पुराणों के अनुसार पृथ्वी पर मौजूद अष्टजीवियों में बजरंगबली भी शामिल हैं। यही वजह है कि ये हर पल अपने भक्तों के साथ रहते हैं। और जब-तब अपनी महिमा दिखाते रहते हैं। आज आपको ऐसे ही स्वयं-भू प्रतिमा के बारे में बताया जा रहा है जिसका स्वरूप दिन में तीन बार प्रतिदिन बदलता है। ये बाल्यावस्था से वृद्धावस्था तक पहुंचता है। ये अद्भुत प्रतिमा दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। रूप बदलने का रहस्य तो अब तक बरकरार है, लेकिन यहां आने वाले भक्तों की मुराद जरूर पूरी होती है। ये प्रतिमा स्वयं-भू है।
मध्य प्रदेश (एमपी) के मंडला जनपद (मंडला से लगे पुरवा ग्राम के समीप) के सकवाहा जिला मुख्यालय से करीब दस किलोमीटर दूर व छोलापुर के निर्माण के बाद करीब 5 किमी दूर स्थित इस मंदिर में बजरंगबलि की दुर्लभ आलौकिक प्रतिमा है। इसका स्वरूप सूर्य की किरणों के साथ ही प्राकृतिक तरीके से तीन बार मूर्ति का रूप परिवर्तित होता है।
मंदिर के पुजारी की मानें तो 24 घंटो में हनुमान जी की प्रतिमा का बाल्यावस्था सुबह चार बजे से दस बजे तक रहता है। इसके बाद दस बजे से शाम 6 बजे तक युवावस्था और फिर 6 बजे से पूरी रात वृद्धावस्था हो जाता है। इस चमत्कारी हनुमान जी के तीनों ही रूपों के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से यहां आते हैं। इस मंदिर को सूर्य कुंड के नाम से जाना जाता है।
पुराणो में उल्लेख
मूर्ति पौराणिक काल की है। पवनपुत्र के तीनों ही रूपों का उल्लेख वायु पुराण, स्कंद पुराण, अग्नि पुराण सहित नर्मदा पुराण में भी है। बताया जाता है कि ये स्वयंभू है। बाद में भारतीजी महाराज ने मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की और धीरे-धीरे मंदिर का निर्माण होता गया जो आज बहुत ही सुंदर स्वरूप में है।
पुश्तों से कर रहे पूजा
मुरलीधर नंदा का परिवार कई पुश्तों से मंदिर में पवनपुत्र की सेवा कर रहे हैं। कहा जाता है यहां आने वाले लोग सच्चे ह्दय से जो भी मांगते हैं उनकी मनोकामना जरूर पूर्ण होती है। क्षेत्रीय लोगों आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में भी इस संबंध में बड़ी आस्था है।
स्थानीय लोगों के अनुसार सूरजकुंड के मंदिर का इतिहास पुराना है। मंदिर में स्थापित हनुमान जी की मूर्ति दुर्लभ है जो कि कहीं और देखने को नहीं मिलती। यहां हनुमान जयंती पर काफी संख्या में भक्तों का जमावड़ा लगता है। जयंती के दौरान यहां रामायण का अखंड पाठ होता है। भक्तों द्वारा यहां विशेष आरती की जाती है।
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