बुधवार, 1 अगस्त 2018

अंक - 9 (नौ) (Nine)

अंक 9 (नौ) (NINE) का महत्व

भारतीय परम्परा में अंक नौ का महत्व

नौ की लकड़ी नब्बे ढुलाई, नौ दिन चले अढाई कोस, नौ नकद न तेरह उधार आदि लोकोक्तियों और मुहावरों की दुनिया से लेकर भारतीय धर्म, संस्कृति और ज्योतिष तक नौ के अंक की गहरी पैठ हैं।

जन्म कुण्डली के नवम भाव से मनुष्य के भाग्य धर्म और तीर्थयात्रा आदि का विचार किया जाता हैं। सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहू और केतु भारतीय ज्योतिष में नौ ग्रह हैं। शिशु को नौ महीने गर्भ में रहना पड़ता हैं। नौलखा हार की रौनक ही कुछ और होती हैं, इस हार को मनुष्य का शरीर ही धारण करता हैं। उसके नवधा अंग और नवद्वार हैं दो आँखे, दो कान, दो हाथ, दो पैर और एक नाक के नवधा अंग कहलाते हैं। दो आँखे, दो कान, दो नाक, एक मुख, एक गुदा और लिंग मिलाकर नवद्वार कहलाते हैं। चंद्रमास के दोनों पक्षों की नवी तिथि नवमी कहलाती हैं, भगवान राम का जन्म भी नवमी तिथि को हुआ।

अंक नौ में सभी अंको का समावेश माना जाता है। अंक शास्त्र में यह अंक सर्वाधिक बलवान अंक माना गया है इसमें तीन का गुणांक तीन बार आता है अर्थात 3+3+3 = 9 होता है। इसलिए इस अंक के लोगों में रचनात्मकता और कल्पनाशक्ति बहुत अच्छी होती हैं। अंक नौ का स्वामी ग्रह मंगल होता है और मंगल के प्रभाव से आप बहुत साहसी और पराक्रमी व्यक्ति भी होते है।

इस अंक वाले जातक शारीरिक एवं मानसिक रूप से बलवान होते हैं। वीरता, साहसिक कार्य के प्रति निष्ठा, अपने निर्णयों पर अडिग रहने वाले, नेतृत्व करने वाले होते हैं। अनुशासन प्रिय होने के बावजूद इनके कनिष्ठ इनसे प्रसन्न रहते हैं क्योंकि दिल से ये सौम्य होते हैं। अपने जीवन साथी से इनके अक्सर मतभेद रहते हैं। स्वाभिमानी होने के कारण इनके मित्रों की संख्या कम होती है, इनकी हार्दिक इच्छा होती है कि ये जहां भी जाएं इन्हें महत्व जाये।

भारतीय परम्परा के अनुसार, चार युग हैं और इनके वर्षो का योग भी नौ ही हैं
सतयुग में 172,800 वर्ष बताएं गए हैं –(1+7+2+8 = 18 = (1+8 = 9)
त्रेतायुग में 129600 वर्ष बताएं गए हैं –(1+2+9+6 = 18 = (1+8 = 9)
द्वापरयुग में 864000 वर्ष बताएं गए हैं –(8+4+6) = 18 = (1+8 = 9)
कलयुग में 432000 वर्ष बताएं गए हैं –(4+3+2) = 9

कुछ और तथ्य जो कि नौ के अंक को काफी महत्व देतें हैं, आइये देखते हैं - विद्वानों और शास्त्रकारों ने नौ के समूह में और क्या-क्या समेटा हैं -

नवरात्र – नवरात्र में पूजनीय नौ कुमारियां हैं जिनमें इन नौ कुमारियों की पूजा कि जाती हैं- कुमारिका, त्रिमूर्ति, कल्याणी, रोहिणी, काली, चंडिका, शाम्भवी, दुर्गा और सुभद्रा। पुराण मत के अनुसार नौ दुर्गाएं जिनका नवरात्र में पूजन होता हैं वे इस प्रकार से हैं - शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्दिदात्री

नवरस – काव्य के नौ रस बताएं गए हैं जो इस प्रकार हैं - श्रंगार, करुण, हास्य, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, अदभुत और शान्त इन रसों के स्थाई भाव इस प्रकार हैं - श्रंगार की रति, हास्य की हंसी, करुण का शुक, रौद्र का क्रोध, वीर का उत्साह, भयानक का भय, वीभत्स का जुगुप्सा, अदभुत का विस्मय और शान्त की शांति।

नवरत्न – हीरा, पन्ना, माणक, मोतीगोमेद, लहसुनिया, पदमराग, मूंगा और नीलम ये नवरत्न कहलाते हैं। सम्भव हैं राजा विक्रमादित्य को अपनी सभा में नवरत्न रखने की प्रेरणा हीरा, पन्ना आदि नवरत्नों के वैभव से मिली हों। विक्रमादित्य की सभा में नौ रत्न थे धन्वन्तरी, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, वेतालभट्ट, घटखपर, कालिदास, वराहमिहिर और वररुचि।

नवधातु – भारतीय परिप्रेक्ष में जो स्थान अष्टधातुओं अथवा उनसे निर्मित मूर्तियों का रहा हैं, वह भलें ही नवधातुओं न रहा हों लेकिन सोना, चांदी, लोहा, सीसा, तांबा, रांगा, इस्पात, कासां और कान्तिलोहा नवधातुयें कहलाती हैं।

नवविष – शास्त्रों में नौ प्रकार के विष बताएं गए हैं, जो नवविष के रूप में जाने जातें हैं - वत्सनाम, हारिद्रय, सक्तक, प्रदीपन, सौराष्ट्रिक, श्रंग्दक, कालकूट, हलाहल और ब्रह्मपुत्र हलाहल जैसा प्रचण्ड विष समुन्द्र मंथन के समय निकला था।

हिंदू धर्म ही नहीं, अन्य धर्मों में भी है 9 अंक का महत्व

हिंदू धर्म में नवरात्र के 9 अंक का बहुत महत्व है। इन दिनों नौ देवियों की पूजा की जाती है। लेकिन दुनिया भर के अलग-अलग धर्मों में भी 9 अंक प्रचलित है।

चीन में नौ का संबंध ड्रैगन से है, जिसे जादुई शक्तियों का प्रतीक माना जाता है। यही नहीं, ड्रैगन के नौ रूप, नौ गुण और नौ संतानें मानी गई हैं। वैसे भी चीन में नौ का आंकड़ा शुभ माना गया है। तो वहीं, जापान में यह आंकड़ा अशुभ माना गया है।

प्राचीन स्कैंडिनेवियाई आख्यानों के अनुसार ब्रह्माण्ड में नौ लोक हैं, जो एक विराट वृक्ष पर टिके हैं। स्कैंडिनेवियाई देशों में ही शिशु का नामकरण जन्म के नौवें दिन करने का रिवाज रहा है। एक विशेष समारोह में शिशु को उसके पिता की गोद में रखा जाता है और उसके ऊपर पानी के छींटे डालकर उसका नामकरण किया जाता है। इसके बाद ही वह शिशु उस घर का सदस्य माना जाता है। इस प्रथा का एक खास महत्व है। पुरातन काल में उन देशों में अनचाहे शिशुओं की हत्या करना अवैध नहीं माना गया था। मगर नौवें दिन नामकरण होने तथा परिवार के सदस्य के रूप में मान्यता मिलने के बाद उसे मारना कानूनन हत्या की श्रेणी में आ जाता!

उधर स्वीडन में एक समय 'अपसला के मंदिर' में नौ साल में एक बार भव्य बलि उत्सव मनाया जाता था। दूर-दूर से लोग इसमें शामिल होने आते। इसमें मनुष्य सहित हर प्रजाति के प्राणी के नौ-नौ नरों की बलि दी जाती थी। इसके बाद नौ दिनों तक दावतों का दौर चलता था।

ग्रीस में नौ प्रेरक शक्तियों के रूप में नौ देवियों को माना गया है। ये क्रमश: महाकाव्य, इतिहास, गीत-काव्य, संगीत, दुखांत कथाओं, धार्मिककाव्य, नृत्य, हास्य तथा खगोलशास्त्र की देवियां हैं।

यही नहीं, मान्यता है कि अन्ना की ग्रीक देवी डिमीटर की बेटी कोरी को जब मृत्युलोक के देवता हेडीज ने अगुवा कर लिया, तो डिमीटर नौ दिन और नौ रातों तक उसे तलाशती फिरीं। वहीं रात्रि की देवी लैटो ने नौ दिन की प्रसव पीड़ा के बाद जुड़वां बच्चों को जन्म दिया था।

ग्रीस और रोम में किसी परिवार में मृत्यु होने पर नौ दिन तक शोक रखने के बाद भोज के आयोजन के साथ शोक-मुक्ति की जाती थी। यह भी मान्यता थी कि स्वर्गलोक से पृथ्वीलोक आने में नौ दिन लगते हैं और पृथ्वीलोक से पाताल लोक जाने में भी इतना ही समय लगता है।

नौ के आंकड़े का ईसाई धर्म में भी विशेष महत्व है। माना जाता है कि सलीब पर चढ़ाए जाने के नौ घंटे बाद ईसा ने प्राण त्यागे थे। अपने पुनरुत्थान के बाद उन्होंने नौ बार अपने अनुयायियों को दर्शन दिए। साथ ही कहा जाता है कि स्वर्गारोहण करने से पहले ईसा ने अपने दूतों से कहा था कि वे अगले नौ दिनों तक यरूशलम में ही रहें और पवित्र आत्मा के अवतरण की प्रतीक्षा करें। उनके दूतों ने प्रार्थनाएं करते हुए ये दिन गुजारे। तब से ईसाई धर्म में किसी विशेष मंतव्य के लिए नौ दिन की गहन प्रार्थना (नोवेना) का खास महत्व हो गया।

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