शनिवार, 21 जुलाई 2018

हैंगिंग लेपाक्षी टेम्पल (Hanging Lepakshi Temple)

हैंगिंग लेपाक्षी टेम्पल, आंध्र प्रदेश (Hanging Lepakshi Temple, Andhra Pradesh) :

कहां है स्थित?

लेपाक्षी मंदिर दक्षिणी आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) के अनंतपुर जिले में स्थित लेपाक्षी गाँव में है। यह हिन्दुपुर के 15 किलोमीटर पूर्व और उत्तरी बेंगलुरू से लगभग 120 किलोमीटर दूरी पर है। ये मंदिर लेपाक्षी शहर के दक्षिणी दिशा में, जो एक कम ऊँचाई वाली पहाड़ी की विशाल ग्रेनाइट चट्टान जिसका आकार कछुए के खोल की भांति है पर स्थित है। इसलिए यह कूर्म सैला भी कहा जाता है। यहाँ विजयनगर साम्राज्य के काल (1336–1646) में निर्मित शिव, विष्णु एवं वीरभद्र के कई मन्दिर हैं।

इस पवित्र और रहस्यमयी मंदिर को कई नामों से पुकारा जाता है जैसे – वीरभद्र मंदिर (Veerabhadra Temple), लेपाक्षी मंदिर आदि। लेकिन इस मंदिर का सबसे चर्चित नाम लेपाक्षी मंदिर है और इसी नाम से यह पूरी दुनिया में प्रसिद्द है।

लेपाक्षी मंदिर -
जानें मंदिर से जुड़ा रामायण का इतिहास

पौराणिक मान्यता है की त्रेता युग में जब रावण देवी सीता का हरण करने के बाद आकाश मार्ग से लंका रवाना हुआ तो पक्षीराज जटायु ने इसी जगह पर रावण का रास्ता रोका था। ऐसा माना जाता है कि ये वही जगह है, जहां रावण और जटायु के बीच भयंकर युद्ध हुआ और इसी जगह पर रावण ने जटायु को घायल कर दिया था। ये सिर्फ एक कहानी नहीं है, बल्कि इस मंदिर में मौजूद एक निशान को उस कहानी का गवाह बताया जाता है।

लेपाक्षी गाँव 16 वीं शताब्दी में बने अपने कलात्मक लेपाक्षी मंदिर के लिए जाना जाता है। यह मंदिर काफी बड़ा है तथा इस मंदिर परिसर में भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान वीरभद्र (विदर्भ) को समर्पित तीन मंदिर है। पौराणिक कथाओं के अनुसार वीरभद्र को भगवान शिव ने पैदा किया था। वीरभद्र, दक्ष यज्ञ के बाद अस्तित्व में आए भगवान शिव का एक क्रूर रूप है। इसके अलावा शिव के अन्य रूप अर्धनारीश्वर, कंकाल मूर्ति, दक्षिणमूर्ति और
त्रिपुरातकेश्वर यहां भी मौजूद हैं। यहां देवी को भद्रकाली कहा जाता है।

वास्तुकला :

इस मंदिर का निर्माण विजयनगर वास्तुकला शैली के अनुसार किया गया है। मुख्य मंदिर को तीन भागो में विभाजित किया गया है ये है : जिसमे पहला है सभा कक्ष जिसे नाट्य और रंग मंडप कहा जाता है, दूसरा है अर्ध मंडप और अंतराल मंडप (पूर्व कक्ष) और तीसरा है गर्भगृह। ये मंदिर के भवन के रूप में दिखाई देता है जिसे दो बाड़ों ने घेर रखा है। सबसे बाहरी दीवारों बड़े में तीन द्वार है जिसमे से उत्तरी द्वार का ज्यादातर प्रयोग किया जाता है। भीतरी द्वार सभा कक्ष का प्रवेश द्वार है जो एक विशाल खुला कक्ष है जिसके मध्य भाग में विशाल स्थान रिक्त है। इसके द्वारा गर्भ गृह में प्रवेश किया जाता है जिसकी छतों और स्तम्भों के हर स्थान पर मूर्तियों और पेंटिंग्स की प्रवहति देखने को मिलती है। मंदिर की दीवारों और स्तम्भों पर दिव्य प्राणी, संतों, अभिभावकों, संगीतकारों, नर्तकों और शिव जी के 12 अवतारों के चित्र है। गर्भ गृह के प्रवेश द्वार के पार्श्व-भाग में गंगा और यमुना देवी की मुर्तिया है। इस कक्ष के बाहरी स्तंभों को एक सजावटी चबूतरे पर बनाया गया है, चबूतरे पर की गयी सजावट ब्लॉक्स के रूप में है जिनपर घोड़ो और सैनिकों की छवियों को खोदा गया है। ये स्तंभ थोड़े पतले आकार के है जिनपर नक्काशीदार छज्जे बने हुए है इन छज्जो को घुमावदार आकार में बनाया गया है। कक्ष के मध्य भाग के खुले स्थान में बड़े स्तंभ है जिनपर ट्रिपल आंकड़े की नक्काशी की गयी है। कक्ष के उत्तरी पूर्वी भाग के स्तंभों में नतेशा की छवि है जिसको ब्रह्मा और नगाड़ा बजाने वाला व्यक्ति ने घेरा हुआ है। इनके आस पास के स्तंभों में नृत्य मुद्राओं की देवी की मूर्तियां है जिनको नगाड़ा बजाने वाला व्यक्ति और करताल बजने वाले व्यक्तियों ने घेरा हुआ है। कक्ष के दक्षिण पश्चिन में स्थित स्तंभ में शिव जी की पत्नी पार्वती, की तस्वीर है जिनकी महिला दासियों में घेरा हुआ है। मंदिर के कक्ष के उत्तरपश्चिमी भाग में अन्य देवताओ की मूर्तियों की भी नक्काशी की गयी है जिसमे तीन पैर वाले भृंगी, और नृत्य अवस्था में खड़े भिक्षान्तना समिल्लित है। कक्ष की पूरी छत को भित्ति चित्रों से ढका गया है जो महाभारत, रामायण और पुरानो के साथ साथ मंदिर के संरक्षक के जीवन रेखाचित्र के दृश्यों को दर्शाता है। मुख्य मंडप की छत की प्रत्येक खाड़ी पर की गयी पेंटिंग (अंतराल और अन्य मंदिर) विजयनगर सचित्र कला की भव्यता को दर्शाती है। इन पेंटिंग्स को चुना मोर्टार की प्रारंभिक प्लास्टर परत पर बनाया गया है। इसकी रंग योजना में सब्जियों और पीले, गेरू, काले, नीले और हरे खनिज रंगो जिनमे निंबु के पानी को मिलाया गया है का प्रयोग किया गया है, इनकी पृष्ठ्भूमि को मुख्य तौर लाल रंग से रंगा जाता है। देवी देवताओ की प्रतिमाओं के अलावा यहाँ मौजूद भित्तिचित्र भगवान् विष्णु के अवतारों को दर्शाते है।

मंदिर के अर्ध मंडप (पूर्व कक्ष), जिसे एशिया का सबसे बड़ा कक्ष कहा जाता है, की छत का माप 23 x 13 feet (7.0 m × 4.0 m) है। इसमें भगवान शिव के 14 अवतारों के भित्तिचित्र है अथार्त :- योगदक्षिणमूर्ति, चंदे, अनुग्रह मूर्ति, भिक्षान्ता, हरिहरा, अर्धनारीश्वर, कल्याणसुंदरा, त्रिपुरांतक, नटराज, गौरीप्रसादका, लिंगोधबवा, अंधकासुरसमाहरा आदि।

मंदिर की गर्भ गृह में इष्ट देव की प्रतिमा है जिसके निकट वीरभद्र की एक आदमकद छवि स्थित है, जो पूरी तरह सशक्त है और जिसे खोपड़ियों से सजाया गया है। गर्भ गृह में एक गुफा कक्ष है जहां अगस्थ्य ऋषि ने निवास किया था जब उन्होंने यहाँ शिवलिंग की स्थापना की थी। गर्भगृह की प्रतिमा के ऊपर बनी छत में इस मंदिर के निर्माता, विरुपन्ना और वीरन्ना की तस्वीरें है, जिन्हे राजा के प्रकार के कपडे और तिरुपति में कृष्णदेवराय की कांस्य प्रतिमा पर सजे मुकुट की भांति मुकुट पहनाया गया है। इन्हे इनके दाल के साथ चित्रित किया गया है जो अपने राज्य की एक श्रद्धामय प्रार्थना के लिए अपने परिवार के इष्ट देव की राख को अर्पित कर रहे है।

मंदिर परिसर के पूर्वी विंग में, शिव जी और उनकी पत्नी देवी पार्वती का पृथक कक्ष है जिसे शिलाखण्ड पर खोद गया है। एक अन्य पवित्र कक्ष में भगवान् विष्णु की प्रतिमा है। मंदिर परिसर की पूर्वी ओर, ग्रेनाइट चट्टान के एक बड़े शिलाखण्ड पर एक कुंडलित बहु टोपीदार नागिन की आकृति की नक्काशी की गयी है जिसने शिवलिंग को एक छतरी के रूप में ढका हुआ है।

अंग्रेजों ने की थी मिस्ट्री जानने की कोशिश

लेपाक्षी मंदिर को हैंगिंग पिलर (हवा में झूलते पिलर्स) टेम्पल के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर कुल 70 खम्भों पर खड़ा है जिसमे से एक खम्भा जमीन को छूता नहीं है बल्कि हवा में ही लटका हुआ है। इस एक झूलते हुए खम्भे के कारण इसे हैंगिंग टेम्पल कहा जाता है। इस स्तंभ की लंबाई में 27ft और ऊंचाई में 15 फुट और एक नक्काशीदार स्तंभ है। यह पिलर भी पहले जमीन से जुड़ा हुआ था पर एक ब्रिटिश इंजीनियर ने यह जानने के लिए की यह मंदिर पिलर पर कैसे टिका हुआ है। उसने इस कोशिश में खंभे को हिलाया और उसका धरती से संपर्क टूट गया। तब से लेकर आज तक यह खम्बा हवा में झूल रहा हैं। इस मंदिर के रहस्य को जानने के लिए अंग्रेजों में इसे शिफ्ट करने की कोशिश की, लेकिन वे नाकाम रहे थे। यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं की मान्यता है की इसके नीचे से कपडा निकलने से सुख सृमद्धि बढ़ती है।

मुख्य देवता

इस मंदिर में इष्टदेव श्री वीरभद्र है। वीरभद्र, दक्ष यज्ञ के बाद अस्तित्व में आए भगवान शिव का एक क्रूर रूप है। इसके अलावा शिव के अन्य रूप अर्धनारीश्वर, कंकाल मूर्ति, दक्षिणमूर्ति और त्रिपुरातकेश्वर यहां भी मौजूद हैं। यहां देवी को भद्रकाली कहा जाता है। मंदिर एक पत्थर की संरचना है। मंदिर विजयनगरी शैली में बनाया गया है।

लेपाक्षी मंदिर की ज्यादातर दीवारों पर देवी-देवतओं, महाभारत, रामायण और अन्य पुराणों के राम और कृष्णा द्वारा किये गए विभिन्न दृश्यों को दर्शाया गया है जिन्हे आज भी मंदिर मे संरक्षित रखा गया है। लेपाक्षी काफी रमणीय स्थान हैं जिनका सीधा सम्बन्ध रामायण और शिवपुराण से है।

1583 में हुआ था निर्माण

इस मंदिर का निर्माण 1583 में दो भाइयों विरुपन्ना और वीरन्ना ने करा था जो की विजयनगर राजा के यहाँ काम करते थे। हालांकि पौराणिक मान्यता यह है की लेपाक्षी मंदिर परिसर में स्तिथ विभद्र मंदिर का निर्माण ऋषि अगस्तय ने करवाया था। स्कन्द पुराण के अनुसार, ये मंदिर दिव्यक्षेत्र में से एक माना जाता है। दिव्यक्षेत्र को भगवान् शिव का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल माना जाता है।

कैसे पड़ा 'लेपाक्षी' नाम

एक अन्य मान्यता यह है की यह रामायणकालीन वही स्थान है जहाँ रावण से युद्ध के पश्चात घायल हो के जटायू गिरा था। जब राम सीता को तलाशते हुए वहां पहुंचे तो उन्होंने उस घायल पक्षी को देख कर कहा ‘ले पाक्षी’ यानी की उठो पक्षी। ले पाक्षी एक तेलगु शब्द है।

कहानी

शिल्पकला के इस हैरतअंगेज नमूने का सबसे रहस्यमय हिस्सा था नृत्य मंडप। हालांकि कुछ लोग इस मंडप को शिव और पार्वती के विवाह से भी जोड़ते हैं, क्योंकि पौराणिक कथाओं के मुताबिक महादेव और पार्वती का विवाह इसी जगह पर हुआ था। यही वजह है कि विजयनगर के राजाओं ने इस मंदिर में एक विवाह मंडप तैयार किया और इसे कुछ ऐसा रूप दिया जैसे अप्सराओं समेत तमाम देवी-देवता यहां नृत्य कर रहे हों। यहां अंकेश्वर है जिनके 3 पैर है। छत पर 12 टुकड़े हैं जिसमें सौ पत्ते हैं और बीच में एक कमल है। यह नाट्य मंदिर का पूरा ग्रेविटी इसी कमल में है ऐसा कहा जाता है। 15वीं शताब्दी में ही शिल्पकला की कुछ ऐसी नुमाइश हुई कि सदियों बाद भी विज्ञान को उस कला का जवाब नहीं मिला। महादेव की भक्ति में आज भी मंडप का वो खंबा नटराज रूप में अपना पैर उठाए नृत्य कर रहा है।विजयनगर की सत्ता बदली, तो इस शिल्पकारी के कद्रदार भी बदल गए। नए राजाओं ने मंदिर का निर्माण करने वाले वीरुपन्ना की आंख निकालने का फरमान जारी किया। अपनी कला पर गर्व के साथ वीरुपन्ना ने राजा का हुक्म माना और खुद ही अपनी आंखें कुर्बान कर दीं। कहा जाता है कि मंदिर की चट्टानों पर वीरुपन्ना की आंखों और खून के निशान आज भी मौजूद हैं। 1914 में कुछ अंग्रेज अधिकारियों को इन कहानियों पर यकीन नहीं हुआ। उन्होंने इन धब्बों की जांच करवाई औऱ  फिर उन्हें भी यकीन हुआ कि सदियों बाद बाद भी जो निशान कायम हैं। वो इंसानी खून के ही हैं।

इस मंदिर से जुड़ी एक और कहानी है। कहते हैं कि वैष्णव यानी विष्णु के भक्त और शैव यानी शिव के भक्त के बीच सदियों तक सर्वश्रेष्ठ होने की तनातनी जारी रही। इस तकरार को रोकने के लिए अगस्त मुनि ने इसी जगह पर तपस्या की और अपने करिश्मे से इस बहस को हमेशा के लिए खत्म कर दिया। अगस्त मुनी ने इसी जगह पर साबित किया कि विष्णु और शिव एक दूसरे के पूरक हैं। यहां पास ही में विष्णु का एक अद्भुत रूप है रघुनाथेश्वर। यानी जहां विष्णु, भगवान शंकर की पीठ पर आसन सजाए हुए हैं। यहां विष्णु जी को शंकर जी के ऊपर प्रतिष्ठा किया है, रघुनाथ स्वामी के रूप में। जो कहानियां, कई सबूतों के साथ आज भी इन पहाड़ों पर जिंदा हैं, उनके चर्चे उत्तर भारत में कम ही सुनाई देते हैं।लेपाक्षी मंदिर सदियों से ज्ञान और विज्ञान की गवाही दे रहा है, जो कहता है कि वह कारीगर चित्रकार भी रहे होंगे जिन्होंने विजयनगरम कला को मंदिर की दरो दीवार पर उतार डाला। वो कलाकार मूर्तिकार भी रहे होंगे, जिनके छेनी और हथौड़े ने मूर्तियों को जीवंत बना डाला। वह कारीगर कलाकार भी रहे होंगे जिन्होंने नृत्य करते मंदिर की कल्पना को हकीकत बना डाला। लेपाक्षी मंदिर की कला, कलाकार की कल्पना कमाल है और यही कमाल विज्ञान को अपनी तरफ आकर्षित करता है। लटकते हुए खंबे की कला को, ज्ञान को, विज्ञान को समझने की हर कोशिश अब तक किसी भी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी हैँ।

लेपाक्षी मंदिर में देखने लायक कई चीज़े है जो की कलात्मक दृष्टि से बेहद उत्कृष्ट है।

लेपाक्षी नंदी – नंदी की सबसे विशाल प्रतिमा (Lepakshi Nandi – Largest Statue of Nandi) :

लेपाक्षी मंदिर से 200 meter (660 ft) दूर मेन रोड पर एक ही पत्थर से बनी विशाल नन्दी बैल (शिव के वाहन) प्रतिमा है जो की 8.23 मीटर (27 फ़ीट) लम्बी, 4.5 मीटर (15 फ़ीट) ऊंची है। यह एक ही पत्थर से बनी नंदी की सबसे विशाल प्रतिमा है जबकि एक ही पत्थर से बनी दूसरी सबसे बड़ी प्रतिमा है (प्रथम स्थान गोमतेश्वर की मूर्ति का है)।

विशाल नाग लिंग प्रतिमा (Shiv Linga with Seven Headed Naga) :

विभद्र मंदिर परिसर में नंदी की विशालकाय मूर्ति से थोड़ी दूर पर ही एक ही पत्थर से बनी विशाल शेषनाग की एक अनोखी प्रतिमा भी है। जो की संभवतया सबसे विशाल नागलिंग प्रतिमा हैं। इस काले ग्रेनाइट से बनी प्रतिमा में एक शिवलिंग के ऊपर सात फन वाला नाग फन फैलाय बैठा है। बताया जाता है कि करीब साढ़े चार सौ साल पहले ये मूर्ति एक स्थानीय शिल्पकार ने बनाई थी। इसे बनाए जाने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। नंदी और शेषनाग का एक साथ एक जगह पर होना, ये इशारा था कि मंदिर के भीतर महादेव और भगवान विष्णु से जुड़ी कोई और अद्भुत कहानी है।

राम पदम  (Rama Padam or Rama Footprint) : पैर के निशान

विभद्र मंदिर परिसर में एक पैर का निशान भी है, जिसको लेकर अनेक मान्यताएं हैं। इस निशान को त्रेता युग का गवाह माना जाता है। कोई कहता है ये देवी दुर्गा का पैर है। कोई इसे राम का पैर तो कोई सीता के पैर का निशान मानते हैं।

लेकिन इस मंदिर का इतिहास जानने वाले इसे सीता का पैर मानते हैं। ऐसा माना जाता है कि जटायु के घायल होने के बाद सीता ने जमीन पर आकर खुद अपने पैरों का ये निशान छोड़ा था और जटायु को भरोसा दिलाया था, कि जब तक भगवान राम यहां नहीं आते, यहां मौजूद पानी जटायु को जिंदगी देता रहेगा। ऐसा माना जाता है कि ये वही स्थान है, जहां जटायु ने श्रीराम को रावण का पता बताया था।

स्वयंभू शिवलिंग

इस धाम में मौजूद एक स्वयंभू शिवलिंग भी है जिसे शिव का रौद्र अवतार यानी वीरभद्र अवतार माना जाता है। 15वीं शताब्दी तक ये शिवलिंग खुले आसमान के नीचे विराजमान था, लेकिन विजयनगर रियासत में इस मंदिर का निर्माण शुरू किया गया, वो भी एक अद्भुत चमत्कार के बाद। मंदिर के पुजारी कहते हैं कि पहले यहां स्वामी पैदा हुआ था। 1538 में यहां भगवान की प्रतिष्ठा के ग्रुप अन्ना के दो पुत्र थे। एक पुत्र बोल नहीं पाता था। यहां पूजा करने के बाद उसके बेटे को बोलना आ गया और उसके बाद मंदिर बनाया। यहां वीरभद्र स्वामी की स्थापना की। उन्होंने इस मंदिर का पूरा निर्माण करवाया।

यहां मौजूद एक अद्भुत शिवलिंग रामलिंगेश्वर से, जिसे जटायु के अंतिम संस्कार के बाद भगवान राम ने खुद स्थापित किया था। पास में ही एक और शिवलिंग है हनुमालिंगेश्वर। बताया जाता है कि श्रीराम के बाद महाबलि हनुमान ने भी यहां भगवान शिव की स्थापना की थी।

अद्भुत भित्ति चित्र (Magnificent Mural) :

छत पर बने शानदार भित्ति चित्र।

भक्तकन्नप्पा की कहानी ( Story of Bhaktakannappa) :

मंदिर परिसर में चट्टानों पर चित्रों में उकेरी गई भक्तकन्नप्पा की कहानी।

शिव काल की प्लेटों के निशान (Imprints of Plates) :

कहा जाता है की यह शिव काल में प्रयोग में ली गई प्लेटों और बर्तनो के निशान साथ में है भगवान राम के पद चिन्ह। जबकि कुछ अन्यों की मान्यता है की यह विशाल कलर प्लेटे है जो की यहाँ चित्रकारी करने में काम ली गई थी।

भगवान गणेश की मूर्ति (Single-stone Sculpture of Lord Ganesha) :

एक ही चट्टान में उत्कीर्ण भगवान गणेश की भव्य प्रतिमा।

विशाल मंडप (Large Mandapam) :

मंदिर के बीचों बीच एक नृत्य मंडप है। इस मंडप पर कुल 70 पिलर यानी खंभे मौजूद हैं, जिसमें से 69 खंभे वैसे ही हैं, जैसे होने चाहिए। मगर एक खंभा दूसरों से एकदम अलग है, वो इसलिए क्योंकि ये खंभा हवा में है। यानी इमारत की छत से जुड़ा है, लेकिन जमीन के कुछ सेंटीमीटर पहले ही खत्म हो गया।

आसपास के क्षेत्र में शादियों का आयोजन करने के लिए एक कल्याण मंडप है।

विशाल गलियारे (Large Corridor) :

मंदिर में बने विशाल गलियारों का एक द्रश्य।

लाइमस्टोन का ढेर (Dung of Lime stone) :

मंदिर परिसर में एक जगह मंदिर निर्माण के दौरान बचे चुने पत्थर का एक ढेर है जिसकी भी श्रद्धालु पूजा करते है।

छत पर शिव पेंटिंग (Shiv Painting at Roof top) :

मंदिर की छत पर बनी आकर्षक शिव पेंटिंग।

कैसे पहुंचे

हवाई मार्ग द्वारा - लेपाक्षी का नजदीकी एयपोर्ट बेंगलुरु एयपोर्ट है, जोकि अनंतपुर से 100 किमी की दूरी पर स्थित है। पुट्टाप्राथे एयरपोर्ट से 41 ​किलोमीटर।
सड़क मार्ग - लेपाक्षी अच्छी तरह से हैदराबाद और बंगलुरू जैसे शहरों से राजमार्ग एनएच 7 द्वारा जुड़ा हुआ है।
रेल द्वारा - लेपाक्षी का नजदीकी रेलवे स्टेशन हिन्दुपुर है।

मन्दिर में दर्शन का समय :
सुबह 5 से रात 9 बजे तक

आस-पास के स्थान :-
पुट्टपर्थी
धर्मावरम

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