अदभुत गणेश प्रतिमा – दंतेवाड़ा में 3000 फ़ीट की ऊँचाई पर स्थापित 10-11वीं सदी की गणेश प्रतिमा
Amazing Lord Ganesha Statue at Dantewada :-
कुछ समय पहले पुरातत्व विभाग ने छत्तीसगढ़ में दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से 25-30 किलोमीटर दूर बैलाडीला की पहाड़ी श्रृखला में दुर्गम ढोलकल की पहाड़ियों पर 3000 फ़ीट की ऊंचाई पर सैकड़ों साल (1000 साल) पुरानी, छिंदक नागवंशीय राजाओं द्वारा स्थापित एक भव्य गणेश प्रतिमा की खोज की जो की लोगो के आश्चर्य का कारण बनी हुई है। लोग यह नहीं समझ पा रहे की सदियों पहले इतने दुर्गम इलाके में इतनी ऊंचाई पर आखिर क्यों गणेश प्रतिमा की स्थापना की गई? यहाँ पर पहुँचाना आज भी बहुत जोखिम भरा काम है तो उस ज़माने में तो यह और भी जोखिम भरा रहा होगा। तो फिर कैसे और क्यों यह गणेश प्रतिमा स्थापित की गई? पुरात्वविदों का एक अनुमान यह है की दंतेवाड़ा क्षेत्र के रक्षक के रूप में नागवंशियों ने गणेश जी को यहाँ स्थापना की थी।
भव्य है गणेश प्रतिमा :-
पहाड़ी पर स्थापित 6 फीट ऊंची 21/2 फीट चौड़ी काले ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित यह प्रतिमा वास्तुकला की दृष्टि से अत्यन्त कलात्मक है। गणपति की इस प्रतिमा में ऊपरी दांये हाथ में फरसा, ऊपरी बांये हाथ में टूटा हुआ एक दंत, नीचे दांये हाथ में अभय मुद्रा में अक्षमाला धारण किए हुए तथा नीचे बांये हाथ में मोदक धारण किए हुए आयुध के रूप में विराजित है। पुरात्वविदों के मुताबिक इस प्रकार की प्रतिमा बस्तर क्षेत्र में कहीं नहीं मिलती है।
अद्भुत है ये मूर्ति
चूंकि गणेश जी का आकार गोल-मटोल ढोलक जैसे है इसलिए इनका नाम भी ढोलकल गणेश जी है। ये प्रतिमा करीब 100 किलो की है जो समुद्र तल से 2994 फीट ऊंची चोटी पर स्थित है। स्थानीय आदिवासी बताते हैं कि ढोलकल पहाड़ी के सामने एक और पहाड़ी है जहां सूर्यदेव की प्रतिमा थी जो 15 साल पहले चोरी हो गई।
10वी शताब्दी की इस मूर्ति को नागवंशी साम्राज्य के दौरान इसको एक ढोल की आकृति वाली एक पहाड़ी पर स्थापित किया गया था। यह प्रतिमा ललितासन मुद्रा में विराजमान थी।
लोक कथाएं कहती हैं कहानी, पुराण में हैं ये सब
गणेश जी का एक दांत टूटने से सम्बंधित पौराणिक कथा :-
ब्रह्मवैवर्त पुराण के एक कथानक में बताया गया है कि एक बार कैलाश पर्वत पर परशुराम भगवान शंकर से मिलने पहुंचे। उस समय शिवजी विश्राम में थे। गणेश जी उनके रक्षक के रूप में विराजमान थे। परशुराम ने जिद की तो गणेश जी ने अपनी सूंढ़ में उन्हें लपेट लिया और तीनों लोगों के चक्कर लगाते हुए भू-लोक पर ले आए। यहां परशुराम को एक पहाड़ी पर जोर पटक दिया। वे अचेत हो गए। जैसे ही उन्हें होश आया तो कुपित होकर उन्होंने फरसे से गणेश जी पर वार किया जिससे उनका एक दांत टूटकर गिर गया। तब से गणेश जी एकदंत कहलाए।
गणेश और परशुराम में यही हुआ हुआ था युद्ध :-
दंतेश का क्षेत्र (वाड़ा) को दंतेवाड़ा कहा जाता है। इस क्षेत्र में एक कैलाश गुफा भी है। इस क्षेत्र से सम्बंधित एक किंवदंती यह चली आ रही है कि यह वही कैलाश क्षेत्र है जहां पर गणेश एवं परशुराम के मध्य युद्ध हुआ था। यही कारण है कि दंतेवाड़ा से ढोलकल पहुंचने के मार्ग में एक ग्राम परस पाल (फरसपाल) मिलता है, जो परशुराम के नाम से जाना जाता है। इसके आगे ग्राम कोतवाल पारा आता है। कोतवाल अर्थात् रक्षक के रूप में गणेश जी का क्षेत्र होने की जानकारी मिलती है।
दक्षिण बस्तर के भोगामी आदिवासी परिवार अपनी उत्पत्ति ढोलकट्टा (ढोलकल) की महिला पुजारी से मानते हैं।
दंतेवाड़ा क्षेत्र की रक्षक है यह गणेश प्रतिमा :-
पुरात्वविदों के मुताबिक इस विशाल प्रतिमा को दंतेवाड़ा क्षेत्र रक्षक के रूप में पहाड़ी के चोटी पर स्थापित किया गया होगा। गणेश जी के आयुध के रूप में फरसा इसकी पुष्टि करता है। यहीं कारण है कि उन्हें नागवंशी शासकों ने इतनी ऊंची पहाड़ी पर स्थापित किया था। नागवंशी शासकों ने इस मूर्ति के निर्माण करते समय एक चिन्ह अवश्य मूर्ति पर अंकित कर दिया है। गणेश जी के उदर पर नाग का अंकन। गणेश जी अपना संतुलन बनाए रखे, इसीलिए शिल्पकार ने जनेऊ में संकल का उपयोग किया है। कला की दृष्टि से 10-11 शताब्दी की (नागवंशी) प्रतिमा कही जा सकती है।
गिर कर खंडित हो गई थी प्रतिमा
28-01-2017 में हमारी इस प्राचीन विरासत को नक्सलियों ने सैकड़ों फीट नीचे खाई में गिराकर नष्ट कर दिया था। इसका कारण इसकी लोगों के बीच बढ़ती लोकप्रियता बताया जा रहा है। जिसके कारण यहाँ पर आम लोगों की आवाजाही बढ़ गई थी। यही बात नक्सलियों को पसंद नहीं आई।
प्रतिमा को ड्रोन कैमरे से खोजकर लाया गया। वो खंडित अवस्था में थी। इसे जोड़कर फिर से स्थापित किया गया।
शुरूआत में प्रतिमा चोरी की बात आई थी, लेकिन फोर्स के जवानों ने नीचे खाई से प्रतिमा के टुकड़ों को एकत्र कर ऊपर लाया। इसके बाद इसे पुरातत्वाविद और विशेषज्ञों ने विशेष लेप के साथ जोड़कर पुन: स्थापित किया। इसी दौरान मीडिया में इसकी चर्चा हुई और ख्याति मिली। खाई में गिरने से प्रतिमा के करीब 52 टुकड़े हो गए थे।
विश्व प्रसिद्ध हैं यह विशाल प्रतिमाएं
बारसूर में एक साथ दो बड़ी गणेश प्रतिमाएं है। बालू पत्थरों से निर्मित इन प्रतिमाओं को दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिमाओं में तीसरे नंबर का बताया जाता है। पुरामहत्व की इस प्रतिमा को 11वीं शताब्दी से पहले की बताई जाती है। इसके दर्शन के लिए साल भर श्रद्धालु और सैलानियों का आना-जाना लगा रहता है।
यहां पहुंचना है बहुत दुर्गम
गणेश की दर्शन करना काफी दुर्गम है। यहां आने के लिए दंतेवाड़ा से 18 किमी दूर फरसापाल जाना पड़ता है।
उसके बाद कोतवाल पारा होते हुए जामपारा पहुंचकर गाड़ी वहीं पार्क करनी होती है। यहां स्थानीय आदिवसियों के सहयोग से पहाड़ी पर 3 घंटे की दुर्गम चढ़ाई के बाद पहुंचा जा सकता है।
बारिश के दिनों में रास्ते में पहाड़ी नाले बहने लगते हैं जिससे ये मार्ग और दुर्गम हो जाता है।
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