पुष्पगिरी विश्वविद्यालय (Pushpagiri university) Orissa, India
पुष्पगिरी विश्वविद्यालय वर्तमान भारत के उड़ीसा राज्य के कटक के पास जाजपुर जिला में स्थित था।
नालंदा, तशक्षिला और विक्रमशीला के बाद ये विश्वविद्यालय शिक्षा का सबसे प्रमुख केंद्र था। जहां दूर-दूर से विद्यार्थी पढ़ने के लिए आया करते थे। कहा जाता है कि वहां मिले पुरातात्विक अवशेष बौद्ध शिक्षा के समकालीन केंद्र मानेजाने वाले नालंदा व विक्रमशिला से भी ज्यादा पुराने और व्यापक हैं।
चर्चित चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 639 ईस्वी में ओडिशा की यात्रा की थी और अपने यात्रा वृतांत में इस विश्वविधालय को पुष्पगिरि महाविहार के नाम से वर्णित किया था। और वहां के सौ बौद्ध मठों के बारे में लिखा था। चायनीज यात्री एक्ज्युन जेंग ने इसे बौद्ध शिक्षा का सबसे प्राचीन केंद्र माना।
मध्यकाल के तिब्बती लेखों में भी इसका उल्लेख मिलता है। नागार्जुनकोंडा के अभिलेख में भी इस महाबिहार का उल्लेख है।
प्राचीन कलिंग में पुष्पगिरी विश्वविद्यालय बौद्ध शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र था जो 12वीं सदी तक सक्रिय रहा। इसकी स्थापना तीसरी शताब्दी में कलिंग राजाओं ने करवाया था।
पुष्पगिरी विश्वद्यालय दूसरी सदी ईसा पूर्व से लेकर दसवीं सदी ईस्वी तक फलता-फूलता रहा। 800 साल तक यानी 11वीं शताब्दी तक इस विश्वविद्यालय का विकास अपने चरम पर था।
यह इतना विशाल था कि इस विश्वविद्यालय का परिसर तीन पहाड़ों ‘ललित गिरि’ ‘रत्न गिरि’ और ‘उदयगिरि’ पर फैला हुआ था। इन तीन पहाडियों के उत्खनन से बने पेगोडा के अवशेष, नक्काशीदार पत्थर के प्रवेश द्वार तथा रहस्यमयी बौद्ध प्रतिमाएँ मिली है। इन पहाड़ियों में सबसे महत्वपूर्ण रत्नागिरी है, जिसे तत्कालीन समय का उल्लेखनीय बौद्ध केन्द्र माना गया है। रत्नागिरी पहाड़ी कलुआ नदी के तट पर स्थित है। यहाँ पर किये गये उत्खनन में तीन मठ, आठ मंदिर, और कई स्तूप मिले हैं जो अधिकांश गुप्त काल की है।
रत्नागिरी में दो भव्य मोनेस्ट्री हैं। उतने ही भव्य यहां मिले अवशेष, मूर्तियां व स्तूप हैं। वहीं उदयगिरी मोनेस्ट्री इन तीन में से सबसे खूबसूरत है। ललितगिरी को स्थानीय रूप से नल्तीगिरी कहा जाता है और यह अस्सिया श्रृंखला में पाराभदी व लंडा पहाडि़यों के बीच स्थित है। पुरातात्विक विश्लेषणों से यह संकेत मिलता है कि ललितगिरी मोनेस्ट्री दूसरी सदी ईसा पूर्व में सुंगाकाल में पहले से मौजूद थी। इस लिहाज से इसका शुमार दुनिया में सबसे पुराने बौद्ध स्थानों में किया जा सकता है। यहां पहाड़ी की चोटी पर सांची की शैली का एक स्तूप भी है।
ललितगिरी में पहाड़ी की चोटी पर मिले महास्तूप में एक बर्तन के भीतर चांदी की डिबिया और उसके भीतर एक सोने की डिबिया में से एक पवित्र अवशेष मिला है जिसे इतिहासकार गौतम बुद्ध का मानते हैं। यह अवशेष एएसआई ने फिलहाल ओडिशा राज्य संग्रहालय में रखा हुआ है। उदयगिरी व रत्नागिरी ओडिशा के जाजपुर जिले में और ललितगिरी कटक जिले में स्थित है।
कुछ इतिहासकार मानते हैं कि इस विश्ववविद्यालय की स्थापना सम्राट अशोक ने करवाई थी। क्योंकि यहां से सम्राट अशोक से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण साक्ष्य प्राप्त किए गए हैं।
इस समय भी बौद्ध तीर्थाटन के लिहाज से ओडिशा में कई महत्वपूर्ण जगहें हैं। इनमें- भुवनेश्वर के नजदीक धौलागिरी में शांति स्तूप है और निकट ही चत्रनों पर अशोक के प्रसिद्ध शिलालेख हैं। शांति स्तूप तो 1972 में ही जापान की मदद से बनवाया गया था, लेकिन माना जाता है कि यह वही जगह है जहां अशोक ने कलिंग की लड़ाई के बाद हथियार त्यागकर अहिंसा का रास्ता चुना था। वहीं, अशोक द्वारा प्राकृत में लिखे गए धौलागिरी के शिलालेख 1837 में खोजे गए थे।
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