मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

हुंजा जनजाति और हुंजा घाटी

हुंजा जनजाति और हुंजा घाटी

दुनिया में बहुत सी जनजातियां पाई जाती हैं। ऐसी ही एक जनजाति हुंजा या हुन्जकूटस बुरूषो समुदाय के लोग हैं जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में गिलगित-बाल्टिस्तान (काराकोरम) के पहाड़ों में स्थित हुन्ज़ा-नगर ज़िले के हुंजा घाटी में पाई जाती है। इन्हें दुनिया के सबसे लम्बी उम्र वाले, खुश रहने वाले और स्वस्थ लोगों में गिना जाता है। हुंजा कम्युनिटी के लोग फिजिकली और मेंटली बहुत स्ट्रॉन्ग होते हैं।

हुंजा घाटी

हुंजा घाटी भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा के पास पड़ता है। यह गिलगित से उत्तर में नगर वादी के समीप रेशम मार्ग पर स्थित है। इसमें कई छोटी छोटी बस्तीयों का जमावड़ा है। सब से बड़ी बस्ती करीमाबाद है, हालांकि इसका मूल नाम 'बलतित' था। घाटी से राकापोशी का नज़ारा बहुत सुंदर है। यहाँ के मुख्य व्यवसाय पाकिस्तानी सेना और पर्यटन से सम्बन्धित है। वादी से हुन्ज़ा नदी गुज़रती है। स्थानीय लोग बुरुशस्की बोलते है। बलतित क़िला देखने की जगह है।

हुंजा गांव हिमालय की पर्वतमाला पर स्थित हैं। इसे दुनिया की छत के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत के उत्तरी छोर पर स्थित है जहां से आगे पर भारत, पाकिस्तान, चीन, अफगानिस्तान की सीमाएं मिलती है। हुंजा घाटी एक समय भारत का हिस्सा थी, लेकिन बंटवारे के बाद यह पाक अधिकृत कश्मीर में आती है।

लेख

इस जनजाति (समुदाय) के बारे में पहली बार डॉ. रॉबर्ट मैक्कैरिसन ने ‘पब्लिकेशन स्टडीज इन डेफिशिएन्सी डिजीज’ में लिखा था। इसके बाद साल 1961 में JAMA जमा ‘जर्नल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन’ में एक लेख प्रकाशित हुआ, जिसमें इस प्रजाति के जीवनकाल और इतने लंबे समय तक स्वस्थ बने रहने के बारे में बताया गया था। लेख के अनुसार, यहां के लोग शून्य से भी कम तापमान में ठंडे पानी में नहाते हैं। कम खाना और ज्यादा टहलना इनकी जीवन शैली है। 

हुंजा वैली में लोगों की स्वस्थ जिंदगी के बारे में विदेशी लेखक कई किताबें लिख चुके हैं। जिनमें जेआई रोडाल की 'द हेल्दी हुंजास' और डॉ. जो क्लार्क की 'द लोस्ट किंगडम ऑफ द हिमालयाज' सबसे ज्यादा फेमस हैं। 

वहीं मध्य यूरोपीय देश स्लोवेनिया के साइंटिस्ट और लेखक डॉक्टर इजतोक ओस्तन ने हुंजा वैली के पानी पर रिसर्च की और बताया हुंजा वैली में ग्लेशियर से पिघलकर आने वाले पानी में बहुत ज्यादा मिनरल्स और एंटीऑक्सिडेंट होते हैं। जो प्राकृतिक रूप से जीने वाले हुंजा जनजाति के लोगों को स्वस्थ रखने में मदद करता है।

डॉक्टर पी जी फ्लेनागन ने इस पानी में मिलने वाले मिनरल्स से पॉउडर बनाया और उसको नॉर्मल पानी में मिलाया गया और वो एक जीवन देने वाला पानी बन गया। जैसा कि हुंजा वैली में होता है।

मशहूर अंतर्राष्ट्रीय मैगजीन फोर्ब्स ने हुंजा वैली को साल 2019 के सबसे कूलेस्ट प्लेस टू विजिट की लिस्ट में शामिल किया है।

दुनिया की कुछ जगहें ब्लू जोन कहलाती हैं, जहां लाइफ एक्सपेक्टेंसी बहुत ज्यादा होती है। हुंजा वैली उसी ब्लू जोन में शामिल है।

दुनिया भर के डाक्टर हैं हैरान

दुनिया भर के डॉक्टरों ने भी ये माना है कि इनकी जीवनशैली ही इनकी लंबी आयु का राज है। ये लोग सुबह जल्दी उठते हैं और बहुत पैदल चलते हैं। इस घाटी और यहां के लोगों के बारे में जानकारी मिलने के बाद डॉ. जे मिल्टन हॉफमैन ने हुंजा लोगों के दीर्घायु होने का राज पता करने के लिए हुंजा घाटी की यात्रा की। उनके निष्कर्ष 1968 में आई किताब ‘हुंजा- सीक्रेट्स ऑफ द वल्र्ड्स हेल्दिएस्ट एंड ओल्डेस्ट लिविंग पीपल’ (HUNZA – Secrets of the world’s healthiest and oldest living people) में प्रकाशित हुए थे। इस किताब को सिर्फ हुंजा की जीवन शैली के साथ साथ स्वस्थ जीवन के रहस्यों को उजागर करने की दिशा में एक मील का पत्थर माना जाता है।

एक किस्से ने किया हुंजा को मशहूर

बात 1984 की है। हुंजा कम्युनिटी के सईद अब्दुल मोबुदुु जब लंदन एयरपोर्ट पर सिक्यूरिटी चेक करवाने पहुंचे, तो ऑफिसर्स उनका बर्थ इयर 1832 देखकर हैरान रह गए। उन्होंने कई बार उनकी उम्र क्रॉसचेक की। इसके बाद से ही हुंजा लोगों का किस्सा मशहूर हो गया।

सिकंदर महान को मानते हैं वंशज - इन्हें माना जाता है अलेक्जेंडर द ग्रेट की सेना के वंशज

कुछ लोग इन लोगों को किसी यूरोपीय नस्ल से जोड़ते हैं। वास्तव में यहाँ के लोग गोरे-चिट्टे, जवान, हंसमुख और आसपास की आबादी के बिल्कुल अलग दिखते हैं। कहा तो यहां तक जाता है कि हुंजा की खूबसूरती और स्वस्थ आबो हवा यूनान के राजा सिकंदर को भी यहां खींच लाई थी।

हुंजा कम्युनिटी के लोगों को बुरुशो भी कहते हैं। इनकी भाषा बुरुशास्की है। कहा जाता है कि ये कम्युनिटी अलेक्जेंटडर द ग्रेट की सेना के वंशज हैं, जो चौथी सदी में यहां आए थे। दुनिया जीतने निकला सिंकदर जब भारत फतह करने पहुंचा तो उसके साथ आए कुछ लोग यही रह गए। ये अपने समुदाय में ही शादी करते हैं।

हुंजा जनजाति की जनसंख्या लगभग 87 हजार है। हुंजा समुदाय के लोग पाकिस्तान के अन्य समुदाय के लोगों से कहीं ज्यादा शिक्षित हैं। यह समुदाय पूरी तरह मुस्लिम धर्म को मानता है और इनके सारे क्रियाकलाप भी मुस्लिमों जैसे ही हैं।

सिकंदर को अपना वंशज मानने वाले हुंजा जनजाति के लोगों की अंदरूनी और बाहरी तंदरूस्ती का राज यहां की आबोहवा है। यहां न तो गाडिय़ों का धुआं है न प्रदूषित पानी। लोग खूब मेहनत करते हैं और खूब पैदल चलते हैं, जिसका नतीजा यह है कि तकरीबन 60 साल तक जवान बने रहते हैं और मरते दम तक बीमारियों से बचे रहते हैं।

कैसी होती है इनकी लाइफस्टाइल
हुंजा वैली में लोग बूढ़े क्यों नहीं होते ?

इस गांव को युवाओं का नखलिस्तान भी कहा जाता है। यह जनजाति और उनकी जीवन शैली सैकड़ों साल पुरानी लगती है। ये लोग बहुत ही सादा जीवन जीते हैं जैसा कि उनके पूर्वज लगातार जीते आ रहे हैं। ये लोग सुबह पांच बजे सूरज के निकलने से पहले उठते हैं और रात को जल्दी ही सो जाते हैं।

हुंजा जनजाति के लोग बिना किसी समस्या के कई सालों तक जीवित रहते हैं। कहते हैं इनमें से कई लोग तो 165 साल तक जिंदा रहते हैं। हुंजा गांव के लोगों की औसत उम्र 110-120 साल है। जिसमें ये 70 साल तक जवान दिखते हैं। यहां पर मां और बेटी में को देखकर उनमें फर्क कर पाना मुश्किल है कि कौन मां है और कौन बेटी।

इस जनजाति की खास बात यह है कि यहां के लोग बहुत खूबसूरत और जवान-जवान से दिखते हैं। खासकर औरतें, जो कि 65 साल तक जवान रहती हैं और वे इस उम्र में भी संतान को जन्म देने से किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं होती हैं। यहां के पुरुष 90 साल की उम्र में भी पिता बन सकते हैं।

हूंजा वैली में कभी नहीं हुआ किसी को कैंसर!

हुंजा जनजाति की खास बात यह है कि यहां के लोग बहुत कम बीमार पड़ते है। हुंजा लोगों को दुनिया के कैंसर फ्री पापुलेशन में गिना जाता है क्योंकि आजतक एक भी हुंजा कैंसर का शिकार नहीं हुआ है। इन लोगों ने कभी कैंसर (ट्यूमर) का नाम भी नहीं सुना है। 

आधुनिक समय में दिनचर्या का हिस्सा बन चुकी दिल की बीमारी, मोटापा, ब्लड प्रेशर, कैंसर जैसी दूसरी बीमारियों का हुंजा जनजाति के लोगों ने शायद नाम तक नहीं सुना है। इनकी सेहत का राज इनका खान-पान है। यहां के लोग पहाड़ों की साफ हवा और पानी में अपना जीवन व्यतीत करते हैं।

हुंजा के लोग शून्य के भी नीचे के तापमान पर बर्फ के ठंडे पानी में नहाते हैं। यहां के लोग साइकिल या गाड़ियों का इस्तेमाल बहुत कम ही करते हैं और पैदल ज्यादा चलते हैं। ये कम खाते हैं और पैदल ज्यादा चलते हैं। रोजाना 15 से 20 किलोमीटर तक चलना और टहलना उनकी जीवन शैली में शामिल होता है। साथ ही साथ हँसना भी उनकी जीवन शैली का हिस्सा है।

जो उगाते हैं वहीं खाते हैं
क्या खाते हैं हुंजा वैली के लोग?

यहां के लोग दिन में सिर्फ दो बार ही खाना खाते हैं। पहली बार दोपहर में 12 बजे और दूसरी बार रात को 8-9 बजे के करीब। इनका खाना भी पूरी तरह कुदरती होता है, मतलब कि उनकी सब्जियों, दूध, फल, मक्खन आदि में किसी तरह की मिलावट नहीं होती है। हुंजा लोग साल के 2 से 3 महीने खाना नहीं खाते हैं। इस दौरान वो सिर्फ जूस लेते हैं। गार्डन में पेस्टिसाइड स्प्रे करना इस कम्युनिटी में बैन है।

हुंजा के लोग खूब खुमानी (एप्रिकोट) खाते हैं। ये लोग खूब पैदल चलते हैं और कुछ महीनों तक केवल खूबानी खाते हैं। ये लोग वही खाना खाते हैं जो ये उगाते हैं। खूबानी के अलावा मेवे, सब्जियां और अनाज में जौ, बाजरा और कूटू ही इन लोगों का मुख्य आहार है। इनमें फाइबर और प्रोटीन के साथ शरीर के लिए जरूरी सभी मिनरल्स होते हैं। मेवे के अलावा दूध, अंडा और चीज भी शामिल हैं। ये लोग अखरोट का खूब इस्तेमाल करते हैं। धूप में सुखाए गए अखरोट में बी-17 कंपाउंड पाया जाता है, जो कैंसर से बचाव में मददगार होता है।

ये लोग मांस (नॉन वेज) का सेवन बहुत कम ही करते हैं। किसी खास अवसर पर ही यहां मांस बनता है, लेकिन उसमें भी ये लोग बहुत हिसाब से ही खाते हैं। लेकिन उसमें भी पीस बहुत छोटे-छोटे होते हैं।

इन लोगों को देखकर आप ये अंदाजा लगा सकते हैं कि खानपान और अच्छी जीवन शैली लोगों के जीवन को प्रभावित करती है।

कुदरत के करीब खुश और सेहतमंद

शहरी जिंदगी ने भले इंसान के लिए सुविधाओं के दरवाजे खोले हों, लेकिन उसके बदले में भारी कीमत भी वसूल की है। कुदरत के करीब रहने वाले लोग आज भी खुश हैं स्वस्थ हैं। आधुनिकता की अंधी दौड़ में हम भाग तो रहे हैं, लेकिन बीमारियों की गठरी भारी होती जा रही है और उम्र की डोर छोटी।


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