मंगलवार, 7 अगस्त 2018

पिलुआ महावीर मंदिर, इटावा

हनुमान जी खाते है लड्डू, सुनाई देती है राम नाम की आवाज

इस मंदिर में विराज मान हैं सांस लेने और प्रसाद खाने वाले हनुमान जी -

पवनपुत्र यानि महावीर बंजरगबली की माया से हर कोई युगों युगों से वाकिफ है। उत्तर प्रदेश के इटावा शहर से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर गांव रूरा के पास यमुना नदी के निकट पिलुआ महावीर मंदिर को हनुमानजी का सिद्ध स्थान माना जाता है। कहा जाता है कि पवन पुत्र हनुमान को श्रीराम ने अमरत्व का आर्शीवाद दिया है। आज उसी आर्शीवाद का असर है कि यूपी के इटावा में हनुमान जी की, जीवित मूर्ति मौजूद है। जिसे देखने और उसका लाभ लेने के लिये लाखों लोग श्रद्धाभाव से जाते है। घने बीहडों में हनुमान जी का ये चमत्कार कई सालों से जारी है।

श्रीराम ने दिया अमरत्व का आर्शीवाद -

कहा जाता है कि पवन पुत्र हनुमान को श्रीराम से अमरत्व का आर्शीवाद प्राप्त है। आज उसी आर्शीवाद का असर है देखने और उसका लाभ लेने के लिये लाखों लोग श्रद्धाभाव से बेखौफ होकर जाते है। यहां हनुमान जी दक्षिण की तरफ मुंह करके लेटे हैं। मूर्ति के मुंह में जितना भी प्रसाद और दूध चढ़ाया जाता है, वो कहां गायब हो जाता है। इसका पता नहीं है और प्रसाद खाते ही मूर्ति के मुख से राम नाम की ध्वनी सुनाई देती है और मूर्ति में सांसें चलने की हरकत भी होने लगती है।

तीन सौ साल पहले चौहान वंश के अंतिम राजा ने बनवाया था मंदिर -

महाभारत कालीन सभ्यता इटावा मे स्थापित इस मंदिर मे कई राज्यों के हनुमान भक्त अपनी आस्था के चलते पूजा अर्चना करने के लिए आते है। इस मूर्ति के उदगम के बारे मे कहा जाता है कि करीब तीन सौ साल पहले ये क्षेत्र प्रतापनेर के राजा हुक्म चंद्र प्रताप सिंह चौहान के राज्य में आता था।

प्राचीन काल में चौहान वंश के अंतिम राजा हुकुम चन्द्र तेज प्रताप सिंह चौहान के सपने में हनुमान जी आए थे। उन्होंने राजा को जमीन में दबी मूर्ति निकालकर मंदिर बनवाने को कहा। राजा ने सपने की बात पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन दूसरे दिन फिर हनुमान जी ने सपने में दर्शन दिया और मंदिर बनवाने की बात कही। इसबार राजा ने उस जगह खुदाई करवाई, जहां से हनुमान जी की एक मूर्ति निकली। राजा ने इस मूर्ति को अपने महल में स्थापित करने की कोशिश की, लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाए। राजा के तमाम प्रयास के बावजूद बजरंगबली की मूर्ति वहां से टस से मस नहीं हुई।

ऐसा माना जाता है कि हनुमान जी लेटे हुए मुद्रा में थे। राजा ने हनुमान जी को खड़े अवस्था में वही स्थापित किया था, लेकिन दूसरे दिन जब वह दर्शन करने गया तो वह लेटे अवस्था में मिले। इस पर राजा ने विधि-विधान से इसी स्थान पर प्रतिमा की स्थापना कराकर मंदिर का निर्माण कराया। दक्षिणमुखी लेटी हुई हनुमान जी की प्रतिमा के मुख मे हर समय पानी नजर आता है।

जब ढाई टन दूध पी गए थे बजरंगबली -

पुजारी के अनुसार, ऐसी मान्यता है कि एक दिन राजा ने हनुमान जी का पेट भरने के लिए पूरे राज्य से कई टन दूध मंगवाया। दूध को जब हनुमान जी के मुंह में डाला गया तो बजरंगबली पूरा दूध पी गए थे। उस समय पत्थर की मूर्ति में सांसें चलने की हरकत भी होने लगी। तभी से ये मान्यता है कि यहां हनुमान जी एक इंसान की तरह सांस लेते हैं।

हनुमान जी के सामने नतमस्तक हो गये भीम -

महाभारत काल के दौरान कुन्ती पुत्र भीम यमुना नदी के पास से निकल रहे थे तभी वहां अचानक उनके रास्ते में आराम कर रहे हनुमान की पूंछ आ गई। जिसे हटाने का भीम ने खूब प्रयास किया, लेकिन अपने बाहुबल के नशे में चूर भीम नाकाम रहे। पूंछ हटाने में पस्त भीम को जब हनुमान जी की हकीकत का पता चला तो वो नतमस्तक हो गये और फिर उन्होंने शुरू की अपने बड़े भाई हनुमान की सेवा। तब जाकर भीम से खुश होकर हनुमान जी ने उन्हें एक वरदान दिया, जिसकी वजह से राजसूर्य यज्ञ में जरासंध को मारने में भीम को कामयाबी मिली।

बजरंग बली के दर से कोई खाली नहीं लौटता -

इस मन्दिर की खास बात ये है कि डाकुओं ने यहां कभी उत्पात मचाने की हिम्मत नहीं की। जिसकी वजह से यहां आने में श्रद्धालुओं के पैर कभी नहीं कांपे। उनका मानना है कि श्रद्धालुओं के साथ कुछ ग़लत करने वालों को गदाधारी, महाबली हनुमान जी ही सजा दे देते है। पिलुआ मन्दिर की ऊंची-ऊंची दीवारें पवन पुत्र के प्रति लोगों की आस्था की कहानी बयां करती है। इस मन्दिर में जो भी अपनी मुराद लेकर आता है बजरंग बली के दर से खाली नहीं लौटता। यही वजह है कि यहां हर मंगलवार को श्रद्धालुओं का मेला लगा रहता है।

इटावा क्षेत्र से ही नहीं वरन दूरदराज से श्रद्धालु यहां रामभक्त हनुमान की पूजा अर्चना के लिए आते हैं। हिंदुस्तान में दक्षिणमुखी लेटी हुई हनुमान की मूर्ति इटावा के अतिरिक्त सिर्फ इलाहाबाद में है।

नहीं भरा आजतक हनुमान जी का पेट -

बीहड़ों में निर्जन स्थान पर एक टीले पर मंदिर स्थित होने के बावजूद यहां भक्ति का सैलाव उमड़ता है। श्रद्धालु इस मंदिर में अपनी तमाम मन्नत लेकर आते हैं और मान्यता है कि सच्चे दिल से मांगी गई हर मन्नत बजरंगबली पूरी करते हैं। इस मंदिर में स्थापित मूर्ति के बारे में कहा जाता है कि आज तक कोई इस मूर्ति का उदर नहीं भर सका है परंतु यदि आस्था सच्ची हो तो एक लोटा दूध से ही दूध बाहर झलक आता है।

मूर्ति शिल्प आज भी शोध का विषय है -

पिलुआ महावीर मंदिर में स्थित हनुमानजी की इस मूर्ति की विषेशता यह है कि मूर्ति के मुखार बिंदु में जो भी जल, दूध, लड्डू प्रसाद आदि डाला जाता है। वह सीधा मूर्ति के उदर में चला जाता है। आज तक इस मूर्ति के मुखार बिंदु में हजारों टन प्रसाद श्रद्धालुओं ने चढ़ाया जा चुका है। लेकिन मूर्ति का मुखार बिंदु भरा नहीं जा सका है। आज के वैज्ञानिक युग में भी इसका शोध किया गया परंतु यह आज तक रहस्य बना हुआ है कि इसमें कौन सी तकनीक है जो प्रसाद, दूध, जल का कहीं निकलना नहीं होता है। वह कहां चला जाता है वैज्ञानिकों के लिए भी रहस्य बना हुआ है।

मंदिर में स्थापित मूर्ति हनुमान की बालरूप की विभूषित प्रतीत होती है। पुरातत्वविदों के लिए उसका मूर्ति शिल्प आज भी शोध का विषय है। लेकिन इसके बावजूद भी आज तक पुरातत्वविदों ने इस रहस्य को जानने का प्रयास नहीं किया कि आखिर उस दौर में इस मूर्ति को बनाने में किस तकनीक का प्रयोग किया गया है।

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