लीविंग रूट ब्रिज, मेघालय (living root bridge, meghalaya)
चेरापूंजी के लीविंग रूट ब्रिज (living root bridge)
चेरापूंजी के लीविंग रूट ब्रिज (living root bridge) का नाम सुनते ही मन में रोमांच सा पैदा हो जाता है। मेघालय में स्थित ये कुदरत का गजब नजारा है। एक पेड जिसका नाम (Ficus elastica tree)फिकस इलास्टिका ट्री होता है , की जडो से ये पुल बनाये जाते हैं। यह पेड अपनी जडो की दूसरी सीरीज पैदा करता है।
यहां के लोगो ने इस पेड को देखा और इसकी जडो की खूबी को जाना जो कि लचकदार होने के साथ साथ बांधने लायक थी पर साथ ही बहुत मजबूत भी थी। उन्होने इसका उपयोग नदी पार करने के लिये किया। हम इस पेड को रबर के पेड की श्रेणी का भी मान सकते हैं।
ऐसे पुलो में से कुछ की लम्बाई सौ फुट तक है। जहां खासी लोगो को जरूरत होती है इस पेड की जडो को वे दिशा देते हैं और काफी समय भी। बहुत सालो में जाकर ये पेड इस स्थिति में आ जाते हैं कि दोनो किनारो के पेडो की जडें आपस में बंध जाती हैं।
ये इतने जानदार भी होते हैं कि 50 लोगो का वजन एक साथ सह सकते हैं। इन्हे पूरा बनने में दस से पन्द्रह साल का समय लगता है। एक पक्ष ये भी है कि ये जडे हमेंशा जिंदा हैं और बढ भी रही हैं इसलिये इनकी ताकत भी बढती रहती है। कुछ पुल इस तरह भी बने हैं कि वे एक दूसरे के उपर हैं और उन्हे डबल डेकर लीविंग रूट ब्रिज कहा जाता है।
इन पुलो की उम्र 500 साल तक आंकी गयी है। हमारे सब साथी लोग और हम भी इस पुल को देखकर अचंभित थे। हमने कई बार इसे पार करके देखा। स्थानीय महिलायें यहां पर नहा धो रही थी। उनके नहाने का ढंग भी ऐसा था कि जैसे मछली नहा रही हो। लोग स्वीमिंग पूल में भी इतने बेहतर तरीके से नही नहाते। कुछ लोग उसके फोटो खींचने लगे। पुल के हर कोण से फोटो लेने की होड लगी थी।
पुल के बीच में पत्थर रखे हुए थे शायद कच्ची मिटटी पर बारिश में पैर ना फिसले इसलिये।
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