मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

संत बाबा निहाल सिंह जी गुरूद्वारा


वीजा और पासपोर्ट के लिए लोग शहीद बाबा निहाल सिंह के गुरुद्वारे में चढ़ाते हैं हवाई जहाज
Sant Baba Shaheed Nihal Singh talhan Sahib Gurudwara

भारत में देवी-देवताओं के लाखों मंदिर और सिखों के गुरुद्वारे हैं। इन मंदिर-गुरुद्वारों में करोड़ों लोग अपने अराध्‍य को तरह-तरह के भोग और प्रसाद चढाते हैं, जहां सबकी मान्‍यताएं और परंपराएं भी अलग-अलग हैं। आज हम आपको ऐसे गुरुद्वारे के बारे में बता रहे हैं, जहां प्रसाद के रूप में हवाई जहाज अर्पित किया जाता है। यह मान्यता है एनआरआई क्षेत्र के रूप में मशहूर पंजाब के दोआबा इलाके के लोगों की। खास कर युवाओं में इसके प्रति गहरी आस्था है।

जालंधर के जिले तल्हण गांव में स्थित शहीद बाबा निहाल सिंह का गुरुद्वारा में कोई खाने वाला प्रसाद नही चढ़ाया जाता बल्कि प्रसाद के तौर पर खिलौने वाले हवाई जहाज को चढ़ावे के तौर पर इस्तेमाल करते हैं, इसलिए इस गुरुद्वारे को हवाई जहाज गुरुद्वारे के नाम से भी जाना जाता है। इस गुरुद्वारे की चर्चा देश में ही नही बल्कि विदेशो में भी है हर साल यहाँ हजारो भक्त आते है और गुरुद्वारे के पास की दुकानों से जहाज खरीद कर चढ़ाते है।

गुरुद्वारे से जुड़ी खास बातें

यहां के स्थानीय लोगों का मानना है कि यदि आप विदेश जाना चाहते हैं और आपका वीजा या पासपोर्ट नहीं बन पा रहा है तो, आप यहां पर आकर फरियाद करें और “खिलौने वाला हवाई जहाज” दान करें तो आपकी विदेश यात्रा की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। 

गुरुद्वारा सूत्रों के अनुसार चढे़ हुए हवाई जहाजों को गुरुद्वारे में दर्शन के लिए आने वाले आस-पड़ोस के बच्चों को बांट दिया जाता है।

सप्ताह भर ही यहां लोग आते हैं लेकिन रविवार के दिन यहां ज्यादा ही भक्तों की भीड़ रहती है। गुरुद्वारे के बाहर दुकानों में बड़ी संख्या में हवाई जहाज बिकता है दुकानदार हरमिंदर सिंह का कहना है कि अन्य दिनों की अपेक्षा रविवार को अधिक बिकते है। दुकान से लगभग 20 जहाज हर रविवार को बिकते हैं। अनेको प्रकार के जहाज, रंग बिरंगे जहाज, जो सस्ते से सस्ते और महंगे से मंहगे दामों में इन दुकानों पर उपलब्ध हैं। इनकी कीमतें 100 रुपए से लेकर 500 रुपए तक है।

गुरुद्वारा साहिब में वैसे तो जहाज चढ़ाने वालों में ज्यादातर लड़के होते हैं लेकिन कुछ समय से लड़कियों की संख्या में भी भारी इजाफा हुआ है। सामान्य दिनों में एक महीने में 1000 से अधिक जहाज संगत द्वारा चढ़ाए जाते हैं।

कहते हैं कि विश्वास हो तो आदमी पहाड़ को भी हिला सकता है और कुछ ऐसा ही लगता है यहां पर जहाज चढ़ाने वालों के विश्वास को देख कर।

बाबा निहालसिंह ओजार बनाने वाले कारीगर थे। वो लोहे से नलकूप में लगने वाले सामान बनाया करते थे। और गाँव वाले मानते थे की उनके हाथ के बने हुए नलकूप का पानी कभी नहीं सूखता था। ऐसे ही काम करते हुए एक दुर्घटना में उनकी मुर्त्यु हो गयी तभी से उन्हें शहीद का दर्जा दिया गया और उनकी समाधी पर इस गुरुद्वारे का निर्माण करवाया गया। यह गुरुद्वारा कम से कम 150 साल से भी ज्यादा पुराना है।


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