शतरंज की विशाल गोटिया - दीमापुर (Deemapur) - नागालैंड (Nagaland)
आज हम आपको एक ऐसी जगह की यात्रा पर ले चलते है जहा रखी महाभारत काल की विरासत आज भी पर्यटकों को बहुत आकर्षित करती है। यह जगह है भारत के पूर्वोत्तर में स्थित राज्य नागालैंड का एक शहर दीमापुर जिसको कभी हिडिंबापुर के नाम से जाना जाता था। इस जगह महाभारत काल में हिडिंब राक्षस और उसकी बहन हिडिंबा रहा करते थे। यही पर हिडिंबा ने कुंति-पवनपुत्र भीम से विवाह किया था। भीम की पत्नी हिडिम्बा यहां की राजकुमारी थी।
आज भी हैं हिडिम्बा के वंशज
यहां बहुलता में रहने वाली डिमाशा जनजाति खुद को भीम की पत्नी हिडिंबा (Hidimba – Wife of Bheem) का वंशज मानती है और उनकी पूजा करती है। इसी जनजाति के लोगों से आप इस बात के पुख्ता सुबूतों के बारे में भी जान सकते हैं कि वाकई ये गोटियाँ भीम व घटोत्कच के शतरंज के खेल में इस्तेमाल की जाने वाली गोटियाँ थी।
हिडिंबा का वाड़ा
यहाँ आज भी हिडिंबा का वाड़ा है, जहां राजवाड़ी में स्थित शतरंज की ऊंची-ऊंची गोटियां हैं जो चट्टानों से निर्मित है। शतरंज (Chess) की इतनी विशालकाय गोटियों को देखना पर्यटकों के लिए आश्चर्य में डालने वाला ही होता है। हालांकि इन मोहरों में से कुछ समय के साथ साथ खंडित हो गए लेकिन कुछ आज भी पूरी तरह से ठीक है। यहाँ मौजूद एक एक गोटी का भार 50-50 टन बताया जाता है। इन मोहरों का आकार और इनका भार इतना ज्यादा है कि साधारण मनुष्य द्वारा इन्हें हिला पाना भी असम्भव है। इन गोटियों को मीलों दूर से देखने यहाँ देश-विदेश के पर्यटक आते हैं व साथ ही यहाँ पुरातत्व विभाग के दलों का आना-जाना भी लगा रहता है।
भीम और घटोत्कच खेलते थे इस शतरंज से
यहाँ के निवासियों कि मान्यता है कि ये विशालकाय मोहरे एक विशालकाय शतरंज का हिस्सा थे। कथाओं के अनुसार माना जाता है कि इस विशालकाय शतरंज को महाबली भीम और उनके पुत्र घटोत्कच खेलते थेे। इस जगह पांडवो ने अपने वनवास का काफी समय व्यतीत किया था।
हिडिंबा और भीम कि कहानी (Story of Hidimba and Bhima)
महाभारत की कथा (Story of Mahabharat) के अनुसार वनवास काल में जब पांडवों का घर षडय़ंत्र के तहत जलकर खाक कर दिया गया तब वे एक गुप्त रास्ते से वहां से भागकर एक दूसरे वन में चले गए थे। जहां हिडिंब राक्षस अपनी बहन हिडिंबा के साथ रहता था। कहते हैं कि एक दिन राक्षस हिडिंब को मनुष्य के मांस की गंध आई तो उसने अपनी बहन हिडिंबा को वन में पांडवों का शिकार करने के लिए भेजा। वन में हिडिम्बा को भीम दिखा जो की अपने सोए हुए परिवार की रक्षा के लिए पहरा दे रहा था। राक्षसी हिडिंबा बलशाली भीम को देखकर उस पर मोहित हो जाती है और वो उससे प्रेम करने लगती है। हिडिंबा इस प्रेम के चलते भीम और उसके परिवार को जीवित छोड़ कर वापस आ जाती है। लेकिन यह बात उसके भाई हिडिंब को पसंद नहीं आती है और वो पाण्डवों पर हमला कर देता है। भीम का हिडिंब से भयानक मल्ल-युद्ध हुआ और अंतत: लड़ाई में हिडिंब, भीम के हाथो मारा जाता है।
हिडिम्ब के मरने पर वे लोग वहां से प्रस्थान की तैयारी करने लगे, इस पर हिडिम्बा पांडवों की माता कुन्ती के चरणों में गिर कर प्रार्थना करने लगी, “हे माता! मैंने आपके पुत्र भीम को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया है। आप लोग मुझे कृपा करके स्वीकार कर लीजिये। यदि आप लोगों ने मुझे स्वीकार नहीं किया तो मैं इसी क्षण अपने प्राणों का त्याग कर दूंगी।”
रात में थी मिलने की पाबंदी
हिडिम्बा के हृदय में भीम के प्रति प्रबल प्रेम की भावना देख कर युधिष्ठिर बोले, “हिडिम्बे! मैं तुम्हें अपने भाई को सौंपता हूँ किन्तु यह केवल दिन में तुम्हारे साथ रहा करेगा और रात्रि को हम लोगों के साथ रहा करेगा।”
हिडिंबा इसके लिये तैयार हो गई और भीम के साथ आनन्दपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगी। एक वर्ष व्यतीत होने पर हिडिम्बा का पुत्र उत्पन्न हुआ। उत्पन्न होते समय उसके सिर पर केश (उत्कच) न होने के कारण उसका नाम घटोत्कच (Ghatotkatch) रखा गया। पूरा सर किसी घड़े जैसा लगता था। घटोत्कच भीम के समान शक्तिशाली और हिडिम्बा की तरह मायावी था और जन्म लेते ही बड़ा हो गया।
हिडिम्बा ने अपने पुत्र को पाण्डवों के पास ले जा कर कहा, “यह आपके भाई की सन्तान है अत: यह आप लोगों की सेवा में रहेगा।” इतना कह कर हिडिम्बा वहां से चली गई। घटोत्कच श्रद्धा से पाण्डवों तथा माता कुन्ती के चरणों में प्रणाम कर के बोला, “अब मुझे मेरे योग्य सेवा बतायें? उसकी बात सुन कर कुन्ती बोली, “तू मेरे वंश का सबसे बड़ा पौत्र है। समय आने पर तुम्हारी सेवा अवश्य ली जायेगी।” इस पर घटोत्कच ने कहा, “आप लोग जब भी मुझे स्मरण करेंगे, मैं आप लोगों की सेवा में उपस्थित हो जाउँगा।” इतना कह कर घटोत्कच वर्तमान उत्तराखंड की ओर चला गया। इसी घटोत्कच ने महाभारत के युद्ध में पांडवों की ओर से लड़ते हुए वीरगति पायी थी।
अगर महाभारत के युद्ध में कर्ण की शक्ति का वार वह नहीं रोकता तो अर्जुन के प्राणों को खतरा था। महाभारत के युद्ध में घटोत्कच को मारने के लिए कर्ण को उस ब्रह्मास्त्र का उपयोग करना पड़ा जिसे उसने अर्जुन के वध के लिए संभाल कर रखा था। आज भी देश के अनेक स्थानों पर घटोत्कच की पूजा की जाती है। घटोत्कच बर्बरीक के पिता थे जिन्हें बाबा श्याम के नाम से पूजा जाता है। राजस्थान के सीकर जिले के खाटू श्यामजी में बाबा श्याम का मंदिर है जहां हर वर्ष लाखों लोग उनके दर्शन करने आते हैं।
ऐतिहासिक शहर
हिडिम्ब का शहर दीमापुर प्राकृतिक रूप से बहुत ख़ूबसूरत होने के साथ-साथ एक ऐतिहासिक शहर भी है। दीमापुर नाम का एक और अर्थ भी निकाला जाता है। यह तीन शब्दों दी, मा और पुर से मिलकर बना है। कचारी भाषा के अनुसार दी का अर्थ होता है नदी, मा का अर्थ होता है महान और पुर का अर्थ होता है शहर। यहां पर कचारी शासनकाल में बने मन्दिर, तालाब और किले देखे जा सकते हैं। इनमें राजपुखूरी, पदमपुखूरी, बामुन पुखूरी और जोरपुखूरी आदि प्रमुख हैं।
कछारी राज्य के खंडहर
हालांकि कुछ इतिहासकार मानते हैं कि यह कछारी राज्य के अवशेष हैं। मशरूम के आकार के ये खंभे कछारी खंडहर के हिस्से हैं। दीमापुर कछारी राज्य की प्राचीन राजधानी थी। यह महापाषाण युग के महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है। हिन्दू राज्य कछारी पर 13वीं सदी में अहोम राजाओं ने आक्रमण किया जिसके चलते यह राज्य तहस-नहस हो गया था। यह खंडहर उसी आक्रमण का सबूत है।
सबसे प्रसिद्ध कछारी खंडहर के बीच केवल पत्थर का खंभा खड़ा है। इस खंभे के अलावा, इस जगह पर मंदिरों, टंकियों और तटबंधों के कई खंडहर हैं। विभिन्न डिजाइनों के बिखरे हुए पत्थर के टुकड़े भी आसपास पाए जाते हैं।
हिमाचल प्रदेश के मनाली में है हिडिम्बा का मंदिर (Hidimba temple at Manali, Himachal Pradesh)
जैसा की हमने आपको ऊपर बताया की हिडिम्बा मूल रूप से नागालैंड की थी पर पुत्र के जन्म के बाद पुत्र को पांडवो को सौप कर वो वर्तमान हिमाचल प्रदेश के मनाली जिले में आ गई थी। कहते है इसी स्थान पर उनका राकक्षी योनि से दैवीय योनि में रूपांतरण हुआ था। मनाली (Manali) में ही देवी हिडिम्बा का एक मंदिर बना हुआ है जो की कला की द्रष्टि से बहुत उत्कृष्ट है। मंदिर के भीतर एक प्राकृतिक चटटान है जिसे देवी का स्थान माना जाता है। इसी चट्टान पर देवी हिडिम्बा के पैरो के विशाल चिन्ह मौजूद है। चटटान को स्थानीय बोली में ‘ढूंग कहते हैं इसलिए देवी को ‘ढूंगरी देवी कहा जाता है। देवी को ग्राम देवी के रूप में भी पूजा जाता है। इस चट्टान के ऊपर लकड़ी के मंदिर का निर्माण 1553 में किया गया था। हिडिम्बा का मंदिर जो सर्दियों में बर्फ गिरने के बाद अत्यंत भव्य लगता है।
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