सोमपुरा विश्वविद्यालय (Somapura mahavihara) –
सोमपुरा विश्वविद्यालय की स्थापना पाल वंश के वंसज धर्मपाल और राजाओं ने किया था। इसे सोमपुरा महाविहार या पहाडपुर बौधविहार के नाम से भी जाता था। यह विश्वविद्यालय वर्तमान बांग्लादेश के नवगांव जिले में पहाडपुर में स्थित था। प्राचीन काल के बाद अभी तक इसकी खुदाई न होने पर यह अब भी ध्वंश अवस्था में है। इसे 1985 ई० में यूनेस्को विश्व विरासत स्थल का दर्जा मिल चुका है। यह विश्वविद्यालय बौद्ध शिक्षा से साथ-साथ सनातन धर्म और जैन धर्म एक महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है। साथ ही विश्व की चुनिंदा बौध मठों में भी शामिल है। अतीश दीपंकर इस विश्वविद्यालय में आचार्य के तौर पर शिक्षा दे चुके हैं।
सोमपुरा महाविहार, नालंदा विश्वविधालय की परम्परा पर आधारित था। दोनों विश्वविद्यालय के स्थापत्य में भी समानता थी। 8वीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी के बीच 350 से 400 साल तक यह विश्वविद्यालय बहुत प्रसिद्ध था। यह भव्य विश्वविद्यालय लगभग 27 से 30 एकड़ में फैला था। उस समय पूरे विश्व में बौद्ध धर्म की शिक्षा प्रदान करने वाला यह सबसे विशाल शिक्षा केंद्र था। प्राचीन “सोमपुरा बौद्ध विश्वविद्यालय” छठे नंबर का था। तिब्बती सूत्रों के अनुसार - “सोमपुरा बौद्ध विश्वविद्यालय” धर्माकयाविधिंद (Buddha moral values)- मध्यमका (Mass communication )- रत्नाप्रदिपा (wisdom) तर्क (Logic), कानून (law), इंजीनियरिंग (Engineering), चिकित्सा विज्ञान (medical sciences) इन विषयों में प्रभुत्व था ।
‘तारानाथ’ के बौद्ध इतिहास के रचनाओं में “पग-सैम-जॉन झांग” का तिब्बती अनुवाद साहित्य के रचना का स्रोत “सोमपुरा बौद्ध विश्विद्याल” था। इस विश्वविद्यालय में बौद्ध शिक्षा के निति मुल्यों के आधार पर मानवजातिका के विकास के साथ विद्यामुल्क विज्ञान के विषय नि:शुल्क पढाये जाते थे। लगभग 8,500 छात्रों के लिये सभी प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध थी।
बौद्धकालीन युग में प्रमुख बौद्ध विश्वविद्यालय के साथ सोमपुरा बौद्ध विश्वविद्यालय का पाल राजाओं द्वारा नेटवर्क का गठन किया गया था। ताकि राज्य पर्यवेक्षण के अंतर्गत ‘सोमपुरा बौद्ध विश्वविद्यालय” को सभी सुविधाएँ प्राप्त हो सके और समन्वय के प्रणाली के अंतर्गत इसको “अस्तित्व में” लाया जा सके। इसका श्रेय पाल राजाओं को दिया जाता है। सभी प्राचीन बौद्ध विश्वविद्यालय आपस में संस्थाओं का समूह था, यह इसलिए की सभी राज्यों में समन्वय स्थापित हो सके। एक प्रकार से “International relations” नेटवर्क स्थापित करने का श्रेय प्राचीन बौद्ध विश्वविद्यालय को दिया जाता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें