मंगलवार, 9 जुलाई 2019

पहाड़ों पर लटकते ताबूत

पहाड़ों पर लटकते हुए ताबुत (Hanging Coffins on a cliff) :-

आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि पुराने जमाने में कई समुदायों में शव को कॉफिन में रखकर पहाड़ों पर लटकाने का रिवाज़ था। इनमे सबसे पुराना कॉफिन्स तो 2000 साल पुराना है।

वो लोग ऐसा क्यों करते थे इसका कोई पुख्ता कारण तो पता नहीं है पर एक मान्यता यह है कि वो लोग कॉफिन्स को पहाड़ो पर रखकर ये सोचते थे कि मृत व्यक्ति वापस आसानी से प्रकति में लौट जायेंगे। इस तरह के हैंगिंग कॉफिन्स (लटकते हुए ताबूत) विश्व में तीन देशो चीन, इंडोनेशिया और फिलीपींस में मिले है। फिलीपींस के Sagada में तो यह प्रथा कुछ हद तक अब भी प्रचलित है। इन सबमे चीन में मिले कॉफिन्स सबसे प्रमुख है।

 1. Hanging Coffins Of China At Yangtze :-

चीन में यांग्त्जी (Yangtze) नदी के किनारे तीन अलग-अलग पहाड़ियों पर लटकते कब्रगाह मिले हैं। यह सारे कॉफिन्स मिंग राजवंश के समय के है तथा बो समुदाय से सम्बंधित है।

चीन के सिचुआन प्रांत में बो समुदाय के लोग रहते थे। संख्या में कम होने के बावजूद उनका उस प्रांत पर जबरदस्त प्रभाव रहता था। इस समुदाय के लोग अपने परिजनों के मरने पर उनके शव को लिनेन के कपड़े में लपेट कर उसके साथ कुछ सामान रख देते थे। इसके बाद ये लकड़ी के एक टुकड़े से ताबूत बनाते थे जिसमें शव के साथ इन सामानों को रख दिया जाता था। पाँच सौ मीटर यानी करीब सोलह सौ चालीस फीट तक के ऊँचे इन ताबूतों को रस्सियों के सहारे पहाड़ों के ऊपरी हिस्सों पर लटका दिया जाता था। कभी-कभी ताबूतों को पहाड़ के अंदर किसी गुफा में भी रख दिया जाता था।

किसी समय में यहाँ पर 1000 से ज्यादा कॉफिन्स थे पर अब कुछ सौ ही बचे है जिन्हे संरक्षित कर दिया गया है। अब ये चीन के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है।

चीन के कॉफिन्स सबसे खतरनाक जगहो पर रखे गए है। यह आज तक भी एक राज ही है, कि आज से कई सदियो पहले इन्हे यहाँ किस तरीके से रखा गया होगा।

चीन में के हुबेई प्रांत
चीन में के हुबेई प्रांत में जिगुई काउंटी के नगर क्षेत्र मोपिंग में 100 मीटर ऊंची एक पहाड़ी की चोटी पर लटकते हुए ताबूत मिले हैं। इन लटकते हुए ताबूतों की संख्या 131 है।

इतिहास पर गौर करें तो चीन में यह अब तक की सबसे बड़ी लटकती हुई कब्रगाह है। ये ताबूत लकड़ी के बने हुए हैं और इन ताबूतों को पहाड़ी पर मानव निर्मित गुफाओं या प्राकृतिक चट्टानी सुरंगों में रखा गया था।

पुरातत्वविदों के मुताबिक ये लटकते ताबूत 1200 वर्ष पुराने तुंग वंश के समय के हैं। मोपिंग नगर क्षेत्र के उप प्रमुख जाओ चेंगैंग ने कहा कि स्थानीय सरकार ने इसे विशेष सुरक्षा के तहत एक सांस्कृतिक स्थल की सूची में शामिल किया है।

इस कब्रगाह की कब्रों को संरक्षित किया गया है। लटकते हुए ताबूत कुछ दक्षिण जातीय समूहों में अंतिम क्रिया का प्राचीन रिवाज है। हालांकि ये अब भी रहस्मयी हैं और विशेषज्ञ यह नहीं जान पाए हैं कि प्राचीन काल के लोग किस प्रकार इन्हें ऊंची चट्टानों पर पहुंचाते थे।

हालांकि इस प्रकार का लटकता कब्रगाह मिलना इस बात का पर्याप्त सबूत है कि लोग पहले विभिन्न प्रकार के ऐसे रीति-रिवाजों को अपने जीवन में स्थान देते थे, जिनका आज के समय से कोई संबंध नहीं है।

2. Hanging Coffins Of Philippines At Sagada :-

चौंकाने वाली परंपरा

सात हजार द्वीपों वाले दक्षिण पूर्वी एशिया में बसे फिलीपींस के माउंटेन सूबे के उत्तरी इलाके में पहाड़ों के बीचों बीच एक क़स्बा है 'सगाडा' (Sagada)। ये पूरी दुनिया में अपने लटकते हुए ताबूतों के लिए मशहूर है। यहां सदियों से 'इगोरोट' जनजाति के लोग रहते आ रहे हैं।

फिलीपींस की राजधानी मनीला से सगाडा तक पहुंचने में क़रीब साढ़े आठ घंटे का सफ़र करना पड़ता है। रास्ता भी बहुत ऊबड़ खाबड़ है। रास्ते भर आपको कई तरह की बेहद पुरानी, भूतिया लेकिन अनूठी तस्वीरें और रस्मो-रिवाज देखने को मिलेंगे।

सगाडा में क़रीब दो हज़ार साल पुरानी अजीब रस्म है। यहां ये प्रथा कुछ हद तक अब भी प्रचलित है।

पूर्वज ख़ुद तैयार करते हैं ताबूत

इगोरोट समुदाय के लोग अपने लिए ख़ुद ताबूत तैयार करते हैं। यहाँ पर अब भी बुजुर्ग मृत्यु पूर्व, खुद के लिए कॉफिन तैयार करते है। यदि वो बीमार और कमजोर है तो ये काम घर के अन्य सदस्य करते है।

लेकिन ये ताबूत ज़मीन में दफ़न नहीं किया जाता, बल्कि इसे एक ऊंचे पहाड़ की चोटी पर लटका दिया जाता है। मान्यता है कि हवा में लटकी हुई लाशें उनके स्वर्गवासी पूर्वजों को उनके क़रीब लाती हैं। लोग मर कर भी अपनों से अलग या दूर नहीं होते।

रिवायती तौर पर ये काम बुज़ुर्ग ख़ुद अपने लिए करते हैं। इलाक़े में पाए जाने वाली लकड़ी की मदद से वो ताबूत तैयार करते हैं। उस पर रंग-रोग़न होता है। ताबूत के एक तरफ़ मरने वाले का नाम पता लिखा जाता है। मुर्दे को ताबूत में लिटाने से पहले उस में लकड़ी की एक कुर्सी बांधी जाती है। जिसे 'डेथ चेयर' कहते हैं।

इस कुर्सी को अंगूर की बेलों और पत्तियों से बांध कर एक कंबल से ढांप दिया जाता है। दरअसल मुर्दे को ताबूत में लटकाने के कई दिन बाद तक मरने वाले के अज़ीज़ उसके पास आते रहते हैं। मरने के कुछ दिन बाद लाश गलने लगती है। चूंकि मृत शरीर अंगूर की पत्तियों से ढका रहता है लिहाज़ा सड़न का एहसास नहीं होता।

डेथ चेयर वाले ताबूत

बीते ज़माने में ताबूत की लंबाई महज़ एक मीटर होती थी। मुर्दे को पहले कुर्सी पर रखा जाता था। लोग आखिरी दर्शन करते थे। इसके बाद मुर्दे को डेथ चेयर से उठाकर एक मीटर वाले ताबूत में इस तरह ठूंसा जाता था कि मुर्दे की तमाम हड्डियां टूट जाती थीं और वो भ्रूण की तरह ताबूत में फिट हो जाता था।

माना जाता है कि दुनिया में जब इंसान आता है तो सबसे पहले वो भ्रूण का रूप लेता है। इसीलिए जब दुनिया से जाता है तो उसे उसी रूप में जाना चाहिए। हालांकि अब ताबूत की लंबाई बढ़ा दी गई है। कम से कम दो मीटर का ताबूत बनाया जाता है। ताबूत को पहाड़ पर लटकाने से पहले वहां लोहे की बड़ी कीलें ठोकी जाती हैं, जो आगे से थोड़ी मुड़ी रहती हैं। ताबूत को इन कीलों पर ही रखा जाता है।

मुर्दे को ताबूत में रखने से पहले उसे ख़ास तरह की पत्तियों में लपेटा जाता है। जिस वक़्त ताबूत को कीलों पर टिकाने के लिए खींचते हैं, तब ताबूत से पत्तियों का रस निकलता है। ग़मज़दा लोग ताबूत से निकलने वाले पत्तियों के इस रस को अपने शरीर पर गिरने देते हैं। लोग इसे ख़ुशक़िस्मती का ज़रिया मानते हैं।

फिलीपींस से लेकर इंडोनेशिया में प्रचलित

इतिहास बताता है कि अंतिम संस्कार की ये प्रक्रिया सिर्फ़ फिलीपींस में ही नहीं बल्कि चीन और इंडोनेशिया के कई इलाक़ों में भी अपनाई जाती थी।

ये और बात है कि इन जगहों पर अब ये चलन नहीं है। ख़ुद फिलीपींस में भी सिर्फ़ सगाडा गांव में ही ये तरीक़ा आज भी अमल में हैं। वहां भी प्राचीन क़बाइली लोग ही अंतिम संस्कार का ये तरीका ज़िंदा रखे हुए है। साल 2010 में आख़िरी बार पहाड़ पर कोई मुर्दा दफ़नाया गया था।

पिछले कुछ साल से इस रवायत की वजह से सगाडा गांव मशहूर टूरिस्ट स्पॉट बन गया है। दूर दूर से लोग पहाड़ पर बने इस क़ब्रिस्तान को देखने आते हैं।

सबसे दिलचस्प बात ये है कि ये क़ब्रिस्तान अब इगोरोट समाज के लोगों के लिए फ़ायदे का सौदा साबित हो रहा है। सैलानियों की तादाद बढ़ने से लोगों का काम-धंधा बढ़ गया है। सगाडा की माली हालत हालात बेहतर हुई है।

हालांकि गुज़री पीढ़ियों के मुक़ाबले अब इस क़ब्रिस्तान में बहुत कम लोग अपने मुर्दे दफ़नाते हैं। लेकिन उम्मीद है कि ये परंपरा ख़त्म नहीं होगी।

आख़िरकार ये क़ब्रिस्तान अब यहां के लोगों के लिए आमदनी का ज़रिया बन गए हैं। ये भी कहा जा सकता है कि वाक़ई इस गांव के लोग मरने के बाद भी अपने अज़ीज़ों की ख़ुशक़िस्मती ला रहा हैं।

3. Hanging Coffins Of Indonesia At Sulawesi :-

इंडोनेशिया में हैंगिंग कॉफीन्स, सुलावेसी (Sulawesi) प्रांत में पाए जाते हैं, जिन्हें देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि जिस तरह से पहाड़ की ऊंचाइयों पर ताबूतों को लटकाया गया है, इस काम को हजारों साल पहले कर पाना कोई आसान नहीं था। लोग आज भी नहीं समझ पाते कि शवों को कैसे इन पहाड़ियों पर टांगा गया होगा।

इंडोनेशिया के टोराजा समुदाय के लोग मृत व्यक्ति की शव यात्रा में जाते हैं। वहाँ मृत्यु से संबंधित कई रस्मों को पूरा किया जाता है जिसमें से कुछ तो कई दिनों तक चलते हैं। किसी रईस व्यक्ति के मरने पर बड़े भोज का आयोजन किया जाता है जिसमें हजारों लोग शामिल होते हैं। मृत व्यक्ति के ताबूत को गुफाओं या चट्टानों के किनारे पर लटका कर रख दिया जाता है।

शवों को ताबूतों में डालने से पहले पारिवारिक रंगों से सुसज्जित वस्त्र पहनाएं जाते हैं। इन वस्त्रों पर ऐसी छपाई की जाती है जिससे परिवार की पहचान जुड़ी हो। इसके पीछे यह धारणा होती है कि अगले जन्म में उनके पूर्वजों द्वारा उसकी आत्मा की पहचान की जा सके। इससे जुड़ी एक मान्यता यह भी है कि वर्तमान और आने वाली पीढ़ियाँ इस ताबूत में बंद व्यक्ति की सफलताओं से आध्यात्मिक रूप से प्रेरित होती रहे। इससे जुड़ी एक मान्यता यह भी है कि ताबूतों को लटकाने से मृत व्यक्ति स्वर्ग के समीप पहुँच जाता है जहाँ से वो अपने परिवार के सदस्यों की निगरानी कर सकता है।

बेशक ये ऐसी जगह है जहां सिर्फ कंकाल और ताबूत नजर आते हों, लेकिन फिर भी रोमांच के चलते बड़ी संख्या में लोग इन ताबूतों को देखने के लिए दुनिया भर से इन स्थानों पर पहुंचते हैं।

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