नोटा क्या है, नोटा मतदान चिन्ह का इतिहास (What is NOTA, full form, election symbol meaning in Hindi)
कुछ साल पहले अगर चुनाव में खड़े उम्मीदवारों में से कोई भी उम्मीदवार किसी मतदाता को काबिल नहीं लगता था, तो मतदाता अपना वोट देने नहीं जाया करते थे और ऐसे में वो अपने मतदान का इस्तेमाल करने से वंचित रह जाते थे। लेकिन अब हमारे देश के नागरिकों को मतदान करते समय ‘नोटा’ का विकल्प दिया जाने लगा है और इस विकल्प का इस्तेमाल वोटिंग के दौरान कई लोगों द्वारा किया भी जा रहा है।
नोटा क्या है (What is NOTA and Meaning)
नोटा शब्द का नाता चुनाव से है और इसका इस्तेमाल कोई भी नागरिक अपना मत डालते हुए कर सकता है। अगर मतदाता को अपना वोट डालते समय ऐसा लगता है कि उसके यहां से खड़े हुए किसी भी पार्टी का उम्मीदवार, जीतने के काबिल नहीं है, तो वो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन या ईवीएम में दिए गए नोटा बटन को दबा कर अपना मत किसी भी उम्मीदवार को ना देने का विकल्प चुन सकता है। वहीं वोटों की गिनती के समय उस मतदाता का डाला गया वोट नोटा में गिना जाता है।
नोटा का पूरा नाम (NOTA Full Form)
नोटा का फूल फॉम ‘नन ऑफ द अबब’ होती है और इसे हिंदी में “इनमें से कोई भी नहीं” कहा जाता है। वहीं वोटिंग मशीन में ये आपको नोटा का रूप में लिखा हुआ मिलता है और इसका बाकायदा एक निशान भी मशीन पर बना होता है।
नोटा का इतिहास (History) - यह कैसे अस्तित्व में आया, यह किसका विचार था?
उपरोक्त में से कोई भी नहीं 'मतपत्र विकल्प का विचार 1976 में आया जब इस्ला विस्टा नगर सलाहकार परिषद ने संयुक्त राज्य अमेरिका में सांता बारबरा, कैलिफोर्निया में आधिकारिक चुनावी मतपत्र में इस विकल्प को बढ़ाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया। वाल्टर विल्सन और मैथ्यू लैंडी स्टीन, उस समय के परिषद के मंत्रियों ने चुनाव के लिए मतपत्र प्रक्रिया में कुछ बदलाव करने के लिए एक कानूनी प्रस्ताव प्रस्तुत किया। 1978 में, नेवादा राज्य द्वारा मतपत्र में पहली बार 'उपर्युक्त में से कोई नहीं' (नोटा) का विकल्प प्रस्तुत किया गया था। कैलिफोर्निया में, इस मतपत्र विकल्प को बढ़ावा देने के लिए कुल 987,000 डॉलर खर्च किए गए थे लेकिन मार्च 2000 के आम चुनाव में यह 64% से 36% के अंतर से कम हो गया था। अमेरिकी राज्य और संघीय सरकारों के सभी वैकल्पिक कार्यालयों के लिए यह नया मतपत्र विकल्प एक नई मतदान प्रणाली के रूप में घोषित किया गया होगा, अगर मतदाता इसे पारित कर देते।
भारत में इसका इस्तेमाल कब किया गया था (When was NOTA First used in India)
साल 2009 में नोटा को वोटिंग के दौरान शामिल करने को लेकर भारत के चुनाव आयोग ने एक अर्जी उच्चतम न्यायालय में दी थी और इस अर्जी में भारत के चुनाव आयोग ने नोटा बटन को ईवीएम मशीन में जोड़ने की बात कही थी। हालांकि उस वक्त की केंद्र सरकार ने चुनाव आयोग का इस फैसले में साथ नहीं दिया था और सरकार इस विकल्प को ईवीएम मशीन में नहीं जोड़ना चाहती थी। वहीं नागरिक अधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल संस्था) जो कि एक गैर-सरकारी संगठन था, उसने चुनाव आयोग के नोटा के विकल्प को वोटिंग के दौरान जोड़ने के फैसले का समर्थन किया था। NGO - पीयूसीएल (PUCL) संस्था ने 2004 से इसकी लड़ाई लड़ी है।
27 सितंबर 2013 में नोटा को लेकर उच्चतम न्यायालय ने अपना फैसला सुनाया था और उच्चतम न्यायालय भी इसके पक्ष में था। जिसके बाद से इस विकल्प को ईवीएम मशीन में जोड़ दिया गया था और लोगों को कोई भी उम्मदीवार काबिल ना लगने पर अपना मत उनको ना देने का अधिकार मिल गया था। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि नोटा का बटन देने से राजनीति दलों पर भी अच्छे चुनाव प्रत्याशी खड़े करना का दबाव रहेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नकारात्मक वोट भी (अनुच्छेद 19-1 ए ) के अन्तर्गत अभिव्यक्ति की आजादी का संवैधानिक अधिकार है, जिसके लिए मनाही नहीं की जा सकती। अन्य चुनाव चिन्ह की तरह NOTA भी सभी EVM मशीन में सबसे नीचे अंकित किये जाते हैैं । इससे मतदाता को चुनाव बहिष्कार करने की सुविधा मिलती है। अगर कोई मतदाता किसी भी कैंडिडेट से खुश नहीं है तो NOTA आप्शन के जरिये इसे बता सकता है | इसके जरिये मतदाता बिना किसी परेशानी एवं डर के चुनाव का बहिष्कार कर सकेगा।
इससे पहले चुनाव से संबंधित नियमों की संहिता- 1961 के तहत मतदाताओं को अलग से फॉर्म भरकर सभी उम्मीदवारों को खारिज करने का अधिकार दिया गया था। इसके बाद भी इस बारे में जानकारी के अभाव और मतदाता की पहचान उजागर होने की वजह से इसका न के बराबर इस्तेमाल किया जाता था।
इस आदेश के बाद भारत नोटा का विकल्प उपलब्ध कराने वाला विश्व का 14वां देश बन गया। हालांकि बाद में चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि नोटा के मत गिने तो जाएंगे पर इसे रद्द मतों की श्रेणी में रखा जाएगा। इस तरह से साफ ही था कि नोटा का चुनाव के नतीजों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
कब सबसे पहले इस्तेमाल हुआ नोटा :-
नोटा का इस्तेमाल सबसे पहले 2013 में छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान, मध्यप्रदेश और केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली के विधानसभा चुनाव में हुआ। इस चुनाव में 15 लाख लोगों ने नोटा का पहली बार इस्तेमाल किया। इसके बाद 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में भी नोटा का इस्तेमाल किया गया। 2015 तक देशभर के सभी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में नोटा का इस्तेमाल शुरू हो गया।
नोटा का चिह्न (Nota Symbol)
ईवीएम पर बने इसके चिह्न में एक मतपत्र है और उस पर एक क्रॉस का निशान बनाया गया है। इस चिह्न को 18 सितंबर 2015 को चुनाव आयोग द्वारा चुना गया था। और इस चिह्न को गुजरात के राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान (अहमदाबाद के नेशनल इंस्टीट्यूट आफ डिजाइन) द्वारा बनाया गया था। चुनाव आयोग ने घोषित किया कि यह चिन्ह सभी चुनाव प्रत्याशियों के आखिर में होगा।
किन देशों में नागरिकों को दिया जाता है नोटा का विकल्प (Which other countries allow NOTA?)
भारत के अलावा दुनिया के अन्य देशों में भी नोटा का विकल्प वोटरों को वोट डालते समय दिया जाता है और इस वक्त इंडोनेशिया, कनाडा, नार्वे, कोलंबिया, यूक्रेन, ब्राजील, बांग्लादेश, फिनलैंड, स्पेन, स्वीडन, चिली, फ्रांस, बेल्जियम और ग्रीस / यूनान जैसे देशों में इसका प्रयोग किया जा रहा है।
इन देशों के अलावा अमेरिका अपने देश में इसका इस्तेमाल कुछ मामलों में करने की अनुमति देता है। रूस में 2006 तक यह विकल्प मतदाताओं के लिए उपलब्ध था।
वर्ष 2013 के चुनाव में पाकिस्तान में भी इस विकल्प का प्रावधान किया गया था, लेकिन बाद में वहां के निर्वाचन आयोग ने इसे रद्द कर दिया।
निष्कर्ष -
नोटा का विकल्प मिलने से उन लोगों को अपने मत का उपयोग करने का हक मिल गया है जो कि अपना पसंदीता उम्मीदवार ना होने के कारण अपना वोट डालने से वंचित रह जाते थे।
नोटा शुरू करने की आवश्यकता
हमारे देश में, अक्सर ऐसा होता है कि मतदाता चुनाव में किसी भी उम्मीदवार का समर्थन नहीं करना चाहता है, लेकिन उसके पास किसी एक उम्मीदवार का चयन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है। भारत में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के मुताबिक, 'उपर्युक्त में से कोई नहीं' यानी मतदाताओं के लिए नोटा विकल्प की शुरूआत से चुनावों में व्यवस्थित परिवर्तन होगा और राजनीतिक दलों को सही उम्मीदवारों को पेश करने के लिए मजबूर किया जाएगा। एक मतदान प्रणाली में, मतदाता को सभी उम्मीदवारों को अस्वीकार करने की अनुमति दी जानी चाहिए। इस विकल्प को शुरू करने का उद्देश्य मतदाता को सभी उम्मीदवारों को अस्वीकार करने के लिए सशक्त बनाना है यदि उन्हें ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) में सूचीबद्ध सभी उम्मीदवार पसंद नहीं हैं। राजनीतिक दलों को चुनाव में उनकी ओर से सही उम्मीदवारों को नामित करने के विकल्प के साथ छोड़ दिया जाएगा। आपराधिक या अनैतिक पृष्ठभूमि वाले अभ्यर्थियों के पास चुनाव लड़ने से बचने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा।
नियम 49-ओ क्या है? और यह नोटा से किस प्रकार भिन्न है?
चुनाव नियमों के आचरण के अनुसार, 1961 नियम 49-ओ बताता है कि "मतदाता मतदान न करने का फैसला कर रहे हैं - यदि कोई मतदाता, फॉर्म -7 ए में मतदाताओं के रजिस्टर में अपने चुनावी रोल नंबर को विधिवत दर्ज करने के बाद और नियम 49 एल के उप-नियम (1) के तहत आवश्यक हस्ताक्षर कर देता है या अंगूठे की छाप लगा देता है, तो इसका मतलब है कि उसने अपना वोट रिकॉर्ड न करने का फैसला किया है, इस प्रभाव की एक टिप्पणी पीठासीन अधिकारी द्वारा फॉर्म 17 ए में दी गई प्रविष्टि के खिलाफ की जाएगी और मतदाता के हस्ताक्षर या अंगूठे की छाप इस तरह के टिप्पणी के खिलाफ प्राप्त की जाएगी।" 49-ओ और नोटा के बीच अंतर यह है कि 49-ओ गोपनीयता प्रदान नहीं करता है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नोटा प्रावधान को मंजूरी मिलने के बाद धारा 49 (ओ) को खारिज कर दिया गया। इस धारा ने चुनाव अधिकारियों को फॉर्म 17 ए में मतदाता की टिप्पणियों के माध्यम से उम्मीदवार को अस्वीकार करने का कारण जानने का मौका दिया। नोटा के माध्यम से, अधिकारियों को अस्वीकृति का कारण नहीं पता हो सकता है। इसके अलावा, यह एक मतदाता की पहचान का बचाव करता है, इस प्रकार यह गुप्त मतपत्र की अवधारणा को बरकरार रखता है।
नोटा के सकारात्मक बिन्दु
हालांकि मतदाता के लिए चुनावों में 'उपर्युक्त में से कोई नहीं' विकल्प के बारे में बहुत से नकारात्मक बिंदु हैं लेकिन सकारात्मक बिंदुओं को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है। भारत के सुप्रीम कोर्ट का इरादा राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों के रूप में एक ईमानदार तथा अच्छी पृष्ठभूमि के साथ उम्मीदवार पेश करने के लिए मजबूर करना था। चुनाव जीतने वाले उम्मीदवार देश को शासित करते हुए विधायिका का हिस्सा बन जाते हैं। इसलिए, यह अनिवार्य रूप से महसूस किया गया कि आपराधिक, अनैतिक या भ्रष्ट पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार चुनाव लड़ने से रोक दिए जाएं। यदि 'उपर्युक्त में से कोई नहीं' का यह विकल्प अपने वास्तविक इरादे से लागू नहीं किया गया, तो देश का पूरा राजनीतिक परिदृश्य वर्तमान परिदृश्य से काफी हद तक बदल जाएगा।
नोटा के नकारात्मक बिन्दु
प्रारंभिक रूप से मतदाताओं को इस तरह के विकल्प पेश करने वाले कुछ देशों ने बाद में प्रणाली को बंद कर दिया या समाप्त कर दिया। उन देशों में जहां मतदान मशीनों में नोटा बटन होता है, वहां वोटों का बहुमत प्राप्त करने की संभावना होती है और इसलिए वो चुनाव "जीत" जाते है। ऐसे मामले में, चुनाव आयोग इनमें से किसी भी विकल्प का चयन कर सकता है ए) कार्यालय को रिक्त रखें, बी) नियुक्ति के द्वारा कार्यालय भरें, सी) एक और चुनाव आयोजित करें। इस प्रकार की स्थिति में नेवादा राष्ट्र की नीति इसके प्रभाव को नजरअंदाज कर देती है और अगला सबसे ज्यादा वोट पाने वाला जीत जाता है।
2014 के चुनावों में नए रुझान
ईवीएम : इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों को वर्ष 1999 में भारत के निर्वाचन आयोग (ईसीआई) द्वारा प्रस्तुत किया गया था। मतदान के इस इलेक्ट्रॉनिक तरीके ने मतदान के लिए लगने वाले समय को कम करने में और परिणामों की घोषणा करने में मदद की है।
वीवीपीएटी : वोटर वैरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल इस वर्ष प्रयोगात्मक आधार पर पेश की जाएगी। जैसे ही वोट डाला जाता है, एक पेपर पर्ची निकलती है जिसमें लिखा होता है, किस चिन्ह और उम्मीदवार को वोट दिया गया है, ईवीएम से जुड़े एक मुहरबंद बॉक्स में स्व.चालित रूप से गिर जाएगी। ईसी द्वारा इस पर्ची का उपयोग वोट गिनने में किया जाएगा।
NOTA कैसे बेअसर है -
NOTA कैसे बेअसर है, इसे एक उदाहरण से बेहतर समझा जा सकता है। मान लीजिये कि किसी निर्वाचन क्षेत्र मे अलग अलग राजनीतिक पार्टियों के 3 उम्मीदवार खड़े किये गये है - सभी की अपराधिक छवि रही है और ज्यादातर जनता उन्हे वोट नही देना चाहती और NOTA का इस्तेमाल करना चाहती है। इन तीनो उम्मीदवारों के नाम मान लेते हैं कि X, Y और Z हैं। इस निर्वाचन क्षेत्र मे कुल 100000 मतदाता है और यह मानते हुये कि शत प्रतिशत मतदान हो रहा है, 90000 मतदाता NOTA का बटन दबाते हैं। बाकी के बचे हुये 10000 मतदाता जो वोटिंग करते है, उसके परिणाम कुछ इस प्रकार से हैं :-
X को 3333 मत
Y को 3333 मत
Z को 3334 मत
कुल 10000 मत
अब इस नतीजे का मतलब यह हुआ कि 100000 के मतदाता वाले निर्वाचन क्षेत्र मे उम्मीदवार “Z” को जिसे सिर्फ 3334 (सर्वाधिक) वोट मिले हैं, उसे विजयी घोषित कर दिया जायेगा। यह बात हैरानी वाली तो है लेकिन नियम हमारी सरकार ने कुछ इस तरह से ही बनाये है, जिनको लोग सोचे समझे बिना ही NOTA-NOTA की रट लगाये ज़ा रहे है।
अगर NOTA को प्रभावशाली तरीके के लागू करना हो तो होना यह चाहिये कि जिस निर्वाचन क्षेत्र मे 50 प्रतिशत से ज्यादा लोग NOTA का बटन दबाये, वहा पर चुनाव रद्द करके दुबारा मतदान होना चाहिये और जिन नेताओं के खिलाफ लोगों ने NOTA का बटन दबाया है, उनके आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगना चाहिये। अगर ऐसा नही होता तो NOTA का कोई मतलब नही है।
NOTA के चक्कर मे ना आकर लोग अपने मताधिकार का प्रयोग करें, इसी मे समझदारी है- सभी उम्मीदवार नापसंद हों तो जो उम्मीदवार उनमे से सबसे बढिया हो, उसे वोट करें।
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