मुक्ति घरों (मुक्ति, मुमुक्षु और मोक्ष भवन)
बनारस के इस मकान में लोग आकर करते हैं अपनी मौत का इंतजार
बनारस या काशी में लोग सदियों से मोक्ष प्राप्ति के लिए जाते रहे हैं और यह सिलसिला आज भी बरकरार है। मोक्ष प्राप्ति के इस राह में चलने के लिए कई सालों से यहां का एक मकान लोगों की मदद कर रहा है। वाराणसी के गोदौलिया में स्थित काशी लाभ मुक्ति भवन नामक धर्मशाला में मोक्ष प्राप्ति के लिए देश भर से लोग आते हैं।
शायद यह दुनिया का एकमात्र ऐसा होटल होगा जहां किसी के मरने से वहां की शान घटने के बजाय बढ़ जाती है। इसके साथ ही मोक्ष भवन की एक और खासियत ये है कि यहां ठहरने वालों से पैसा नहीं लिया जाता है।
लोग अपने अंतिम समय में घर से गौ दान कर यहां आते हैं। बुजुर्ग के साथ परिवार का एक सदस्य भी उनके अंतिम समय तक रुक सकता है।
कैसे पड़ी काशी मुक्ति लाभ भवन की नींव-
इसका निर्माण मूलरूप से 1908 में हुआ था। भवन पर हरिराम गोयनका का स्वामित्व है परन्तु 1950 के बाद से इस भवन की देखरेख का जिम्मा डालमिया ट्रस्ट उठा रहा है।
48 साल से 'काशी लाभ मुक्ति भवन' के प्रबंधक (मैनेजर) भैरो नाथ शुक्ला ने बताया, ''1958 में डालमिया चैरिटेबल ट्रस्ट के फाउंडर विष्णु हरी डालमिया ने बनवाया था। उनकी दादी जेड़िया देवी यहीं एक मकान में रहती थीं। उनकी इच्क्षा थी की बाहर से मुक्ति की कामना में आने वाले लोगों के एक भवन होना चाहिए। उन्हीं की याद में इसको बनाया गया।''
''दो फ्लोर पर 10 कमरे हैं। अंतिम समय में लिखा-पढ़ी के साथ परिजन रहते हैं। ट्रस्ट को जो भी दान देना हो देते हैं, बिजली का बिल देना कंपल्सरी है।'' ''अभी तक 15500 से ज्यादा लोग अभी तक यहां मुक्ति प्राप्त कर चुके हैं।'' यहां प्रतिदिन किसी न किसी को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
60 साल के इस मोक्ष भवन में 12 कमरे हैं। इन्हीं कमरों में रहकर लोग अपनी मौत का इंतजार करते हैं। जिसमें एक छोटा सा मंदिर और साथ में पुजारी भी रहते हैं। डालमिया चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा निर्मित इस भवन में अब तक कई लोग सांसारिक जीवन से मुक्ति लाभ कर चुके हैं।
भैरव नाथ शुक्ला परिवार सहित यहीं पर 44 सालों से रहते हैं। जिनको ये सब देखने की आदत हो गई है।
मुक्ति भवन के भीतर बने मंदिर में काशी विश्वनाथ मंदिर की तरह आरती और अभिषेक साल 2000 से परस्पर किया जा रहा है। पहले यहां 8 पुजारी हुआ करते थे और एक सेवक पर अब सिर्फ 3 पुजारी है और एक सेवक बचे हैं।
हिंदू मान्यता है कि भगवान शिव ने काशी नगरी का निर्माण मनुष्य की मुक्ति के लिए किया है। इसलिए यहॉ लोग अपना शरीर त्याग कर मोक्ष की प्राप्ति के लिए आते हैं।
मुक्ति लाभ भवन की अनौखी दिनचर्या-
सनातन धर्म में कहा गया है कि बनारस में शरीर त्यागने वाला वैतरणी पार कर जाता है।
काशी में मोक्ष लाभ के लिए अपने परिजनों के साथ आए वृद्ध लोगों को इस मकान में कमरा दिया जाता है। इसके साथ ही उन्हें 15 दिन की मोहलत दी जाती है। यदि दिए गए इस समय के अंदर उनकी मृत्यु नहीं हुई तो प्रबंधन उनसे कमरा खाली करने का अनुरोध करता है और वह वापस अपने परिजनों के साथ लौट जाता है। लोगों से कहा जाता है कि जो भी यहां रहने आये वो गौदान करके ही आये।
काशी लाभ मुक्ति भवन में सुबह से लेकर शाम तक रामायण और गीता का पाठ चलता रहता है। शाम को सत्यनारायण भगवान की आरती होती है। इस दौरान बुजुर्गों को रोजाना गंगाजल और तुलसी का सेवन कराया जाता है, ताकि अंतिम सांस निकलने में कोई कठिनाई न हो। रोजाना की आरती के लिए एक बुजुर्ग पुजारी आते हैं जो आरती के बाद यहां रहने वालों पर गंगा जल छिड़कते हैं।
एक सच ये भी है
इस धर्मशाला का एक सच ये भी है कि यहां पर ज्यादातर लोग वही आते हैं जिनका न परिवार होता है और न बुढ़ापे में उनका कोई सहारा होता है।
वाकई में बनारस का यह मुक्ति भवन अपने आप ही में बेहद अनूठा है जिसके बारे में आज भी शायद बहुत कम लोगों को पता है।
मौत के बाद शव को गंगा के घाट पर ले जाकर जला दिया जाता है। शव की राख को गंगा में बहा कर अंतिम सफ़र के लिए विदाई दे दी जाती है।
जीवन का सबसे बड़ा सत्य है मृत्यु। मृत्यु और जीवन में निरंतर एक क्रम चलता रहता है। कई लोग इस क्रम में न पड़ कर ब्रह्म में लीन होकर इस जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पाना चाहते हैं, ऐसे ही लोगों के लिए बनारस एक शहर न बन कर इस चक्र से मुक्ति पाने का साधन बन जाता है। ऐसे में मुक्ति भवन जैसे आश्रय स्थल साधन की भूमिका में नज़र आते हैं। आज इसी तर्ज पर यहां सैकड़ों और मुक्ति धाम बन चुके हैं। जहां हर रोज सैकड़ों सांसे अंतिम सांस का इंतज़ार लिए चलती रहती हैं।
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