यहां होती है भगवान शिव के अंगूठे की पूजा, दिन में तीन बार रंग बदलता है शिवलिंग
हिन्दू धर्म में भगवान शिव को मृत्युलोक देवता माने गए हैं। शिव को अनादि, अनंत, अजन्मा माना गया है यानि उनका कोई आरंभ है न अंत है। न उनका जन्म हुआ है, न वह मृत्यु को प्राप्त होते हैं। इस तरह भगवान शिव अवतार न होकर साक्षात ईश्वर हैं। भगवान शिव को कई नामों से पुकारा जाता है। कोई उन्हें भोलेनाथ तो कोई देवाधि देव महादेव के नाम से पुकारता है। वे महाकाल भी कहे जाते हैं और कालों के काल भी।
शिव की साकार यानि मूर्तिरुप और निराकार यानि अमूर्त रुप में आराधना की जाती है। शास्त्रों में भगवान शिव का चरित्र कल्याणकारी माना गया है। उनके दिव्य चरित्र और गुणों के कारण भगवान शिव अनेक रूप में पूजित हैं। अभी तक आपने कई शिव मंदिरों के बारे में सुना और भ्रमण किया होगा लेकिन आज हम आपको एक अनोखे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बारे में सुनकर आप भी हैरान रह जायेंगे।
धौलपुर का शिवलिंग
अचलेश्वर महादेव के नाम से वैसे तो हमारे देश में बहुत से मंदिर है। आज हम जिस अचलेश्वर महादेव की बात बता रहे है वो मंदिर राजस्थान के धौलपुर ज़िले में राजस्थान और मध्यप्रदेश की सीमा पर शहर से लगभग 5 किमी दूरी पर चम्बल के भयानक बीहड़ों के बीच स्थित है।
अचलेश्वर महादेव मंदिर जंगल में स्थित होने की वजह से बहुत कम लोग दर्शन हेतु पहुँचते थे। लेकिन धीरे धीरे जैसे ही इस मंदिर के चमत्कारी होने का लोगों का पता चला भारी मात्रा में शिव भक्त यहाँ आने लगे। दुनियाभर में अनेक स्वयंभू मंदिर हैं जिनमें से एक अचलेश्वर मंदिर में स्थापित शिवलिंग भी है।
अचलगढ़ महादेव तीर्थ दुनिया का इकलौता ऐसा स्थान है जहां भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है। भगवान शंकर यहां अंगूठे में वास करते है।
रंग बदलता है शिवलिंग
इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत है यहां का शिवलिंग जो कि दिन मे तीन बार अपना रंग बदलता है। सुबह इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग का रंग लाल होता है। लेकिन दोपहर में इसका रंग पूरी तरह बदलकर केसरिया हो जाता है। उसके बाद सूर्यास्त के बाद यानी शाम में यह शिवलिंग उजले रंग (श्याम रंग / सांवला) में तब्दील हो जाता है। फिर शिवलिंग का यह रंग रात तक रहता है। किसी के पास भी इस चमत्कारिक शिवलिंग का कोई जवाब नहीं है।
कोई नहीं जान पाया गहराई
किवंदती है कि कठिन और खतरों से भरे रास्ते की वजह से कई साल पहले शिवभक्तों ने स्वयंभू शिवलिंग को शिफ्ट करने के लिए खुदाई शुरु कर दी थी लेकिन उन्हें यह खुदाई बीच में ही बंद करनी पड़ी क्योंकि काफी गहराई तक खुदाई करने पर भी शिवलिंग के अंतिम छोर तक पहुंच नहीं पाए थे।
किसी को नहीं पता रहस्य
प्राकृतिक पाताल
इसके साथ इस मंदिर का एक रहस्य यह भी है कि शिवलिंग को चढ़ाया जाने वाला जल कहां जाता है। पुरातत्व विभाग की टीम भी अभी तक मंदिर के इस रहस्य को समझ नहीं पाई है। अंगूठे (शिवलिंग) के नीचे बने प्राकृतिक पाताल खड्डे में कितना भी पानी डालने पर खाई पानी से नहीं भरती। इसमें चढ़ाया जाने वाला जल कहाँ जाता है, यह आज भी एक रहस्य है।
यह मंदिर अतिप्राचीन है। बताया जाता है कि मंदिर की स्थापना 2500 साल पहले हुई थी। भगवान शंकर के इस अनूठे मंदिर में पंच धातु की बनी नंदी की एक विशाल प्रतिमा विराजमान है। शिवलिंग के ऊपर एक तरफ पैर के अंगूठे का निशान उभरा हुआ है, जिसे स्वयंभू शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है। नंदी के बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर को मुगल काल में मुस्लिम आक्रमणकारियों से भी रक्षा की थी। बताया जाता है कि नंदी ने लाखों मधुमख्खियों को छोड़कर मुस्लिम आक्रमणकारियों को यहां से खदेड़ दिया था।
अगूंठे को लेकर यह है मान्यता
इस मंदिर के बारे में एक पौराणिक कथा है। कथा के मुताबिक़, जब अर्बुद पर्वत पर स्थित नंदीवर्धन हिलने लगा तो हिमालय में तपस्या कर रहे भगवान शंकर की तपस्या भंग हुई। क्योंकि इसी पर्वत पर भगवान शिव की प्यारी गाय नंदी भी था। लिहाजा पर्वत के साथ नंदी बैल को भी बचाना था। भगवान शंकर ने हिमालय से ही अंगूठा फैलाया और अर्बुद पर्वत को स्थिर कर दिया। नंदी गाय बच गई और अर्बुद पर्वत भी स्थिर हो गया। भगवान शिव के अंगूठे के निशान यहां आज भी देखे जा सकते है। यह देवाधिदेव शिव का दाहिना अंगूठा माना जाता है।
मान्यता है कि इसी अंगूठे ने पूरे माउण्ट आबू के पहाड़ को थाम रखा है, जिस दिन अंगूठे का निशान गायब हो जाएगा, माउण्ट आबू का पहाड़ खत्म हो जाएगा।
भगवान के दस अवतार भी
गर्भगृह के बाहर भगवान विष्णु के दस अवतारों की मूर्तियां भी हैं। इनमें वराह, नरसिंह, वामन, कच्छप, मत्स्य, कृष्ण, राम, परशुराम, बुद्ध व कलंगी अवतारों की काले पत्थर की भव्य मूर्तियां स्थापित हैं। क्या हैं पौराणिक कथाएं, ये जानिए आगे।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार जहाँ आज आबू पर्वत स्थित है, वहाँ नीचे विराट ब्रह्म खाई थी। इसके तट पर वशिष्ठ मुनि रहते थे।
उनकी गाय कामधेनु एक बार ब्रह्म खाई में गिर गई तो उसे बचाने के लिए मुनि ने सरस्वती, गंगा का आह्वान किया तो पानी ब्रह्म खाई से जमीन की सतह तक भर गया और कामधेनु गाय बाहर जमीन पर आ गई।
दोबारा फिर ऐसा ही हुआ। इसे देखते हुए वशिष्ठ मुनि ने हिमालय जाकर उससे ब्रह्म खाई को पाटने का अनुरोध किया।
हिमालय ने मुनि का अनुरोध स्वीकार कर अपने प्रिय पुत्र नंदी वद्रधन को जाने का आदेश दिया। अर्बुद नाग नंदी वद्रधन को उड़ाकर ब्रह्म खाई के पास वशिष्ठ आश्रम लाया। फिर क्या हुआ, जानिए आगे।
आश्रम में नंदी वद्रधन ने वरदान मांगा कि उसके ऊपर सप्त ऋषियों का आश्रम होना चाहिए एवं पहाड़ सबसे सुंदर व विभिन्न वनस्पतियों वाला होना चाहिए। वशिष्ठ ने वांछित वरदान दिए।
उसी प्रकार अर्बुद नाग ने वर मांगा कि इस पर्वत का नामकरण उसके नाम से हो। इसके बाद से नंदी वद्रधन आबू पर्वत के नाम से विख्यात हुआ।
वरदान प्राप्त कर वद्रधन नंदी खाई में उतरा तो धंसता ही चला गया, केवल नंदी वद्रधन की नाक एवं ऊपर का हिस्सा जमीन से ऊपर रहा, जो आज आबू पर्वत है। इसके बाद भी वह बार-बार हिल रहा था। अचल नहीं रह पा रहा था।
तब वशिष्ठ के विनम्र अनुरोध पर महादेव ने अपने दाहिने पैर के अंगूठे को पसार कर इसे स्थिर किया यानी अचल कर दिया। तभी यह अचलगढ़ कहलाया। तभी से यहां अचलेश्वर महादेव के रूप में महादेव के अंगूठे की पूजा-अर्चना की जाती है। आगे है इससे जुड़ी एक और कहानी।
शादी की कामना पूरी करता है शिवलिंग
यहाँ कुँवारों की मन्नत अवश्य पूर्ण होती है। इसीलिए यहाँ भारी संख्या में अविवाहित लोग आकर अपने लिए मन्नत माँगते हैं।
भगवान भोलेनाथ को तो वैवाहिक जीवन का सुख देने के लिए ही जाना जाता है। जिस तरह भोलेनाथ ने मां पार्वती को मनचाहे वर का वरदान दिया था उसी तरह इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग भी लोगों की मनचाहे जीवनसाथी को पाने की मनोकामना पूरी करता है। सावन के सोमवार में शिव की पूजा करने से मनचाहा जीवनसाथी मिलता है। अपने लिए सुयोग्य जीवनसाथी की मनोकामना लेकर बड़ी संख्या में युवा यहां पहुंचते हैं।
इस तरह अचलेश्वर महादेव मंदिर में भक्तों की मनचाहे जीवनसाथी पाने की मुराद के साथ और भी कई तरह की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
माउण्ट आबू के पहाड़ों में बने इस मंदिर से आप खूबसूरत नही और पहाड़ देख सकते है। अगर आप अचलेश्वर मंदिर जाते हैं तो अचलगढ़ की पहाड़ियों पर स्थित हिल स्टेशन माउंट आबू जा भी सकते हैं। घूमने के लिए यह जगह बहुत ही खूबसूरत है।
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