शिव के धाम कैलाश के अनजाने रहस्य
पौराणिक कथाओं के अनुसार मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत पर शिव-शंभु का धाम है। ‘परम रम्य गिरवरू कैलासू, सदा जहां शिव उमा निवासू।’ आप ये तो जानते होंगे की कैलाश पर्वत पर भगवान शिव अपने परिवार के साथ रहते हैं पर ये नहीं जानते होंगे की वह इस दुनिया का सबसे बड़ा रहस्यमयी पर्वत है जो की माना जाता है की अप्राकृतिक शक्तियों का भण्डार है।
भगवान शंकर के निवास स्थान कैलाश पर्वत के पास स्थित है कैलाश मानसरोवर। यह अद्भुत स्थान रहस्यों से भरा है। शिवपुराण, स्कंद पुराण, मत्स्य पुराण आदि में कैलाश खंड नाम से अलग ही अध्याय है, जहां की महिमा का गुणगान किया गया है।
कई शक्तियाँ हैं कैलाश पर्वत के आस-पास
अक्ष मुंडी / एक्सिस मुंडी (Axis Mundi) को ब्रह्मांड का केंद्र या दुनिया की नाभि (केंद्र) या आकाशीय ध्रुव और भौगोलिक ध्रुव का केंद्र के रूप में समझें। यह आकाश और पृथ्वी के बीच संबंध का एक बिंदु है जहाँ चारों दिशाएं मिल जाती हैं। और यह नाम, असली और महान, दुनिया के सबसे पवित्र और सबसे रहस्यमय पहाड़ों में से एक कैलाश पर्वत से सम्बंधित हैं। एक्सिस मुंडी वह स्थान है जहाँ अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है और आप उन शक्तियों के साथ संपर्क कर सकते हैं, रशिया के वैज्ञानिक ने वह स्थान कैलाश पर्वत बताया है। रूस और अमेरिका द्वारा किए गए कई शोध और अध्ययन में ये बात सामने आई है कि इस पर्वत शिखर पर ही दुनिया का केंद्र है और इसे अक्ष मुंडी के नाम से जाना जाता है।
ऐसा भी कहा जाता है कि ये दुनियाभर की अनेक इमारतों से जुड़ी हुई जैो स्टोनहेंगे जोकि इससे 6666 किमी दूर हैं और उत्तरी ध्रुव भी यहां से 6666 दूर है एवं शिखर से दक्षिणी ध्रुव भी 13332 किमी दूर है।
वेदों में कैलाश पर्वत को ब्रह्मांड का अक्ष और विश्व वृक्ष कहा गया है एवं इसी बात का जिक्र रामायण में भी किया गया है।
धरती का केंद्र
धरती के एक ओर उत्तरी ध्रुव है, तो दूसरी ओर दक्षिणी ध्रुव। दोनों के बीचोबीच स्थित है हिमालय। हिमालय का केंद्र है कैलाश पर्वत। वैज्ञानिकों के अनुसार यह धरती का केंद्र है। भू वैज्ञानिको के अनुसार कैलाश पर्वत 6 और पर्वतो के बिच में स्थित है। जो की कमल के फुल की तरह प्रतीत होता है।
सुनहरा पर्वत
यहां की सबसे खास बात तो ये है की सूर्य की पहली किरणें जब कैलाश पर्वत पर पड़ती हैं तो यह पूर्ण रूप से सुनहरा हो जाता है। कैलाश मानसरोवर की यात्रा में हर कदम बढ़ाने पर दिव्यता का एहसास होता है। ऐसा लगता है मानो एक अलग ही दुनिया में आ गए हों।
पिरामिडनुमा क्यों है यह पर्वत
कैलाश पर्वत एक विशालकाय पिरामिड है, जो 100 छोटे पिरामिडों का केंद्र है। कैलाश पर्वत की संरचना कम्पास के 4 दिक् बिंदुओं के समान है और एकांत स्थान पर स्थित है, जहां कोई भी बड़ा पर्वत नहीं है।
मानव निर्मित पिरामिड
रूस के शोधकर्ताओं का मानना है कि कैलाश पर्वत कोई पर्वत नहीं है बल्कि यह प्रकृति की एक रहस्यमयी घटना है। पर्वत का पूरा शिखर कैथेडरल की आकृति बनाता है और इसके पक्ष लंबवत रहते हैं जोकि दिखने में पिरामिड जैसे लगते हैं। इस पर्वत के बारे में कुछ वैज्ञानिकों ने यह भी दावा किया है कि यह प्राकृतिक नहीं है, बल्कि इसे बनाया गया है। इसका निर्माण ठीक वैसे ही किया गया है, जैसे मिश्र के पिरामिडों का किया गया है।
कैलाश पर्वत अन्दर से खोखला है
मिश्र के पिरामिडों के बारे में भी यही कहा जाता है कि वह अन्दर से खोखले हैं। पिरामिड के अन्दर देवताओं की कई मूर्तियाँ भी रखी गयी हैं। यह पर्वत पिरामिड से भी लाखों साल पुराना है और समय के साथ यह और कठोर हो गया है। इस पर्वत को धरती का केंद्र माना जाता है। यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि कैलाश पर्वत को अन्दर से खोखला इस लिए बनाया गया हो ताकि इसमें एक शहर बसाया जा सके और इस शहर को बाकी दुनिया से अलग रखा जा सके। क्या है सच्चाई आप खुद ही वीडियो देखकर तय कीजिये।
शिव के धाम कैलाश के अनजाने रहस्य
इस पवित्र पर्वत की ऊंचाई 6714 मीटर है। और यह पास की हिमालय सीमा की चोटियों जैसे माउन्ट एवरेस्ट के साथ रेस तो नहीं लगा सकता पर इसकी भव्यता ऊंचाई में नहीं, लेकिन उसके आकार में है। उसकी छोटी की आकृति विराट शिवलिंग की तरह है। जिस पर सालभर बर्फ की सफेद चादर लिपटी रहती है।
शिखर पर कोई नहीं चढ़ सका
कैलाश पर्वत पर चढ़ना निषिद्ध है, परंतु 11वीं सदी में एक तिब्बती बौद्ध योगी मिलारेपा ही कैलाश पर्वत के शिखर तक पहुंचने में सफल हो पाए थे। कहा जाता है कि इसके बाद कैलाश पर्वत की स्थिति बदल गई जिसके कारण पर्वतारोही भ्रमित होते हैं। रशिया के वैज्ञानिकों की यह रिपोर्ट 'यूएनस्पेशियल' मैग्जीन के 2004 के जनवरी अंक में प्रकाशित हुई थी। हालांकि मिलारेपा ने इस बारे में कभी कुछ नहीं कहा इसलिए यह भी एक रहस्य है।
खराब मौसम या अन्य किसी कारण से कभी भी ट्रैकर्स इस पर्वत पर अपनी यात्रा पूरी नहीं कर पाए हैं और कुछ लोग तो कभी वापिस ही नहीं लौटे। आजतक इस पर्वत पर किए गए सभी ट्रैक अधूरे और असफल रहे हैं।
कैलाश पर्वत है बहुत ज्यादा रेडिओ एक्टिव
आजतक उस पर्वत पर कोई भी पर्वतारोही नहीं चढ़ पाया है। पर्वतारोही ऊँचाई की वजह से नहीं बल्कि डर से कैलाश पर नहीं चढ़ते हैं। कुछ साल पहले वैज्ञानिकों ने यह खोज निकाला था कि कैलाश पर्वत अत्यंत ही रेडियों एक्टिव जगह है। यह रेडिओ एक्टिविटी हर तरफ एक जैसी थी। ऐसा भी कहा जाता है कि इस पर्वत पर कोई भी अपवित्र आत्मा नहीं जा सकती है।
दो रहस्यमयी सरोवरों का रहस्य
कैलाश पर्वत चार महान नदियों के स्त्रोतों से घिरा है सिंध, ब्रह्मपुत्र, सतलज और कर्णाली या घाघरा तथा दो सरोवर इसके आधार हैं पहला मानसरोवर जो दुनिया की शुद्ध पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और जिसका आकर सूर्य के सामान है तथा राक्षस झील जो दुनिया की खारे पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और जिसका आकार चन्द्र के सामान है। खास बात ये है कि एक ही स्थान पर होने के बावजूद मानसरोवर झील का पानी मीठा है और राक्षस ताल का पानी नमकीन है।
राक्षस झील का व्यवहार हमेसा उथल-पुथल वाला रहता है। जबकि मानसरोवर झील हमेसा शांत रहती है। यह दोनों झीले एक दुसरे के बहुत करीब है। ये मान्यता है की राक्षस झील के किनारे रावण ने भगवान शिव की आराधना की थी।
मानसरोवर झील और राक्षस झील
मानसरोवर झील और राक्षस झील, ये दोनों झीलें सौर और चंद्र बल को प्रदर्शित करते हैं जिसका सम्बन्ध सकारात्मक और नकारात्मक उर्जा से है। जब इन्हें दक्षिण की तरफ से देखते हैं तो एक स्वस्तिक चिन्ह वास्तव में देखा जा सकता है। यह अभी तक रहस्य है कि ये झीलें प्राकृतिक तौर पर निर्मित हुईं या कि ऐसा इन्हें बनाया गया?
सिर्फ पुण्यात्माएं ही निवास कर सकती हैं
यहां पुण्यात्माएं ही रह सकती हैं। कैलाश पर्वत और उसके आसपास के वातावरण पर अध्ययन कर चुके रशिया के वैज्ञानिकों ने जब तिब्बत के मंदिरों में धर्मगुरुओं से मुलाकात की तो उन्होंने बताया कि कैलाश पर्वत के चारों ओर एक अलौकिक शक्ति का प्रवाह है जिसमें तपस्वी आज भी आध्यात्मिक गुरुओं के साथ टेलीपैथिक संपर्क करते हैं।
तेजी से बढ़ता है समय
कई लोगो का मानना है की कैलाश पर्वत के आसपास समय की गति बढ़ जाती है। इस पवित्र पर्वत की चढ़ाई करने वाले लोगो ने दावा किया है कि इस पर चढ़ाई के दौरान बड़ी तेजी से उनके बाल और नाखून बढ़ने लगे थे। जहां सामान्य तौर पर बालों और नाखूनों को बढ़ने में 2 सप्ताह का समय लगता है वहीं कैलाश पर्वत की चढ़ाई के दौरान मात्र 12 घंटे में ही बाल और नाखून बढ़ने लगते हैं। कहा जाता है कि पर्वत की हवा के कारण उम्र बढ़ने की प्रक्रिया तेज हो जाती है।
कैलाश-मानसरोवर
पुराणों के अनुसार यहाँ शिवजी का स्थायी निवास होने के कारण इस स्थान को 12 ज्येतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। कैलाश बर्फ़ से सटे 22,028 फुट ऊँचे शिखर और उससे लगे मानसरोवर को ‘कैलाश मानसरोवर तीर्थ’ कहते है और इस प्रदेश को मानस खंड कहते हैं। कैलाश-मानसरोवर उतना ही प्राचीन है, जितनी प्राचीन हमारी सृष्टि है।
कैलाश मानसरोवर को शिव-पार्वती का घर माना जाता है। सदियों से देवता, दानव, योगी, मुनि और सिद्ध महात्मा यहां तपस्या करते आए हैं। मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति मानसरोवर (झील) की धरती को छू लेता है, वह ब्रह्मा के बनाये स्वर्ग में पहुंच जाता है और जो व्यक्ति झील का पानी पी लेता है, उसे भगवान शिव के बनाये स्वर्ग में जाने का अधिकार मिल जाता है।
ऊं पर्वत और स्वास्तिक का आकार
सूर्य के स्थिर होने पर पर्वत पर एक परछाई बनती है जोकि धार्मिक चिह्न स्वास्तिक की तरह दिखाई देता है। हिंदू धर्म में इसे अत्यंत शुभ चिह्न माना जाता है।
इसे ॐ पर्वत इसलिए कहा जाता है क्योंकि पर्वत का आकार व इस पर जो बर्फ़ जमी हुई है वह ओउम आकार की छटा बिखेरती है तथा ओउम का प्रतिबिंब दिखाई देता है। पर्वत पर ॐ अक्षर प्राकृतिक रूप से उभरा है। ज्यादा हिमपात होने पर प्राकृतिक रूप से उभरा यह ॐ अक्षर चमकता हुआ स्पष्ट दिखाई देता है।
डमरू और ओम की आवाज
गर्मी के दिनों में यदि आप कैलाश पर्वत या मानसरोवर झील के क्षेत्र में जाएंगे, तो आपको निरंतर एक आवाज सुनाई देगी, जैसे कि कहीं आसपास में एरोप्लेन उड़ रहा हो। लेकिन ध्यान से सुनने पर यह आवाज 'डमरू' या 'ॐ' या मृदंग की ध्वनि जैसी होती है। वैज्ञानिक कहते हैं कि हो सकता है कि यह आवाज बर्फ के पिघलने की हो। यह भी हो सकता है कि प्रकाश और ध्वनि के बीच इस तरह का समागम होता है कि यहां से 'ॐ' की आवाजें सुनाई देती हैं।
रुद्रलोक के दर्शन
मान्यता तो यह भी है कि जो भी व्यक्ति मात्र एक बार मानसरोवर में डुबकी लगा ले तो उसे रुद्रलोक यानि शिव के लोक के दर्शन हो जाते हैं। कैलाश पर्वत, जो स्वर्ग है जिस पर कैलाशपति सदाशिव विराजे हैं, नीचे मृत्यलोक है, इसकी बाहरी परिधि 52 किमी है।
धरती और स्वर्ग के बीच रहस्यमयी संबंध
कैलाश पर्वत के परिधि के अनुसार ही चार मुख हैं। वेदों के अनुसार यह पर्वत स्वर्ग और धरती के बीच की कड़ी है। हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म के अनुयायियों का विश्वास है कि ये पर्वतमाला स्वर्ग का दरवाज़ा है। पांडवों के साथ-साथ द्रौपदी को भी इसी पर्वत की चढ़ाई करते समय मोक्ष की प्राप्ति हुई थी और इसी की चढ़ाई के दौरान उन सभी की एक-एक करके मृत्यु हो गई थी।
कैलाश का महत्व
पांडवों के दिग्विजय प्रयास के समय अर्जुन ने इस प्रदेश पर विजय प्राप्त किया था। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में इस प्रदेश के राजा ने उत्तम घोड़े, सोना, रत्न और याक के पूँछ के बने काले और सफेद चामर भेंट किए थे। इस प्रदेश की यात्रा व्यास, भीम, कृष्ण, दत्तात्रेय आदि ने की थी। इनके अतिरिक्त अन्य अनेक ऋषि मुनियों के यहाँ निवास करने का उल्लेख प्राप्त होता है। कुछ लोगों का कहना है कि आदि शंकराचार्य ने इसी के आसपास कहीं अपना शरीर त्याग किया था।
मानसरोवर झील में है विष्णु का वास
मानसरोवर पहाड़ों से घिरी झील है, जो पुराणों में ‘क्षीर सागर’ के नाम से वर्णित है। क्षीर सागर कैलाश से 40 किमी की दूरी पर है व इसी में शेष शैय्या पर विष्णु व लक्ष्मी विराजित हो पूरे संसार को संचालित कर रहे है।
कैलाश पर्वत का दर्शन
कैलाश पर्वत को ‘गणपर्वत और रजतगिरि’ भी कहते हैं। मान्यता है कि यह पर्वत स्वयंभू है। कैलाश पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व भाग को क्रिस्टल, पश्चिम को रूबी और उत्तर को स्वर्ण रूप में माना जाता है।
चार धर्मों का तीर्थ स्थल
कैलाश पर्वत हिमालय के उत्तरी क्षेत्र में तिब्बत प्रदेश में स्थित एक तीर्थ है - जो चार धर्मों तिब्बती धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिन्दू का आध्यात्मिक केन्द्र है। चूंकि तिब्बत चीन के अधीन है अतः कैलाश चीन में आता है।
तिब्बतियों की मान्यता है कि वहां के एक संत कवि ने वर्षों गुफा में रहकर तपस्या की थीं। तिब्बति बोनपाओं अनुसार कैलाश में जो नौमंजिला स्वस्तिक देखते हैं व डेमचौक और दोरजे फांगमो का निवास है। बौद्ध भगवान बुद्ध तथा मणिपद्मा का निवास मानते हैं। कैलाश पर स्थित बुद्ध भगवान के अलौकिक रूप ‘डेमचौक’ बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए पूजनीय है। वह बुद्ध के इस रूप को ‘धर्मपाल’ की संज्ञा भी देते हैं। बौद्ध धर्मावलंबियों का मानना है कि इस स्थान पर आकर उन्हें निर्वाण की प्राप्ति होती है।
जैनियों की मान्यता है कि आदिनाथ ऋषभदेव का यह निर्वाण स्थल 'अष्टपद' है। कहते हैं ऋषभदेव ने आठ पग में कैलाश की यात्रा की थी।
हिन्दू धर्म के अनुयायियों की मान्यता है कि कैलाश पर्वत मेरू पर्वत है जो ब्राह्मंड की धूरी है और यह भगवान शंकर का प्रमुख निवास स्थान है। यहां देवी सती के शरीर का दांया हाथ गिरा था। इसलिए यहां एक पाषाण शिला को उसका रूप मानकर पूजा जाता है। यहां शक्तिपीठ है।
कुछ लोगों का मानना यह भी है कि गुरु नानक ने भी यहां कुछ दिन रुककर ध्यान किया था। इसलिए सिखों के लिए भी यह पवित्र स्थान है।
कैलाश पर्वत की परिक्रमा
इसकी परिक्रमा का महत्त्व कहा गया है। कैलाश पर्वत कुल 48 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। कैलास परिक्रमा मार्ग 15500 से 19500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। मानसरोवर से 45 किलोमीटर दूर तारचेन कैलास परिक्रमा का आधार शिविर है। कैलाश की परिक्रमा कैलाश की सबसे निचली चोटी तारचेन से शुरू होती है और सबसे ऊंची चोटी डेशफू गोम्पा पर पूरी होती है।
घोडे और याक पर चढ़कर ब्रह्मपुत्र नदी को पार करके कठिन रास्ते से होते हुये यात्री डेरापुफ पहुंचते हैं। जहां ठीक सामने कैलास के दर्शन होते हैं। यहां से कैलाश पर्वत को देखने पर ऐसा लगता है, मानों भगवान शिव स्वयं बर्फ़ से बने शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। इस चोटी को ‘हिमरत्न’ भी कहा जाता है।
सालो से लोग कैलाश पर्वत की परिक्रमा लगाने के लिए दूर-दूर आते है। माना जाता है जो भी इस पर्वत के 108 बार परिक्रमा लगा लेता है। उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। तिब्बती लोग इस परिक्रमा का 3 और 13 परिक्रमा का महत्व मानते है। तिब्बतियों का मानना है की यहाँ परिक्रमा लगाने से लोग अपने जीवन में किये गए पापो का प्राश्चित करते है।
इतनी ठंडी जगह पर भी है गरम पानी के झरने
ड्रोल्मापास तथा मानसरोवर तट पर खुले आसमान के नीचे ही शिवशक्ति का पूजन भजन करते हैं। यहां कहीं कहीं बौद्धमठ भी दिखते हैं जिनमें बौद्ध भिक्षु साधनारत रहते हैं। दर्रा समाप्त होने पर तीर्थपुरी नामक स्थान है जहाँ गर्म पानी के झरने हैं। इन झरनों के आसपास चूनखड़ी के टीले हैं। कहा जाता है कि यहीं भस्मासुर ने तप किया और यहीं वह भस्म भी हुआ था।
जहां देवी पार्वती ने किया था घोर तप
इसके आगे डोलमाला और देवीखिंड ऊँचे स्थान है। ड्रोल्मा से नीचे बर्फ़ से सदा ढकी रहने वाली ल्हादू घाटी में स्थित एक किलोमीटर परिधि वाला पन्ने के रंग जैसी हरी आभा वाली झील, गौरीकुंड है। यह कुंड हमेशा बर्फ़ से ढंका रहता है, मगर तीर्थयात्री बर्फ़ हटाकर इस कुंड के पवित्र जल में स्नान करना नहीं भूलते। साढे सात किलोमीटर परिधि तथा 80 फ़ुट गहराई वाली इसी झील में माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी।
गंगा का स्थान
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह जगह कुबेर की नगरी है। यहीं से महाविष्णु के करकमलों से निकलकर गंगा कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती है, जहाँ प्रभु शिव उन्हें अपनी जटाओं में भर धरती में निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित करते हैं।
मानसरोवर की महिमा
इस प्रकार यह झील सर्वप्रथम भगवान ब्रह्मा के मन में उत्पन्न हुआ था। इसी कारण इसे ‘मानस मानसरोवर’ कहते हैं। दरअसल, मानसरोवर संस्कृत के मानस (मस्तिष्कद्ध) और सरोवर (झील) शब्द से बना है। जिसका शाब्दिक अर्थ होता है - मन का सरोवर। मान्यता है कि ब्रह्ममुहुर्त (प्रातःकाल 3-5 बजे) में देवतागण यहां स्नान करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि महाराज मानधाता ने मानसरोवर झील की खोज की और कई वर्षों तक इसके किनारे तपस्या की थी, जो कि इन पर्वतों की तलहटी में स्थित है। बौद्ध धर्मावलंबियों का मानना है कि इसके केंद्र में एक वृक्ष है, जिसके फलों के चिकित्सकीय गुण सभी प्रकार के शारीरिक व मानसिक रोगों का उपचार करने में सक्षम हैं। हिन्दू उसे ‘कल्पवृक्ष’ की संज्ञा देते हैं।
झील लगभग 320 किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है। इसके उत्तर में कैलाश पर्वत तथा पश्चिम में रक्षातल झील है। पुराणों के अनुसार मीठे पानी की मानसरोवर झील की उत्पत्ति भगीरथ की तपस्या से भगवान शिव के प्रसन्न होने पर हुई थी। ऐसी अद्भुत प्राकृतिक झील इतनी ऊंचाई पर किसी भी देश में नहीं है। पुराणों के अनुसार शंकर भगवान द्वारा प्रकट किये गये जल के वेग से जो झील बनी, उसी का नाम ‘मानसरोवर’ है।
ग्रंथों के अनुसार, सती का हाथ इसी स्थान पर गिरा था, जिससे यह झील तैयार हुई। एक किंवदंती यह भी है कि नीलकमल केवल मानसरोवर में ही खिलता और दिखता है।
राक्षस ताल (रक्षातल)
राक्षस ताल लगभग 225 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र, 84 किलोमीटर परिधि तथा 150 फुट गहरे में फैला है। प्रचलित है कि राक्षसों के राजा रावण ने यहां पर शिव की आराधना की थी। इसलिए इसे राक्षस ताल या रावणहृद भी कहते हैं। एक छोटी नदी गंगा-चू दोनों झीलों को जोडती है।
यहीं से क्यों सभी नदियों का उद्गम
इस पर्वत की कैलाश पर्वत की 4 दिशाओं से 4 नदियों का उद्गम हुआ है- ब्रह्मपुत्र, सिन्धु, सतलज व करनाली। इन नदियों से ही गंगा, सरस्वती सहित चीन की अन्य नदियां भी निकली हैं। कैलाश की चारों दिशाओं में विभिन्न जानवरों के मुख हैं जिसमें से नदियों का उद्गम होता है। पूर्व में अश्वमुख है, पश्चिम में हाथी का मुख है, उत्तर में सिंह का मुख है, दक्षिण में मोर का मुख है।
आसमान में लाइट का चमकना
दावा किया जाता है कि कई बार कैलाश पर्वत पर 7 तरह की लाइटें आसमान में चमकती हुई देखी गई हैं। नासा के वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि हो सकता है कि ऐसा यहां के चुम्बकीय बल के कारण होता हो। यहां का चुम्बकीय बल आसमान से मिलकर कई बार इस तरह की चीजों का निर्माण कर सकता है।
कैलाश क्षेत्र
इस क्षेत्र को स्वंभू कहा गया है। वैज्ञानिक मानते हैं कि भारतीय उपमहाद्वीप के चारों और पहले समुद्र होता था। इसके रशिया से टकराने से हिमालय का निर्माण हुआ। यह घटना अनुमानत: 10 करोड़ वर्ष पूर्व घटी थी।
कैलाश-मानसरोवर यात्रा
कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए तीर्थयात्रियों को भारत की सीमा लांघकर चीन में प्रवेश करना पड़ता है क्योंकि यात्रा का यह भाग चीन में है। कैलाश पर्वत की ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 20 हजार फीट है। यह यात्रा अत्यंत कठिन मानी जाती है। कहते हैं जिसको भोले बाबा का बुलावा आता है वही इस यात्रा को कर सकता है। सामान्य तौर पर यह यात्रा 28 दिन में पूरी होती है। कैलाश पर्वत कुल 48 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। कैलाश पर्वत की परिक्रमा वहां की सबसे निचली चोटी दारचेन से शुरू होकर सबसे ऊंची चोटी डेशफू गोम्पा पर पूरी होती है। यहां से कैलाश पर्वत को देखने पर ऐसा लगता है मानों भगवान शिव स्वयं बर्फ से बने शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। इस चोटी को हिमरत्न भी कहा जाता है।
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