झारखंड को राम के काल में दंडकारण्य का क्षेत्र कहा जाता था। यह उस काल में ऋषियों की तपोभूमि था। घने जंगलों से घिरे इस क्षेत्र में कई ऋषियों के आश्रम थे जहां देवता उनसे मिलने आते थे।
यहां मां गंगा खुद करने आती हैं शिव जी का जलाभिषेक
झारखंड के रामगढ़ में एक मंदिर ऐसा भी है जहां भगवान शंकर के शिवलिंग पर जलाभिषेक कोई और नहीं स्वयं मां गंगा करती हैं। मंदिर की खासियत यह है कि यहां जलाभिषेक साल के बारह महीने और चौबीस घंटे होता है। यह पूजा सदियों से चली आ रही है। माना जाता है कि इस जगह का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। कहा जाता है कि सच्चे मन से इस मन्दिर में मांगी गई मुराद भगवान भोले पूरी करते है।
शिव पुराण में बताया गया है की शिव की जटाओ में गंगा का वास है और इस मंदिर में भी शिवलिंग का अभिषेक स्वयं माँ गंगा कर रही है। अत: इस रूप को देखने दूर दूर से भक्त इस मंदिर में चले आते है।
पुराने समय में जब इस मंदिर की जानकारी अंग्रेजों को हुई और उन्होंने यहाँ होने वाले चमत्कार को अपनी आँखों से देखा तो उनकी आँखें फटी की फटी रह गई थी। ऐसे में भगवान के प्रति लोगों की आस्था और मजबूत हो जाती है। यही वजह है कि इस मंदिर की कहानी दूर-दूर तक प्रचलित हो गई है और दिनों-दिन इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ती जा रही है।
अंग्रेजों के जमाने से जुड़ा है इतिहास
झारखंड के रामगढ़ जिले में रामगढ़ से 8 कि.मी. की दूरी पर कुजू की ओर स्थित इस प्राचीन शिव मंदिर को लोग टूटी झरना के नाम से जानते है। एनएच 33 से करीब तीन किमी अंदर जाने पर मंदिर है।
मंदिर का इतिहास 1925 से जुड़ा हुआ है और माना जात है कि तब अंग्रेज इस इलाके (बरकाकाना-गोमो के बीच) में रेलवे लाइन बिछाने का काम कर रहे थे। पानी के लिए खुदाई के दौरान उन्हें जमीन के अन्दर कुछ गुम्बदनुमा चीज दिखाई पड़ा। अंग्रेजों ने इस बात को जानने के लिए पूरी खुदाई करवाई और अंत में ये मंदिर पूरी तरह से नजर आया। लोगों की आस्था को देखते हुए तब रेललाइन को वहां से डाइवर्ट किया गया था। साथ ही रेलवे ठेकेदार ने ही 1925 में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था।
वहीं दूसरी ओर मंदिर के पुजारियों का कहना है कि उनके पूर्वज इस मंदिर में लगभग 300 सालों से पूजा करते आ रहे है जबकि कुछ लोग का मानना है कि यह मंदिर अंग्रेजों ने ढूंढा था।
शिव भगवान की होती है पूजा
मंदिर के अन्दर भगवान भोले का शिव लिंग मिला और उसके ठीक ऊपर मां गंगा की सफेद रंग की प्रतिमा मिली। प्रतिमा के नाभी से आपरूपी जल निकलता रहता है जो उनके दोनों हाथों की हथेली से गुजरते हुए शिव लिंग पर गिरता है। मंदिर का सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि माँ गंगा की मूर्ति में कही भी कोई दूसरा सुराख नहीं है। मंदिर के अन्दर गंगा की प्रतिमा से स्वंय पानी निकलना अपने आप में एक कौतुहल का विषय बना है।
अपने आप शिवलिंग पर गिर रहे जल को देखकर एक बार अंग्रेज भी आश्चर्यचकित हो गए थे। स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि मंदिर के चमत्कार को देखकर अंग्रेज काल में अंग्रेजों की आंखें फटी की फटी रह गई थी।
मां गंगा की जल धारा का रहस्य
सवाल यह है कि आखिर यह पानी अपने आप कहा से आ रहा है। ये बात अभी तक रहस्य बनी हुई है। कहा जाता है कि भगवान शंकर के शिव लिंग पर जलाभिषेक कोई और नहीं स्वयं मां गंगा करती हैं।
चूंकि भगवान शिव का हर ग्रह-नक्षत्र और समस्त पंचभूतों पर नियंत्रण है। अत: जलशक्ति भी उनकी आज्ञा का पालन करती है और वे निरंतर शीतल जल से अभिषेक करवाते हैं।
दो चमत्कारी हैंडपंप भी है इस मंदिर परिसर में
यही नही एक चमत्कार और भी यहाँ कुछ वर्ष पूर्व घटा। मंदिर परिसर में पांच वर्ष पूर्व गाव वालो ने दो हेण्डपम्प लगाये थे। उन हेडपम्पो से पानी लेने के लिए गाव वालो को उन्हें चलने की जरूरत नही है क्योकि उन हेण्डपम्पो को बगैर चलाये ही उसमे 24 घंटे पानी आते रहता है। इसे यहाँ के लोग भगवान का ही चमत्कार मानते है। ऐसा इसलिए क्योकि इसी मंदिर के नजदीक में एक नदी है पर वह हमेशा बिलकुल सुखी रहती है परन्तु उन हेण्डपम्पो से पानी की मोटी धारा प्रचंड गर्मी के मौसम में भी बहती रहती हैै।
दर्शन के लिए बड़ी संख्या में आते हैं श्रद्धालु
लोग दूर-दूर से यहां पूजा करने आते हैं और साल भर मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। श्रद्धालुओं का मानना हैं कि टूटी झरना मंदिर में जो कोई भक्त भगवान के इस अदभुत रूप के दर्शन कर लेता है उसकी मुराद पूरी हो जाती है।
इच्छापूर्ण करता है यह चमत्कारी जल
भक्त शिवलिंग पर गिरने वाले जल को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं और इसे अपने घर ले जाकर रख लेते हैं। इसे ग्रहण करने के साथ ही मन शांत हो जाता है और दुखों से लड़ने की ताकत मिल जाती है। कितना भी सूख पड़ा लेकिन, यह जलधारा कभी बन्द नहीं हुई।
शादी के सीजन में यहां खूब शादियां होती हैं। साथ ही शिवरात्रि और सावन में भक्तों की भीड़ उमड़ती है।
कैसे पंहुचे - टूटी झरना मंदिर जाने के लिए साल को कोई भी समय चुना जा सकता है।
हवाई मार्ग – रामगढ़ से लगभग 31 कि.मी. की दूरी पर रांची एयरपोर्ट है। रांची तक हवाई मार्ग की सहायता से पहुंच कर, वहां से रामगढ़ रेल या बस की सहायता से पहुंचा जा सकता है। रामगढ़ पहुंचने के बाद निजी गाड़ी करके मंदिर पहुंच सकते है।
रेल मार्ग – देश की लगभग सभी बड़े शहरों से रामगढ़ के लिए नियमित रेल गाड़ियां चलती है। जिनसे रामगढ़ तक आ कर वहां से निजी साधन करके टूटी झरना मंदिर पहुंचा जा सकता है।
सड़क मार्ग – रामगढ़ स्थित टूटी झरना मंदिर पहुंचने के लिए सड़क मार्ग से भी जाया जा सकता है। देश के लगभग सभी बड़े शहरों से रामगढ़ के लिए बस चलती है।
टूटी झरना मंदिर के आस-पास के घूमने के स्थान -
1. रजरप्पा मंदिर - रामगढ़ से 28 कि.मी. की दूरी पर मां छिन्मस्तिका का मंदिर स्थित है। इस मंदिर का मुख्य आकर्षण देवी छिन्मस्किता की बिना सिर वाली मूर्ति हैं।
2. मायातुंग मंदिर - यह मंदिर रामगढ़ से 5 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर पहाड़ों पर स्थित है। यहां के लोग इस मंदिर में पूजा करके भगवान से बारिश के लिए प्रार्थना करते है।
3. दुर्दुरिय झरना - रामगढ़ से 4 कि.मी. की दूरी पर दुर्दुरिया नामक क सुंदर झरना स्थित है।
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