रविवार, 18 अगस्त 2019

शारदा पीठ  (Sharada Peeth), पीओके

शारदा पीठ  (Sharada Peeth)

शारदा पीठ पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) क्षेत्र में बसे शारदा गांव में स्थित एक परित्यक्त प्राचीन मंदिर और सांस्कृतिक स्थल हैं। शारदा पीठ कश्मीर की सुंदर नीलम घाटी में बसा है। ऐसा कहा जाता है कि यह पीठ कश्मीरी पंडितों के लिए तीन प्रसिद्ध पवित्र स्थलों में से एक है, अन्य अनंतनाग में मार्तंड सूर्य मंदिर और अमरनाथ मंदिर हैं। मां शारदा को कश्मीरी पंडित अपनी कुलदेवी मानते हैं। उन्हें कश्मीर पुरावासिनी (कश्मीर में बसने वाली) भी कहा जाता है। नीलम नदी के किनारे पर मौजूद इस मंदिर की महत्ता सोमनाथ के शिवा लिंगम मंदिर जितनी है।

शारदा पीठ मार्तंड सूर्य मंदिर और अमरनाथ मंदिर समेत जम्मू-कश्मीर के तीन प्रमुख मंदिरों में से एक था। भारत के बंटवारे के बाद यह मंदिर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) में चला गया। मां सरस्वती को समर्पित एक ऐसा नाम जिसकी मान्यता बाबा अमरनाथ धाम के समान हो। इस मंदिर की महत्ता सोमनाथ के शिवा लिंगम मंदिर जितनी है। 

मंदिर का निर्माण
बताया जाता है कि यह प्राचीनतम हिंदू मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण पहली शताब्दी में हुआ था। शारदा पीठ में प्राचीन विश्वविद्यालयों में से एक शारदा विश्वविद्यालय के भी खंडहर मौजूद हैं।

सनातन परंपरा के अनुसार सरस्वती देवी के इस मंदिर को 5000 साल से भी ज्यादा पुराना माना गया है और इसको लेकर कई मान्यताएं हैं। ऐसा कहा जाता है कि सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान, शारदा पीठ की स्थापना 237 ईसा पूर्व में हुई थी।

कुछ मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण पहली शताब्दी के प्रारंभ में कुषाणों के शासन के दौरान हुआ था।

कुछ के अनुसार बौद्ध अनुयायियों ने इस क्षेत्र में अपने धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए शारदा पीठ की स्थापना की थी लेकिन शोधकर्ताओं को इस दावे के समर्थन में कोई सबूत नहीं मिले हैं। इसके अलावा कुछ लोगों का मानना है कि शारदा पीठ भगवान शिव का निवास स्थान रहा था।

शारदा मंदिर के फ़ैज़ उर रहमान केस स्टडी में कहा गया है कि राजा ललितादित्य ने बौद्ध धर्म के धार्मिक और राजनीतिक प्रभाव को बरकरार रखने के लिए शारदा पीठ का निर्माण किया था। इस दावे का समर्थन किया जाता है क्योंकि ललितादित्य बड़े पैमाने पर मंदिरों के निर्माण करने के लिए जाने जाते थे और इसमें वे माहिर थे।

क्या आप जानते हैं कि शारदा पीठ की नींव उस समय कि भी मानी जाती है जब कश्मीरी पंडितों ने अपनी प्राकृतिक सुंदरता की भूमि को शारदा पीठ या सर्वज्ञानपीठ के रूप में तब्दील किया था।

स्थित
शारदा पीठ को शारदा पीठम भी कहते हैं और यह नीलम घाटी में स्थित शारदा यूनिवर्सिटी के सामने ही है। पीओके में लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) पर स्थित मुजफ्फराबाद से यह 160 किलोमीटर दूर एक छोटे से गांव में आता है। इस गांव को शारदी या सारदी कहते हैं। इस गांव में नीलम नदी जिसे भारत में किशनगंगा के नाम से जानते हैं, वह मधुमति और सरगुन की धारा से मिल जाती है।

शारदा पीठ कुपवाड़ा से लगभग 30 किमी की दूरी पर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में नियंत्रण रेखा (LoC) के पास नीलम नदी के तट पर स्थित है। लाइन ऑफ कंट्रोल से इस पीठ की दूरी 10 किलोमीटर है। श्रीनगर से 130 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

ढांचा
कुछ प्राचीन वृत्तांतों के अनुसार, मंदिर की ऊंचाई 142 फीट और चौड़ाई 94.6 फीट है। मंदिर की बाहरी दीवारें 6 फीट चौड़ी और 11 फीट लंबी हैं। वृत्त-खंड 8 फीट की ऊंचाई के हैं। लेकिन अब अधिकतर ढांचा क्षतिग्रस्त हो चूका है।

यह मंदिर निर्माणशैली में जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में स्थित मार्तंड मंदिर से मिलता-जुलता है।

मंदिर के नजदीक मादोमती नाम का एक तालाब है। इस तालाब का पानी बहुत पवित्र माना जाता है।

शारदा पीठ भले ही दशकों से वीरान पड़ा है लेकिन परिसर की इमारतों पर किसी तरह का अतिक्रमण नहीं है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जो लोग वहां गए हैं वे बताते हैं कि शारदा पीठ में चारों तरफ खंडहर देखे जा सकते हैं। हालांकि मुख्य मंदिर की इमारत जस की तस है लेकिन छत गायब है। प्राचीन मंदिर होने के कारण मंदिर की छत जीर्ण-शीर्ण हो गई होगी।

शक्ति पीठ
इस मंदिर को शक्ति पीठ के रूप में भी माना जाता है, जहां पर सनातन धर्मशास्त्र के अनुसार भगवान शंकर ने सती के शव के साथ जो तांडव किया था उसमें सती का दाहिना हाथ इसी पर्वतराज हिमालय की तराई कश्मीर में गिरा था। शारदा पीठ का महत्व इसलिए भी है कि यह 52 शक्तिपीठों में नहीं, बल्कि 18 महाशक्तिपीठ में से एक है। या यु कहें कि ये पूरे दक्षिण एशिया में एक अत्यंत प्रतिष्ठित मंदिर, शक्ति पीठ है।

शारदा पीठ का अर्थ है "शारदा की भूमी या गद्दी या जगह" जो हिंदू देवी सरस्वती का कश्मीरी नाम है। इस मंदिर को ऋषि कश्यप के नाम पर कश्यपपुर के नाम से भी जाना जाता था।

कश्‍मीरी पंडित शारदा पीठ को काफी अहम मानते हैं और कहते है कि ये तीन देवियों से मिलकर बनी मां शक्ति का का स्‍वरूप है- शारदा, सरस्‍वती और वागदेवी जिसे भाषा की देवी मानते हैं।

विद्या का एक प्राचीन केंद्र
शारदा पीठ में देवी सरस्वती की आराधना की जाती है। वैदिक काल में विद्या की अधिष्ठात्री हिन्दू देवी को समर्पित यह मंदिर अध्ययन का एक प्राचीन केंद्र था और इसकी तुलना नालंदा-तक्षशिला जैसे शिक्षा केंद्रों से की जाती थी। जहाँ पाणिनि और अन्य व्याकरणियों द्वारा लिखे गए ग्रंथ संग्रहीत थे। इसलिए, इस स्थान को वैदिक कार्यों, शास्त्रों और टिप्पणियों के उच्च अध्ययन का एक प्रमुख केंद्र माना जाता है। मान्यता है कि ऋषि पाणिनि ने यहां अपने अष्टाध्यायी की रचना की थी।

शैव संप्रदाय के जनक कहे जाने वाले शंकराचार्य और वैष्णव संप्रदाय के प्रवर्तक रामानुजाचार्य दोनों ही यहां आए और दोनों ही दो महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की। शंकराचार्य यहीं सर्वज्ञपीठम पर बैठे थे। रामानुजाचार्य ने यहां ब्रह्म सूत्रों पर अपनी समीक्षा लिखी। यहां कल्हण (कालहाना) जैसे विद्वानों ने शिक्षा पायी है।

देश के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक, जिसे शारदा विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है, अपनी लिपि के लिए काफी प्रसिद्ध शारदा पीठ ही है और कहा जाता है कि पहले इसमें लगभग 5,000 विद्वान थे और उस समय का सबसे बड़ा पुस्तकालय था।

पंजाबी भाषा की गुरुमुखी लिपि का उद्गम शारदा लिपी से ही होता है। इस मंदिर से कई विद्याकेन्द्र से जुड़े थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है।

कश्मीरी पंडितों के लिए क्यों है खास-
इस शक्तिपीठ को कश्मीर में रहने वाले हिंदुओं ने ही आबाद किया था। शारदा पीठ सदियों से कश्मीरी पंडितों के लिए प्रमुख आस्था का केंद्र रहा है। आजादी से पहले कश्मीरी पंडित यहां तीर्थ यात्रा के लिए जाया करते थे, लेकिन विभाजन के बाद यह मंदिर सुनसान हो गया। अब अगर शारदा पीठ कॉरिडोर खुलता है तो कश्मीरी पंडितों के साथ-साथ अन्य भारतीय हिंदू यहां दर्शन के लिए जा सकेंगे।

इस हाल में कैसे पहुंचा मंदिर
चौदहवीं शताब्दी तक कई बार प्राकृतिक आपदाओं से मंदिर को बहुत क्षति पहुंची है। विदेशी आक्रमणों से भी इस मंदिर को काफी नुकसान हुआ। इसके बाद 19वीं सदी में महाराजा गुलाब सिंग ने इसकी आखिरी बार मरम्मत कराई और तब से ये इसी हाल में है। 2005 में आए भूकंप में ये और तबाह हो गया, इसके बाद भी पाकिस्तान सरकार ने इसकी सुध नहीं ली।

भारत-पाकिस्तान के बीच बंटवारे के बाद से ये लाइन ऑफ कंट्रोल के पास वाले हिस्से में आता है। बंटवारे के बाद से ये जगह पश्तून ट्राइब्स के कब्जे में रही। इसके बाद से ये पीओके सरकार के कब्जे में है। दोनों देशों के बीच तनाव के वक्त में यहां फॉरेनर्स के जाने पर पाबंदी लगा दी जाती है।

विभाजन के बाद
दरअसल मां शारदा पीठ किशनगंगा नदी के किनारे स्थापित है, जो 1947 में पाकिस्तानी हमले के बाद पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू कश्मीर में चली गई। इसके बाद स्थानीय मुस्लिम हमले में शारदा पीठ को तहस-नहस कर दिया गया। किशनगंगा नदी का नाम बदलकर नीलम नदी रख दिया गया। इसके 70 साल बाद शारदा पीठ ने पाकिस्तानी सरकार की विखंडन मानसिकता से लेकर प्राकृतिक आपदा तक हर तरह का दंश झेला।

1947 के विभाजन के बाद से मंदिर पूरी तरह से निर्जन हो गया है। मंदिर में जाने से प्रतिबंध ने भी भक्तों को हतोत्साहित किया यानी 1947 तक लोग यहाँ पर दर्शन करने के लिए जाते थे, लेकिन उसके बाद मंदिर में जाना मुश्किल हो गया था।

1947 यानी वो साल जब तक पाकिस्तान का कश्मीर के उस हिस्से पर (PoK) कब्जा नहीं था तब तक हर कश्मीरी पंडित कुलदेवी शारदा के दर्शन के लिए जाते थे। शारदा पीठ में जयकारे गूंजते थे लेकिन पाकिस्तान ने जैसे ही कश्मीर के एक हिस्से पर कब्जा किया उस मंदिर का संपर्क हिंदुओं से खत्म हो गया। हालात ये है कि अब शारदा पीठ सिर्फ नाम के लिए मंदिर है क्योंकि वो खंडहर में तब्दील हो चुका है। इस ऐतिहासिक मंदिर की दीवारें ढह चुकी है और अब ये खंडहर में तब्दील होता जा रहा है। जो जगह 70 साल पहले आबाद हुआ करती थी, जहां भक्तों की भीड़ रहती थी वो अब वीरान हो चुका है।

'कल्चरल हेरिटेज ऑफ कश्मीरी पंडित' में एयाज रसूल नाजकी ने कहा है, "कश्मीरी पंडित इस मंदिर को अपनी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा मानते हैं और इसे खास दर्जा देते हैं। हजारों साल पहले मेरे पूर्वजों ने यहां का दौरा किया था और मैं उन्हें यहां महसूस करता हूं। यहां पर बिताए वक्त को शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है।"

कैसे उठी शारदा पीठ कॉरिडोर की मांग?
1947 में भारत और पाक के अलग होने के बाद हिंदू श्रद्धालुओं को मंदिर के दर्शन में परेशानी आने लगी। 2007 में कश्मीरी अध्येता और भारतीय संस्कृति संबंध परिषद के क्षेत्रीय निदेशक प्रोफेसर अयाज रसूल नज्की ने इस मंदिर का दौरा किया था। इसके बाद से ही भारतीय श्रद्धालुओं को दर्शन की अनुमति की मांग उठने लगी। कश्मीरी पंडितों को मंदिर के दर्शन की इजाजत दिलवाने के लिए बनी शारदा बचाओ कमेटी ने इसके लिए भारत सरकार के साथ-साथ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को भी पत्र लिखा। इसमें मांग की गई थी कि श्रद्धालुओं को मुजफ्फराबाद के रास्ते मंदिर के दर्शन की अनुमति दी जाए।

मुजफ्फराबाद के जिस इलाके में शारदा मंदिर बना है..वहां के मुस्लिमों के संपर्क में है सेव शारदा कमिटी। कमिटी के प्रमुख रविंद्र पंडिता लगातार LoC पार लोगों से संपर्क में रहते हैं। वहां के मुस्लिमों ने भी सेव शारदा नाम से कमिटी बना रखी है। कुछ महीनों पहले इन्होंने शारदा मां की स्वरुप मां सरस्वती की एक तस्वीर और फूल भेजे थे जिसे वहां के मुसलमानों ने शारदा पीठ की दीवार पर लगाया और माला पहनाई। शारदा पीठ के आसपास रहने वाले मुसलमानों को भी कुल देवी शारदा और कश्मीरि पंडितों की आस्था का पूरा ख्याल है। वो जानते हैं कि इस मंदिर का हिंदुओं के लिए क्या महत्व है लिहाजा उन्होंने मंदिर की मिट्टी और तस्वीर पर चढे़ फूल हिंदुस्तान भेजे।

शारदा पीठ कॉरिडोर
पाकिस्तान के शारदा मंदिर में जाना अब भारत समेत दुनिया भर के हिंदुओं के लिए आसान हो जायेगा। करतारपुर साहिब कॉरिडोर के बाद पाकिस्तान ने दुनिया भर के हिंदू तीर्थयात्रियों के लिए शारदा पीठ कॉरिडोर खोलने को हरी झंडी दिखा दी है।

पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि भारत के विदेश मंत्रालय ने पहले ही शारदा पीठ कॉरिडोर को खोलने का प्रस्ताव भेजा था। सरकार के कुछ अधिकारी शारदा पीठ क्षेत्र का दौरा करेंगे और प्रधानमंत्री को रिपोर्ट सौंपेंगे।

PTI के नेता और नेशनल एसेंबली के सदस्य रमेश कुमार ने कहा, "पाकिस्तान ने शारदा मंदिर को श्रद्धालुओं के लिए खोलने का विचार किया है। इस प्रोजेक्ट पर काम इसी साल शुरू हो जायेगा। शारदा पीठ कॉरिडोर का काम पूरा हो जाने के बाद हिंदू श्रद्धालु आसानी से मंदिर जा सकेंगे।"

कश्मीर में रहने वाला हिंदू समुदाय लंबे समय से इस कॉरिडोर को बनाने की मांग कर रहा था।

* PoK में नीलम नदी के किनारे बनी शारदा पीठ के इस हालात को सुधारने के लिए कश्मीरी पंडितों ने मुहिम शुरु की है। सेव शारदा नाम की संस्था बनाई गई है जो इस बात के लिए लड़ रही है कि हिंदुओ को PoK के शारदा मंदिर पीठ में जाकर पूजा करने की इजाजत दी जाए। शारदा पीठ पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में है और वहां जाने की कुछ शर्ते हैं लेकिन उन शर्तों में मंदिर में दर्शन करने का कोई प्रावधान नहीं है। 

दरअसल कश्मीरियों को POK जाने के लिए वीजा की जगह परमिट मिलता है परमिट उन्हीं लोगों को मिलता है जिनके रिश्तेदार POK में रहते हैं रिश्तेदार के घर शादी, फंक्शन या किसी की मौत पर परमिट मिलता है परमिट में शारदा पीठ में दर्शन के लिए कोई नियम नहीं बनाया गया हैं वीज़ा और परमिट दोनों नहीं होने से हिंदू शारदा पीठ नहीं जा सकते हैं

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