बुधवार, 23 जनवरी 2019

महात्मा गांधी पर डाक टिकट


डाक टिकटों में महात्मा गांधी 

विश्व पटल पर महात्मा गांधी सिर्फ़ एक नाम नहीं अपितु शान्ति और अहिंसा का प्रतीक हैं। महात्मा गांधी के पूर्व भी शान्ति और अहिंसा की अवधारणा फलित थी, परन्तु उन्होंने जिस प्रकार सत्याग्रह एवं शान्ति व अहिंसा के रास्तों पर चलते हुये अंग्रेज़ों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया, उसका कोई दूसरा उदाहरण विश्व इतिहास में देखने को नहीं मिलता। तभी तो गांधी की मृत्यु पर, प्रख्यात वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन ने कहा था कि - हज़ार साल बाद आने वाली नस्लें इस बात पर मुश्किल से विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई इन्सान धरती पर कभी आया था। (आने वाली पीढ़ियाँ शायद ही इस बात का यकीन कर पाएँ कि कभी धरती पर गांधी जैसा कोई शख़्स भी पैदा हुआ था।)

महात्मा गांधी दुनिया के सर्वाधिक लोकप्रिय राजनेताओं और व्यक्तित्व में से हैं। यही कारण है कि प्राय: अधिकतर देशों ने उनके सम्मान में डाक-टिकट जारी किये हैं। देश विदेश के टिकटों में देखें तो गांधी का पूरा जीवन चरित्र पाया जा सकता है।

सामान्यतः डाक टिकट एक छोटा सा काग़ज़ का टुकड़ा दिखता है, पर इसका महत्त्व और कीमत दोनों ही इससे काफ़ी ज़्यादा है। डाक टिकट वास्तव में एक नन्हा राजदूत है, जो विभिन्न देशों का भ्रमण करता है एवम् उन्हें अपनी सभ्यता, संस्कृति और विरासत से अवगत कराता है। यह किसी भी राष्ट्र के लोगों, उनकी आस्था व दर्शन, ऐतिहासिकता, संस्कृति, विरासत एवं उनकी आकांक्षाओं व आशाओं का प्रतीक है। ऐसे में डाक-टिकटों पर स्थान पाना गौरव की बात है।

यह जानकर कोई आश्चर्य नहीं होगा कि डाक टिकटों की दुनिया में गांधी सबसे ज़्यादा दिखने वाले भारतीय हैं तथा भारत में सर्वाधिक बार डाक-टिकटों पर स्थान पाने वालों में गांधी जी प्रथम हैं। यहाँ तक कि आज़ाद भारत में वे प्रथम व्यक्ति थे, जिन पर डाक टिकट जारी हुआ।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अहिंसा के बूते पर आजादी दिलाने में भले ही भारत के हीरो हैं लेकिन डाक टिकटों के मामले में वह विश्व के 151 देशों में सबसे बड़े हीरो हैं। विश्व में अकेले गांधी ही ऐसे लोकप्रिय नेता हैं जिन पर इतने अधिक डाक टिकट जारी होना एक रिकार्ड है।

आज़ादी के सात दशकों में गांधी की डाक यात्रा कैसी रही। कहां-कहां गांधी को कैसे जोड़ा गया। 2015 में गांधी जी को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और स्वच्छ भारत अभियान से जोड़कर नये रूप में प्रस्तुत किया गया। गांधी के इस सफर में बा तो साथ थी हीं साथ में नेहरू, आज़ादी का आंदोलन और उनके संदेश डाक टिकटों में प्रमुखता के साथ दिखे। गांधी पर निकाले गए टिकटों में एक तरफ चरखे ने सबसे ज़्यादा जगह पाई तो दूसरी ओर उनका पसंदीदा भजन ‘रघुपति राघव राजा राम’ और उनकी विभिन्न छवियों को भी स्थान मिला।

भारतीय डाक विभाग ने इन सात दशकों में गांधी पर दस नियत टिकट निकाले हैं। इसके अलावा लगभग 85 स्मारक डाक-टिकटों पर गांधी और उनका सन्देश देखने को मिलता है। नियत टिकट आम उपयोग के लिए बड़ी संख्या में छापे जाते हैं जबकि स्मारक टिकट सीमित संख्या में विशेष अवसरों पर जारी किये जाते हैं।

भारत में गांधी जी के डाक टिकट जारी होने से पहले 13 जनवरी 1948 से 18 जनवरी 1948 के बीच जिन दिनों गांधी दंगों को रोकने के लिए उपवास पर बैठे हुए थे, उन दिनों डाक व्यवस्था को प्रचार का माध्यम बना कर दिल्ली और कलकत्ता के डाकघरों से सांप्रदायिक दंगों को रोकने का संदेश मुहरों पर अंकित कर दिया जाने लगा था।

बहुत कम लोगों को पता होगा कि भारत को ग़ुलामी के शिकंजे में कसने वाले ब्रिटेन ने जब पहली दफ़ा किसी महापुरुष पर डाक टिकट निकाला तो वह महात्मा गांधी ही थे। इससे पहले ब्रिटेन में डाक टिकट पर केवल राजा या रानी के ही चित्र छापे जाते थे।

स्वतन्त्रता के बाद गांधी जी पर डाक टिकट जारी करने का फैसला सबसे पहले साल 1948 में लिया गया। बापू शृंखला के इन चारों डाक टिकटों को साल 2 अक्टूबर, 1949 में गांधी जी की 80वीं वर्षगांठ पर जारी करने का फैसला लिया गया था, हालांकि इन डाक टिकटों को जारी करने की योजना जनवरी से ही चल रही थी, जब गांधी जी जीवित थे। लेकिन इससे पहले कि टिकटें जारी हो पातीं, 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी जी की हत्या कर दी गई। तब इन टिकटों को गांधी जी को सम्मान देने के लिए चार विभिन्न दरों की मुद्राओं में विक्रय हेतु राष्ट्र की प्रथम स्वतंत्रता वर्षगाँठ पर 15 अगस्त, 1948 को जारी किया गया। इनके मूल्य डेढ़ आना, साढ़े तीन आना, बारह आना और दस रुपये रखा गया था। इन टिकटों की ख़ास बात यह है कि बापू के हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में नाम लिखे हुए सिर्फ़ ये ही टिकट आज तक उपलब्ध हैं। गांधी जी के साथ ‘बा’ यानी कस्तूरबा गांधी को भी उन डाक टिकटों में जगह दी गई है। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ही पहल करते हुए इन चारों डाक टिकटों पर बापू को डिज़ाइन का हिस्सा बनाया था। इस पूरे घटनाक्रम में दिलचस्प बात यह थी कि ज़िंदगी भर ‘स्वदेशी’ को तवज्जो देने वाले गांधी जी को सम्मानित करने के लिए जारी किए गए इन डाक टिकटों की छपाई स्विट्जरलैंड में हुई थी। इसके बाद से लेकर आज तक किसी भी भारतीय डाक टिकट की छपाई विदेश में नहीं हुई। इनमें से दस रुपए वाली टिकट आम व्यक्ति की पहुंच से बाहर थी। उस समय के गर्वनर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के आदेश पर गवर्नमेण्ट हाउस में केवल सरकारी उपयोग के लिए इनमें से दस रुपए वाली टिकटों की सौ अतिरिक्त प्रतियां छापी गईं थी, जिन पर 'service' (सर्विस) 'सेवा' लिखा होता है। जिसकी आलोचना के बाद किसी की स्मृति में जारी डाक टिकटों के ऊपर ‘सर्विस’ नहीं छापा जाता। उन टिकटों को तुरन्त नष्ट कर दिया गया। पर इन दो-तीन दिनों में जारी 'सर्विस' छपे चार डाक टिकटों के सेट का मूल्य दुर्लभता के चलते आज तीन लाख रुपये से अधिक है। इनमें से कुछ टिकटें कुछ गणमान्य व्यक्तियों को उपहार के रूप में दे दी गईं, और कुछ दिल्ली के 'राष्ट्रीय डाक टिकट संग्रहालय' को दे दी गईं। इनमें से अधिकतम आठ प्रतियाँ निजी हाथों में हैं, जिनके कारण वे बहुत दुर्लभ और कीमती हो गईं। इनमें से एक टिकट 5 अक्तूबर 2007 को स्विट्ज़रलैण्ड में डेविड फेल्डमैन कंपनी द्वारा की नीलामी में 38,000 यूरो में बिकी।

डाक-टिकट पर पहले गाँधी जी के लिए बापू शब्द का प्रयोग हुआ था, मगर बाद की टिकटों पर महात्मा गाँधी लिखा जाने लगा।

1979 में भारत में जारी किया गये डाक-टिकट में बापू को बच्चे से स्नेह करते हुए दर्शाया गया है। यह चित्र महात्मा गांधी का बच्चों के प्रति प्रेम को दर्शाता है।

कई देशों ने महात्मा गांधी की जन्म शताब्दी, 125वीं जयंती व भारत की 50वीं स्वतंत्रता वर्षगाँठ पर कई प्रकार के अलग-अलग मूल्यों के डाक टिकट व डाक सामग्रियाँ समय-समय पर जारी की हैं। शांति के मसीहा व सहस्त्राब्दि के नायक के रूप में भी अनेक देशों ने, गांधी जी के चित्रों को आधार बनाकर डाक टिकट व अन्य डाक सामग्रियाँ जारी की हैं। कई देशों ने महात्मा गांधी पर डाक टिकट ही नहीं बल्कि मिनीएचर और सोविनियर शीट्स जारी की।

दुनिया के ऐसे देश जिनका आपने शायद कभी नाम भी नहीं सुना होगा उन्होंने भी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन और कार्यों से प्रभावित होकर समय-समय पर डाक टिकट जारी किए हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब जैसे वो शक्तिशाली राष्ट्र हैं जिन्होंने बापू पर डाक टिकट जारी किए हैं। लेकिन पाकिस्तान और चीन उन कुछ राष्ट्रों में शामिल हैं, जिन्होंने आज तक बापू पर कोई डाक टिकट जारी नहीं किया। शांति के इस दूत की उपेक्षा की ही शायद वजह है कि पाकिस्तान में कभी भी शांति बहाल नहीं हुई।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर सर्वाधिक डाक टिकट उनके जन्म शताब्दी वर्ष 1969 में जारी हुए थे। उस वर्ष विश्व के 35 देशों ने उन पर 70 से अधिक डाक टिकट जारी किए थे। लखनऊ फिलैटलिक क्लब के संस्थापक एवं सचिव एसएमए जैदी के मुताबिक बापू पर साउथ अफ्रीका ने सात, एसेडला ने नौ, भूटान ने 10, यूएसए व डोमिनिका ने छह-छह, ब्राजील, ग्रेट ब्रिटेन, सोमालिया व तनजानिया ने तीन-तीन, जर्मनी व जाम्बिया ने चार-चार और रूस ने दो डाक टिकट जारी किए। श्री जैदी ने बताया 104 देश गांधी जी पर 300 से अधिक डाक टिकट व स्पेशल कवर निकाल चुके हैं।

भारत में गांधी जी पर 1948 में पाँच, 1969 में चार, 1973 में नेहरू जी के साथ, 1979 में एक बच्ची के साथ, 1980 में डांडी मार्च पर एक डाक टिकट जारी हुआ था। इसके बाद 1992 में भारत छोड़ो आंदोलन पर दो, 1995 में भारत-दक्षिण अफ्रीका पर दो, 1998 में महात्मा गांधी के 50वें निर्वाण दिवस पर चार और 2001 में महात्मा गांधी मिलिनियम पर दो डाक टिकट जारी किए गए। इनके अलावा अब तक 15 सामान्य डाक टिकट व 200 से अधिक विशेष आवरण भी जारी हो चुके हैं। 

संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी वर्ष 2007 से गांधी जयन्ती 2 अक्टूबर को ‘विश्व अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाये जाने की घोषणा की। इसी कड़ी में अहिंसापेक्स-2, 2009 के मौके पर भी अर्न्तराष्ट्रीय अहिंसा दिवस से सम्बंधित स्पेशल कवर जीपीओ में सीपीएमजी कर्नल कमलेश चन्द्र, निदेशक सचिन किशोर व वी.के. दक्ष ने जारी किया। लखनऊ फिलैटलिक क्लब के प्रयास से पाँच रुपए की कीमत वाले इस स्पेशल कवर पर गांधी जी की फोटो के साथ राष्ट्रीय ध्वज को भी शामिल किया गया है। कवर पर सत्य अहिंसा के अनुयायी-महात्मा गांधी एवं राष्ट्रीय ध्वज भी छापा गया है। महात्मा गांधी के सम्मान में संयुक्त राष्ट्र ने 2 अक्टूबर 2009 को डाक टिकट जारी किया।

1950 में गणतंत्र की स्थापना के उपलक्ष्य में जारी चार टिकटों में एक पर चरखा तथा दूसरे पर गांधी का प्रिय भजन ‘रघुपति राघव राजा राम’ अंकित था। इसके बाद एक लम्बे समय तक टिकटों पर गांधी का सन्देश सत्याग्रह और चरखे तक सीमित रहा। लेकिन इस बीच में पोस्टकार्ड और अन्तर्देशीय पत्र पर छपे आदर्श वाक्यों एवं टिकटों के विरूपण के ज़रिये उनके विचार लोगों तक पहुंचते रहे।

पहली बार 1986 में भारतीय पुलिस की 125वीं जयंती के प्रथम दिवस आवरण पर गांधी की 21अगस्त 1947 की एक प्रार्थना सभा के अंश उद्धृत किये गये। इसमें पुलिस को बिना किसी धार्मिक भेदभाव के अपने कर्तव्य निभाने की सलाह है। इसके बाद 1994 में खुदाबख्श ओरिएंटल पब्लिक लाईब्रेरी के प्रथम दिवस आवरण पर भी उनकी चिठ्ठी के कुछ अंश उद्धृत हुए। किन्तु डाक-टिकट पर उनका सन्देश पहली बार 1994 में उनकी 125वीं जयंती पर दिखा।

गांधी के साथ नेहरु का सफर

अस्सी के दशक तक गांधी जी की डाक यात्रा में कस्तूरबा के अलावा जवाहरलाल नेहरू ही दिखे। 1967 में भारत छोड़ो आन्दोलन और 1969 में गांधी की जन्मशताब्दी टिकटों की विवरणिका में गांधी के साथ नेहरू को जगह मिली। टिकटों पर भी कस्तूरबा के बाद सबसे पहले नेहरू ही गांधी के साथ आये। 1973 में स्वतंत्रता संग्राम की पच्चीसवीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में ‘गांधी और नेहरू’ पर डाक-टिकट जारी हुआ जिसकी विवरणिका में उन्हें गंगा-यमुना की उपमा दी गई। दस वर्ष बाद 1983 में एक बार फिर से नेहरू और गांधी साथ-साथ ‘भारत का स्वाधीनता संग्राम’ पर जारी टिकट में दिखे।

गांधी जी की डाक यात्रा में पहला बड़ा बदलाव जनता पार्टी की सरकार के समय आया। 1978 में चार्ली चैपलिन (16 अप्रैल) और चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (10 दिसम्बर) के प्रथम दिवस आवरण पर उन्हें गांधी के साथ दिखाया गया। इसके बाद 1985 में जयरामदास दौलतराम के प्रथम दिवस आवरण पर गांधी के साथ खड़े उनके सहयोगियों की तस्वीर है।इसके कुछ पंद्रह वर्ष बाद गांधी अन्य लोगों के प्रथम दिवस आवरण पर दिखना शुरू हुए। 1999 में डॉ के.ब. हेडगेवार के प्रथम दिवस आवरण पर उनके साथ गांधी की तस्वीर है। इस दौरान राष्ट्रीय बचत संगठन की स्वर्ण जयंती (1998), भारत का स्वतंत्रता संग्राम (1999), द हिंदुस्तान टाइम्स (1999), पश्चिमी रेलवे भवन (1999) और रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया की प्लैटिनम जयंती (2010) के प्रथम दिवस आवरण पर भी गांधी दिखे।

गांधी जी की डाक यात्रा के इस काल खंड का सबसे यादगार टिकट भारतीय गणतंत्र के पचास वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में जारी किया गया। इस पर प्रसिद्द चित्रकार रंगा का बनाया गांधी जी का अद्भुत रेखाचित्र है जो उन्हें भारत के नक्शे की तरह प्रस्तुत करता है। यह पहला अवसर था जब गांधी पर जारी किये गये टिकट के प्रथम दिवस आवरण पर किसी और व्यक्तित्व को चित्रित किया गया। इस आवरण पर डॉ. भीमराव आम्बेडकर और उनके पार्श्व में संविधान की प्रस्तावना दिखाई गई है। साथ ही में यह एकमात्र डाक-टिकट है जिस पर गांधी को ‘राष्ट्रपिता’ कह कर संबोधित किया गया है। इसके बाद 2001 में दो टिकट के सी-टेनेंट पर उन्हें सहस्त्राब्दी पुरुष की संज्ञा दी गई।

सन् 2000 में ही दूसरा बड़ा बदलाव आया जब गांधी नेहरू के अलावा किसी अन्य गांधीवादी नेता के टिकट पर दिखे। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर जारी बिहार के दलित नेता जगलाल चौधरी के टिकट की पृष्ठभूमि में गांधी हैं। इसके बाद 2009 में रामचरण अग्रवाल और 2019 में आयुष चिकित्सक दिनशॉ मेहता के टिकट की पृष्ठभूमि में भी गांधी दिखते हैं।

लेकिन इस बार भारतीय डाक विभाग ने गांधी के चश्मे को स्वच्छ भारत के प्रतीक स्वरुप हर प्रथम दिवस आवरण का हिस्सा बना दिया। गौरतलब है कि गांधी से जुड़े लगभग आधे यानि कि 85 में से 41 टिकट इस दौरान जारी हुए।

हिंदी के प्रसार में गांधी जी की भूमिका को 2017 में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा शताब्दी पर टिकट में रेखांकित किया गया। इसी प्रकार उनकी 150वीं जयंती पर 2018 में पहली बार जारी हुए वृत्ताकार डाक-टिकटों पर अहिंसा, स्वच्छता, अस्प्रश्यता, सेवा, शांति, क्षमा, सादगी और सत्य पर गांधी के सन्देश हिंदी में थे। इसके पूर्व टिकटों पर उनके सन्देश या तो अंग्रेजी में या फिर अंग्रेजी और हिंदी दोनों में प्रस्तुत किये गये थे। खास बात यह भी थी कि इसकी विवरणिका में गांधी का नाम नौ भारतीय भाषाओं में लिखा हुआ था।

150वीं जयंती के उपलक्ष्य में ही 2019 में पहली बार जारी हुए अष्टकोणीय डाक-टिकटों के ज़रिये गांधी के बचपन से महात्मा तक का सफ़र प्रस्तुत हुआ। इनमें उनके तीन बन्दरों के अलावा उनका बाल, किशोर और गांधी टोपी वाले रूप भी पहली बार डाक टिकटों पर देखने को मिले।

कस्तूरबा भी अपने युवा रूप में पहली बार 2015 में दक्षिण अफ्रीका से लौटने के सौ वर्ष पूरे होने पर जारी टिकट में नज़र आयी। इसके बाद 2017 में चंपारण सत्याग्रह की शताब्दी पर और 2019 में अष्टकोणीय टिकट पर उनकी युवा तस्वीर दिखी। 2020 में एक बार फिर से गांधी के विशाल व्यक्तित्व के कुछ अनछुए पहलुओं को प्रस्तुत किया गया। इनमें स्वास्थ्य और प्राकृतिक चिकित्सा, शिक्षा में प्रयोग - नई तालीम, पारिस्थितिकी और पर्यावरण की आवश्यकता तथा चरखे के माध्यम से आत्मनिर्भरता लाने का सन्देश परिलक्षित हुआ। लेकिन विविधताओं से भरी गांधी की इस डाक यात्रा में सांप्रदायिक सौहार्द पर उनका सन्देश जिस पर 1948 की विवरणिका में काफ़ी जोर था कहीं गुम हो गया।

सम्मान में जारी डाक टिकट

भारतवर्ष से बाहर के देशों में लगभग 100 से भी अधिक ने गांधी जी के जीवन से जुडे विभिन्न पहलुओं को केंद्र में रखते हुए उनके जीवन पर आधारित विभिन्न डाक सामग्रियाँ व डाक–टिकट जारी किए हैं। इन देशों में विश्व के सभी महाद्वीपों के देश शामिल हैं।

एशिया महाद्वीप में

रूस (रशिया), कज़ाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, वियतनाम, बर्मा (वर्तमान म्यांमार), ईरान, भूटान, श्रीलंका, कज़ाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, किरगीजिस्तान, यमन, सीरिया और साइप्रस जैसे देश इनमें प्रमुख हैं।

यूरोपीय देशों में

बेल्जियम, हंगरी, चेकोस्लोवाकिया, जर्मनी, जिब्राल्टर, ब्रिटेन (इंग्लैण्ड), यूनान, रोम, माल्टा, पौलेंड, रोमानिया, आयरलैंड, लक्ज़मबर्ग, ईज़डेल द्वीप समूह, मैकोडोनिया (मेसेडोनिया), सैन मरीनो और स्टाफ़ा स्कॉटलैंड (यूके अधिपत्य वाला राष्ट्र) के नाम प्रमुख हैं।

अमरीकी देशों में

संयुक्त राज्य अमरीका (यूनाइटेड स्टेट), ब्राजील, चिली, कोस्टारिका, क्यूबा, ग्रेनेडा, गुयाना, मैक्सिको, मोंटेसेरेट, पनामा, सूरीनाम, उरुग्वे, वेनेजुएला, ट्रिनिनाड (त्रिनिदाद) और टोबैगो, गैबॉन निकारागुआ, नेविस, डोमिनिका, एंटिगुआ (वेस्टइंडीज द्वीप समूह) और बारबुडा के नाम उल्लेखनीय हैं।

अफ्रीकी देशों में

बुर्कीना फासो कैमरून, चाड क़ामरूज, कांगो, मिश्र, गैबन, गांबिया, घाना, लाइबेरिया, मैडागास्कर, माली, मारिटैनिया, मॉरिशस, मोरक्को, मोजांबिक, नाइजर, सेनेगल, सिएरा लियोन, सोमालिया, दक्षिण अफ्रीका, तंजानिया, टोगो, यूगांडा और जांबिया के नाम प्रमुख हैं।

आस्ट्रेलियाई देशों में

ऑस्ट्रेलिया, पलाऊ, माइक्रोनेशिया (पैसाफिक ओशन में द्वीपों का समूह राष्ट्र) और मार्शल द्वीप प्रमुख हैं।

अतिरिक्त देशो में

साईबेरिया, ग्रेनेडा, यूजेरिया, संयुक्त अरब गणराज्य, नाइजीरिया हैं।

ये अंजान देश भी जारी कर चुके डाक टिकट

गिनी बिसाऊ, बेनिन, सोलोमन आईलैंड, सेंट विंसेंट, सांडा आईलैंड, गुयाना, बाराबडोस, बहामास, सेंट लूसिया, जमैका

विभिन्न प्रकार के डाक टिकट

मॉरिशस ने 1969 में गांधीजी की स्वर्ण जयंती के अवसर पर 6 टिकटों की एक सुन्दर सामूहिका जारी की थी। इन टिकटों में गांधी जी की छ: विभिन्न मुद्राओं को लिया गया है। मॉरिशस में समूह के रूप में जारी किया जाने वाला यह पहला टिकट था। 6 टिकटों के इस सामूहिक टिकट के हाशिये पर पेंसिल से भारत के ग्रामीण परिवेश के अनेक सुंदर दृश्य और सांस्कृतिक व राजनीतिक महत्त्व के छोटे-बडे अनेक दृश्यों को बड़ी सुंदरता के साथ अंकित किया गया है।

1896 में उनके जोहान्सबर्ग के कार्यालय में खींचे गए एक चित्र को 'भारत, दक्षिण अफ़्रीका, गुयाना, मार्शल द्वीप और स्कॉटलैंड' सहित कई देशों ने अपने डाक टिकटों का विषय बनाया है। मार्शल द्वीप के इस टिकट में गांधीजी को वहाँ के मज़दूरों के हितों के लिए आंदोलन करते हुए दिखाया गया है। रूस अपने बड़े आकार के सुंदर डाक टिकटों के कारण पूरे विश्व में जाना जाता है।

भारत के अतिरिक्त संयुक्त राज्य अमरीका वह पहला देश है जिसने महात्मा गांधी के सम्मानस्वरूप सबसे पहले डाक टिकट जारी किए। अमेरिका ने 26 जनवरी, 1961 को महात्मा गांधी पर डाक टिकट जारी किए थे। अमेरिका ने यह टिकट 'चैंपियंस ऑफ़ लिबर्टी सीरीज' के तहत जारी किए थे। संयुक्त राज्य अमरीका के इन टिकटों पर अंकित चित्र भी एक भारतीय चित्रकार 'आर.एल. लेखी' द्वारा उपलब्ध कराए गए और इन्हें दो विभिन्न मुद्राओं में विक्रय के लिए जारी किया गया। चार सेंट और आठ सेंट के मूल्य के इन दो डाक टिकटों की 12,00,00,000 और 4,00,00,000 प्रतियाँ जारी की गई थीं। यह भी एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि आज तक महात्मा गांधी के सम्मानस्वरूप जारी किए गए टिकटों की इतनी बडी संख्या पहले कभी प्रकाशित नहीं की गई।

साल 1969 गांधी जी की जन्मशताब्दी के अवसर पर ब्रिटेन समेत लगभग 40 देशों ने उनपर डाक टिकट जारी किए। 'ब्रिटेन' द्वारा जारी किया गया एक टिकट किसी भी विदेशी व्यक्ति पर जारी किया गया ब्रिटेन का पहला डाक टिकट था। ब्रिटेन सरकार द्वारा गांधी जी को यह सम्मान देने पर वहां के संसद में काफ़ी हो हल्ला भी हुआ था। ब्रिटेन के कुछ सांसदों को सरकार का यह फैसला ज़रा भी अच्छा नहीं लगा था। उन्होंने कहा कि जिस आदमी के कारण भारत में ब्रिटेन साम्राज्य का अंत हुआ उसे सम्मान देने का क्या मतलब है? लेकिन इन सबके बाद भी भारतीय मूल के ब्रिटिश नागरिक 'बिमन मलिक' ने गांधी जी पर डाक टिकट डिजाइन किया, जिसे ब्रिटिश सरकार ने जारी किया था।

साल 1972 में कोलकाता में गांधी जी पर जारी किए गए डाक टिकटों की एक अंतर्राष्ट्रीय टिकटों की प्रदर्शनी में इसी टिकट को सबसे बेहतरीन टिकट का पुरस्कार मिला था। इसके साथ ही एक प्रथम दिवस कवर भी जारी किया गया था, जिस पर लाल रंग से 'चरखे' की आकृति बनाई गई थी।

1994 तक डाक-टिकटों में गांधी की बहुप्रचलित वृद्ध छवि ही मिलती है। युवा गांधी पहली बार 1995 में भारत-दक्षिण अफ्रीका सहयोग पर टिकट में दिखे। यह गांधी पर जारी हुई पहली मिनिएचर शीट (लघुचित्र पत्र) भी थी। इसके बाद 1998 में पुण्यतिथि की पचासवीं वर्षगांठ पर चार टिकट का सी-टेनेंट निकाला गया जिसमें एक पर गुजराती पगड़ी पहने युवा गांधी दिखाई दिये। सी-टेनेंट में दो या अधिक टिकटों पर एक चित्र प्रस्तुत किया जाता है। 2007 में दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह पर निकाले गये टिकट पर एक बार फिर युवा गांधी देखने को मिले।

कांगो नामक अफ़्रीकी गणराज्य द्वारा जारी डाक टिकट किसी भी अफ़्रीकी देश द्वारा गांधी जी के स्मृतिस्वरूप जारी किया गया पहला डाक टिकट था। विश्व के सभी देशों में, भारत और संयुक्त राज्य अमरीका के बाद, महात्मा गांधी पर टिकट जारी करने वाला वह तीसरा गणराज्य था। जिसने 1967 में डाक टिकट जारी किया था।

उज़बेकिस्तान सरकार की ओर से जारी किए गए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से संबंधित 25 डाक टिकटों की सीरीज को भी शामिल किया है, जिनमें महात्मा गांधी के बचपन से लेकर उनके जीवन से संबंधित विभिन्न महत्त्वपूर्ण घटनाओं को चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है।

इसी तरह के 'सेंटा आईसलैंड' नामक देश के द्वारा जारी किये चार डाक टिकटों का सेट भी गांधी संग्रहालय में अभी शामिल हुआ है। इसमें रिफ़्लैक्शन तकनीक के द्वारा महात्मा गांधी का चित्र एक कोण से तथा दूसरे कोण से महात्मा गांधी के साजो-सामान को अंकित किया गया है।

भारत की स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगांठ के मौक़े पर गांधी जी फिर से डाक टिकटों पर छा गए। इस मौक़े पर तुर्क़मेनिस्तान, वेनेज़ुएला, भूटान और क्यूबा ने भारत को सम्मानित करने के लिए गांधी जी पर डाक टिकट जारी किए।

तुर्क़मेनिस्तान 1997 में एक टिकट जारी किया जिसमें भारत की भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी दिखाया गया है। टिकट के कलाकार ने इंदिरा जी को महात्मा गांधी की पुत्री समझ कर इस टिकट में साथ–साथ दिखाया। बाद में पता चलने पर भी टिकट को वैसे ही रहने दिया गया। यह टिकट भारत की स्वतंत्रता के 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में प्रकाशित किया गया था।

गांबिया के टिकट में गांधी जी को उनकी सुप्रसिद्ध गांधी टोपी में देखा जा सकता है। यह विश्व का एकमात्र ऐसा टिकट है जिसमें गांधी जी ने यह टोपी पहनी है। इस प्रकार डाक टिकटों के बारे में जान कर संपूर्ण विश्व में महात्मा गांधी के प्रति सम्मान व आदर के भाव को आसानी से समझा जा सकता है।

भूटान द्वारा जारी प्लास्टिक का डाक टिकट, माइक्रोनेसिया का 'लीडर ऑफ़ ट्वैल्थ सेंचुरी डाक टिकट', मानवाधिकार घोषणा की चालीसवीं वर्षगाँठ पर डोमेनिका का गाँधी टिकट, जिसमें गाँधी जी को 'मार्टिन लूथर किंग, एल्बर्ट आइंस्टीन और रूज़वेल्ट के साथ दिखाया गया है।

उत्तरी अमेरिका द्वारा जारी डाकटिकट में गाँधी को मृत्युशैया पर लेटे दिखाया गया है। हालाँकि गाँधी नाथूराम गोडसे की गोली से यहाँ बिड़ला हाउस में शहीद हुए। सांडा द्वीप के थ्री डी डाक टिकट में गाँधी को बच्चों को दुलारते दर्शाया गया है। डबरा आइसलैंड का गाँधी पर गोल्डन डाक टिकट नाइजीरिया का आइंस्टीन के साथ गाँधी का टिकट तजाकिस्तान के डाक टिकट में गाँधी को साइकिल चलाते दिखाया गया है और जाम्बिया के 'लॉ स्टूडेंट इन लंदन' इस अनूठे संग्रह के अंग हैं।

दक्षिण अमेरिका का 10 टिकटों का सेट जिसमें नेहरू, गाँधी और पटेल शामिल हैं।

साल 1978 में गांधी जी की 30वीं पुण्य तिथि के अवसर पर 'माली' (पश्चिमी अफ़्रीका) ने डाक टिकट जारी किया। इसके 10 साल बाद 1988 में श्रीलंका ने भी गांधी जी पर डाक टिकट जारी किया। कई देशों ने उनकी 50वीं पुण्यतिथि पर भी डाक टिकट जारी किए। 20 जुलाई 1997 को शिकागो सरकार ने एक पोस्टमार्क भी जारी किया। यह तीसरा मौक़ा था जब गांधी जी के नाम पर अमेरिका में पोस्टमार्क जारी किया गया। साल 1972 में ब्राजील और 1978, 1986 में जर्मनी ने भी गांधी जी पर डाक टिकट जारी किए थे।

ऐश्वर्या राय के साथ महात्मा गांधी का कोई मेल हो सकता है यह सोचना अटपटा लगता है, लेकिन सन् 2008 में दक्षिण अफ्रीका के द्वीपीय देश गिनी ने गांधी जी पर जो डाक टिकट जारी किया है, उसकी मिनियेचर शीट में पृष्ठभूमि में ऐश्वर्या राय है और आमुख पर महात्मा गांधी पं. जवाहर लाल नेहरू से बतियाते दिख रहे है।

महात्मा गांधी का एक और विचित्र प्रस्तुतीकरण अफ़्रीका महाद्वीप के ही देश बरुंडी ने किया। यहां की सरकार ने 2007 में महात्मा गांधी पर डाक टिकट जारी करने का निश्चय किया। इसके लिए जो मिनियेचर शीट बनाई गई उसमें परिवार सहित गांधी जी को दिखाने के चक्कर में महात्मा गांधी के साथ इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और राहुल गांधी के चित्र शामिल किये गये है।

गांधी वर्ल्ड फाउंडेशन के अनुसार, पोलैंड गांधी पर पोस्ट कार्ड जारी करने वाला पहला देश था। भारत के अलावा गांधी स्मृति लिफाफा जारी करने वाला पहला देश रोमानिया था। गांधीजी की प्रशंसा में सबसे पहले डाक टिकट जारी करने वाला देश म्यांमार (पूर्व में बर्मा) था। अन्य देश चेकोस्लोवाकिया और लक्समबर्ग थे।

गांधीजी शताब्दी समारोह के एक भाग के रूप में, भूटान (2 डाक टिकट) और सोमालिया (3 डाक टिकट) देशों ने 5 टिकट जारी किए, जो सभी नासिक, महाराष्ट्र, भारत में मुद्रित किए गए हैं।

डाक टिकटों में महात्मा गांधी की जीवन यात्रा

सर्व विदित है कि मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म पोरबंदर में 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था। इसके ठीक सौ बरस बाद यानी 1969 में गांधी जन्म शती के उपलक्ष्य में मॉरिशस पोस्ट ने अधिकारिक तौर पर जारी प्रथम दिवस कवर जारी किया। जिस पर उस घर का चित्र छपा है जहां गांधी का जन्म हुआ था। बाद में एंटीगुआ ने 1998 में और भारतीय डाक के गुजरात पोस्टल सर्कल ने महात्मा गांधी के एल्पड हाई स्कूल राजकोट पर विशेष विरूपण जारी किया। बता दें, गांधी का विवाह 1883 में 13 वर्षीया कस्तूरबा के साथ हुआ। इसे लेकर साल 1969 में भारतीय डाक विभाग ने बा और बापू पर 20 पैसे का खास डाक टिकट जारी किया। इधर, 1888 से 91 तक गांधी ने इंग्लैण्ड में विद्याध्ययन किया। इसी काल का एक डाक टिकट जांबिया ने पश्चिमी वेशभूषा पहने छात्र के रूप में वर्ष 1998 में जारी किया। स्मरण दिला दें, साल 1893 में दक्षिण अफ्रीका में ट्रेन सफर के दौरान प्रथम श्रेणी का वैध टिकट होने के बावजूद गांधी को जबरन तीसरी श्रेणी में सफर करने को मजबूर करने तथा इनकार करने पर जबरदस्ती ट्रेन से बाहर निकाल दिया गया। इसके बाद साल 1894 में ही गांधी ने दक्षिणी अफ्रीका के ट्रांसवाल में वकालत की। इस घटना विशेष पर साल 1995 में साउथ अफ्रीका ने गांधी के वकील बने चित्र के रूप में डाक टिकट जारी किया। वहीं युगाण्डा ने भी महात्मा गांधी को जोहानसबर्ग ऑफिस में कर्मचारियों संग बैठे चित्र को डाक टिकट रूप में जारी किया। एक कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में गांधी ने साउथ अफ्रीका के नताल में वर्ष 1895 में एक प्रमुख गिरमिटिया मजदूर का बचाव कानूनी लड़ाई से किया। साल 1901 में गांधी नताल से भारत आते हुए पोर्ट लुइस से मॉरिशस पहुंचे। उस स्मृति को शताब्दी वर्ष के रूप में मॉरिशस ने साल 2001 में 15 रुपए डाक टिकट जारी कर ताजा किया।अन्य स्मृतियों के रूप में साल 1906 में मॉरिशस ने ही एक डाक टिकट में गांधी को एक सत्याग्रही के रूप में दर्शाया। वहीं उरुग्वे ने उन्हें स्वदेशी वस्तुओं के हिमायती के रूप में स्थापित एक नायक की तरह डाक टिकट पर प्रस्तुत किया। इसी तरह, साल 1915-18 के दौरान मौलिक अधिकारों की लड़ाई लडऩे की घटना को वर्ष 1998 में भारतीय डाक विभाग ने 2 रुपए डाक टिकट और 1930 के नमक सत्याग्रह को 5 रुपए मूल्य के टिकट रूप में जारी किया। इधर, गुयाना ने गांधी और चरखे की कृति को तो भारत ने चंपारण सत्याग्रह घटना पर 5, 10 और 25 रुपए मूल्य के डाक टिकट जारी किए।

गौरतलब है कि महात्मा गांधी की 150वीं जन्म शती /जयंती पर 2019 में फ्रांस, उज्बेकिस्तान, टर्की, फिलिस्तीन और मोनाको समेत 69 देशों ने विशेष डाक टिकट जारी किए थे।



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें