करतारपुर साहिब गलियारा
गुरु नानक देव जी की 550वीं जयंती के मद्देनजर भारत के सिख श्रद्धालुओं के लिए करतारपुर साहिब गलियारा खोलने का भारत-पाकिस्तान का फैसला बहुत बड़ी राहत है। पिछले 70 साल से इस फैसले का इंतजार कर रहे सिख श्रद्धालु इस फैसले से गदगद है।
करतारपुर साहिब सिखों के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में शुमार होता है। यह स्थान भारतीय सीमा से करीब चार किलोमीटर दूर है और इतनी सी दूरी के चलते भारतीय सिखों को भारतीय सीमा में डेरा बाबा नानक स्थित गुरुद्वारा शहीद बाबा सिद्ध सैन रंधावा में दूरबीन से अपने इस पवित्र गुरुद्वारा दरबार साहिब (Gurdwara Darbar Sahib, Kartarpur) के दर्शन करके संतोष करना पड़ता था।
दोनों देशों में बनी नई सहमति के अनुसार भारत सरकार गुरदासपुर जिला स्थित डेरा बाबा नानक गुरुद्वारा (Dera Nanak Gurudwara) से अंतरराष्ट्रीय सीमा तक कॉरिडोर का निर्माण करेगी और पाकिस्तान सरकार सरहद से करतारपुर साहिब तक। श्रद्धालुओं को सीमा पर स्लिप दी जाएगी, जिसके आधार पर वे करतारपुर साहिब तक आसानी से पहुंचेंगे और दर्शन करके शाम तक वापस लौट आएंगे।
5 बातें करतारपुर गुरुद्वारा साहिब से जुड़ी
1. करतारपुर गुरुद्वारा साहिब पाकिस्तान के नारोवाल जिले में स्थित है। यह गुरुद्वारा नानक जी की समाधि पर बना है। यहां बड़ी संख्या में भारतीय दर्शन करने जाते हैं। भारत और पाकिस्तान के बॉर्डर के नजदीक बने इस गुरुद्वारे के आसपास अक्सर हाथी घास काफी बड़ी हो जाती है। जिसे पाकिस्तान अथॉरिटी छंटवाती है ताकि भारतीय सीमा से यहां के दर्शन हो सकें। मई 2017 में अमेरिका स्थित एक एनजीओ इकोसिख ने गुरुद्वारे के आसपास 100 एकड़ की जमीन पर जंगल का प्रस्ताव भी दिया था।
2. करतारपुर साहिब, पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के नारोवाल जिले में है। यह स्थल रावी नदी के किनारे पर बसा है और भारतीय सीमा के डेरा साहिब रेलवे स्टेशन से महज चार किलोमीटर की दूरी पर है। यह जगह लाहौर से 120 किलोमीटर दूर है।
यहां के तत्कालीन गवर्नर दुनी चंद की मुलाकात नानक जी से होने पर उन्होंने 100 एकड़ जमीन गुरु साहिब के लिए दी थी। यहां गुरु साहिब ने खुद एक मोहड़ी गाड़ कर श्री करतापुर साहिब गुरुद्वारा की नींव 13 माघ संवत 1522 को रखी थी। 1522 में यहां एक छोटी झोपड़ीनुमा स्थल का निर्माण कराया गया। गुरुद्वारा करतारपुर साहिब सिख धर्म का सबसे पहला धार्मिक स्थान है। सिख धर्म से जुड़ी कई किताबों में भी इसका जिक्र किया गया है।
3. यहां गुरुनानक जी खेती-किसानी करते थे। बाद में उनका परिवार भी यहां रहने लगा। उन्होंने लंगर की शुरुआत भी यहां से की। सिख समुदाय के लोग इस नेक काम में शामिल होने के लिए यहां इकट्ठा होने लगे और सराय बनवाई गईं। धीरे-धीरे कीर्तन की शुरुआत हुई। नानकदेव जी ने गुरु का लंगर ऐसी जगह बनाई जहां पुरुष और महिला का भेद खत्म किया जा सके। यहां दोनों साथ बैठकर भोजन करते थे।
4. यहां खेती करने, फसल काटने और लंगर तैयार करने का काम संगत के लोगों द्वारा किया जाता था।
पुनर्निर्माण - पटियाला के महाराजा ने दी रकम
रावी नदी में आई बाढ़ के कारण गुरुद्वारे को काफी नुकसान पहुंचा था। उसके बाद 1920-1929 तक महाराजा पटियाला सरदार भूपिंद्र सिंह ने करतारपुर गुरुद्वारा साहिब का फिर से भव्य निर्माण करवाया था। इस पर 1,35,600 का खर्च आया था।
1995 में पाकिस्तान सरकार ने इसकी मरम्मत कराई थी और 2004 में इसे पूरी तरह से संवारा गया। एक तरफ रावी नदी और दूसरी तरफ जंगल होने के कारण इसकी देखरेख में दिक्कत भी होती है।
5. गुरुनानक ने रावी नदी के किनारे एक नगर बसाया और यहां खेती कर उन्होंने 'नाम जपो, किरत करो और वंड छको' (नाम जपें, मेहनत करें और बांट कर खाएं) का सबक दिया था।
क्या है श्री करतारपुर साहिब गुरुद्वारा
आइए जानते हैं क्या हैं यहां की खास बातें।
ऐतिहासिक कुएं
गुरुद्वारा परिसर में तीन कुएं हैं। एक कुआं अंदर है। माना जाता है कि ये कुआं गुरुनानक देव जी के समय से है। इस कारण कुएं को लेकर श्रद्धालुओं में काफी मान्यता है। कुएं के पास एक बम के टुकड़े को भी शीशे में सहेज कर रखा गया है। कहा जाता है कि 1971 की लड़ाई में ये बम कुएं के अंदर गिरा था। इस वजह से यह इलाका तबाह होने से बच गया।
दरबार साहिब
रुद्वारा श्री करतारपुर साहिब की दूसरी मंजिल पर स्थित है श्री दरबार साहिब, जहां पर श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी सुशोभित हैं।
गुरु नानक जी के बारे में खास बातें
1. सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक जी करतारपुर के इसी गुरुद्वारा दरबार साहिब के स्थान पर एक आश्रम में रहा करते थे।
2. करतारपुर के गुरुद्वारा दरबार साहिब स्थान पर गुरु नानक जी ने आखिरी 17 साल 5 महीने 9 दिन तक अपना जीवन व्यतीत किया। बाद में इसी गुरुद्वारे की जगह पर गुरु नानक देव जी ने अपना देह छोड़ा (परलोकवास) था, जिसके बाद गुरुद्वारा दरबार साहिब बनवाया गया।
3. मान्यता है कि जब नानक जी ने अपनी आखिरी सांस ली तो उनका शरीर अपने आप गायब हो गया और उस जगह कुछ फूल रह गए।
4. इन फूलों में से आधे फूल सिखों ने अपने पास रखे और उन्होंने हिंदू रीति रिवाजों से इन्हीं से गुरु नानक जी का अंतिम संस्कार किया और करतारपुर के गुरुद्वारा दरबार साहिब में नानक जी की समाधि बनाई।
5. वहीं, आधे फूलों को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत मुस्लिम भक्त अपने साथ ले गए और उन्होंने गुरुद्वारा दरबार साहिब के बाहर आंगन में मुस्लिम रीति रिवाज के मुताबिक कब्र बनाई।
समाधि
हिंदुओं और सिखों द्वारा बनाई गई श्री गुरु नानक देव जी की समाधि, जहां पर सिख व हिंदू श्रद्धालु नतमस्तक होते हैं।
दरगाह
करतारपुर में मुस्लिम समुदाय की ओर से बनाई गई श्री गुरुनानक देव जी की समाधि, जहां मुस्लिम करते हैं सजदा। यहां सेवा करने वालों में सिख और मुसलमान दोनों शामिल होते हैं। सिख जहां रुमाला साहिब बांध कर अंदर जाते हैं, तो मुस्लिम टोपी पहन कर दर्शन करते हैं।
6. इतिहास के अनुसार गुरु नानकदेव जी ने इसी स्थान पर अपनी रचनाओं और उपदेशों को पन्नों पर लिख अगले गुरु यानी अपने शिष्य भाई लहणा जी के हाथों सौंप दिया था और भाई लहणा जी को गुरु गद्दी भी इसी स्थान पर सौंपी गई थी। यही शिष्य बाद में दूसरे गुरु अंगद देव नाम से जाने गए और आखिर में गुरुनानक देव ने यहीं पर 22 सितंबर 1539 को गुरुनानक देवजी ने आखिरी सांस ली थी। इन्हीं पन्नों पर सभी गुरुओं की रचनाएं जुड़ती गई और दस गुरुओं के बाद इन्हीं पन्नों को गुरु ग्रन्थ साहिब (Gur Granth Sahib) नाम दिया गया, जिसे सिख धर्म का प्रमुख धर्मग्रंथ माना गया।
7. करतारपुर स्थित गुरुद्वारा दरबार साहिब पाकिस्तान में रावी नदी के पार स्थित है जो भारत के डेरा बाबा नानक (Dera Baba Nanak) से करीब चार किलोमीटर दूरी है। आज भी सिख भक्त अपने पहले गुरु के इस गुरुद्वारे को डेरा बाबा नानक से दूरबीन की सहायता से देखते हैं। दूरबीन से गुरुद्वारा दरबार साहिब को देखने का काम CRPF की निगरानी में होता है।
8. अगर यह गलियारा या कॉरिडोर बन जाता है तो भारतीय सिख गुरुद्वारा दरबार साहिब को बिना वीज़ा के देख सकते हैं। क्योंकि अभी तक करतारपुर स्थित इस गुरुद्वारे को देखने के लिए श्रद्धालुओं को वीज़ा की जरुरत पड़ती है।
करतारपुर कॉरिडोर, पूरा घटनाक्रम
पाकिस्तान के करतारपुर में गुरुद्वारा दरबार साहिब को भारत के गुरदासपुर जिले में स्थित डेरा बाबा नानक गुरुद्वारे से जोड़ने वाले बहुप्रतीक्षित गलियारे के तैयार होने के पीछे का पूरा घटनाक्रम -
1522 :- सिखों के पहले गुरु गुरु नानक देव ने पहला गुरुद्वारा, ‘गुरुद्वारा करतारपुर साहिब’ का निर्माण कराया। माना जाता है कि गुरु नानक देव जी ने यहीं प्राण त्यागे थे।
फरवरी 1999 :- करतारपुर साहिब गलियारे का प्रस्ताव तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पेश किया था जब वह शांति पहल के तहत बस से लाहौर गए थे। उसके बाद ही भारतीय सिखों को यहां दर्शन की सुविधा दी गई। मान्यता प्राप्त वीजा के साथ तीर्थयात्री के पाकिस्तान में प्रवेश करने के बाद गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
2002 :- पाकिस्तान भारत के सिख श्रद्धालुओं को बगैर वीजा (और बिना पासपोर्ट) वहां तक आने देने के लिए सीमा से गुरुद्वारे तक एक पुल बनाने के लिए सहमत हुआ था।
अगस्त 2018 :- पंजाब के मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के शपथ ग्रहण कार्यक्रम में शामिल हुए।
अगस्त 2018 :- इस्लामाद से लौटने के बाद सिद्धू ने बताया कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बावजा ने उन्हें सूचित किया है कि पाकिस्तान सरकार गुरुनानक देव जी की 550वीं जयंती पर डेरा बाबा नानक (करतारपुर) गलियारा खोलेगी।
नवंबर 22 :- भारतीय कैबिनेट ने डेरा बाबा नानक से पाकिस्तानी सीमा तक करतारपुर गलियारे को मंजूरी दी।
नवंबर 26 :- उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने पंजाब के गुरदासपुर जिले के मान गांव में एक कार्यक्रम में डेरा बाबा नानक-करतारपुर साहिब गलियारे (अंतरराष्ट्रीय सीमा तक) की आधारशिला रखी।
नवंबर 28 :- पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने चार किलोमीटर लंबी करतारपुर गलियारे की आधारशिला रखी। इसके साल तक पूरा होने की उम्मीद है।
नवंबर 28 :- खान ने सिख समुदाय को आश्वासन दिया कि गुरु नानक देव की 550वीं जयंती के लिए सुविधाएं बेहतर होंगी।
भारत सरकार के फ़ैसले में क्या-क्या है?
1. डेरा बाबा नानक से लेकर अंतर्राष्ट्रीय सीमा तक गुरुद्वारा दरबार सिंह करतारपुर साहिब के लिए कॉरिडोर बनाया जायेगा और इसका पूरा खर्चा केंद्र सरकार उठायेगी। माना जाता है कि पाकिस्तान में रावी नदी के किनारे मौजूद करतारपुर साहेब में गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के 18 साल बिताए थे।
2. सुल्तानपुर लोधी को हेरीटेज सिटी बनाया जायेगा जिसका नाम 'पिंड बाबे नानक दा' रखा जायेगा। यहां गुरुनानक देव जी के जीवन और उनकी शिक्षा के बारे में बताया जायेगा।
3. गुरुनानक देव यूनिवर्सिटी में 'सेंटर फॉर इंटरफेथ स्टडीज़' का निर्माण किया जायेगा। ब्रिटेन और कनाडा की दो यूनिवर्सिटियों में इस सेंटर के नाम के साथ नई पीठ स्थापित की जायेगी।
4. गुरुनानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व पर ख़ास डाक टिकट और सिक्के जारी किये जायेंगे।
5. विदेशों में भारतीय दूतावासों में प्रकाश पर्व के संबंध में विशेष समारोह कराए जायेंगे।
6. नेशनल बुक ट्रस्ट अलग-अलग भारतीय भाषाओं में गुरुनानक देव जी की शिक्षा के बारे में जानकारी प्रकाशित करेगा। भारतीय रेलवे भी गुरुनानक देव के स्थानों तक रेलगाड़ी चलाएगी।
7. भारत सरकार का कहना है कि उन्होंने पाकिस्तान सरकार से आग्रह किया है कि वह सिख समुदाय की भावनाओं को समझते हुए अपने क्षेत्र में भी इस तरह का एक गलियारा विकसित करे।
चार मौकों पर करते हैं यात्रा
भारत से सिख जत्थे हर साल चार मौकों पर पाकिस्तान की यात्रा करते हैं। बैसाखी, गुरु अर्जुन देव के शहीदी दिवस पर, महाराजा रणजीत सिंह की पुण्यतिथि पर और गुरु नानक देव जयंती पर। इन भारतीय तीर्थयात्रियों को पाकिस्तान में सभी गुरुद्वारों के दर्शन करने की अनुमति होती है।
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