बिहार में हैं नालन्दा विश्वविद्यालय से भी पुराना विश्वविद्यालय (Telhara University, Bihar, India)
कुछ साल पहले तक यह जगह झाड़ियों से पटा हुआ एक बड़ा टीला थी। गंदगी इतनी होती थी कि इधर से गुजरना मुहाल। लेकिन दिसंबर, 2014 में बिहार के नालंदा जिले के एकंगरसराय प्रखंड में तेल्हाड़ा गांव के दक्षिण-पश्चिम में स्थित इस टीले (बालादित्य के 45 फुट ऊंचे टीले) की खुदाई में ऐसे कई अवशेष मिले हैं, जिससे भारतीय इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया है। यह नालन्दा से चालीस कि.मी. की दूरी पर तेल्हाड़ा में है।
इस खुदाई के बाद पुरातत्वविदों का दावा है कि तेल्हाड़ा में नालंदा और विक्रमशिला से भी प्राचीन विश्वविद्यालय के अवशेष हैं। इससे पहले तक इसे नालंदा यूनिवर्सिटी के बाद का महाविहार माना जा रहा था।
पांच वर्षों से हो रहे उत्खनन में विश्ववविद्यालय के स्वरूप, संरचना व पुरावशेषों के संबंध में अनवरत नए तथ्य सामने आ रहे हैं। यहां से मिले अवशेषों के कुषाणकालीन होने का दावा किया जा रहा है। बिहार सरकार द्वारा उत्खनन में तेल्हाड़ा में बड़ी संख्या में बौद्ध प्रतिमाएं भी प्राप्त हुई हैं जिनमें धातु प्रतिमाओं का सौंदर्य व शिल्पीय अभिव्यक्ति अद्भुत है। कई पुराभिलेखीय अवशेष भी प्राप्त हुए हैं जो प्रस्तर खंडों के अलावा प्रस्तर प्रतिमाओं व पकी मिट्टी के सीलों पर उकेरे गए हैं। बड़ी मात्रा में सील और सीलिंग मिली हैं। इसमें ज्यादातर टेराकोटा से बनी हैं। एक सील के ऊपर तप में लीन बुद्ध का अस्थिकाय अंकन है, जो दुर्लभ है। उत्खनन में बौद्ध विहार की संरचनाएं कई स्तरों पर प्राप्त हुई हैं जिनमें साधना कक्ष, बारामदा, आंगन, कुएं, नाले व विहार के मध्य में तीन बौद्ध मंदिर के अवशेष मिले हैं।
खुदाई के दौरान भगवान बुद्ध की तीन फुट ऊँची प्रतिमा मिली है, जो की ध्यानावस्था में है। यह प्रतिमा गुप्त राजाओं के काल की बताई जा रही है। इसके साथ इस खुदाई में गोद में बच्चा लिए हुए माँ की तीन सेंटीमीटर ऊंची कांस्य की मूर्ति भी मिली है। साथ ही बहुत मात्रा में कांस्य और पत्थर की मुहर भी मिली है।
पुरातत्व विभाग के मुताबिक यहां मिले एक बड़े प्लेटफॉर्म पर एक हजार बौद्ध श्रद्धालु साथ बैठकर प्रार्थना करते थे। अवशेषों से लगता है कि नालंदा से छात्र शोध के लिए 'तिलाधक महाविहार' जाते थे। संभावना जताई जा रही है कि नालंदा विश्वविद्यालय के प्रतियोगी के तौर पर इसकी स्थापना की गई हो। खुदाई में मिट्टी के दो-दो इंच के शिल्ट पर छात्रों के नाम लिखे हैं।
बिहार सरकार के कला संस्कृति विभाग के पुरातत्व निदेशालय के सचिव आनंद का दावा है, ''तेल्हाड़ा में 100 से ज्यादा ऐसी चीजें मिली हैं, जो साबित करती हैं कि तेल्हाड़ा में प्राचीन विश्वविद्यालय के अवशेष हैं। यहां कुषाणकालीन ईंट और मुहरें (मोनास्टी सील) मिली हैं, जिनके पहली शताब्दी में बने होने का प्रमाण मिलता है। जबकि चीनी यात्री ह्वेन सांग के यात्रावृतांत के आधार पर अभी तक इसे सातवीं शताब्दी का माना जाता रहा है। गौर तलब है कि नालंदा को चौथी और विक्रमशिला को छठी से आठवीं शताब्दी का विश्वविद्यालय माना जाता है।" विभाग के सचिव आनंद शंकर ने दावा किया कि यह प्रमाणित हो गया है कि यह राज्य का सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय है। राज्य सरकार ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से इसकी खुदाई जारी रखने के लिए अनुमति मांगी है।
तेल्हाड़ा स्थित विश्वविद्यालय के नाम तिलाधक, तेलाधक्य विश्वविद्यालय, तेल्स्य महाविहार प्रचलित थे। लार्ड कनिंघम ने इस महाविहार को तिलाधक महाविहार का नाम दिया था।
कोलकाता विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डा. एस सान्याल ने पाली लिपि में सील पर अंकित अक्षरों को पढ़कर इसका नाम बताया है। श्री शंकर ने कहा कि इस विश्वविद्यालय का नाम तिलाधक, तेलाधक्य या तेल्हाड़ा नहीं बल्कि श्री प्रथम शिवपुर महाविहार है। यह हमारे लिए एक नया तथ्य और नई उपलब्धि है।
भारतीय पुरातत्व विभाग ने यहाँ 2009 में खुदाई आरम्भ किया लेकिन इससे पहले ब्रिटिश शाशनकाल में भी इसकी खुदाई हुई थी। यहाँ से निकली हुई कुछ मूर्तियां अभी भी कोलकाता के राष्ट्रीय संग्रहालय और जर्मनी के रिटबर्ग संग्रहालय में रखा हुआ है। पुरातत्व विभाग ने बताया कि इस स्थल की सबसे पहले खोज वर्ष 1872 में एस० व्रोडले ने की थी। नावेल विजेता अमर्त्य सेन ने भी तेल्हाड़ा का दौरा किये थे। और यहां हो रही खुदाई से काफी प्रभावित भी हुए थे।
2007 में धन्यवाद यात्रा के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तेल्हाड़ा आए थे। तब यहां की पंचायत के मुखिया डॉ. अवधेश गुप्ता ने इस पुरातत्व स्थल की खुदाई कराने का आग्रह किया था। पहला फावड़ा 26 दिसंबर 2009 को तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चलाया था। उन्होंने पुरातात्विक अवशेष को देखकर कला, संस्कृति व युवा विभाग को उत्खनन का आदेश दिया था।
बिहार पुरातत्व विभाग के निदेशक डॉ. अतुल कुमार वर्मा के नेतृत्व में खुदाई शुरू की गई थी। शुरू के दो-तीन साल यहां नालंदा विश्वविद्यालय काल के बाद के अवशेष मिले थे। लेकिन बाद में कुषाणकालीन चीजें मिलने लगीं। तेल्हाड़ा विश्वविद्यालय का समय-समय पर जीर्णोद्धार होने के भी संकेत मिले हैं। यहां सबसे ऊपर पालकालीन ईंटें मिली हैं। इन ईंटों की लंबाई 32 सेमी, चौड़ाई 28 सेमी और ऊंचाई 5 सेमी है। उसके नीचे 36 सेमी लंबी, 28 सेमी चौड़ी और 5 सेमी ऊंची ईंटें मिली हैं, जो गुप्तकाल में प्रचलित थीं। इसके नीचे 42 सेमी लंबी, 32 सेमी चौड़ी और 6 सेमी ऊंची ईंटें मिली हैं, जो कुषाणकालीन संरचनाओं से मेल खाती हैं।
नालंदा यूनिवर्सिटी से 300 साल पुरानी थी तेल्हाड़ा विवि
निदेशक डॉ. वर्मा ने बताया कि नालंदा यूनिवर्सिटी से 300 साल पुराना था तेल्हाड़ा विश्वविद्यालय। इसकी स्थापना कुषाण काल, तो नालंदा महाविहार (विश्वविद्यालय) की स्थापना गुप्त काल में हुई थी। यहां महायान की पढ़ाई होती थी।
12 सौ साल तक परवान पर था तेल्हाड़ा विवि
ईसा पूर्व 100 से वर्ष 1100 तक तेल्हाड़ा विश्वविद्यालय परवान पर था। यहां भी देसी-विदेशी छात्र एक साथ रहकर पढ़ाई करते थे। इसका संचालन भी स्थानीय गांवों से होने वाली आय से होती थी। इसकी आय नालंदा विश्वविद्यालय से अधिक थी। अकाल पड़ने के बाद एक बार ऐसी स्थिति आयी थी कि नालंदा विश्वविद्यालय बंद होने के कगार पर आ गया था, लेकिन तेल्हाड़ा महाविहार के लोगों ने दान देकर ऐसा नहीं होने दिया।
डॉ. अतुल कुमार वर्मा का मानना है, ''7वीं से 11वीं शताब्दी में नालंदा और आसपास का इलाका शिक्षा केंद्र के तौर पर मशहूर था। 35-40 किलोमीटर की परिधि में नालंदा और उदंतपुरी के बाद तेल्हाड़ा विश्वविद्यालय का अस्तित्व इसका प्रमाण है। संभवत: तेल्हाड़ा इस इलाके में पहला विश्वविद्यालय था, जिसका विस्तार बाद में नालंदा विश्वविद्यालय के रूप में किया गया।"
बख्तियार खिलजी ने ही जलाया था तेल्हाड़ा विवि को भी
पुरातत्व विभाग ने अपने ब्रीफ रिपोर्ट में ये लिखा है कि, तेल्हाड़ा मध्य काल में मुस्लिम समुदाय के रहने के लिए एक ख़ास जगह था। इस जगह का उल्लेख एन-ए-अकबरी (अकबर के शाशनकाल का संविधान) में तिलादह के रूप में किया गया है।
तेल्हाड़ा विश्वविद्यालय के अंत का हाल नालंदा जैसा ही है। डॉ. वर्मा बताते हैं कि 12वीं सदी में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने ओदंतपुरी की विजय के दौरान मनेर से दक्षिण की ओर तिलदाह (तेल्हाड़ा) की ओर प्रस्थान किया था। इसके बाद इस विश्वविद्यालय के शिक्षकों व छात्रों को भगाकर वहां आग लगा दी थी। खुदाई में अग्नि के साक्ष्य और राख की एक फुट मोटी परत मिली है।
यह भी कहा जाता है कि विश्वविद्यालय के खंडहर के रूप में तब्दील होने के बाद बिहार की पहली मस्जिद उसने तेल्हाड़ा में ही बनवायी थी। उसके स्तम्भों में घड़ा और कमल के चित्र बने हैं।खंडहर के पूर्वी भाग में एक मस्जिद है, जो कहा जाता है कि बौद्ध मठों के खंडहरों से ली गई सामग्री से बना है।
चीनी यात्रियों ह्वेनसांग और इत्सिंग के यात्रा वृत्तांत में
बौद्ध धर्म की महायान शाखा की पढ़ाई के लिए तेल्हाड़ा बड़ा केंद्र माना जाता था। इसका उल्लेख ह्वेनसांग और इत्सिंग के यात्रा वृत्तांत में मिलता है। जिसमें करीब सात बौद्ध मठों और करीब 1000 बौद्ध भिक्षुओं के अध्ययन की जानकारी मिलती है। इसका जिक्र तीलाधक (तेल्याधक विश्वविद्यालय) के रूप में मिलता है। सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इन इलाक़ों का दौरा किया था। चीनी यात्रियों ने इसे अपने समय का श्रेष्ठ और सुंदर महाविहार कहा है। महाविहार में तीन मंजिला मंडप के साथ-साथ अनेक तोरणद्वार, मीनार और घंटिया होती थीं। वे कहते हैं कि यहां तीन टेम्पल थे, मोनास्ट्री कॉपर से सजी थी। हवा चलती थी तो यहां टंगी घंटियां बजती थीं। यहां के अवशेषों से भी इस बात की पुष्टि होती है। अब तक हुई एक वर्ग किमी की खुदाई में तीनों हॉल, घंटियां सैकड़ों सील-सीलिंग, कांस्य मूतियां आदि मिल चुकी हैं। ईंटें जो मिली हैं वह 42 गुना, 32 गुना, 6 से.मी. की हैं।
इस विश्वविद्यालय में 1000 बौद्ध भिक्षु बैठकर मंत्रोच्चार और पूजा किया करते थे। खुदाई में एक विशाल लोर भी पाया गया है, जो इस बात का प्रमाण है कि इस पर बैठकर भिक्षु प्रार्थना किया करते थे। नालंदा विश्वविद्यालय की तरह यहां भी शिक्षकों के रहने के लिए छोटे-छोटे आवास प्राप्त हुए हैं।
1980 के दशक में नवादा जिले के अपसढ़ में खुदाई में भी नालंदा से ज्यादा प्राचीन विश्वविद्यालय के अवशेष मिले थे। तब के पुरातत्व निदेशक डॉ. प्रकाशचरण ने अपसढ़ को तक्षशिक्षा का समकालीन विश्वविद्यालय बताया था।
बिहार विरासत समिति के सचिव डॉ. विजय कुमार चौधरी कहते हैं, ''बिहार में ऐसे पुरातात्विक साक्ष्य भरे पड़े हैं। राज्य में पुरातात्विक स्थलों के सर्वेक्षण में 6,500 साइटें मिली हैं। उनमें कई महत्वपूर्ण महाविहार हैं। तेल्हाड़ा विश्वविद्यालय का अवशेष उसी कड़ी का हिस्सा है।"
पहले यहां प्राप्त बौद्ध विहारों की संरचनाओं से इसे गुप्तकालीन (4-5वीं सदी) माना जाता था पर सील पर लिखे इतिहास ने इसे कुषाणकालीन साबित कर दिया है। कला संस्कृति सचिव ने कहा कि नया इतिहास सामने आने के बाद अब तेल्हाड़ा स्थित इस विश्वविद्यालय पर और अध्ययन तथा शोध किए जाने की जरूरत है। बिहार सरकार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को पत्र लिखेगी। वे यहां बड़े पैमाने पर शोध कराकर नए तथ्य दुनिया के सामने लाए।
जानकारों का कहना है कि इस स्थल पर अभी चल रही खुदाई में अभी और प्राचीन अवशेष मिलने की संभावना है। जानकारों का मानना है कि आदंतपुरी और घोसरांवा में खुदाई होने से और भी विश्वविद्यालय के अवशेष मिल सकेंगे।
बनेगा मास्टर प्लान
31/03/2016 को नीति (नेशनल इंस्टीट्यूशंस फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया) आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. अरविंद पनगढ़िया ने प्राचीन तेल्हाड़ा विश्वविद्यालय के खंडहर का अवलोकन किया। खंडहर के दर्शन करते ही उन्होंने कहा-तेल्हाड़ा साइट्स इज मिराकल! इसे इन्क्रेडिबल इंडिया - अतुल्य भारत में शामिल करें। ऐसे साइट्स बिहार में ही मिलते हैं। इसके विकास से पर्यटन उद्योग बूम कर जाएगा।
उन्होंने पुरातत्व विभाग के निदेशक डॉ. अतुल कुमार वर्मा को तेल्हाड़ा के विकास के लिए मास्टर प्लान बनाने की कहा। उसकी खुदाई के लिए आसपास की जमीन का अधिग्रहण किया जाएगा। मास्टर प्लान में तेल्हाड़ा की खुदाई के साथ ही उसे यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल कराने के लिए आवश्यक दस्तावेज तैयार करने से संबंधित मुद्दे भी शामिल किये जाएंगे।
मै नालंदा जिले के एतिहासिक स्थलों पर शोध कर रहा हु।तेल्हाडा के संदर्भ मे।
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