शुक्रवार, 15 जून 2018

गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह

वशिष्ठ नारायण सिंह (Mathematician Vashistha Narayan Singh)

वशिष्ठ नारायण सिंह एक भारतीय गणितज्ञ है। डा वशिष्ठ नारायण सिंह का जन्म बिहार के भोजपुर जिले के बेहद पिछड़े बसंतपुर गांव में एक गरीब किसान परिवार में 2 अप्रैल 1942 में हुआ था और वे अपने परिजनों के साथ पटना के कुल्हरिया कॉम्प्लेक्स में रहते थे। यह गांव जिला मुख्यालय आरा से 12 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर-पश्चिम में है। इनके पिताजी पुलिस विभाग में कार्यरत थे।

शुरूआती जीवन और शिक्षा

वशिष्ठ नारायण सिंह ने छठवीं क्लास में नेतरहाट स्कूल में एडमिशन लिया। इसी स्कूल से उन्होंने 1962 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और पूरे बिहार में टॉप किया। इंटर की पढ़ाई के लिए डा. सिंह ने पटना साइंस कॉलेज में एडमिशन लिया। इंटर में भी इन्होंने पूरे बिहार में टॉप किया। पढ़ाई-लिखाई के मामले में शुरु से ही जादूगर कहे जाने वाले वशिष्ठ नारायण सिंह को पटना के साइंस कॉलेज में प्रथम वर्ष में ही Bsc ऑनर्स की परीक्षा देने की अनुमति दे दी थी।

गलत पढाने पर प्रोफेसर को ही टोक देते थे
पटना साइंस कॉलेज में बतौर छात्र ग़लत पढ़ाने पर वह अपने गणित के अध्यापक को टोक देते थे। कॉलेज के प्रिंसिपल को जब पता चला तो उनकी अलग से परीक्षा ली गई जिसमें उन्होंने सारे अकादमिक रिकार्ड तोड़ दिए।

पांच भाई-बहनों के परिवार में आर्थिक तंगी हमेशा डेरा जमाए रहती थी। लेकिन इससे उनकी प्रतिभा पर ग्रहण नहीं लगा।

1960 के आस-पास बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग का नाम पूरी दुनिया में था। तब देश-विदेश के दिग्गज भी यहां आते थे। उसी दौरान कॉलेज में एक मैथमेटिक्स कांफ्रेंस का आयोजन किया गया। इस कांफ्रेंस में अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बार्कले के एचओडी गणितज्ञ प्रो. जॉन एल. केली भी मौजूद थे। कांफ्रेंस में मैथ के पांच सबसे कठिन प्रॉब्लम्स दिए गए, जिसे दिग्गज स्टूडेंट्स भी करने में असफल हो गए, लेकिन वशिष्ठ नारायण सिंह ने पांचों सवालों के सटिक जवाब दिए। उनके इस जवाब से प्रो. केली काफी प्रभावित हुए और उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका आने को कहा। डा. वशिष्ठ नाराय़ण सिंह ने अपनी परिस्थितियों से अवगत कराते हुए कहा कि वे एक गरीब परिवार से हैं और अमेरिका में आकर पढ़ाई करना उनके लिए काफी मुश्किल है। ऐसे में प्रो. केली ने उनके लिए विजा और फ्लाइट टिकट का इंतजाम किया। इस तरह डा. वशिष्ठ अमेरिका पहुंच गए।

यूनिवर्सिटी में कुछ प्रोफेसर नहीं चाहते थे कि वे अमेरिका जाएं। लेकिन डॉ नागेंद्र नाथ ने परमिशन दे दी और 1965 में वो अमरीका चले गए।

प्रतिभा और उपलब्धियां

वशिष्ठ नारायण सिंह काफी शर्मिले थे, इसके बावजूद अमेरिका के बर्कली के कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में उनकी काफी अच्छे से देखरेख की गई। 1963 में वे कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय में शोध के लिए गए। 1969 में यही से उन्होंने ‘साइकिल वेक्टर स्पेश थ्योरी’ (चक्रीय सदिश समष्टि सिद्धांत) (Reproducing Kernels and Operators with a Cyclic Vectot) पर शोध कार्य (PhD/पीएचडी) किया और भारत और विश्व में प्रसिद्ध हो गए। बर्केल यूनिवर्सिटी ने उन्हें 'जीनियसों का जीनयस' कहा है।

जीवन

इस शोध कार्य के बाद डा. सिंह वापस भारत आए और फिर दोबारा अमेरिका चले गए। तब इन्हें वाशिंगटन में गणित के एसोसिएट प्रोफेसर बनाया गया। वे वापस भारत लौट आए। तब उन्हें खुद यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के प्रोफेसर डा. केली और नासा ने रोकना चाहा, लेकिन वे नहीं माने और भारत वापस आ गए। उनके गाइड जॉन केली द्वारा अपनी बेटी के साथ दिये गये विवाह प्रस्ताव को डॉ सिंह ने अस्वीकृत करते हुए कहा था कि मुझे अपने देश भारत जाना है। देश की सेवा करनी है। अपने देश के लिए जीना और मरना है।

भारत वापसी

1971 में भारत वापस आने के बाद इन्हें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) (IIT) कानपुर में प्राध्यापक बनाया गया। महज 8 महिने काम करने के बाद इन्होंने बतौर गणित प्राध्यापक ‘टाटा इंस्टीच्युट ऑफ फण्डामेंटल रिसर्च’ ज्वाइन कर लिया। एक साल बाद 1973 में वे कोलकाता स्थित भारतीय सांख्यकीय संस्थान (आईएसआई) (ISI) कलकत्ता मे स्थायी प्राध्यापक नियुक्त किए गए। 2014 में उन्हें अपने गृह राज्य बिहार के मधेपुरा में भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय में अतिथि प्राध्यापक नियुक्त किया गया।

बीमारी और सदमा

वैवाहिक जीवन नहीं रहा सफल
महान गणितज्ञ डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह की विवाह आठ जुलाई 1973 में छपरा जिले के खलपुरा गांव निवासी एक सरकारी डॉक्टर दीप नारायण सिंह की बेटी वन्दना रानी के साथ हुआ। घरवाले बताते हैं कि यही वह वक्त था जब वशिष्ठ जी के असामान्य व्यवहार के बारे में लोगों को पता चला। इस असामान्य व्यवहार से वंदना भी जल्द परेशान हो गईं और 1976 में तलाक़ ले लिया। यह वशिष्ठ नारायण के लिए बड़ा झटका था। उनके परिवार के लोग बताते हैं कि इस दौरान वे घर के लोगों के साथ मारपीट भी करने लगे थे। वे घर की चीजों तोड़-फोड़ भी दिया करते थे।

तक़रीबन यही वक्त था जब वह आईएसआई कोलकाता में अपने सहयोगियों के बर्ताव से भी परेशान थे। भाई अयोध्या सिंह कहते हैं, भइया (वशिष्ठ जी) बताते थे कि कई प्रोफ़ेसर्स ने उनके शोध को अपने नाम से छपवा लिया, और यह बात उनको बहुत परेशान करती थी।

पटना में उनके साथ रह रहे भाई अयोध्या सिंह ने कहा था, "अमरीका से वो अपने साथ 10 बक्से किताबें लाए थे, जिन्हें वो पढ़ा करते थे। बाक़ी किसी छोटे बच्चे की तरह ही उनके लिए तीन-चार दिन में एक बार कॉपी, पेंसिल लानी पड़ती थी।''

1974 में उन्हे मानसिक दौरे (सीजोफ्रेनिया) (schizophrenia) आने लगे। 1976 में उनका राँची में इलाज हुआ। 1987 में वशिष्ठ नारायण अपने गांव लौट आए। 1988 ई. में कांके अस्पताल में सही इलाज के आभाव में बिना किसी को बताए कहीं चले गए। साल 1992 में उन्हें (डोरीगंज, सारण में एक झोपड़ीनुमा होटल के बाहर प्लेट साफ करते हुए मिले) सीवान के एक पेड़ के नीचे विचित्र अवस्था में बैठे देखा गया। जिसके बाद लोगों ने यह जाना कि यही वशिष्ठ नारायण सिंह है।

उन्हें बिहार सरकार ने इलाज के लिए वेंगलुरू भेजा था। लेकिन बाद में इलाज का खर्चा देना सरकार ने बंद कर दिया। एक बार फिर से बिहार सरकार ने विश्वविख्यात गणितज्ञ के इलाज के लिए पहल की है। विधान परिषद की आश्वासन समिति ने 12 फ़रवरी 2009 को पटना में हुई अपनी बैठक में डॉ. सिंह को इलाज के लिए दिल्ली भेजने का निर्णय लिया। समिति के फैसले के आलोक में भोजपुर जिला प्रशासन ने उन्हें रविवार दिनांक 12 अप्रैल 09 को दिल्ली भेजा। उनके साथ दो डॉक्टर भी भेजे गये हैं। दिल्ली के मेंटल अस्पताल में जांच के बाद डॉक्टरों की परामर्श पर उन्हें आगे के खर्च का बंदोबस्त किया जाएगा। स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि दिल्ली में परामर्श के बाद यदि जरूरत पड़ी तो उन्हें विदेश भी ले जाया जा सकता है। अभी वे अपने गाँव बसंतपुर में उपेक्षित जीवन व्यतीत कर रहे थे। पिछले दिनों आरा में उनकी आंखों में मोतियाबिन्द का सफल ऑपरेशन हुआ था। कई संस्थाओं ने डॉ. वशिष्ठ को गोद लेने की पेशकश की है। लेकिन उनकी माता को ये मंजूर नहीं है।

डा. वशिष्ठ नारायण सिंह और चैलेंज

डा. वशिष्ठ नारायण सिंह ने न सिर्फ आइंस्टिन के सिद्धांत सापेक्षता के सिद्धांत (E = MC2) को चैलेंज किया, बल्कि मैथ में रेयरेस्ट जीनियस कहा जाने वाला गौस की थ्योरी को भी उन्होंने चैलेंज किया था।

31 कंप्यूटर्स जैसा चलता था वशिष्ठ का दिमाग
कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री लेने के बाद वशिष्ठ (नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) (NASA) में गणितज्ञ के रूप में काम करने लग गए थे। 1969 की बात है। ये वहीं साल था जब नासा का अपोलो मिशन लॉन्च हुआ था. ये वहीं मिशन था जिसमें पहली बार इंसान को चांद पर भेजा गया था। इस  मिशन का एक मशहूर किस्सा है। जब अपोलो मिशन के दौरान कुछ देर के लिए गिनती करने वाले 31 कम्प्यूटर बंद हो गए थे तब वशिष्ठ नारायण सिंह ने उंगलियों पर गणित लगाकर हिसाब निकाला। जिसके बाद जब कंप्यूटर चालू हुए जब वशिष्ठ और कंप्यूटर का कैलकुलेशन एक ही था।

अमेरिका में पढ़ने का न्योता जब डा. वशिष्ठ नारायण सिंह को मिला तो उन्होंने ग्रेजुएशन के तीन साल के कोर्स को महज एक साल में पूरा कर लिया था।

14 मार्च को मैथ डे के रूप में मनाया जाता है। मैथ डे मूल रूप से एक ऑनलाइन कम्प्टीशन था, जिसकी शुरुआत 2007 से हुई थी। इसी दिन पाई डे (Pi) भी मनाया जाता है, जिसका उपयोग हम मैथ में करते हैं। डा. वशिष्ठ नारायण सिंह ने कई ऐसे रिसर्च किए, जिनका अध्ययन आज भी अमेरिकी छात्र कर रहे हैं। फिलहाल डा वशिष्ठ नारायण सिंह मानसिक बीमारी सीजोफ्रेनिया (Schizophrenia) से ग्रसित थे। इसके बावजूद वे मैथ के फॉर्मूलों को सॉल्व करते रहते थे।

गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का 14 नवंबर 2019 को 74 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था। वे पिछले कई वर्षों से बीमार चल रहे थे। बिहार के पटना मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल (PMCH) में उनका इलाज चल रहा था। आरा स्थित महोली घाट पर इन्हें राजकीय सम्मान (State honor) के साथ अंतिम विदाई दी गई।

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