बुधवार, 16 जनवरी 2013

पोताला महल (Potala Palace)

पोताला महल (Potala Palace)



पोताल महल चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा शहर के केन्द्र (उत्तर पश्चिम भाग) में खड़ी लाल पहाड़ी पर स्थित है, यह महल पहाड़ी ढलान से ऊंपर चोटी पर फैला निर्मित हुआ है, जिस का क्षेत्रफल तीन लाख 60 हजार वर्ग मीटर (41 हैक्टर) है। महल बहुत विशाल और आलीशान है, जो विश्व छत की चमकीली मोती के नाम से मशहूर है। पोताला महल विश्व का समुद्रीय सतह से सबसे ऊंचे (तीन हजार सात सौ मीटर) स्थान पर निर्मित विशाल राज महल है। पोताल महल तिब्बती स्थापत्य कला की अनूठा कृति है और चीन के प्रसिद्ध प्राचीन वास्तु निर्माणों में से एक भी है। पोताला महल तिब्बत के विभिन्न कालों के दलाई लामाओं के शासन, राजनीतिक गतिविधि तथा धार्मिक आयोजन का स्थल होने के साथ साथ उन का निवास स्थान भी था। वह तिब्बत में अब तक सुरक्षित सबसे बड़ा बहु मंजिला प्राचीन निर्माण है। पोताला का अर्थ पुतल है, कहते थे कि पुतल अवलोकनतेश्वर के निवास द्वीप का नाम है, इसलिए पोताला भी दूसरा पुतल पर्वत कहलाता है।

एतिहासिक उल्लेख के अनुसार पोताला महल का निर्माण सातवीं शताब्दी में आरंभ हुआ था, जो थु पो राजवंश के तिब्बती राजा सङचांकानबू द्वारा थांग राजवंश की राजकुमारी वुनछङ के साथ शादी के लिए बनवाया गया था। उस समय पोताला महल का नाम लाल पहाड़ी भवन था। लाल पहाड़ी भवन का पैमाना असाधारण विशाल था, बाह्य पक्ष में आगे पीछे तीन दीवारें थीं, भीतरी महल समूह में हजार से अधिक भवन और मकान थे, जो तु पो राज्य का राजनीतिक केन्द्र रहा था। नौवीं शताब्दी में तु पो राज्य का पतन हुआ, तिब्बत में लम्बे अरसे तक गृह युद्ध चलता रहा। लाल पहाड़ी भवन भी युद्ध से ग्रस्त हो कर खंडहर बन गया। वर्ष 1645 से पांचवें दलाई लामा ने लाल पहाड़ी भवन का पुनः निर्माण करना शुरू किया, इस का प्रमुख स्थापत्य निर्माण करीब पचास साल तक चला, इसके पश्चात विभिन्न कालों में महल का विस्तार किया गया, जो कुल तीन सौ साल तक जारी रहा। पोताला महल बाहर से देखने में 13 मंजिला विशाल और 110 मीटर ऊंचा है। महल समूह पत्थर और लकड़ी से निर्मित हुआ है, महल की दीवारें ग्रानेट पत्थर से बनी है, जो पांच मीटर तक मोटी है, दीवार की नींव पहाड़ी चट्टानों के अन्दर बहुत गहरी बनाई गई है, दीवार के बाह्य पक्ष में लोहे का पानी भी डाला गया, जिससे पूरे महल की मजबूती और भूचाल रोधक क्षमता काफी बढ़ गई। पोताला महल के विभिन्न भवनों की बाहरी छतों पर सोने के मीनार और सोने के ध्वज स्तंभ बनाए गए हैं, जो सुन्दर सजावट के साथ साथ ऊंचे महल को आकाशी वज्रपात से बचाने का काम भी आता है। सदियों से पोताला महल भूकंप तथा आकाशी वज्रपात की परीक्षा में खरा उतरे पहाड़ पर शान से खड़ा रहा है। इस महल में एक हजार से अधिक कमरे व भवन हैं। पहले दलाई लामा से 13वें दलाई लामा तक के सब पार्थिव शरीर पोताला महल में समाधिस्थ हुए हैं। उनके लिए स्तूप बनाए गए है। हर स्तूप पर सोने के पन्ने जड़ित हैं व अत्यंत मूल्यवान रत्नों से सजा है।

पोताला महल मुख्यतः तीन भागों में बंटा हुआ है, पूर्वी भाग में श्वेत महल है, जहां दलाई लामा रहते थे, मध्य भाग में लाल भवन है, जहां बुद्ध भवन तथा विभिन्न दलाई लामाओं के स्तूप रखे गए हैं और पश्चिमी भाग में श्वेत भवन है, जिस में भिक्षुओं के विहार स्थित हैं। बीच के लाल भवन के सामने सफेद रंग की एक समतल ऊंची दीवार है, उस पर विशेष धार्मिक पर्व के मौके पर बुद्ध भगवान की तस्वीर अंकित विशाल कालीन लटकाए सुखाया जाता है। पोताला महल के विभिन्न भवन और मकान विभिन्न कालों में निर्मित हुए थे, लेकिन सभी निर्माण काम बड़े कुशल रूप से पहाड़ी ढलान की स्थिति का लाभ उठा कर बनाये गए और वे आपस में मिलकर ऐसे समूह के रूप में दिखता है, जो देखने में बेहद भव्य और आलीशान है और अद्भत समन्वित तथा अखंड होता है। स्थापत्य कला व सौंदर्य कला की दृष्टि से पोताला महल एक असाधारण उत्कृत कृति है। लाल भवन पोलाता महल का मुख्य निर्माण है, जिस में विभिन्न कालों के दलाई लामाओं के स्तूप और विभिन्न प्रकार के बुद्ध भवन बनाए गए हैं। स्तूपों में पांचवे दलाई लामा लोसानचाछ्वे का कलात्मक स्तूप सब से भव्य और सुन्दर है, यह स्तूप 14.85 मीटर ऊंचा है, जिसका आधार चौकोर है और ऊंपरी हिस्सा गोलाकार, स्तूप शिलाधार, मध्य भाग और ऊंपरी भाग तीन हिस्सों में विभाजित हुआ है, पांचवे दलाई लामा का पार्थिव शरीर मसालाओं और कैसरी फुलों से लिपटा हुआ स्तूप के मध्य भाग में दफनाया गया है, स्तूप सोने के पन्नों से आच्छादित है, जिसमें कुल तीन हजार सात सौ 24 किलोग्राम (1 लाख 19 हजार ल्यांग / एक किलो बीस ल्यांग के बराबर) के सोने का प्रयोग किया गया, स्तूप पर 15 हजार रत्न और 4000 मोतियां जड़ित हैं, जिनमें लाल मणि, हरित मणि, रत्न, हीरे, मोती जैसे कीमती पत्थर शामिल हैं। स्तूप के शिलाधार पर विभिन्न किस्मों के धार्मिक यंत्र तथा पूजा सामान रखे गए हैं। पांचवे दलाई लामा का स्तूप लाल भवन के पश्चिमी भाग में रखा गया है, वह लाल भवन में सबसे बड़ा मकान है, जिस में 48 विराट काष्ठ तंभे है, जो 6 मीटर ऊंचा है। लाल भवन का स्थापत्य हान जाति की वास्तु कला में प्रयुक्त होने वाले काष्ठ जोड़ों और तुलाओं का ढांचा अपनाया गया और भवन में बड़ी मात्रा में काष्ठ बुद्ध मुर्तियां, शेर और हाथी जैसे जानवरों की मुर्तियां सुरक्षित हैं। पोताला महल का 17वीं शताब्दी में पुनर्निर्माण व विस्तार किया जाने के दौरान स्थानीय चित्रकारों ने विभिन्न भित्ति पर हजारों सुन्दर चित्र खींचे थे, महल के विभिन्न भवनों, मंडपों, कमरों, बरामदाओं, दरवाजों तथा गलियारियों की भित्ति पर सुन्दर चित्र देखने को मिलते हैं, चित्रों के विषय विविध होते है, जिनमें एतिहासिक कहानियां, मशहूर व्यक्तिकों की जीवनी, धार्मिक कथाएं, वास्तु कला, रिति रिवाज, खेल तथा मनोरंजन के विषय भी शामिल हैं। ये भित्ति चित्र पोताला महल के अमोल कला कृतियां हैं। इसके अलावा पोताला महल में दस हजार 17वी शताब्दी के चित्रमालाएं, प्रस्तर मुर्तियां, काष्ठ मुर्तियां तथा मिट्टी की मुर्तियां तथा पत्रों के बौद्ध सूत्र जैसी एतिहासिक धरोहर सुरक्षित हैं। साथ ही महल में बड़ी मात्रा में तिब्बती शैली के कालीन, दरी, धार्मिक झंडा ध्वज, मिट्टी के बर्तन, जेड के काम समेत तिब्बती जाति की परमपरागत शिल्प वस्तुएं उपलब्ध है, उन का अत्यन्त ऊंचा कलात्मक मूल्य होता है। ये एतिहासिक अवशेष हजार वर्षों से हान व तिब्बत जातियों के बीच मैत्रीपूर्ण आवाजाही व सांस्कृतिक आदान प्रदान का साक्षी हैं। विश्व छत की शानदार मोती के नाम से मशहूर पोताला महल अपने भवनों के ढांचा, निर्माण के काम, धातु शौधन, चित्र कला तथा मुर्ति कला के कारण विश्व में खासा प्रसिद्ध है और इसके स्थापत्य में तिब्बत जाति की प्रमुखता के साथ हान, मंगोल तथा मान जातियों की कला शैली के बेमिसाल मिश्रण तथा उनके कारीगरों के उच्च कौशल तथा तिब्बती वास्तु कला की महान उपलब्धयों की अभिव्यक्ति होती है। वर्ष 1994 में पोलाता महल विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया।
दलाई लामा पोताला महल में रहते थे, धार्मिक गतिविधि चलाते थे और प्रशासनिक काम करते थे। उन का शयन महल पोताला महल की सबसे ऊंची मंजिल पर स्थित है, जहां बहुत रोशनीदार है। सो इसे रोशनी भवन कहा जाता है।

वर्ष 1961 में पोताला महल चीनी केंद्रीय सरकार से राष्ट्रीय दर्जा वाले एतिहासित अवशेषों की सूची में शामिल किया गया और हर साल इस की मरम्मत के लिए केन्द्रीय सरकार विशेष धन राशि का अनुदान करती है। वर्ष 1984 से वर्ष 1994 तक केंद्रीय सरकार ने इस के पूर्ण जीर्णोद्धार के लिए 5 करोड 30 लाख य्वान की पूंजी लगायी, जिस से पोताला महल और अधिक आलीशान और भव्य बन गया।

पोताला महल की कहानी
पोताला महल का मुख्य भवन लाल पहाड़ की चोटी पर स्थित है, वह सुंचान्कांबू ने तपस्या करने के लिए बनवाया था, भवन गुफा नुमा है, जिसके भीतर सुंचान्कांबू और उसकी रानी, थांग राकवंश की राजकुमारी वुनछङ, उसकी दूसरी रानी नेपाल की राजकुमारी भरीकुटी और उसके प्रमुख मंत्री लुतुंगजान आदि की मुर्तियां विराजमान हैं, यह सभी सातवीं शताब्दी के तिब्बती तुबो राजकाल की कलाकृति हैं और अमोल सांस्कृतिक धरोहर है।

पोताला महल तिब्बती बौध धर्म की ठेठ शैली में निर्मित भवन निर्माण है, फिर भी उसमें हान जाति की वास्तु कला स्तंभों पर चित्र नकाशी अपनायी गई है, जो इस बात का साक्षी है कि आज से 1300 साल पहले चीन के हान और तिब्बत जातियों में शादी ब्याह का रिश्ता कायम हुआ था और तिब्बत और हान जातियों की एकता स्थापित हुई थी। 1300 साल पहले की तिब्बती राजा और थांग राजवंश की राजकुमारी की शादी ब्याह की दिलकश कहानी आज भी हान और तिब्बती लोगों की हर जबान पर है।

याद रहे, ईस्वी सातवीं शताब्दी में तिब्बत में शक्तिशाली तुबो राज्य की स्थापना हुई, राजा सुंचान्कांबू एक परिश्रमशील, बुद्धिमान, प्रजा से प्यार करने वाला महाकांक्षी शासक था, उसके शासन काल में तुबो राज्य दिनोंदिन शक्तिशाली बनता चला गया। चीन के भीतरी इलाके में स्थापित थांग राजवंश के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों का विकास करने तथा भीतरी इलाके की समुन्नत तकनीक व संस्कृति सीखने के लिए सुंचान्कांबू ने थांग राजवंश की राजकुमारी वुन छङ से विवाह का संबंध बनाने का प्रस्ताव पेश किया, उसने अपने विश्वसनीय मंत्री लुतुंगजान को विवाह प्रस्ताव के लिए उपहार सहित थांग राजवंश की राजधानी छांगआन भेजा। जब राजा सुंचान्कांबू का विशेष दूत लुतंगजान छांगआन पहुंचा, तो उसे पता चला कि थांग राजवंश के कई पड़ोसी राज्यों ने भी सुन्दर व सुशील राजकुमारी वुनछङ से विवाह का प्रस्ताव पेश करने विशेष दूत भेजे थे। थांग राजवंश के सम्राट थाईचुंग ने समस्या के समाधान के लिए विभिन्न देशों से आए दूतों को बुद्धि की स्पर्धा के लिए तीन पहेलियां पेश की, जिस किसी ने तीनों प्रश्नों के सही उत्तर दिये, उसी के राजा का वुनछङ के साथ शादी का प्रस्ताव स्वीकार किया जाएगा।

सम्राट थांग थाईचुंग का पहला प्रश्न था कि शाही उद्यान में दस लकड़ियां रखी गई हैं, हरेक के दोनों छोर मोटाई में बराबर है, विभिन्न राज्यों के दूतों को यह पहचानना चाहिए कि लकड़ी का किस छोर उस की जड़ है और किस छोर उस का सिर है। बुद्धिमान तुबो मंत्री लुतंगजान ने लकड़ी को पानी में डाला, लकड़ी का जड़ वाला भाग घनत्व सघन होने के कारण भारी है, वह पानी में अपनी तरफ डूब जाता है। इसी तरीके से लुतंगजान ने लकड़ी के जड़ और सिर को अलग पहचान कर दिया।

थांग थाईचुंग का दूसरा प्रश्न था कि एक ऐसा जेड है, जिस के अन्दर नौ मोड़ों वाला लम्बा टेढ़ घुमावदार छोटा छेद बनाया गया, विशेष दूतों से मांग है कि वे एक महीन धागा को जेड के छेद में से आर पार घुसा दें। अन्य राज्यों के दूत तो बड़े गौर से धागा को जेड के अन्दर के छेद में पैठा करने की कोशिश में हैं, लेकिन बुद्धिमान लुतुंगजान को एक अच्छा उपाय सुझा, उसने जेड के छेद के एक ओर मधु लगाया, एक महीन धागा को चिउंटी के कमर में बांधा, चिऊंटी को छेद दूसरे छोर पर रखा, जब चिउंटी ने छेद के इस पार का मधु गंध सुंघा, तो वह छेद के अन्दर घुसा और दूसरी ओर से निकल गया। इस तरह लुतुंगजान ने दूसरा स्पर्धा भी जीती।

थांग थाईचुंग का अंतिम प्रश्व था कि सौ मादा घोड़े और सौ बछेड़े मिश्रित हुए रह रहे हैं, दूतों से मांग है कि वे मादा घोड़े और उसके बछड़े को दूसरे मादा घोड़े व उसके बछड़े से अलग कर पहचान दें। अन्य दूतों में से किस ने रंग से विभाजित करने की कोशिश की, तो किस ने आकृति से। लेकिन उन सभी की कोशिश सफल नहीं हुई। लुतुंजान ने मादा घोड़ों और बछड़ों को अलग कर रात भर बाड़ों में रखे गए, दूसरे दिन सुबह उन्हें बाहर छोड़ा गया, रात भर भूखे बछड़े अपनी अपनी माता घोड़े के पास दौड़ कर दूध पीने लगे, इस तरह मादा घोड़े और उसके बछड़े को भी अलग कर पहचान लिया गया।

लुतुंगजान के सही उत्तर को देख कर थांग थाईचुंग ने उसकी बुद्धिमता आजमाने के लिए एक अतिरिक्त पहेली जोड़ी, यानी उससे मांग है कि वह पांच सौ बुरका से चेहरा ढंकी युवतियों में से राजकुमारी वुनछङ को पहचान ले। राज महल के बाहर के लोगों में से किसने भी राजकुमारी को नहीं देखा था, उसे पांच सौ समान वस्त्र पहनी युवतियों में पहचान लेना काफी मुश्किल है, सभी अन्य दूत नाचार हो गए। परन्तु लुतुंगजान ने पता लगाया था कि राजकुमारी वुनछङ को एक किस्म का विशेष गंध वाला इत्र पसंद है, इस इत्र का सुगंध मधुमक्खी भी पसंद करती है। राजकुमारी को पहचानने के दिन लुतुंगजान ने अपने पास कुछ मधुमक्खियां छुपी, मौके पर उसने मधुमक्खी छोड़ी, मधुमक्खी राजकुमारी का वह विशेष सुगंध सुंघ कर उसी के पास उड़ गईं। इस तरह लुतुंगजान ने एक बार फिर जीत ली। थांग थाईचुंग ने सोचा कि तुबो राज्य के मंत्री तो इतना बुद्धिमान है, फिर उसके राजा जरूर विवेक होंगे, अंततः उसने अपनी बेटी राजकुमारी वुनछङ का हाथ तिब्बती राजा सुंज्यांगकांबू को सौंप दिया।

इस शादी ब्याह पर तिब्बत के तुबो राज्य के राजा सुंचान्कांबू को अपार खुशी हुई और राजकुमारी वुनछङ से विवाह के लिए उस ने 999 कमरों वाला एक भव्य महल बनाने का आदेश दिया। इस तरह ल्हासा में पोताला महल निर्मित हुआ। और राजकुमारी वुनछङ से विवाह प्रस्ताव की वह रूचिकर कहानी भी पोताला महल के भित्ती चित्रों में वर्णित हुई है।


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