मंगलवार, 11 सितंबर 2018

दरिया-ए-नूर हीरा ('सी ऑफ लाइट')

दरिया-ए-नूर हीरा ('सी ऑफ लाइट')

हीरों के बारे में आम आदमी से लेकर राजा-महाराजाओं में गजब का आकर्षण रहा है। किसी ने इन्हें सितारों का अंश कहा तो किसी ने देवताओं के आंसू। बाबर और अकबर तो आगरा डायमंड को अपनी पगड़ी में बांधकर रखते थे। हीरे के जादुई असर के कुछ बादशाह तो इतने कायल थे कि वे लड़ाई के मैदानों तक में इन्हें साथ लेकर चलते थे। दुनिया भर में भारत की गोलकुंडा खान से निकले हीरों की धाक थी। इन्हीं में से एक था दरिया-ए-नूर हीरा।

दरिया-ए-नूर ('सी ऑफ लाइट') दुनिया के सबसे बड़े डायमंड में से एक माना जाता है, जिसका वजन 182 कैरेट (36.4 ग्राम) है। इस नायाब हीरे का रंग पीला और हल्का गुलाबी है। यह हीरा फिलहाल ईरानी क्राउन में जड़ा है, जो सबसे पुराने हीरे के रूप में विश्व प्रसिद्ध है। जानकार इसे दुनिया के सबसे बड़े हीरे कोहिनूर का भाई बताते हैं। नादिरशाह इन दोनों हीरों को 1739 में दिल्ली से लूट कर ले गया था। हीरे में गुलाबी रंग अत्यंत दुर्लभ होता है। इसे जिस फ्रेम में सजाया गया है, उसमें 547 हीरे और चार माणिक लगे हैं। नादिरशाह की लूट फारस के शाह नादिरशाह ने 1739 में दिल्ली के कमजोर हो चुके मुगल बादशाह मुहम्मद शाह पर हमला कर उसे हराया और 20 करोड़ का हर्जाना नहीं मिलने पर दिल्ली को जी भर कर लूटा। इस लूट में आम जनता के साथ शाही महल भी थे। मोहम्मद शाह ने महल के खजाने की चाबी नादिरशाह को सौंप दी थी। वह दिल्ली से बहुमूल्य जवाहरात, गहने, धन, सोना-चांदी, दिल्ली दरबार का मयूर सिंहासन समेत हजारों जानवर ले गया।

दरिया-ए-नूर नामक कोहेनूर से लगभग मिलता-जुलता है। कोहेनूर की ही तरह दरिया-ए-नूर नामक यह हीरा आंध्र प्रदेश की गोलकोंडा खदानों से निकाला गया था। इसके बाद यह मराठा शासकों, नवाब हैदराबाद सिराजुल मुल्क और पर्शिया के नादिर शाह के हाथों में चला गया। इसके बाद कोहेनूर की ही तरह दरिया-ए-नूर को महाराजा रणजीत सिंह ने हासिल कर लिया और अपने मशहूर तोशाखाने का हिस्सा बना लिया।

ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा अपने अधिकार में लेने के बाद तोशाखाने का ब्योरा डाक्टर जॉन लोगिन ने तीन माह में तैयार किया। जॉन लोगिन ही बाद में महाराजा रणजीत सिंह के बेटे व वारिस महराजा दलीप सिंह के संरक्षक नियुक्त किये गये। तोशाखाने की सूची में कोहेनूर सर्वोच्च है जिसकी कीमत इस समय करीब 10.5 अरब डालर है। कोहेनूर लोगिन ने गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी को दिया जो इसे लंदन ले गये। महाराजा रणजीत सिंह ने 1850 में इसे महारानी विक्टोरिया को तोहफे में दे दिया। उल्लेखनीय है कि महाराजा दलीप सिंह बाद में ईसाई बन गये थे।

दरिया-ए-नूर की कीमत लोगिन ने 63 हजार रुपये लगायी थी। इस समय इसका मूल्य एक करोड़ पौंड के लगभग है। कोहेनूर की ही तरह इसमें 11 पर्ल और इतने ही हीरे और गार्नेट हैं। इसका वजन 10.8 तोले है।

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