मंगलवार, 17 नवंबर 2015

अशोक सिंघल (Ashok Singhal)


अशोक सिंघल (Ashok Singhal)

विश्व हिंदू परिषद ((वीएचपी / विहिप) के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे अशोक सिंघल का जन्म 27 सितम्बर 1926 (आश्विन कृष्ण पंचमी) को आगरा में एक बड़े कारोबारी परिवार में हुआ था। अशोक सिंघल के पिता महावीर सिंघल शासकीय सेवा (सरकारी दफ्तर) में उच्च पद पर कार्यरत थे। उनके पिता आजादी से पहले इलाहाबाद के सिटी मजिस्ट्रेट थे। उन्होंने जमींदारी उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। राजस्थान सरकार ने भी प्रभावित होकर उन्हें राज्य में जमींदारी प्रथा को जड़ से मिटाने के लिए बुलाया था।
अशोक सिंघल हाशिमपुरा रोड पर जिस मकान में रहते थे, वह उनके पिता ने ही खरीदा था। अशोक का बचपन इलाहाबाद में बीता। उनका एडमिशन सेंट जोसेफ स्कूल में कराया गया, लेकिन अंग्रेजी की अनिवार्यता के विरोध में उन्होंने स्कूल छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने सीएवी इंटर कॉलेज से इंटर तक की पढ़ाई पूरी की। 12वीं के बाद वो इंजीनियरिंग के लिए बनारस गए। समाज को अपना जीवन समर्पित कर चुके सिंघल ने 1950 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (बीएचयू) से मटलर्जी साइंस (धातु विज्ञान) में इंजीनियरिंग पूरी की। लेकिन अपने ग्रेजुएशन के समय ही सिंघल आरएसएस के संपर्क में आए और फिर प्रचारक बन गए।
अशोक सिंघल वह व्यक्त‍ित्व थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन आरएसएस और विहिप को समर्पित कर दिया। बाल अवस्था से लेकर युवावस्था तक अंग्रेज शासन को देख कर बड़े हुए और उसी दौरान वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ गये। 1942 में आरएसएस ज्वाइन करने के साथ-साथ उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। प्रचारक रहते हुए उन्होंने कई प्रदेशों में संघ के लिए काम किया। उन्होंने बाकयदा संगीत की शिक्षा भी ली थी। आजीवन अविवाहित अशोक सिंघल ही वो शख्सियत थे, जिन्होंने देश और विदेश में विश्व हिंदू परिषद को एक नई पहचान दिलाई। विहिप के अभियान में विदेशी समर्थकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

कक्षा 9 में ही जुड़ गये आरएसएस से
अशोक सिंघल बचपन से ही क्रांतिकारी थे। इसका पता इस बात से चलता है कि उन्होंने इंग्लिश की अनिवार्यता के विरोध में स्कूल तक छोड़ दिया था। घर के धार्मिक वातावरण के कारण उनके मन में बालपन से ही हिन्दू धर्म के प्रति प्रेम जाग्रत हो गया। उनके घर संन्यासी तथा धार्मिक विद्वान आते रहते थे। कक्षा नौ में उन्होंने महर्षि दयानन्द सरस्वती की जीवनी पढ़ी। उससे भारत के हर क्षेत्र में सन्तों की समृद्ध परम्परा एवं आध्यात्मिक शक्ति से उनका परिचय हुआ। 1942 में प्रयाग में पढ़ते समय प्रो. राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) ने उनका सम्पर्क राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से कराया। उन्होंने अशोक सिंघल की माता जी को संघ के बारे में बताया और संघ की प्रार्थना सुनायी। इससे माता जी ने अशोक सिंघल को शाखा जाने की अनुमति दे दी।
इंजीनियर की नौकरी करने के बजाये उन्होंने समाज सेवा का मार्ग चुना और आगे चलकर आरएसएस के पूर्णकालिक प्रचारक बन गये। उन्होंने उत्तर प्रदेश और आस-पास की जगहों पर आरएसएस के लिये लंबे समय के लिये काम किया और फिर दिल्ली-हरियाणा में प्रांत प्रचारक बने। 20 साल के अधिक समय तक विहिप के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष रहे।

शास्त्रीय गायन में भी थे निपुण
1947 में देश विभाजन के समय कांग्रेसी नेता सत्ता प्राप्ति की खुशी मना रहे थे; पर देशभक्तों के मन इस पीड़ा से सुलग रहे थे कि ऐसे सत्तालोलुप नेताओं के हाथ में देश का भविष्य क्या होगा? अशोक सिंघल भी उन युवकों में थे। अतः उन्होंने अपना जीवन संघ कार्य हेतु समर्पित करने का निश्चय कर लिया। बचपन से ही अशोक सिंघल की रुचि शास्त्रीय गायन में रही थी। उन्हें शास्त्रीय गायन के भी जानकार थे और उन्होंने पंडित ओमकार ठाकुर से हिंदुस्तानी संगीत की भी शिक्षा ली थी। संघ के अनेक गीतों की लय उन्होंने ही बनायी है।
वर्ष 1948 में देश के तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभभाई पटेल ने जब संघ पर प्रतिबंध लगाया तब अशोक सिंघल ने सत्याग्रह किया और जेल गए। वहाँ से आकर उन्होंने बी.ई. अंतिम वर्ष की परीक्षा दी और प्रचारक बन गये। अशोक सिंघल की सरसंघचालक श्री गुरुजी (गोलवलकर) से बहुत घनिष्ठता रही। प्रचारक जीवन में लम्बे समय तक वे कानपुर रहे। यहाँ उनका सम्पर्क श्री रामचन्द्र तिवारी नामक विद्वान से हुआ। वेदों के प्रति उनका ज्ञान विलक्षण था। अशोक सिंघल अपने जीवन में इन दोनों महापुरुषों का प्रभाव स्पष्टतः स्वीकार करते हैं।

आपातकाल में सिंघल
1975 से 1977 तक देश में आपातकाल और संघ पर प्रतिबन्ध रहा। इस दौरान अशोक सिंघल इंदिरा गांधी की तानाशाही के विरुद्ध हुए संघर्ष में लोगों को जुटाते रहे। आपातकाल के बाद वे दिल्ली के प्रान्त प्रचारक बनाये गये। 1981 में डा. कर्ण सिंह के नेतृत्व में दिल्ली में एक विराट हिन्दू सम्मेलन हुआ; पर उसके पीछे शक्ति अशोक सिंघल और संघ की थी। उसके बाद अशोक सिंघल को विश्व हिन्दू परिषद् के काम में लगा दिया गया।
इसके बाद परिषद के काम में धर्म जागरण, सेवा, संस्कृत, परावर्तन, गोरक्षा आदि अनेक नये आयाम जुड़े। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आन्दोलन, जिससे परिषद का काम गाँव-गाँव तक पहुँच गया। इसने देश की सामाजिक और राजनीतिक दिशा बदल दी। भारतीय इतिहास में यह आन्दोलन एक मील का पत्थर है। आज वि.हि.प. की जो वैश्विक ख्याति है, उसमें अशोक सिंघल का योगदान सर्वाधिक है।
आरएसएस में करीब 40 साल तक काम करने के बाद अशोक सिंघल 1980 में विश्व हिन्दू परिषद के महासचिव बनाए गए थे।  फिर साल 1984 में वो विहिप के महासचिव बने। इस सफर में उनका एक बार फिर ओहदा बढ़ा, जब वो विहिप के अध्यक्ष बने। 2011 तक सिंघल इसी पद पर कार्य करते रहे।

मीनाक्षीपुरम की घटना
1981 में तमिलनाडु के मीनाक्षीपुरम की एक घटना ने अशोक सिंघल के कामकाज के तरीके को बदल कर रख दिया। मीनाक्षीपुरम में ऊंची जातियों के व्यवहार से तंग आकर 400 दलितों ने इस्लाम धर्म अपना लिया। धर्म बदलने वालों की सबसे बड़ी शिकायत ये थी कि उन्हें मंदिरों में प्रवेश करने नहीं दिया जाता है। समाज में दलितों के साथ तिरस्कार की भावना और उसके चलते हो रहे धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए भी अशोक सिंघल ने अहम भूमिका निभाई। उन्होंने दलितों के साथ भेदभाव के खिलाफ एक लंबी लड़ाई लड़ी। अशोक सिंघल की पहल से ही दलितों के लिए अलग से 200 मंदिर बनाए गए और उन्हें हिंदू होने की अहमियत समझाई गई।

राम जन्म भूमि आंदोलन
राम जन्मभूमि विवाद को अयोध्या आंदोलन में तब्दील करने में जिस शख्स ने सबसे बड़ी भूमिका निभाई वो थे अशोक सिंघल। 90 के दशक में जो रामजन्म भूमि विवाद अयोध्या तक सीमित था उसे पूरे देश तक अशोक सिंघल ने पहुंचाया था। राम जन्मभूमि मामले को आंदोलन का शक्ल देने में वीएचपी नेता अशोक सिंघल की बड़ी भूमिका थी। वीएचपी का रामजन्म आंदोलन तब राजनीतिक रंग ले लिया था जब बीजेपी के दिग्गज लाल कृष्ण आडवाणी ने अयोध्या की विवादास्पद जगह पर राम मंदिर बनाने की मांग को लेकर रथ यात्रा पर निकलने का फैसला लिया था।

सिंघल के समय ही राम मंदिर आंदोलन का पूरे देश में विस्तार हुआ था। 1989 में आयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास के बाद अशोक सिंघल ने कहा था कि "यह मात्र एक मंदिर का नहीं, हिंदू राष्ट्र का शिलान्यास है।" इसके बाद हिन्दू कार्यकर्ताओं ने 1992 में विवादास्पद बाबरी मस्जिद को ढहा दिया था।

देश में हिंदुत्व को फिर से मजबूत और एकजुट करने के लिए 1984 में विश्व हिन्दू परिषद ने दिल्ली के विज्ञान भवन में एक धर्म संसद का आयोजन किया था। सिंघल इस के मुख्य संचालक थे। यहीं पर साधु संतों की बैठक के बाद राम जन्म भूमि आंदोलन की रणनीति तय की गई। यहीं से सिंघल ने पूरा प्लान बनाना शुरू किया और कार सेवकों को अपने साथ जोड़ना शुरू किया। 1992 में बाबरी मस्ज‍िद तोड़ने वाले कार सेवकों का नेतृत्व सिंघल ने ही किया था। सिंघल ने देश भर से 50 हजार कारसेवक जुटाये। सभी कारसेवकों ने राम जन्म भूमि पर राम मंदिर स्थापना करने की कसम देश की प्रमुख नदियों के किनारे खायी। बात अगर सिंघल की करें तो उन्होंने अयोध्या की सरयु नदी के किनाने राम लला की मूर्ति स्थापित करने का संकल्प लिया था। सिंघल ने एक इंटरव्यू में कहा था, "अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिये हमने अपना सब कुछ समर्पित कर दिया। रही बात मस्ज‍िद तोड़ने की तो हम मस्ज‍िद तोड़ने के मकसद से नहीं गये थे। उस दिन जो कुछ भी हुआ वह मंदिर के पुनरनिर्माण कार्य का एक हिस्सा था।"

अशोक सिंघल अब दुनिया भर में हिन्दुत्व के प्रचार प्रसार में जुट गए। सिंघल के वीचपी प्रमुख रहते हुए दुनिया भर में विश्व हिन्दू परिषद का संगठन मजबूत हुआ। अशोक सिंघल लगातार अयोध्या आंदोलन से जुड़े रहे। बीजेपी ने भी राममंदिर निर्माण का समर्थन किया था लेकिन यह भी दावा किया था कि वह संविधान के दायरे के भीतर सारी संभावनाओं को तलाश करने के बाद ऐसा करेगी। यह मामला इस समय सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। अशोक सिंघल अपने बेबाक कट्टर बयानों के लिए जाने जाते थे। मुस्लिमों को लेकर दिये गए उनके बयानों पर अक्सर विवाद होता रहता था।

जब-जब राम मंदिर आंदोलन की बात होगी तब तब वीएचपी के संरक्षक अशोक सिंघल का नाम भी आएगा। राम मंदिर आंदोलन को भले ही बीजेपी के बड़े नेताओं से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन असल में अशोक सिंघल के प्रयास के चलते ही राम मंदिर आंदोलन का विस्तार पूरे देश में हुआ। 1989 में अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास के बाद अशोक सिंघल ने राम मंदिर आंदोलन को हिंदुओं के सम्मान से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई और देश भर में आंदोलन के लिए लोगों को एक जुट किया।

निधन
विहिप में सबसे बड़ा योगदान सिंघल का अशोक सिंघल परिषद के काम के विस्तार के लिए विदेश प्रवास पर जाते रहे थे। अगस्त सितम्बर 2015 में भी वे इंग्लैंड, हालैंड और अमरीका के एक महीने के प्रवास पर गये थे। परिषद के महासचिव श्री चम्पत राय जी भी उनके साथ थे। इलाहाबाद में स्‍वास्‍थ्‍य बिगड़ने के बाद उन्‍हें विमान से दिल्‍ली लाया गया था। पिछले कुछ समय से उनके फेफड़ों में संक्रमण हो गया था। इससे सांस लेने में परेशानी हो रही थी। राइट लोअर लोब निमोनिया के चलते फेफड़े सहित उनके शरीर के कई अंग काम नहीं कर रहे थे। तबियत बिगड़ने के बाद अशोक सिंघल को 13 नवम्बर, 2015 शुक्रवार रात दिल्ली से सटे गुड़गांव के मेदांता-द मेडिसिटी में भर्ती कराया गया। उन्हें सघन चिकित्सा कक्ष में जीवन रक्षक प्रणाली पर रखा गया था। सांस लेने में तकलीफ के चलते 17 नवम्बर, 2015 को दोपहर में 2.34 मिनट पर गुड़गांव के मेदांता-द मेडिसिटी अस्पताल में उनका निधन हुआ था। वे 89 वर्ष के थे। वयोवृद्ध नेता हृदय और किडनी संबंधी समस्याओं से भी जूझ रहे थे। उनके निधन से हिंदू संगठनों में शोक की लहर दौड़ गई थी।


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