों के लिए डरावने सपने की तरह है। उनके शब्दों के तीखे बाण गोलियों की तुलना में अधिक घातक हैं। वर्तमान में वह भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं और उनके नेतृत्व में ही तमाम खुफिया ऑपरेशन चलाए जा रहे हैं। अजित डोभाल कौन हैं? वह कैसे सुरक्षा मामलों के महत्वपूर्ण शख्सियत बन गए।

अजीत डोभाल, आई.पी.एस. (सेवानिवृत्त), भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) हैं। वे 30 मई 2014 से इस पद पर हैं। डोभाल भारत के पांचवे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं। इससे पहले शिवशंकर मेनन भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार थे।

डोभाल का तेज दिमाग हैं और उनकी शैली प्रखर है। इसी वजह से उन्होंने उच्च सम्मान अर्जित किया है। डोभाल सामरिक, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर प्रसिद्ध अग्रणी विश्लेषकों और टिप्पणीकारों में से एक है।

परिवार (Family)

अजीत डोभाल का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में गुणानंद डोभाल एक सैन्यकर्मी के घर हुआ था। उन्होंने अनु डोभाल से विवाह किया, जिससे उनके दो बेटे हैं, विवेक डोभाल और शौर्य डोभाल।

प्रारम्भिक शिक्षा
एक गढ़वाल परिवार में जन्म, सैन्य पृष्ठभूमि से ताल्लुक

अजित डोभाल का जन्म 1945 में उत्तराखंड के पौड़ी जिले की बणोलस्यूं (बनेलस्यूं) पट्टी स्थित घीड़ी गांव में एक गढ़वाली परिवार में हुआ। डोभाल के पिता मेजर जी एन डोभाल भारतीय सेना (इंडियन आर्मी) में एक अधिकारी थे।

डोभाल की तीसरी कक्षा तक की पढ़ाई गांव के ही प्राथमिक स्कूल में हुई। उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अजमेर के मिलिट्री स्कूल (पूर्व में किंग जॉर्ज रॉयल इंडियन मिलिट्री स्कूल) से पूरी की। और फिर लखनऊ से माध्यमिक शिक्षा पूर्ण की। जिसके बाद उन्होंने 1967 में आगरा विश्वविद्यालय (Agra University) से अर्थशास्त्र (इकोनॉमिक्स) में पोस्ट-ग्रेजुएशन (एम.ए.) कर, पहला स्थान अर्जित किया। इसके बाद वे आईपीएस की तैयारी में लग गए।

करियर

1968 केरल बैच के IPS अफसर अजीत डोभाल 1972 में इंटेलीजेंस ब्यूरो (IB) से जुड़ गए थे। उन्होंने अपने करियर के ज्यादातर समय में खुफिया विभाग में काम किया है। अजीत डोभाल इंटेलीजेंस ब्यूरो के डायरेक्टर रह चुके हैं। वह 31 जनवरी 2005 में इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के डायरेक्ट पद से रिटायर हुए थे। आईबी में अपने दो दशकों लम्बे करियर में  डोभाल ने पंजाब, कश्मीर और पाकिस्तान तक में खुफिया जासूस के रूप में काम किया है।

कैसे बना था विवेकानंद फाउंडेशन :
यह फाउंडेशन कन्याकुमारी में स्थित विवेकानंद केंद्र का हिस्सा है, जिसकी स्थापना राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के एकनाथ रानाडे ने की थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसी विचारधारा पर बना थिंक टैंक विवेकानंद फाउंडेशन आज कल मोदी सरकार के लिए पड़ोसी देशों से संबंध और रणनीतिक मामलों पर इनपुट देने का काम करता है। जिसमें भारत के कई रिटायर्ड आईएएस, आईपीएस, साइंटिस्ट और सैन्य अफसर शामिल हैं। अजीत डोभाल के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) बनने के बाद उनकी जगह एन.सी. विज को फाउंडेशन का डायरेक्टर बनाया गया। फाउंडेशन से जुड़े पूर्व ब्यूरोक्रेट और सेना के पूर्व अधिकारियों के अलावा ज्यादातर लोग श्रमदान के रूप में काम करते हैं। कोई तनख्वाह नहीं लेते हैं।

साल 2009 में डोभाल ने विवेकानंद इंटनेशनल फाउण्डेशन की स्थापना की। नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा एनएसए नियुक्त करने से पहले तक वो विवेकानंद फाउण्डेशन के प्रेसिडेंट थे। इस दौरान न्यूज पेपर में लेख भी लिखते रहे।

अजीत डोभाल हमेश ही भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रवचन में सक्रिय रूप से शामिल रहे, देश के प्रमुख अखबारों और पत्रिकाओं के लिए उन्होंने संपादकीय अंश भी लिखे और कई प्रसिद्ध सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों, भारत और विदेशों में सुरक्षा थिंक-टैंक में भारत की सुरक्षा चुनौतियों और विदेश नीति के उद्देश्यों पर व्याख्यान दिया।

साल 2009 और 2011 में उन्होंने “Indian Black Money Abroad In Secret Banks and Tax Havens” पर दो रिपोर्ट को लिखा, पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने IISS, लंदन, कैपिटल हिल, वाशिंगटन डीसी, ऑस्ट्रेलिया-इंडिया इंस्टीट्यूट, यूनिवर्सिटी ऑफ़ मेलबर्न, नेशनल डिफेंस कॉलेज, नई दिल्ली और लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन, मसूरी में रणनीतिक मुद्दों पर अतिथि व्याख्यान दिए हैं।

डोभाल ने पकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायोग में सात साल बिताए, वह 1990 में कश्मीर गए और उग्रवादियों को भारत विरोधी आतंकवादियों को निशाना बनाने वाले आतंकवादियों का मुकाबला करने के लिए राजी किया।

अजीत डोभाल 33 साल तक नार्थ-ईस्ट, जम्मू-कश्मीर और पंजाब में खुफिया जासूस रहे हैं, जहां उन्होंने कई अहम ऑपरेशन में हिस्सा लिया है।

आतंकवाद निरोधी कार्यों के लिए अजीत डोभाल ने भारत के तीसरे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम के नारायणन से शार्ट ट्रेनिंग भी लिया था।

पुरस्कार और सम्मान

आमतौर पर जो पुलिस मैडल किसी आईपीएस अफसर को सेवा के 17 साल बाद दिया जाता है वो मैडल डोभाल आपने सेवा के सिर्फ 6 सालों में ही पा लिया था। इसके बाद उन्हें राष्ट्रपति पुलिस पदक से सम्मानित किया गया, साल 1988 में अजीत डोभाल को सर्वोच्च वीरता पुरस्कारों में से एक, कीर्ति चक्र प्रदान किया गया, इस पदक प्राप्त करने वाले वह भारत के पहले पुलिस अधिकारी बने। आप भारत के एक मात्र non army person हैं जिन्हें कीर्ति चक्र से नवाजा गया। डोभाल शांतिकाल में मिलने वाले गैलेंट्री अवॉर्ड से नवाजा गया है। वह अपनी सराहनीय सेवा एवं काम के लिए पुलिस पदक पाने वाले अब तक के सबसे कम उम्र के पुलिस अधिकारी है। उन्हें यह सम्मान पुलिस में 6 साल रहने के उपरांत मिला।

दिसंबर 2017 में आगरा विश्वविद्यालय और मई 2018 में कुमाऊं विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया था।

वह सात साल तक पाकिस्तान में एक गुप्त एजेंट बन के रहे थे।
डोभाल पाकिस्तान में 7 साल रह चुके हैं। यह बात उन्होंने खुद एक समारोह में कही थी। डोभाल ने विदर्भ मैनेजमेंट एसोसिएशन के समारोह में भाषण देते हुए एक कहानी सुनाई थी। उन्होंने कहा था, "लाहौर में औलिया की एक मज़ार है, जहां बहुत से लोग आते हैं। मैं एक मुस्लिम शख़्स के साथ रहता था। मैं वहां से गुज़र रहा था तो मैं भी उस मज़ार में चला गया। वहां कोने में एक शख़्स बैठा हुआ था। उसने मुझसे छूटते ही सवाल किया कि क्या तुम हिंदू हो? डोभाल ने कहा नहीं। डोभाल के मुताबिक, "उसने कहा मेरे साथ आओ और फिर वो मुझे पीछे की तरफ़ एक छोटे से कमरे में ले गया। उसने दरवाज़ा बंद कर कहा, देखो तुम हिंदू हो। मैंने कहा आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? तो उसने कहा आपके कान छिदे हुए हैं। मैंने कहाँ, हाँ बचपन में मेरे कान छेदे गए थे लेकिन मैं बाद में कनवर्ट हो गया था। उसने कहा तुम बाद में भी कनवर्ट नहीं हुए थे। ख़ैर तुम इसकी प्लास्टिक सर्जरी करवा लो नहीँ तो यहाँ लोगों को शक हो जाएगा।" डोभाल कहते हैं, ''उसने मुझसे पूछा कि तुम्हें पता है मैंने तुम्हें कैसे पहचाना। मैंने कहा नहीं तो उसने कहा, क्योंकि मैं भी हिंदू हूं। फिर उसने एक अलमारी खोली जिसमें शिव और दुर्गा की एक प्रतिमा रखी थी। उसने कहा देखो मैं इनकी पूजा करता हूं लेकिन बाहर लोग मुझे एक मुस्लिम धार्मिक शख़्स के रूप में जानते हैं।"

आपने पकिस्तान में 7 साल जासूस बनकर बिताये और इसी दौरान आप वहाँ की आर्मी में मार्शल की पोस्ट तक पहुचे।

कूका पारे को मुख्यधारा में लाए
भारत विरोधी कश्मीरी उग्रवादी कूका पारे (कुक्के पैरे) उर्फ मोहम्मद यूसुफ पारे को अजीत डोभाल मुख्य धारा में लाए। पाकिस्तान प्रशिक्षित कूका पारे 250 आतंकियों को साथ लेकर पाकिस्तान के खिलाफ हो गया था। उसने जम्मू एंड कश्मीर आवामी लीग नाम की पार्टी बनाई। कूका एक बार विधायक भी बना। 2003 में एक कार्यक्रम से लौटते समय उसकी आतंकियों ने हत्या कर दी थी। उन्होंने कट्टरपंथी भारत विरोधी आतंकवादियों को भी निशाना बनाया और 1996 में जम्मू-कश्मीर में होने वाले चुनाव के लिए मार्ग प्रशस्त किया।

ऑपरेशन ब्लू स्टार में अहम भूमिका
ऑपरेशन ब्लू स्टार में डोभाल की भूमिका ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी उनका मुरीद बना दिया था। साल 1984 में 3 से 6 जून तक चले ऑपरेशन ब्लू स्टार को देश कैसे भूल सकता है। तब अमृतसर स्थित हरिमंदिर साहिब परिसर पर खालिस्तान समर्थक जनरैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों ने कब्जा कर लिया था। इसको मुक्त कराने के लिए एक अभियान चलाया गया, जिसे नाम दिया गया ऑपरेशन ब्लू स्टार। भिंडरावाले को पाकिस्तान का समर्थन मिल रहा था। इस ऑपरेशन में अजीत डोभाल ने एक पाकिस्तानी गुप्तचर की भूमिका निभाई। देश की सेना के लिए खुफिया जानकारी जुटाई। इसकी बदौलत सेना का ऑपरेशन आसान हो गया। इस दौरान उनकी भूमिका एक ऐसे पाकिस्तानी जासूस की थी, जिसने खालिस्तानियों का विश्वास जीत लिया था और उनकी तैयारियों की जानकारी मुहैया करवाई थी।

साल 1989 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लैक थंडर से पहले अजीत डोभाल ने महत्वपूर्ण ख़ुफ़िया जानकारी हासिल की थी। दरअसल डोभाल एक रिक्शेवाले के भेस में स्वर्ण मंदिर में घुसे और चरमपंथियों की पोजीशन और संख्या की जानकारी लेकर बाहर आए। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के एक पूर्व अधिकारी बताते हैं, "इस ऑपरेशन में बहुत बड़ा जोख़िम था लेकिन हमारे सुरक्षा बलों को ख़ालिस्तानियों की योजना का पूरा ख़ाका अजित डोभाल ने ही उपलब्ध कराया था। नक्शे, हथियारों और लड़ाकों की छिपे होने की सटीक जानकारी डोभाल ही बाहर निकाल कर लाए थे।''

1991 में रोमानियाई राजनयिक को बचाया
1991 में खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट द्वारा अपहृत किए गए रोमानियाई राजनयिक लिविउ राडू को बचाने की सफल योजना बनाने वाले अजीत डोभाल ही थे। डोभाल ने पाकिस्तान और ब्रिटेन में राजनयिक जिम्मेदारियां संभालीं। एक दशक तक उन्होंने खुफिया ब्यूरो की ऑपरेशन शाखा का नेतृत्व किया।

पीओके में ऑपरेशन के पीछे बड़ी भूमिका
पाक अधिकृत कश्मीर में घुसकर आंतकियों के कैंप को नष्ट करने के ऑपरेशन के पीछे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का बड़ा हाथ है। पीओके में अंजाम दिए गए सर्जिकल ऑपरेशन में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने अहम भूमिका निभाई। अजीत डोभाल कब कौन से ऑपरेशन को अंजाम देंगे इस बारे में तब ही पता चलता है जब ऑपरेशन पूरा हो जाता है। कुछ ऐसी भूमिका उन्होंने अनुच्छेद 370 के हटाने में निभाई।

भारत पाकिस्तना के बीच हुए भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में बदलाव का श्रेय भी अजीत डोभाल को जाता है, ऐसा बताया जाता है कि सितंबर 2016 में पाकिस्तान में हुए सर्जिकल स्ट्राइक उनका दिमागी बच्चा था, जो भारत के लिए शत्रुतापूर्ण लक्ष्यों को बेअसर करने में बेहद प्रभावी थे।

बलोचिस्तान में RAW को फिर से एक्टिव करके उसे अंतराष्ट्रीय मुद्दा बनाया।

अस्सी के दशक (1968) में वे उत्तर पूर्व (पूर्वोत्तर) में भी सक्रिय रहे। उस समय ललडेंगा के नेतृत्व में मिजो नेशनल फ्रंट ने हिंसा और अशांति फैला रखी थी, लेकिन तब डोभाल ने ललडेंगा के सात में छह कमांडरों का विश्वास जीत लिया था और इसका नतीजा यह हुआ था कि ललडेंगा को मजबूरी में भारत सरकार के साथ शांतिविराम का विकल्प अपनाना पड़ा था।

उत्तर पूर्व (मणिपुर) में सेना पर हुए हमले के बाद सीमा पार करके आतंकियों पर सर्जिकल स्ट्राइक करने की सफल योजना भी आपकी ही बुद्धिमत्ता का सबूत है। सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग के साथ, डोभाल ने म्यांमार से बाहर चल रहे आतंकवादियों के खिलाफ एक सैन्य अभियान की योजना बनाई। जिसमे सेना ने म्यामार में 2 से 5 किलोमीटर अंदर घुसकर करीब 50 आतंकियों को मौत के घात उतारा।

यह अजित डोभाल का ही कमाल था कि 1971 से लेकर 1999 तक 5 इंडियन एयरलाइंस के विमानों के संभावित अपहरण की घटनाओं को टाला जा सका था।

1999 में इंडियन एयरलाइंस की उड़ान आईसी-814 को काठमांडू से हाईजैक कर लिया गया था। उस समय डोभाल को भारत की ओर से मुख्य वार्ताकार बनाया गया था। बाद में, इस फ्लाइट को कंधार ले जाया गया था और यात्रियों को बंधक बना लिया गया था।

जून 2014 में, डोभाल ने 46 भारतीय नर्सों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नर्सें आतंकवादी समूह इस्लामिक स्टेट के नियंत्रण वाले इराकी शहर तिकरित के एक अस्पताल में फंस गई थी। हालाँकि, उनकी रिहाई की सही स्थिति स्पष्ट नहीं है, 5 जुलाई 2014 को, ISIS आतंकवादियों ने नर्सों को एरबिल शहर में अधिकारियों को सौंप दिया और भारत सरकार द्वारा दो विशेष रूप से व्यवस्थित विमानों से उन्हें कोच्चि में वापस घर लाया गया।

370 हटाने के पहले और बाद में जम्मू कश्मीर का दौरा-
अजीत डोभाल 370 हटाने के पहले भी जम्मू कश्मीर जाकर वहां का जायजा लिया था। इसके बाद घाटी में सुरक्षाबलों की संख्या में जबरदस्त बढ़ोत्तरी की गई और बाद में एयरफोर्स को भी हाई अलर्ट पर रखा गया। बताया गया था कि अमरनाथ यात्रा पर जारहे श्रद्धालुओं पर आतंकी हमले का खतरा था। धारा 370 हटाने के बाद तुरंत ही डोभाल श्रीनगर के लिए निकल पड़े और ग्राउंड जीरो पर रहकर सुरक्षा व्यस्था चाक चौबंद की।

कश्‍मीर में मिशन ‘दिल जीतो’ 
बीते दिनों अजीत डोभाल दक्षिणी कश्मीर के सबसे संवेदनशील इलाके शोपियां में पहुंचे और न केवल आम कश्मीरियों के साथ बातचीत की, बल्कि उनके साथ खाना भी खाया। मोदी सरकार सिर्फ सुरक्षाबलों को तैनात कर ही सुरक्षा की तैयारी नहीं कर रही, बल्कि कश्मीर के लोगों को यह भरोसा भी दिलाया जा रहा है कि सरकार उनके साथ संवाद कर रही है। और इस काम में सरकार का चेहरा हैं अजीत डोभाल, जो जम्मू-कश्मीर में अमन लौटाने का काम कर रहे हैं। इस बार उनका मिशन कश्मीरियों का दिल जीतना है।

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