आईपीसी की धारा 124 (ए): देशद्रोह
क्या है IPC Section 124 A
आईपीसी की धारा 124 (ए) के तहत उन लोगों को गिरफ्तार किया जाता है जिन पर देश की एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचाने का आरोप होता है।
=> क्या है देशद्रोह :
भारतीय कानून संहिता (आईपीसी) की धारा 124 (A) में देशद्रोह की दी हुई परिभाषा के मुताबिक
1. अगर कोई भी व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता या बोलता है।
2. ऐसी सामग्री का समर्थन करता है।
3. राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है।
4. अपने लिखित या फिर मौखिक शब्दों, या फिर चिन्हों या फिर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर नफरत फैलाने या फिर असंतोष जाहिर करता है। तो उसे आजीवन कारावास या तीन साल की सजा हो सकती है।
=> "कहां से आया नियम"
देशद्रोह पर कोई भी कानून 1859 तक नहीं था। इसे 1860 में बनाया गया और फिर 1870 में इसे आईपीसी में शामिल कर दिया गया। सैडीशन लॉ यानि देशद्रोह कानून ब्रिटिश सरकार की देन है। आजादी के बाद इसे भारतीय संविधान ने अपना लिया।
1898 में मैकॉले दंड संहिता के तहत देशद्रोह का मतलब था, ऐसा कोई भी काम जिससे सरकार के खिलाफ असंतोष जाहिर होता हो लेकिन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इस परिभाषा में बदलाव किया गया जिसके तहत सिर्फ सरकार के खिलाफ असंतोष जाहिर करने को देशद्रोह नहीं माना जा सकता बल्कि उसी स्थिति में इसे देशद्रोह माना जाएगा जब इस असंतोष के साथ हिंसा भड़काने और कानून व्यवस्था को बिगाड़ने की भी अपील की जाए।
ब्रिटेन ने हटाया, भारत ने अपनाया -
आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि अब ब्रिटेन ने ये कानून अपने संविधान से हटा दिया है, लेकिन भारत के संविधान में ये विवादित कानून आज भी मौजूद है।
नेहरू का था विरोध :
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी इसे 'बेहद आपत्तिजनक और अप्रिय' कानून बताया था।
=> सबसे पहले इस्तेमाल :-
1870 में बने इस कानून का इस्तेमाल ब्रितानी सरकार ने बालगंगाधर तिलक के खिलाफ किया था।
=> इन पर हुआ है लागू
* 1870 में बने इस कानून का इस्तेमाल ब्रिटिश सरकार ने महात्मा गांधी के खिलाफ वीकली जनरल में 'यंग इंडिया' नाम से आर्टिकल लिखे जाने की वजह से किया था। यह लेख ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लिखा गया था।
* केदारनाथ सिंह
बिहार के रहने वाले केदारनाथ सिंह पर 1962 में राज्य सरकार ने एक भाषण के मामले में देशद्रोह के मामले में केस दर्ज किया था, जिस पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी। केदारनाथ सिंह के केस पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की एक बेंच ने भी आदेश दिया था। इस आदेश में कहा गया था, 'देशद्रोही भाषणों और अभिव्यक्ति को सिर्फ तभी दंडित किया जा सकता है, जब उसकी वजह से किसी तरह की हिंसा, असंतोष या फिर सामाजिक असंतुष्टिकरण बढ़े।'
* प्रवीण तोगड़िया
2003 में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के फायरब्रांड नेता प्रवीण भाई तोगड़िया यूं तो अपने तीखे बयानों से अक्सर विवादों में रहते हैं, लेकिन 2003 में उन पर देशद्रोह का मामला दर्ज हो चुका है। तत्कालीन राजस्थान सरकार ने एक सभा में दिए उनके बयान 'देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने' को देशद्रोह माना और मामला दर्ज करा दिया। अजमेर कोर्ट ने भी उन्हें जमानत देने से इनकार किया और जेल भेज दिया। इस पर खासा हंगामा मचा। बाद में उन्हें जमानत मिल गई।
* बिनायक सेन
छत्तीसगढ़ के डॉ. बिनायक सेन पेशे से चाइल्स स्पेशलिस्ट, एक्टिविस्ट - मई 2007 में छत्तीसगढ़ सरकार ने सेन पर नक्सलियों की मदद करने और छत्तीसगढ़ स्पेशल पब्लिक सिक्योरिटी एक्ट 2005 (CSPSA) के उल्लंधन के चलते देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कराया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। सबूत के तौर पर सेन की जेल में बंद नक्सली कमांडर नारायण सान्याल से मुलाकात और नक्सली गतिविधियों में मदद के दस्तावेज पेश किए गए। 24 दिसंबर 2010 को रायपुर के जिला जज बीपी वर्मा ने सबूतों के आधार पर बिनायक सेन, नारायण सान्याल और कोलकाता के उद्योगपति पियूष गुहा को देशद्रोह के लिए उम्रकैद की सजा सुनाई लेकिन 15 अप्रैल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी और कहा कि सेन के खिलाफ देशद्रोह के कोई सबूत नहीं मिले।
* अरुंधति रॉय
21 अक्टूबर 2010 में मशहूर लेखिका अरुंधति पर आरोप लगा कि उन्होंने एक सेमिनार में हुर्रियत लीडर सैयद अली शाह गिलानी की मौजूदगी में कश्मीर को आजाद करने की वकालत की। दिल्ली की एक कोर्ट में सुशील पंडित ने याचिका दायर कर मामला दर्ज करने की मांग की, जिस पर कोर्ट के आदेश से दिल्ली पुलिस ने मामला दर्ज किया। एफआईआर के मुताबिक, सेमिनार में अरुंधति ने कश्मीर के संदर्भ में कहा था कि 'आजादी ही एकमात्र रास्ता।' इस सेमिनार में गिलानी के अलावा माओ नेता वारावरा राव भी दूसरे लोगों के साथ मंच पर मौजूद थे। हालांकि बाद में स्पष्ट नहीं हुआ कि दिल्ली पुलिस ने इस मामले को आगे बढ़ाया या नहीं।
* असीम त्रिवेदी
सितंबर 2012 में काटूर्निस्ट असीम त्रिवेदी - रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के सदस्य अमित कतरनयी ने त्रिवेदी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी कि उन्होंने अन्ना हजारे की रैली के दौरान बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स में ऐसे पर्चे लगाए थे जिसमें भारतीय संविधान का मजाक उड़ाया गया था। त्रिवेदी के खिलाफ यह आरोप भी लगाया गया था कि उन्होंने अपनी वेबसाइट पर आपत्तिजनक सामग्री डाली। यह कार्टून उन्होंने मुंबई में 2011 में भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाए गए एक आंदोलन के समय बनाए थे। इसके बाद कोर्ट ने त्रिवेदी के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी किया, जिसके बाद उन्हें मुंबई से गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में महाराष्ट्र सरकार ने त्रिवेदी के खिलाफ वापस ले लिया। त्रिवेदी के मामले में खासी राजनीति भी हुई।
* 2012 में तमिलनाडु सरकार ने कुडनकुलम परमाणु प्लांट का विरोध करने वाले 7 हजार ग्रामीणों पर देशद्रोह की धाराएं लगाईं थी।
* के. कविता
अगस्त 2014 में कविता निजामाबाद से टीआरएस सांसद, तेलंगाना सीएम के.चंद्रशेखर राव (केसीआर) की बेटी - कविता पर आरोप था कि उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा, जम्मू-कश्मीर और तेलंगाना पहले भारत के हिस्से नहीं थे। पेशे से वकील के. करुणासागर की शिकायत पर स्थानीय अदालत ने पुलिस को निर्देश दिया कि वह कविता के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज करे। इसेक बाद कविता के खिलाफ आईपीसी की धारा 124-ए (देशद्रोह) और 505 (सार्वजनिक शरारत को प्रेरित करना) के तहत मामला दर्ज किया गया।
* हार्दिक पटेल, कन्हैया कुमार
2015 में हार्दिक पटेल, कन्हैया कुमार से पहले गुजरात में पाटीदारों के लिए आरक्षण की मांग करने वाले हार्दिक पटेल को गुजरात पुलिस की ओर से देशद्रोह के मामले तहत गिरफ्तार किया गया था।
=> विरोधाभास भी :- धारा को हटाने की मांग क्यों?
* देशद्रोह के कानून को लेकर संविधान में विरोधाभास भी है, जिसे लेकर अक्सर विवाद उठते रहे हैं।
* दरअसल, जिस संविधान ने देशद्रोह को कानून बनाया है, उसी संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को भारत के नागरिकों का मौलिक अधिकार बताया गया है।
* मानवाधिकार और सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ता इसी तर्क के साथ अपना विरोध जताते रहे हैं और आलोचनाएं करते रहे हैं।
* मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि देशद्रोह से जुड़े कानून की आड़ में सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार करती है।
* अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस कानून की कड़ी आलोचना होती रही है और इस बात पर बहस छिड़ी है कि अँग्रेज़ों के ज़माने के इस क़ानून की भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जगह होनी भी चाहिए या नहीं।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपके लेख के लिए धन्यवाद। आपने बहुत अच्छी जानकारी लिखी है। धन्यवाद फिर से पढ़ें: - https://hi.letsdiskuss.com/what-is-section-a-of-ipc
जवाब देंहटाएं