बुधवार, 23 जनवरी 2013

पशुपतिनाथ मंदिर (अष्टमुखी शिवलिंग) मंदसौर


पशुपतिनाथ मंदिर (अष्टमुखी शिवलिंग) मंदसौर 

ऐसी मान्यता है कि विश्व में केवल मंदसौर में ही एक मात्र अष्टमुखी शिवलिंग हैं। यूं तो मंदसौर अति प्राचीन दशपुर नगरी है, लेकिन भूतभावन के नगर में प्रकट होने के बाद यह स्थल विश्व प्रसिद्ध हो गया। मां शिवना की गोद में भगवान पशुपतिनाथ कब समाए और किस काल में प्रतिमा निर्माण हुआ यह आज भी इतिहास के गर्भ में है। जब से शिवना तट पर अष्टमुखी भगवान की प्रतिमा विराजित हुई तब से यह स्थान धार्मिक स्थल के रूप में पहचाने जाने लगा है। भगवान पशुपतिनाथ मंदिर की तिथि अनुसार मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष पंचमी पर स्थापना के 51 वर्ष पूरे हो गए हैं।

पशुपतिनाथ मंदिर प्रबंध समिति के सहायक प्रबंधक ओमप्रकाश शर्मा ने बताया विक्रम संवत 2018 के मार्गशीर्ष की कृष्ण पक्ष की पंचमी ( 27 नवंबर 1961) सोमवार को भगवान पशुपतिनाथ की स्थापना स्वामी प्रत्याक्षानंद महाराज के सान्निध्य में हुई थी।

प्रतिमा की विशेषता : मुख- 08, ऊंचाई - 7.3 फीट, गोलाई - 11.3 फीट, वजन - 64065 किलो 525 ग्राम।

प्रत्यक्षानंदजी ने दिया पशुपति नाम : चैतन्यदेव आश्रम मेनपुरिया के अधिष्ठाता स्वामी प्रत्यक्षानंदजी महाराज ने पंचकुडात्मक महायज्ञ के साथ 27 नंवबर 1961 को प्रतिमा का नामकरण किया और पशुपतिनाथ नाम दिया।

21 साल की रक्षा : हिंद महासभा के सक्रिय कार्यकर्ता व वरिष्ठ समाजसेवी शिवदर्शन अग्रवाल ने 21 साल इस दुर्लभ प्रतिमा की रक्षा की। इतने वर्षों तक प्रतिमा तट पर आड़ी पड़ी रही।

पहली बार दर्शन : संयोग ही है कि 1940 के जून की 10 तारीख को सोमवार था। इसी दिन घाट पर कपड़े धो रहे उदाजी पिता कालृ फगवार (धोबी) को प्रतिमा के पहली बार दर्शन हुए। उन्होंने किले की दक्षिण-पूर्व दिशा में चिमन चिश्ती की दरगाह के समक्ष रेती में दबी अष्टमुखी प्रतिमा देखी थी।

तीन अक्टूबर 2012 को मंदिर स्थापना के 51 वर्ष पूरे होने पर अहमदाबाद के चौधरी कल्याणमल राठी द्वारा लाए गए कमल के फूलों से पशुपतिनाथ की मूर्ति का आकर्षक शृंगार किया गया।

अष्ट मुखी शिवलिंग
संसार में शिव जी के अनेकों शिवलिंग लेकिन अष्ट मुखी शिवलिंग एक ही है! यह शिव के आठों मुख भगवान शिव के अष्ट तत्त्व को दर्शाते हैं! या यूँ कहें की यह नाम भगवान शिव के अष्ट मुखों के हैं!
इन मुखुं के नाम इस प्रकार है----
1 -- शर्व, 2 -- भव, 3 -- रूद्र, 4 -- उग्र, 5 -- भीम, 6 -- पशुपति, 7 -- ईशान और 8 -- महादेव!
1  शर्व [शार्वी] -- यह पृथ्वीमयी है!
2  भावी -- यह जलमयी है!
3  रौद्री -- तेजोमयी है!
4  औग्री -- वायुमयी है!
5  भैमी -- आकाशमयी है!
6  पशुपति -- क्षेत्रज्ञरूपा है!
7  ईशान -- सूर्यरूपिणी है!
8  महादेव -- चंद्रमयी है!

आदि शिव के अष्ट मन्त्र हैं! ये अष्ट मूर्ति और अष्ट विभागापन्न प्रणव के द्योतक हैं! अकार, मकार, विन्दु, शब्द, काल और कला से युक्त प्रणव "दीर्घ" प्रणव हैं! दीर्घ प्रणव के अकार, उकार, मकार, नाद, विन्दु, कला, अनुसंधान और ध्यान -- ये अष्ट प्रभेद भी मान्य हैं! इनमें अकार सद्योजात, उकार वामदेव, मकार, अघोर, नाद तत्पुरुष है, विंदु ईशान है, कला व्यापक है, अनुसंधान नित्य है और ध्यान ब्रह्मस्वरुप है!

श्रीरुद्राष्टकम स्तोत्र [हर हर हर महादेव]............
नमामीशमीशाननिर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं त्रह्यवेदस्वरूपं!
निजं निर्गुण निर्वीकल्पं निरीहं ,
चिदाकाशमाकाशवासं भजेहं!!१!!
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं,
गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं!
करालं महाकाल कलन कृपालं ..
गुनागार संसारपारं नतोsहं!!२!!
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं..
मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरं!
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा..
लॉसभ्दाबालेंदु कंठे भुजंगा!!३!!
चलत्कुंडलं भू सुनेत्रं विशालं ..
प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालं!
म्रिगाधीशचर्माम्बर्ण मुंडमालं..
प्रियें शंकरं सर्वनाथं भजामि!!४!!
प्रचंडं प्रकृष्टन प्रगल्भं परेशन ..
अखंडं अजं भानुकोटिप्रकाशं!
त्रय: शूल निर्मूलनं शूलापानिं..
भजेsहं भवानीपतिं भावगम्यं!!५!!
कालातीत कल्याण कल्पान्तकारी..
सदा संजनानन्ददाता पुरारी!
चिदानन्द संदोह मोहापहारी..
प्रसीद प्रसीद प्रभु मन्मथारी!!६!!
न यावद उमानाथ पादारविन्दं ..
भजंतीह लोके परे वा नराणां!
न तावत्सुखं शान्ति संतापनाशं..
प्रसीद प्रभु सर्वभूताधिवासं!!७!!
न जानामि योगं जपं नैव पूजां..
नतोsहं सदा सर्वदा शंभू तुभ्यं!
ज़रा जन्म दुखौध तातप्यमानं..
प्रभु पाहि आपन्न मामीश शंभू!!८!!
श्लोक ---
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये!
ये पठन्ति नारा भक्त्या तेषां शम्भु: प्रसीदति!!९!!


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