ऐरावतेश्वर मंदिर (Airavatesvara Temple)
ऐरावतेश्वर मंदिर, द्रविड़ वास्तुकला का एक हिंदू मंदिर है जो दक्षिणी भारत के तमिलनाड़ु राज्य में कुंभकोणम के पास दारासुरम में स्थित है। 12वीं सदी में राजराजा चोल द्वितीय द्वारा निर्मित इस मंदिर को तंजावुर के बृहदीश्वर मंदिर तथा गांगेयकोंडा चोलापुरम के गांगेयकोंडाचोलीश्वरम मंदिर के साथ यूनेस्को द्वारा वैश्विक धरोहर स्थल बनाया गया है; इन मंदिरों को महान जीवंत चोल मंदिरों के रूप में जाना जाता है। आस्था के साथ मनोरंजन को ध्यान में रखकर इस मंदिर का निर्माण किया गया था।
ऐरावतेश्वर मंदिर का इतिहास
ऐरावतेश्वर मंदिर चोल साम्राज्य के दौरान 1146 - 1172 सीई के बीच चोल राजा राजराजा द्वितीय द्वारा बनाया गया था। अयिरतली चोलों की माध्यमिक राजधानी थी और दारासुरम शहर के परिसर का हिस्सा था। राजा तमिलियन कला और वास्तुकला के संरक्षक थे और उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान कई नए मंदिरों और स्मारकों का निर्माण किया। यह मंदिर पुराने समय में आकार में बहुत बड़ा था।
पौराणिक कथा
ऐरावतेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। साथ ही, यहां पार्वती (पेरिया नायक अम्मन), इंद्र, अग्नि, वरुण, वायु, ब्रह्मा, सूर्य, सरस्वती, विष्णु, सप्तमित्रिका, श्री देवी (लक्ष्मी), गंगा, दुर्गा, यमुना, सुब्रह्मण्य, गणेश, काम, रति और अन्य सहित कई वैदिक और पुराण देवताओं को समर्पित छोटे मंदिर हैं।
शिव को यहां ऐरावतेश्वर के रूप में जाना जाता है क्योंकि इस मंदिर में देवताओं के राजा इंद्र के सफेद हाथी एरावत द्वारा भगवान शिव की पूजा की गई थी। ऐसा माना जाता है कि ऐरावत ऋषी दुर्वासा के श्राप के कारण अपना रंग बदल जाने से बहुत दुखी था, उसने इस मंदिर के पवित्र जल में स्नान करके अपना रंग पुनः प्राप्त किया। मंदिर के भीतरी कक्ष में बनी एक छवि जिसमें ऐरावत पर इंद्र बैठे हैं, के कारण इस धारणा को माना जाता है। इस घटना से ही मंदिर और यहां आसीन इष्टदेव का नाम पड़ा।
कहा जाता है कि मृत्यु के राजा यम ने भी यहाँ शिव की पूजा की थी। परंपरा के अनुसार यम, जो किसी ऋषि के शाप के कारण पूरे शरीर की जलन से पीड़ित थे, ऐरावतेश्वर भगवान द्वारा ठीक कर दिए गए। यम ने पवित्र तालाब में स्नान किया और अपनी जलन से छुटकारा पाया। तब से उस तालाब को यमतीर्थम के नाम से जाना जाता है।
तीर्थयात्रियों का मानना है कि यहाँ के पानी में एक पवित्र डुबकी लगाने से वे अपने पापों को साफ कर देंगे। यह कहानी मंदिर के भीतरी कक्षों में पत्थर पर भी उकेरी गई है।
वास्तुकला
ऐरावतेश्वर मंदिर चोलों द्वारा निर्मित चार मंदिरों में से एक है। परिसर एक चौकोर योजना पर बनाया गया है; नंदी मंडप और मुद्रिका मंदिर के बाहर स्थित हैं और मंदिर के पूर्व-पश्चिम अक्ष के साथ संरेखित हैं। गर्भगृह में मोटी दीवारें हैं और विमना अधिरचना केंद्र के ठीक ऊपर उगती है। परिधि पथ, हालांकि, अन्य मंदिरों की तरह गर्भगृह के चारों ओर नहीं बनाया गया है, बल्कि यह आंगन के आसपास है।
यह मंदिर कला और स्थापत्य कला का भंडार है और इसमें पत्थरों पर शानदार नक्काशी देखने को मिलती है। हालांकि यह मंदिर बृहदीश्वर मंदिर या गांगेयकोंडाचोलीश्वरम मंदिर से बहुत छोटा है, किंतु विस्तार में अधिक उत्तम है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कहा जाता है कि यह मंदिर नित्य-विनोद, "सतत मनोरंजन, को ध्यान में रखकर बनाया गया था।
विमाना (स्तंभ) 24 मीटर (80फीट) उंचा है। सामने के मण्डपम का दक्षिणी भाग पत्थर के बड़े पहियों वाले एक विशाल रथ के रूप में है जिसे घोड़ें द्वारा खींचा जा रहा है। इस मंदिर का गर्भगृह घोड़ों द्वारा खींचे जा रहे एक रथ के रूप में बनाया गया है।
भीतरी आंगन के पूर्व में बेहतरीन नक्काशीदार इमारतों का एक समूह स्थित है जिनमें से एक को बलिपीट (बलि देने का स्थान) कहा जाता है। बलीपीट की कुरसी पर एक छोटा मंदिर बना है जिसमें गणेश जी की छवि अंकित है।
सीढ़ियों से निकलती है धुन
चौकी के दक्षिणी तरफ शानदार नक्काशी से युक्त 3 सीढ़ियों का एक समूह है। चरणों पर प्रहार करने (पैर रखने या हल्की सी ठोकर मारने) से विभिन्न संगीत ध्वनियां उत्पन्न होती हैं। सभी सात स्वर अलग-अलग बिंदुओं पर सुने जा सकते हैं। यह एकदम वैसा है, जैसे किसी संगीत के उपकरण से धुनों का निकलना। इस पर वैज्ञानिकों ने काफी खोज की, लेकिन 800 सालों में धुन निकलने के रहस्य से पर्दा नहीं उठ पाया।
आंगन के दक्षिण-पश्चिमी कोने में 4 तीर्थ वाला एक मंडपम है। इनमें से एक पर यम की छवि बनी है। इस मंदिर के आसपास एक विशाल पत्थर की शिला है जिस पर सप्तमाताओं (सात आकाशीय देवियां) की आकृतियां बनी हैं।
देवी-देवता
मुख्य देवता (भगवान शिव) की पत्नी पेरिया नायकी अम्मन का एक अलग मंदिर है जो ऐरावतेश्वर मंदिर के उत्तर में स्थित है। संभव है जब बाहरी आंगन पूरा रहा हो तो यह मुख्य मंदिर का ही एक हिस्सा रहा हो। वर्तमान समय में, यह एक अलग मंदिर के रूप में अकेला खड़ा है जिसके बड़े आंगन में देवी का मंदिर बना है।
मंदिर में शिलालेख
इस मंदिर में विभिन्न शिलालेख हैं। इन लेखों में से एक में कुलोतुंगा चोल तृतीय द्वारा मंदिरों का नवीकरण कराए जाने का पता चलता है।
बरामदे की उत्तरी दीवार पर शिलालेखों के 108 खंड हैं, इनमें से प्रत्येक में शिवाचार्या (शिव को मानने वाले संत) के नाम, वर्णन व छवियां बनी है जो उनके जीवन की मुख्य घटनाओं को दर्शाती हैं।
गोपुरा के पास एक अन्य शिलालेख से पता चलता है कि एक आकृति कल्याणी से लायी गई थी, जिसे बाद में राजाधिराज चोल प्रथम द्वारा कल्याणपुरा नाम दिया गया, पश्चिमि चालुक्य राजा सोमेश्वर प्रथम से उसकी हार के बाद उनके पुत्र विक्रमादित्य षष्ठम (VI) और सोमेश्नर द्वितीय ने चालुक्यों की राजधानी पर कब्जा कर लिया।
यूनेस्को वैश्विक धरोहर स्थल
इस मंदिर को वर्ष 2004 में महान चोल जीवंत मंदिरों की सूची में शामिल किया गया। महान चोल जीवंत मंदिरों की सूची में तंजावुर का बृहदीश्वर मंदिर, गांगेयकोंडा चोलापुरम का गांगेयकोंडाचोलीश्वरम मंदिर और दारासुरम का ऐरावतेश्वर मंदिर शामिल हैं। इन सभी मंदिरों को 10वीं और 12वीं सदी के बीच चोलों द्वारा बनाया गया था और इनमे बहुत सी समानताएं हैं।
14वीं सदी में, इस मंदिर की संरचना को बदलकर इसे ईंटों से बनाया गया था ताकि यह देखने में वृहदेश्वर मंदिर जैसा लगे।
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