डेथ वैली (Death Valley) - कैलिफोर्निया
कहां है डेथ वैली
दुनिया में कई रोचक और खतरनाक रहस्य है, जिसे अब तक नहीं सुलझाया गया है। ऐसा ही एक रहस्य छिपा है पूर्वी कैलिफोर्निया में एक रेगिस्तान (मरूस्थल) में जिसका नाम डेथ वैली है। यह एक रेगिस्तान है जहां पर तापमान सबसे ज्यादा रहता है। यहां बिखरे पत्थरों के पीछे आड़ी-टेढी लकीरें आज भी दिखती है।
डेथ वैली नेशनल पार्क उत्तरी अमेरिका का सबसे गर्म, सूखा और रहस्यमयी स्थान है। ये कैलिफोर्निया के दक्षिण-पूर्व में दो राज्य नेवादा (Nevada) और कैलिफ़ोर्निया के बॉर्डर पर स्थित हैै। इसकी लंबाई 225 किलोमीटर है। अलग-अलग जगहों पर इसकी चौड़ाई घटती-बढ़ती रहती है और ये 8 से 24 किमी के बीच है। इसका विस्तार पूर्व के अमार्गोसा रेंज और पश्चिम के पैनामिंट रेंज के बीच उत्तर से दक्षिण में है।
ये एक ऐसी जगह है जहां भू-वैज्ञानिकों को हमेशा कुछ न कुछ चौंकाने वाली चीज मिलती रहती है। इस जगह पर सबसे ज्यादा जो चीज चौंकाती है वह है यहां के अपने-आप खिसकने वाले पत्थर। जी हां, यहां इस रेगिस्तान के पत्थर बिना किसी की मदद के खिसकते हैं।
कैसे पड़ा डेथ वैली नाम
शुरू-शुरू में अमेरिका आने वाले लोगों को यह घाटी पार करके ही आना पड़ता था। इसकी झुलसा देने वाली गर्मी और सूखेपन के चलते ज्यादातर लोग घाटी को पार करने के दौरान मारे जाते थे। कैलिफोर्निया के आसपास के इलाकों में सोने के भंडारों का पता लगाने के लिए जाने वाले बहुत से लोग इस घाटी को पार करते समय मारे गए। इन भयानक परिस्थितियों के कारण ही इस घाटी का नाम ‘डेथ वैली’ यानी ‘मौत की घाटी’ पड़ गया। साल 1870 में जब घाटी का अध्ययन किया गया, तो इसमें हजारों जानवरों और मनुष्यों की हड्डियों के ढांचे मिले। साल 1933 में इस वैली को अमेरिका का नेशनल मोन्यूमेंट घोषित कर दिया गया।
Sliding Stones नाम से मशहूर
बता दें, इन खिसकते पत्थरों को सेलिंग स्टोंस (Sliding Stones) के नाम से जाना जाता है। खुद-ब-खुद खिसकतेे हुए ये पत्थर वैज्ञानिकों के लिए एक ऐसी पहलीे बनी हुई जिसे अब तक सुलाझाया नहीं गया है। यहां के रेसट्रैक क्षेत्र में 320 किलोग्राम तक के पत्थरों को एक जगह से दूसरी जगह जाते हुए देखा गया है।
आपको बता दें, रेसट्रैक प्लाया 2.5 मील उत्तर से दक्षिण और 1.25 मील पूरब से पश्चिम तक बिल्कुल सपाट है। लेकिन यहां बिखरे हुए पत्थर खुद-ब-खुद खिसकते हैं। यहां ऐसे 150 से भी अधिक पत्थर हैं। हालांकि, किसी ने उन्हें आंखों से खिसकते नहीं देखा। सर्दियों में ये पत्थर करीब 250 मीटर से ज्यादा दूर तक खिसके मिलते हैं।
हालांकि वैज्ञानिकों की इस मान्यता से परे यहां पर पत्थर विभिन्न दिशाओं में अलग-अलग गति से सरकते पाए गए हैं। सरकते हुए ये पत्थर अपने पीछे एक लंबी पटरी छोड़ जाते हैं, जिससे इनके सरकने का पता चलता है। माना जाता है कि यह पत्थर साल में सिर्फ एक दो बार ही सरकते हैं। इन्हें आज तक किसी ने सरकते हुए नहीं देखा है, सिर्फ इनके द्वारा पीछे छोड़ी गई रेखाओं के कारण ही इनके सरकने का पता चलता है।
किया गया अध्ययन
कैलिफोर्निया की डेथ वैली में कुछ पत्थरों का खुद-ब-खुद खिसकना नासा के लिए भी एक पहेली बनी हुई है। 1972 में वैज्ञानिकों की टीम ने पत्थर के खुद-ब-खुद खिसकने के रहस्य को सुलाझाने के लिए अपनी एक टीम बनाकर यहां खोज शुरू की थी। टीम ने पत्थरों के एक ग्रुप का नामकरण कर उस पर सात साल अध्ययन किया।
वहीं इनमें से एक केरीन (Carina) नाम का पत्थर लगभग 317 किलोग्राम का था जो अध्ययन के दौरान बिल्कुल भी नहीं हिला था, लेकिन जब वैज्ञानिक कुछ साल बाद वहां वापस लौटे, तो उन्होंने उस पत्थर को अपनी जगह से 1 किलोमीटर दूर पाया। अब वैज्ञानिकों का यह मानना है कि तेज रफ्तार से चलने वाली हवाओं के कारण ऐसा होता है।
अन्य वैज्ञानिकों का मानना है कि इन पत्थरों की इस अद्भुत गतिविधि का कारण मौसम की खास स्थिति हो सकती है। इस बारे में किए गए शोध बताते हैं कि रेगिस्तान में 90 मील प्रति घंटे की गति से चलने वाली हवाएं, रात को जमने वाली बर्फ और सतह के ऊपर गीली मिट्टी की पतली परत, ये सब मिलकर पत्थरों को गतिमान करते होंगे।
पारलौकिक शक्तियों भी हो सकती है वजह
बिना किसी हलचल या बल प्रयोग के खिसकते ये पत्थर 1900 के दशक से रहस्य बने रहे। कुछ लोग इसका कारण पारलौकिक शक्तियों को बताते हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार इसके पीछे आत्माओं का हाथ है, क्योंकि उन्नीसवीं शताब्दी के शुरुआती सालों में सोने-चांदी के खदानों की खोज में निकलने वाले लोग जब इस इलाके से गुजरते थे तो उनकी मौत हो जाती थी।
अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा इनका राज जानने के लिए शोध कर चुकी है। वहीं स्पेन की कम्प्लूटेंस यूनिवर्सिटी के भूवैज्ञानिकों/भूगोल शास्त्री की टीम ने इसका कारण मिट्टी में मौजूद माइक्रोब्स की कॉलोनी को बताया था। ये माइक्रोब्स साइनोबैक्टीरिया व एककोशिकीय शैवाल हैं, जिनके कारण झील के तल में चिकना पदार्थ और गैस पैदा होती है। इससे पत्थर तल में पकड़ नहीं बना पाते। सर्द मौसम में तेज हवा के थपेड़ों से ये अपनी जगह से खिसक जाते हैं।
कुछ पर्यावरणविदों का मानना है कि जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि होगी, वैसे-वैसे पत्थरों का खिसकना बंद हो जाएगा। इस बारे में एक सिद्धांत यह बताया जाता है कि रेत की सतह के नीचे उठते पानी और सतह के ऊपर बहती तेज हवाओं के मेल के कारण पत्थर खिसकते हैं। फोटोग्राफर माइक बायरन ने पत्थरों की हलचल को फिल्माने में कई साल बिताए हैं। ‘डेली टेलीग्राफ’ को दिए साक्षात्कार में बायरन ने बताया कि रेगिस्तान में अपने आप चलने वाले कुछ पत्थर आदमी के वजन जितने भारी हैं। इतने भारी पत्थरों का बिना बाहरी कारण के आगे सरकना बहुत ही आश्चर्यजनक और अविश्वसनीय है। उनके मुताबिक, यह पहेली आज तक अनसुलझी ही है। 1980 में हैम्पशायर, मैसाचुसेट्स कॉलेज के प्रोफेसर जोनरीड ने इन सरकते पत्थरों को लेकर एक अध्ययन किया।
दुनिया की सबसे गर्म जगह है डेथ वैली
मौसम विज्ञानियों ने अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित डेथ वैली को विश्व के सबसे गर्म स्थान का दर्जा दिया है। डब्ल्यूएमओ के पैनल ने यह निष्कर्ष निकाला है। डेथ वैली की गहराई और आकार उसके गर्मियों के तापमान को प्रभावित करते हैं। यह घाटी समुद्र तल से 282 फीट (86 मी.) नीचे एक लंबे, संकरे बेसिन के रूप में है, जबकि इसके चारों ओर ऊंची और सीधी खड़ी पर्वत श्रृंखलाएं मौजूद हैं।
इस वैली का तापमान 49 सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है और यहां बारिश भी बस नाम-मात्र की होती है। साल में औसत वर्षा केवल 5 से.मी. के लगभग होती है। घाटी में पानी का निशान तक नहीं है। हालांकि यह सारी घाटी ही रेगिस्तान है, लेकिन फिर भी यहां खरगोश, गिलहरी, कंगारू, चूहे जैसे बहुत से जानवर मिलते हैं। टिम्बिश जनजाति के लोग पिछले एक हजार सालों से डेथ वैली में रह रहे हैं।
नासा (NASA) सहित कई संस्थाएं कर चुकी हैं शोध
सदीभर से वैज्ञानिकों के लिए जिज्ञासा बने डेथवैली के खिसकते पत्थरों का राज खुल चुका है। सर्द रात में ये बर्फ की पैनल्स की मदद से 224 मीटर तक की दूरी तय कर लेते हैं।
हालांकि वैज्ञानिक अब तक कोई ठोस वजह का पता नहीं लगा पाए हैं कि आखिर ये पत्थर अपनी जगह से खुद-ब-खुद खिसकते कैसे हैं, लेकिन वैज्ञानिकों का यह मानना है कि किसी इंसान या जानवर के जरिए इन पत्थरों को घसीटने के सबूत नजर दिखाई नहीं देते क्योंकि वहां मौजूद मिट्टी बिना छेड़छाड़ दिखाई देती है। इसलिए संभावना जताई जाती है कि भौगोलिक बदलाव या तूफान के चलते पत्थर अपने आप खिसक जाते हैं। खैर पत्थर के खिसकने का रहस्य आज भी बना हुआ है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें