लॉस्ट ट्राइब (Lost Tribe) : भारत के नॉर्थ सेंटिनल आइलैंड (उत्तरी सेंटिनल आइलैंड)
खूबसूरत दुनिया
ये दुनिया बहुत खूबसूरत है। खुला आसमान, बर्फ की चादर ओढ़े सफेद पहाड़, हरे-भरे जंगल और कल-कल बहती नदियां। ये प्रकृति का बेहद आकर्षक चेहरा है। लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं, जिन्होंने इस प्रकृति के एक सुंदर हिस्से पर अपना एकाधिकार कर लिया है। वे अपनी एक अलग दुनिया बसा चुके हैं, जहां किसी भी बाहरी व्यक्ति का हस्तक्षेप वे बर्दाश्त नहीं कर पाते।
दुनिया के लगभग हरेक हिस्सों में प्राचीन आदिम जान जातियां निवास करती है जो की वहां पर हज़ारों-लाखों सालो से रहती आई है। इनमे से लगभग सभी समुदायों तक आधुनिक दुनिया की पहुँच हो चुकी है और वो भी बाकी दुनिया के लोगों से घुल मिल चुके है।
नॉर्थ सेंटिनल द्वीप का नजारा
आसमान से अगर नॉर्थ सेंटिनल द्वीप (टापू) का नजारा लिया जाए तो यह किसी भी आम आइलैंड की तरह एकदम शांत और खूबसूरत है। लेकिन असल में यह एक खतरनाक आइलैंड है। यहां कुछ ऐसा है जिससे ना तो पर्यटक और ना ही मछुआरे इस द्वीप पर जाने की हिम्मत जुटा पाते हैं। शायद वे भी ये बात जानते हैं कि अगर एक बार यहां पहुंच गए तो कभी वापस नहीं आ पाएंगे।
लॉस्ट ट्राइब (Lost Tribe) जनजातियां
आज संचार और यातायात ने पूरी दुनिया को आपस में जोड़ दिया है, इंसान जहां चाहे जा सकता है और जिससे मन करे, संपर्क कर सकता है। दुनिया ने इतनी तरक्की कर ली है, लेकिन अभी भी कुछ गिनी चुनी ऐसी आदिम जनजातियां है जिन्हें अपने जीवन में बाहरी दुनिया का हस्तक्षेप पसंद नहीं है। ऐसी ही एक जनजाति है ‘लॉस्ट ट्राइब (Lost Tribe)’ या सेंटिनलीज़ जनजाति, इसने आज तक किसी भी बाहरी शख्स को अपनी जमीन पर कदम नहीं रखने दिया है।
नार्थ सेंटिनल (प्रहरी) आइलैंड (North Sentinel Island)
यह जनजाति हिन्द महासागर के एक छोटे से आइलैंड ‘नॉर्थ सेंटिनल’ पर रहती है। यह आइलैंड भारत के जलीय क्षेत्र में स्तिथ है। जिसे मौत का द्वीप भी कहा जाता है। उत्तर सेंटिनल आइलैंड, अंडमान आइलैंड के सेंटिनल आइलैंड का एक हिस्सा है जो अंडमान द्वीप के वंडूर शहर से 36km पश्चिम में है। इस आइलैंड का क्षेत्रफल लगभग 18.3 वर्ग मील (72 वर्ग किलोमीटर/ 59.67 square km) है।
यह जनजाति का आधुनिक युग या इस युग के किसी भी सदस्य से कुछ भी लेना- देना नहीं है। वह ना तो किसी बाहरी व्यक्ति के साथ संपर्क रखती है और ना ही किसी को खुद से संपर्क रखने देती है। इन लोगों ने आधुनिक सभ्यता को पूरी तरह रिजेक्ट कर दिया है और दुनिया से इनका संपर्क जीरो है। इस जनजाति के लोग इतने आक्रामक हैं कि वे किसी को अपने पास नहीं आने देते। जिसने भी इनके पास जाने की कोशिश की, और जो भी यहां घुसपैठ करता है, उसे देखते ही मार डालते हैं।
कुछ रिपोर्टों में इसे दुनिया की सबसे अलग-थलग रहने वाली जनजाति करार दिया गया है। ऐसा माना जाता है कि यह जनजाति दुनिया में आखिरी है जो आज भी आधुनिक सभ्यता से अलग-थलग है।
इतिहास
इस द्वीप पर पहली नज़र जॉन रितची की उस वक़्त पड़ी जब ईस्ट इंडिया कंपनी का एक सर्वेयर जहाज जिसका नाम Diligent था बंगाल की खाड़ी में गश्त कर रहा था।
January 1880 में मौरी पोर्टमैन के नेतृत्व में एक खोजी दल जिसका उद्देश्य रिसर्च करना था इस द्वीप पर उतरा। यहां उन लोगों ने कई पगडंडी नुमा रास्तो को देखा जो द्वीप के भीतर के छोटे गांव से जुड़े थे। कई दिनों के खोज के बाद उन्होंने वहां से छः लोगों को जिसमें दो बड़े और तीन बच्चे शामिल थे को पकड़ा और उन्हें अपने साथ पोर्ट ब्लेयर ले आएं। दोनों बड़े लोगों को कुछ ही समय में इन्फेक्शन लग गया और वे रोगग्रस्त हो गए। फिर उनकी मृत्यु हो गयी। बाकी बचे लोगों को उपहार तथा अन्य सामग्रियों के साथ वापस भेज दिया गया। January 1885 से January 1887 के बीच कई बार पोर्टमैन इस द्वीप पर आते जाते रहें।
आधुनिक इतिहास
कार्गो जहाज Primorse 2 अगस्त 1981 को इस द्वीप के रीफ में फास गया। जहाज़ के नाविकों ने कुछ दिनों के बाद देखा कि कई काले तथा बौने लोग द्वीप के तट पर भालों तथा तीर कमान के साथ नाव बना रहे थें ताकि वे Primorse तक पहुँच सके। कप्तान ने तुरंत रेडियो सिग्नल भेजकर मदद मांगी। इसी बिच समुद्री तूफान आ गया जिससे नाव बना रहे sentinelese जहाज तक नही पहुच सकें। इसी दौरान भारत के ONGC के हेलीकॉप्टरों ने एक समझौते के तहत इन्हें rescue किया।
Anthropologist त्रिलोकीनाथ पंडित ने 1991 में इस द्वीप के लोगों से पहली बार दोस्ताना मुलाकात करने में सफलता हासिल किया। यह एक्सपीडिशन भी 1997 में पूरी तरह से रोक दिया गया।
Wikipedia से प्राप्त डेटा के अनुसार द्वीप की जनसँख्या :-
1901 से 1921 में कुल 117 लोग
1931 से 1961 में कुल 50 लोग
1991 में 23 लोग
2001 में 39 लोग
2011 में 40 लोग
यह चिंताजनक फिगर है करीब 65000 सालों से खुद को दुनिया की नज़रों और विकास से बचकर जिंदा रहने वाला यह द्वीप और यहां के अद्भुत लोग सच मे तारीफ के काबिल हैं। भारत सरकार ने शायद ठीक ही निर्णय लिया है कि इस द्वीप को तथा यहां के लोगों को ऐसे ही जीने दिया जाये जैसा कि वो हज़ारों सालों से जी रहे हैं। इनकी आबादी इतनी कम है और इनका आक्रामक रुख किसी भी प्रकार की retaliatetion होने पर इनकी आबादी को पूरी तरह से खत्म कर दे सकती है।
जान का खतरा
कहा जाता है कि ये जब भी दुनिया के किसी शख्स से मिलते हैं तो हिंसा के साथ ही। जब भी उनका सामना किसी बाहरी व्यक्ति से होता है तो ऐसी हिंसा जन्म लेती है जिसमें उस बाहरी व्यक्ति की मौत लगभग निश्चित है। अगर कोई भूले-भटके इस आइलैंड में चला जाता है तो उस तीरों से मार दिया जाता है।
दुखद घटना
ऐसी ही एक घटना 26 January 2006 को अंडमान द्वीप के दो भारतीय मछुआरे सुंदर राज़ तथा पंडित तिवारी जो यहां मछलियां पकड़ रहे थे, भूलवश नाव से बहकर चले जाने से नार्थ सेंटिनल द्वीप पर पहुँच गए थे को द्वीप के लोगों ने मार डाला। इससे पहले भी कई बार ये हिंसा कर चुके हैं।
आग के गोले
इस जनजाति के लोग आग के तीर चलाने में माहिर हैं इसलिए अपनी सीमा क्षेत्र में कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों एवं हेलिकॉप्टर्स पर ये आग के गोले और पत्थर बरसाने लगते हैं।
एक मुसफिर ने बताया की वर्ष 1981 में वो और उनके साथी की नौका गलती से इस द्वीप के करीब पहुंच गया था और उन्होंने ने देखा के किनारे पर बहुत से लोग तीर कमान और पत्थर ले कर खड़े थे और करीब जाने पर उन्होंने उन पर तीर और आग के गोले बरसाने चालू कर दिए और अज़ीब सी आवाज़े निकाल रहे थे। बड़ी मुश्किल से वो और उनके साथी जान बचाकर वापस आये। यही नहीं एक बार भूले भटके से एक कैदी इस द्वीप पर पहुंच गया जिसे वहां के लोगो ने मार डाला।
पुराना अस्तित्व
बंगाल की खाड़ी (Bay of Bengal) में बसे इस नॉर्थ सेंटिनल द्वीप का संबंध भारत से है लेकिन हमेशा से ही ये ऐसी पहेली बनी रही है, जिसे कोई भी सुलझा नहीं पाया है। ऐसा माना जाता है कि इस द्वीप पर रहने वाली इस आदमखोर जनजाति का अस्तित्व 60,000 (65 हजार) वर्ष पुराना है। हजार सालों से इसपर कुछ मुट्ठी भर लोग फल फूल रहे है वो भी बिना किसी मदद के, केवल प्राकृतिक संसाधन वो भी इतने कम कि यदि हम और आप वहां रहे तो केवल कुछ ही दिनों में खत्म हो जाये।
अनसुलझा सवाल
लेकिन वर्तमान में इस जनजाति की जनसंख्या कितनी है यह अभी तक एक अनसुलझा सवाल ही है। अनुमान के अनुसार इस जनजाति से संबंधित लोगों की संख्या कुछ दर्जन से 100-200 (40-500) तक हो सकती है। वर्ष 2011 में आयी एक रिपोर्ट के अनुसार इस समय इस द्वीप पर मात्र 39 लोगो के ही जीवित रहने का अनुमान लगाया गया है।
ये जनजाति खेती नहीं करती है, क्योंकि इस पूरे इलाके में अब भी घने जंगल हैं। इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि यह जनजाति पेट भरने के लिए अपने आस पास के जीव जंतु का शिकार और पेड़ पौधो पर निर्भर है। नग्न अवस्था में रहने वाले ये लोग बेहद खूंखार माने जाते हैं। ये लोग यहां जानवरों का शिकार कर अपना पेट भरते हैं। फल, मछली, जंगली सूअर, शहद, कछुओं व अन्य जलीय जीव के अंडे इनके भोजन हैं। शिकार करने के लिए भालों और तीरकमान का इस्तेमाल किया जाता है। समुद्र से मिलने वाली मछलियां भी इनका भोजन है। यह पिने के लिए बारिस का पानी और जंगलो के झाड़ो से मिलने वाले पानी इस्तेमाल करते हैं।
इनके तन पर ना कपड़े है और ना ही रहने को ढंग का घर। ये अपनी उसी जिन्दगी में जीना चाहते है जो इनकी पीढ़ियां जीती आयी है।
ये लोग जंगल के अंदर झोपड़ियों में रहते है, जो जंगल से मिलने वाले सामानों से बानी होती है। झोपड़ी में दिवार नहीं होती है, छत पत्तियों से बानी होती है। झोपडी की फर्श भी पत्तियों की होती है।
इस जनजाति का आइलैंड ही इनकी दुनिया है, ये लोग हमारे बारे में कुछ नहीं जानते, आधुनिक सभ्यता से बिलकुल ही अनजान है। इनकी भाषा के बारे में भी हम बिलकुल नहीं जानते है। इनकी संस्कृति के बारे में हम कुछ नहीं जानते है।
बाहरी हस्तक्षेप
भारत के अधिकार क्षेत्र में आने वाला सेंटिनल आइलैंड के वासियों के निकट जाने का अर्थ है अपनी जान जोखिम में डालना। किसी भी प्रकार के बाहरी हस्तक्षेप को ये लोग बर्दाश्त नहीं करते इसलिए इनके बारे में कोई भी पुख्ता जानकारी, मसलन इनकी संख्या, इनका रिवाज, इनकी भाषा, इनका रहन-सहन, आदि कैसे हैं, क्या हैं, किसी को इस बात की भनक तक नहीं है।
सुनामी
2004 के सुनामी में जहां हज़ारो लोग मारे गए वही इस निर्जन द्वीप के निवासियों ने बिना किसी बाहरी सहायता के खुद को बचा लिया। इस भयंकर सुनामी के चलते अंडमान द्वीप तबाह हो गए थे। यह द्वीप भी अंडमान द्वीपों की श्रृंखला का ही हिस्सा है। यहां के निवासी भूंकप और उसके बाद उठी भयानक सूनामी लहरों के तूफान को भी झेल गए। भारत सरकार को उनकी चिंता थी कि आधुनिकता से दूर इन निवासियों का क्या हुआ होगा। इसलिए उनकी खोज-खबर लेने के लिए तूफान के तीन दिन बाद भारत सरकार ने भारतीय तटरक्षक सेना (भारतीय कॉस्ट गॉर्ड) का एक हेलिकॉप्टर (Helicopter) को North Sentinel Island भेजा। लेकिन वहां के मूल निवासियों ने हेलिकॉप्टर को देखते ही उस पर पत्थरों और तीरों की बरसात कर दी। लेकिन इस सुनामी का इस जनजाति के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा, ये बात भी अभी तक कोई नहीं जान पाया है।
इन्होंने किसी भी प्रकार की मदद को अस्वीकार किया, खाद्य सामग्री को भी स्वीकार नहीं किया। शायद इन्होंने हेलीकॉप्टर को किसी प्रकार का जानवर समझा।
जानकारी का अभाव
इस जनजाति से जुड़े लोगों के जीवन से संबंधित कोई भी ऐसी चीज नहीं मिल पाई है, जिससे इनके विषय में कुछ भी पता चल सके। प्राचीन जनजातियों के विषय में शोध करने वाले दल या समाजसेवकों का समूह अन्य जनजातियों तक तो पहुंच जाता है लेकिन इनकी एक स्पष्ट तस्वीर भी किसी के पास नहीं है क्योंकि ये इतने खूंखार हैं कि अपने करीब किसी को आने ही नहीं देते।
स्पष्ट तस्वीर
इसलिए इनसे संबंधित तस्वीर या वीडियो इतनी दूरी से बनाई जाती है कि इनकी स्पष्टता गायब हो जाती है। इसलिए ये लोग दिखते कैसे हैं, ये बात भी अब तक कोई नहीं जान पाया है।
पाषाण काल
अकसर इस जनजाति के लोगों को पाषाण काल की जनजाति भी कहा जाता है क्योंकि तब से लेकर अब तक इनके भीतर किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं आ पाया है। शायद इसकी वजह इनके भीतर ग्रहणशीलता की कमी और बाहरी दुनिया से दूरी रखने का स्वभाव है।
खतरनाक जनजाति
बंगाल की खाड़ी के पास स्थित अंडमान निकोबार द्वीप समूह (Andaman Nicobar Islands Group) का नॉर्थ सेंटिनल द्वीप की यह जनजाति विश्व की सबसे ज्यादा खतरनाक और पृथक रह चुकी जनजाति है, इतना ही नहीं यह एकमात्र ऐसी जनजाति भी है, जिनके जीवन या अंदरूनी मामलों में स्वयं भारत सरकार दखल देने से कतराती है।
भारतीय संघ राज्य क्षेत्र के अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के दक्षिण अंडमान प्रशासनिक जिले के अंतर्गतें आने वाला सेंटिनल आइलैंड, देश का हिस्सा होकर भी सबसे कटा हुआ है। देश में यूं तो आपको कहीं भी घूमने फिरने की आज़ादी है, लेकिन एक जगह ऐसी भी है, जहां जाने से सरकार भी मना करती है।
प्रयास
भारत सरकार द्वारा कई प्रयास किए गए ताकि इस जनजाति के लोगों के हितों के लिए काम किया जाए और इनके जीवन को सुधारा जाए।
भारत सरकार ने सन 1967 से 1991के बीच यहां के लोगों को देश की मुख्यधारा से जोड़ने के उद्देश्य से उनसे संपर्क साधने के कई प्रयास किए, लेकिन नाकामयाबी ही हाथ लगी। हर बार स्थानीय लोगों ने आक्रामकता दिखाई।
संपर्क करने की बहुत सी नाकाम कोशिशों के बाद भारत सरकार द्वारा यह निर्णय लिया गया की इन्हें अपनी जिन्दगी अपने तरीके से जीने देना चाहिए, इनके जीने के तरीके में दखल नहीं देना चाहिए।
भारत सरकार अपवर्जन क्षेत्र घोषित किया
संपर्क करने की बहुत सी नाकाम कोशिशों के बाद भारत सरकार द्वारा यह निर्णय लिया गया की इन्हें अपनी जिन्दगी अपने तरीके से जीने देना चाहिए, इनके जीने के तरीके में दखल नहीं देना चाहिए।
1991 के बाद से भारत ने मेल-जोल के सभी प्रयास बंद कर दिए। भारत सरकार (Indian Government) ने इस इलाके को Exclusion Zone (अपवर्जन क्षेत्र) घोषित करके, यहां किसी बाहरी शख्स के प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। पर्यटकों का भी यहां जाना मना है।
साथ ही भारत सरकार ने इस आइलैंड में किसी के भी जाने पर पाबन्दी लगा दी, इस आइलैंड में लोगों को जाने से रोकने के लिए भारतीय नौसेना के कुछ लोग हमेशा तैनात रहते है।
बहुत से लोगों का मानना है कि इस जनजाति तक पहुंच बनाई जानी चाहिए। वहीं, कुछ मानते हैं कि उन्हें अपने हाल पर छोड़ देना ही ठीक है।
रोगों का खतरा
सर्वाइवल इंटरनेशनल नामक संस्था जो कि विशेषकर आदिवासी जनजातियों के लिए ही कार्य करती है, का कहना है कि नॉर्थ सेंटिनल द्वीप पर रहने वाली जनजाति, इस ग्रह की सबसे कमजोर जनजाति है। उनके भीतर रोग प्रतिरोधक क्षमता लगभग ना के बराबर है। मामूली सी बीमारी की वजह से भी उनकी मौत हो सकती है।
यह जनजाति आज भी आधुनिक सभ्यता से बिलकुल ही अलग-थलग है। हमारे संपर्क में आने से इन्हें बिमारियों का खतरा होता है क्यूंकि अलग-थलग रहने से इनकी प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune System) वैसे विकसित नहीं हुई है जैसी हमारी है।
महामारी का खतरा
संस्था का कहना है कि अन्य लोगों से पूरी तरह पृथक होने की वजह से इन लोगों का संपर्क बाहरी दुनिया से पूरी तरह कटा हुआ है, इसलिए महामारी में इनकी जान जाने का खतरा बहुत ज्यादा है।
दुश्मन हैं इंसान
इस जनजाति के इस प्रकार हिंसक होने का कारण तो किसी को नहीं पता लेकिन ऐसा माना जाता है कि 1980 के आखिरी दौर में लोहे या अन्य धातुओं की खोज के लिए गए लोगों और इस जनजाति के सदस्यों के बीच हुई हिंसा में इस जनजाति ने अपने बहुत से सदस्य गंवाए थे। हो सकता है इसी वजह से इस द्वीप पर रहने वाले लोग अन्य इंसानों को अपना दुश्मन मान बैठे हैं और उन्हें अपने स्थान पर आने नहीं देना चाहते।
समझदार या स्वार्थी
इंसान को प्रकृति की सबसे समझदार और सबसे ज्यादा ताकतवर कृति कहा जाता है, लेकिन ऐसी ताकत या समझदारी किस काम की जो इंसान को ही इंसान का दुश्मन बना दे।
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