शनिवार, 14 मार्च 2020

गोरे हब्बा त्यौहार (Gore Habba Festival), तमिलनाडु


गोरे हब्बा त्यौहार [Gore Habba Festival], तमिलनाडु : वह हिंदुस्‍तानी त्‍योहर जिसमें एक-दूजे पर मलते हैं गाय का गोबर

गोबर की होली (Holi of Cow Dung)

रीति-रिवाज, परंपराएँ और मान्यताएँ हैं हर संस्कृति, धर्म या समुदाय में पीढ़ियों से चली आ रही हैं। जब हम रीती रिवाज़ों की बात कर रहे है तो यह तो जानते ही हैं की कईं हमें अजीब भी लगते हैं, जैसे माइनस टेम्प्रेचर में बर्फ से ठन्डे पानी में नहाना या टमाटर से होली खेलना, हमारे देश में भी कईं ऐसे रीति-रिवाज़ और त्यौहार हैं जो हमें अजीब लगते हैं और हम में से ज़्यादातर लोगों ने उनके बारे में कभी सुना भी नहीं होता है।

भारत हैं विभिन्न संस्कृतियों का देश

भारत को यूं ही धर्मनिरपेक्षता का देश नहीं कहा जाता। यहां अलग-अलग धर्मों के लोग भी अपने-अपने त्यौहारोों को बड़ी ही धूमधाम से मनाते हैं।

हिंदुस्‍तान की सबसे बड़ी खूबसूरती है इसकी विविधता। यही हमें बाकी दुनिया से अलग बनाती है। दुनिया के इस सबसे रंग-बिरंगे देश में कई ऐसे त्‍योहार मनाए जाते हैं, जिनके बारे में हमें भी जानकारी नहीं होती। मसलन, कश्‍मीर से कन्‍याकुमारी और मिजोरम से गुजरात तक, हर क्षेत्र के बड़े त्‍योहारों के बारे में तो हम जानते हैं। लेकिन कई ऐसे क्षेत्रीय त्‍योहार हैं, जिनके रंग से हम अंजान हैं। ऐसा ही एक त्‍योहार है ‘गोरे हब्‍बा।’

रंग नहीं, गोबर वाली होली

उत्‍साह, उमंग और खुश‍ियां बिखरने वाले इस त्‍योहर को मनाने का तरीका कुछ-कुछ होली जैसा है। लेकिन है मजेदार। होली में जहां हम एक-दूसरे के चेहरे पर रंग-गुलाल लगाते हैं, गोरे हब्‍बा में एक-दूजे पर गाय का गोबर मला जाता है। सोशल मीडिया पर इस त्‍योहार की कुछ तस्‍वीरें और विडियोज सामने आए हैं जो खूब वायरल हो रहे हैं।

अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य से जुड़ी हैं मान्‍यताएं

गोरे हब्‍बा तमिलनाडु (Tamilnadu) के Gumatapura गांव में दीवाली के अगले दिन हर साल मनाया जाता है। इस वार्षिक उत्सव के दौरान गांव के लोग एक-दूसरे पर गोबर मलते हैं। गोबर में गिराते हैं। इस त्‍योहार का संबंध अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य से है। जो विडियो वायरल हो रहा है, उसमें एक जगह बहुत सारा गाय का गोबर जमा है। लोग उसमें कूद रहे हैं। एक-दूसरे पर गोबल मार रहे है। मान्‍यता है कि गाय का गोबर निरोग करता है। यानी बीमारियों को ठीक करता है और उनसे बचाता भी है।

‘गाय के गोबर में हैं औषधीय गुण’

संभव है कि बहुत से लोग गाय के गोबर में इस तरह खेलने और शरीर पर मलने को ‘गंदगी’ से जोड़कर देखें। लेकिन स्‍थानीय लोगों का कहना है कि गाय के गोबर में बीमारियों को ठीक करने की क्षमता होती है। गांव में रहने वाले प्रभु कहते हैं, ‘दूसरे लोग यह कह सकते हैं कि हम एक-दूसरे पर गोबर फेंकते हैं तो इससे हमें संक्रमण या कुछ बीमारी हो जाएगी। लेकिन अपने भगवान बीरेश्वर पर हमें पूरा भरोसा है। गाय का गोबर प्राकृतिक है और इससे कई तरह के औषधीय गुण होते हैं।’

हर धर्म और जाति के लोग मनाते हैं त्‍योहार

वह बताते हैं कि इस त्‍योहार का धर्म और जाति से कोई लेना-देना नहीं है। कोई भी इसमें शामिल हो सकता है। यह त्‍योहार समानता के भाव को बढ़ाती है। हालांकि, महिलाएं इस त्‍योहार को नहीं मनाती हैं।

भारत में, गोबर का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है। यह एक स्टोव ईंधन के रूप में कार्य करता है और इसका उपयोग घरों को इन्सुलेट करने के लिए भी किया जाता है। आप गाय के गोबर को छूने के बारे में सोच भी नहीं सकते हैं, लेकिन ग्रामीणों के लिए यह हानिरहित है और यह वास्तव में कई बीमारियों का इलाज करने की शक्ति रखता है।

लेकिन यह परंपरा कैसे शुरू हुई?

ऐसा माना जाता है कि गाँव में एक संत के अवशेष को एक गड्ढे में रखा गया था जो एक लिंग का आकार ले चुका था और यह बाद में समय के साथ गाय के मलमूत्र से ढक गया। यहाँ तक कि गाँव के देवता, बीरेश्वर को गाय के निर्वासन का महत्व माना जाता है, यही वजह है कि, ग्रामीण स्थानीय मंदिर के पीछे बहुतायत में इस पदार्थ को फेंक देते हैं।

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