शनिवार, 28 सितंबर 2024

हथिया नक्षत्र (हस्त नक्षत्र)

हथिया नक्षत्र क्या है और इसमें कितने दिन बारिश होती है? जानें इसके ज्योतिषीय और वैज्ञानिक पहलुओं को

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, देश के अधिकांश हिस्सों में हो रही यह बारिश, हथिया नक्षत्र का प्रभाव है। हथिया नक्षत्र में बारिश की अवधि लगभग एक हफ्ते से 10 दिन तक होती है। यह नक्षत्र सितंबर के दूसरे पखवाड़े से लेकर अक्तूबर के पहले पखवाड़े में आता है। आइए जानते हैं इसके ज्योतिषीय और वैज्ञानिक पहलुओं को -

हथिया नक्षत्र क्या है?

हथिया नक्षत्र (हस्त नक्षत्र) एक ऐसा समय होता है जब लगातार बारिश की हल्की फुहारें होती हैं। किसानों के लिए इस नक्षत्र को काफी अच्छा माना जाता है। माना जाता है कि फसलों के लिए किसान इस नक्षत्र का इंतजार करते हैं। हथिया नक्षत्र 5 तारों का समूह है, जिसकी हाथ के पंजे के जैसी आकृति है। इसका ग्रह स्वामी चंद्र है। पश्चिम में इसे α, β, γ, δ और ε Corvi से दर्शाया जाता है। तारामंडल में इसकी स्थिति 10VI00-23VI20 है। इस अवधि को आमतौर पर शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस नक्षत्र में लगातार बारिश होती है। हालांकि मूसलाधार बारिश कम देखी जाती है। हथिया नक्षत्र में बारिश की अवधि स्थान और वर्ष के आधार पर भिन्न हो सकती है। कुछ वर्षों में, बारिश अधिक तीव्र और लंबे समय तक हो सकती है, जबकि अन्य वर्षों में यह कम हो सकती है।

नक्षत्र क्या होते हैं?

भारत में नक्षत्र परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। आसमान में तारों के समूह को नक्षत्र कहते हैं। ये सभी नक्षत्र चंद्रमा के पथ में स्थित होते हैं, जिनके समीप से चंद्रमा गति करता है। सूर्य पंचांग से इनकी गणना करना मुश्किल है, लेकिन चंद्र पंचांग से इनकी गणना आसानी से की जा सकती है। चंद्रमा 27 नक्षत्रों में गति करता है। इन्हें ही प्रधान नक्षत्र माना जाता है। इसके साथ ही एक गुप्त नक्षत्र भी माना गया है जिसे अभिजीत कहा जाता है। इस तरह इनकी संख्या 28 हो जाती है।

वेद-पुराण में नक्षत्रों का वर्णन

ऋग्वेद में सूर्य की गणना भी नक्षत्र में की गई है। भागवत पुराण के अनुसार, ये सभी नक्षत्र प्रजापति दक्ष की पुत्रियां और चंद्रमा की पत्नी हैं। शिव महापुराण में एक कथा के अनुसार, राजा दक्ष ने अपनी 27 पुत्रियों का विवाह चंद्रमा से किया था। लेकिन वो सभी 27 में से रोहिणी से ज्यादा प्रेम करते थे। चंद्रमा के इस व्यवहार से बाकी 26 दक्ष पुत्रियां दुखी रहती थीं। उन्होंने पिता को अपनी व्यथा बतायी। दक्ष ने चंद्रमा को समझाया लेकिन वो नहीं माने तो उन्होंने चंद्रमा को क्षय रोग का श्राप दे दिया।

चंद्रमा इससे घबरा कर ब्रह्मा के पास गये। ब्रह्मा ने उन्हें शिव की स्तुति करने को कहा। तब चंद्रमा ने सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना कर घोर तप किया। उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने कहा कि आज से हर मास में दो पक्ष होंगे (कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष) इनमें लगातार तुम्हारी रोशनी घटेगी और बढ़ेगी, और जब पूर्णिमा को तुम अपने पूर्ण रूप में रहोगे तब रोहिणी नक्षत्र में वास करोगे।

27 नक्षत्रों के नाम क्या-क्या हैं?

1 - अश्विन, 2 - भरणी, 3 - कृतिका, 4 - रोहिणी, 5 - मृगशिरा, 6 - आर्द्रा, 7 - पुनर्वसु, 8 - पुष्य, 9 - अश्लेषा, 10 - मघा, 11 - पूर्वा फाल्गुनी, 12 - उत्तरा फाल्गुनी, 13 - हस्त, 14 - चित्रा, 15 - स्वाति, 16 - विशाखा, 17 - अनुराधा, 18 - ज्येष्ठा, 19 - मूल, 20 - पूर्वाषाढ़ा, 21 - उत्तराषाढ़ा, 22 - श्रवण, 23 - धनिष्ठा, 24 - शतभिषा, 25 - पूर्वा भाद्रपद, 26 - उत्तरा भाद्रपद और 27 - रेवती, 28 - अभिजीत।

ऐसे बनता है वर्षा का योग

ज्योतिषीय शास्त्र के अनुसार 27 नक्षत्रों में कुछ नक्षत्र स्त्री और कुछ पुरुष नक्षत्र होते हैं। इसके अलावा कुछ नपुंसक नक्षत्र भी होते हैं। सूर्य और चंद्रमा के परस्पर विपरीत नक्षत्रों (स्त्री-पुरुष नक्षत्र में) में होने से वर्षा का योग बनता है। लेकिन सूर्य और चंद्र दोनों के स्त्री-स्त्री अथवा स्त्री-नपुंसक के नक्षत्र में होने पर वर्षा न होकर बादलों का आवागमन रहता है। अगर सूर्य व चंद्र पुरुष-पुरुष नक्षत्र में होते हैं तो वर्षा नहीं होती मौसम साफ रहता है।

ग्रहों का भी रहता है प्रभाव

शास्त्रों के अनुसार, पूर्व तथा उत्तर की वायु चलने पर वर्षा तुरंत होती है और वायव्य दिशा की ओर अगर बारिश होती है तो तूफानी वर्षा होती है। नवग्रहों का भी अच्छी बारिश के योग में महत्वपूर्ण प्रभाव बना रहता है। अगर बुध और शुक्र एक राशि में मौजूद हैं और उन पर गुरु ग्रह की दृष्टि पड़े तो अच्छी बारिश के योग बनते हैं। वहीं अगर गुरु और शुक्र ग्रह एक राशि में हैं और उस पर बुध ग्रह की दृष्टि हो तो क्रूर ग्रहों की दृष्टि पड़ने पर बाढ़ व भूस्खलन जैसी स्थिति बनती हैं।

कहावतों में हथिया का कैसा है वर्णन?

मानसून की विदाई की बेला में शुरू हुई बारिश ने कवि घाघ की कहावत को सच साबित किया है। कवि घाघ ने अपनी रचना में लिखा है, ‘हथिया पुरवाई पावै, लौट चौमास लगावै। मौजूदा समय में हथिया नक्षत्र चल रहा है और पुरवाई पिछले कई दिनों से लगातार बह रही है। पुरवाई का साथ पाते ही मानसून ने जोरदार दस्तक दी है। पितृपक्ष का समय मानसून की विदाई का होता है। कहावत है - बोली लुखरी फूला कास, अब छोड़ो वर्षा की आस। इस समय में शाम होते ही लुखरी, यानी लोमड़ी की आवाज गूंजने लगती थी और कास भी जमकर फूलने लगा करते थे। किसान वर्षा की उम्मीद छोड़ चुके होते थे। लेकिन पितृपक्ष के हथिया नक्षत्र ने किसानों की उम्मीदें जगा दी हैं। हथिया नक्षत्र ने पुरवाई का साथ पाकर पिछले 48 घंटे से बरसात का माहौल बना दिया है। रुक-रुककर बदरा झूमझूम के बरस रहे हैं। किसानों के चेहरों पर मुस्कान छा गई है। किसानों के लिए पितृपक्ष में यह बरसात आगामी रबी की फसलों के लिए बहुत लाभदायक साबित होगी।

जलवायु परिवर्तन से बदल सकता है मौसम पूर्वानुमान

मौसम विभाग के अनुमान से लेकर ज्योतिष गणना तक पर कई बार सवाल उठते रहे हैं। खुद विज्ञान भी वैज्ञानिक आधार पर अपने पूर्वानुमानों को सटीक होने का दावा नहीं करता, तो हाल में हुए कई शोध यह भी बताने लगे हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश का पूर्वानुमान और ज्यादा मुश्किल होता जाएगा। दूसरी ओर ज्योतिषीय गणना भी कई बार सटीक नहीं हो पाती है।



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