चिलकुर बालाजी मंदिर (Chilkur balaji temple), वीजा वाले बालाजी मंदिर (Visa Balaji Temple)
तेलंगाना राज्य के रंगा रेड्डी जिले में हैदराबाद से 30-40 किमी दूर और मेहदीपट्नम से करीब 33 किमी दूर, विकराबाद रोड के नजदीक उस्मान सागर लेक पर बने चिलकुर बालाजी मंदिर में एक खास वजह से श्रद्धालु आते है। और वो वजह है वीजा। दरअसल, यहां रोज हजारों भक्त भारत से बाहर जाने के लिए अपना वीजा क्लियर होने की दुआ मांगने आते हैं।
चिलकुर बालाजी मंदिर मुरुवानी राष्ट्रीय उद्यान के नजदीक है इसलिए यहां आने वाले यात्री धर्म के साथ-साथ पर्यटन का आनंद लेने से भी नहीं चुकते हैं। इस मंदिर के चारों तरफ हरे-भरे जंगल होने के कारण यहां आने वाले यात्रियों की संख्या भी अच्छी खासी होती है।
कैसे हुआ फेमस?
माना जाता है कि 1980 के दशक के आस-पास जब भारत में आईटी कल्चर विकसित हो रहा था, तब कुछ कंप्यूटर प्रोफेशनल्स छात्रों ने इस मंदिर में अपने यूएस वीजा प्राप्त करने के लिए प्रार्थना की, जिसे चेन्नई यूएस वीजा वाणिज्य दूतावास ने अस्वीकार कर दिया था और उनकी प्रार्थना ने काम किया। तब से, यह मंदिर लोगों की वीजा इच्छाओं को देने में फेमस हो गया।
जानिए क्या है मान्यता
कहा जाता है कि चिलकुर बालाजी के दर्शन करने से जो लोग देश से बाहर जाना चाहते हैं उनका वीजा जल्दी बन जाता है।
मान्यता है कि अगर भक्त राजस्थान के तिरुपति बाला जी नहीं जा पाते तो उन्हें चिलकुर बाला जी के दर्शन से तिरुपति के बराबर फल मिलता है। श्री वेंकटेश्वर बालाजी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। जिन्हें हिंदुओं के प्रमुख वैष्णव संप्रदाय के देवता विष्णु का अंश माना जाता है।
चिलकुर बालाजी मंदिर में दर्शन करते समय श्रद्धालु आँखें खुली रखते है और इस मंदिर का धेय्य यही है कि इश्वर सर्वव्यापी है, वही सब कुछ देने वाला है इसलिए उसे किसी भी प्रकार की कोई भेंट या लालच की आवश्यकता नहीं।
क्या कहा जाता है इस मंदिर के बारे में
चिल्कुर बालाजी को वीजा वाले बालाजी मंदिर के नाम से फेमस है जहां खासकर यंग लोग आते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जो भी IT प्रोफेशनल यहां दर्शन के लिए आया उसे एक साल के अंदर ही अमेरिका जाने का अवसर मिल गया।
सिर्फ मंदिर में जाना और प्रार्थना करना पर्याप्त नहीं होता है। यहां आने वाले भक्त अपनी इच्छाओं को प्रभु तक पहुंचाने के लिए एक प्रक्रिया से गुजरना होगा। आपको अपने पासपोर्ट (कुछ लोग नारियल) के साथ मंदिर में जाना होगा और मंदिर के पुजारियों द्वारा मंत्रों का जाप करते हुए गर्भगृह के चारों ओर 11 परिक्रमाएं करनी होगीं। और, आपकी इच्छा पूरी होने के बाद आपको मंदिर में फिर से जाना होगा और 108 परिक्रमा करके भगवान का आभार व्यक्त करना होगा।
Circumambulations
11 circumambulations सृजन के रहस्य का प्रतिनिधित्व करते हैं - 11 का मतलब है "1 आत्मा और 1 शरीर" - इच्छा को पूरा करने के लिए भक्ति और पूर्ण दृढ़ संकल्प दोनों को एकजुट करना, भगवान पर समर्पित; कोई दूसरा नहीं है, सब कुछ भगवान है। 108 circumambulations में, 1 अस्तित्व, सर्वशक्तिमान, भगवान (परमात्मा, बालाजी भक्त के दिमाग में) का प्रतिनिधित्व करता है, 0 निर्माण (भ्रम की दुनिया, जगथ) का प्रतिनिधित्व करता है और 8 उस समय का प्रतिनिधित्व करता है। जब मानव शरीर इस ब्रह्मांड में आ जाता है।
इस मंदिर में लगभग 8 से 10 हजार स्टूडेंट्स आते हैं। एक सप्ताह मे लगभग 1 लाख भक्त यहां दर्शन करने आते हैं उनमें से ज्यादातर अमेरिका और दूसरी वेस्टर्न देशों के वीजा की इच्छा लेकर आते हैं। यहां आने वाले लोगों में सभी तरह के लोग आते हैं जो ठीक से चल नहीं सकते, बीमार, छोटे बच्चों के साथ महिलाएं।
साल भर देश भर से श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शनार्थ आते है। इस मंदिर में आकर एक अलग ही प्रकार की शांति का अनुभव होता है।
यद्यपि यह पूरे साल भक्तों की भीड़ से दौरा किया जाता है, फिर भी अनाकोटा, ब्रह्मोत्सव और पूलंगी के अवसर पर आगंतुकों की संख्या कई गुना बढ़ जाती है।
5000 साल पुराना है ये मंदिर
यह एक प्रचीन हिंदू मंदिर है जो कि भगवान बालाजी और उनकी पत्नी श्री देवी और भू-देवी को समर्पित है। इस मंदिर में स्थापित वेंकटेश्वर प्रतिमा स्वयंभू (पृथ्वी से स्वयं निकली है) है अर्थात ये मूर्ति इसी स्थान से निकली थी। मंदिर के वास्तुशिल्प और निर्माण शैली के अध्ययन से यह बात साबित हो गई है कि यह करीब 500 साल पुराना है। और हैदराबाद का सबसे पुराना मंदिर है। भगवान बालाजी का यह मंदिर जागृत और काफी पुराना है।
यह मंदिर अपनी हस्तकला और कारीगरी के लिए भी जाना जाता है। मंदिर की कला आकर्षित करती है।
चिल्कुर बालाजी मंदिर वास्तुकला – Chilkur Balaji Temple Architecture
इस मंदिर को बनाने की शैली और संरचना को देखकर मालूम पड़ता है की इस मंदिर को सहस्र वर्षो पहले बनवाया गया था।
इस मंदिर को अधिक भव्य बनाने के लिए और इसका महत्व ओर बढ़ाने के लिए, इस मंदिर में 1963 में अम्मवारू की मूर्ति को स्थापित किया गया था क्यों की उसके एक साल पहले भारत पर चीन ने आक्रमण कर दिया था मगर इस मूर्ति की स्थापना करने की बाद में भारत पर आया यह संकट भी टल गया और इसीलिए अम्मवारू की मूर्ति को राज्य लक्ष्मी नाम भी दिया गया। इस मूर्ति की एक विशेषता यह है इस मूर्ति के तीन हातो में कमल का फुल है और चौथा हात कमल के निचे की जगह को दर्शाने का काम करता है, यह शरणागति का प्रतिक है।
समय समय पर कई सारे महान आचार्य ने इस मंदिर को भेट दी है। श्री अहोबिला मठ के दोनों जीर इस मंदिर में हमेशा आते थे और इसीलिए भी इस मंदिर में एक जीर की मूर्ति भी स्थापित की गयी है। श्री वल्लभाचार्य संप्रदाय के तिलकायाथ इस मंदिर में हमेशा आते है। श्रीन्गेरी मठ के जगदगुरु शंकराचार्य और उनके शिष्यों ने इस मंदिर में सुधारना लाने के लिए काफी प्रयास किये थे।
इस मंदिर के चारो तरफ़ हरेभरे जंगल होने के कारण यात्री हर साल हजारों की संख्या में आते है और यहापर आने के बाद ध्यान लगाते है। खुद को शांत रखने के लिए, मन को एकांत देने लिए यह जगह सबसे उचित है।
चिल्कुर बालाजी मंदिर इतिहास – Chilkur Balaji Temple History
तेलंगाना का यह सबसे प्राचीन मंदिर है और इस मंदिर को भक्त रामदास के चाचा अक्कान्ना और मदन्ना ने बनवाया था।
यहाँ की परंपरा के अनुसार एक भक्त हमेशा तिरुपति बालाजी के दर्शन करने के लिए हरसाल मंदिर में आता था मगर एक साल उसकी तबियत ख़राब होने की वजह से वह आ नहीं सका था। इसीलिए एक बार भगवान वेंकटेश्वर उसके सपने आये उन्होंने अपने भक्त से कहा की, “मै यहाँ के जंगलो में ही हु। तुम्हे चिंता करने की कोई जरुरत नहीं”। इस सपने को देखने के बाद भक्त सपने में बताये गए जगह पर जा पंहुचा और वहापर एक पहाड़ी पर छछुंदर ने जहा पर छेद किया था वहा पर उसने खुदाई की।
कुछ देर बात उसे वहा पर भगवान बालाजी की मूर्ति दिखी, मगर उसमे से खून बाहर निकल रहा था और जमीन पर बह रहा था जिसकी वजह से जमीन पूरी तरह से लाल हो गयी थी। यह सब देखने के बाद वह भक्त अपनी आखो पर विश्वास ही नहीं कर पा रहा था। कुछ देर बात उसका अपने कानोपर से भी विश्वास उड़ गया था क्यों की वहापर उसे आवाज सुनाई दी की “जिस जगह पर छेद हुआ है वहा पर दूध डालो”। ऐसा करने पर वहा पर उस भक्त को भगवान बालाजी की मूर्ति के साथ में श्रीदेवी और भूदेवी की मूर्ति भी मिली। उसके बाद उन मूर्तियो को पूरी विधि के साथ मंदिर में स्थापित किया गया।
ऐसे होता है मंदिर का रखरखाव और प्रबंधन
नहीं लिया जाता है यहां दान
ये इंडिया के कुछ ही ऐसे मंदिरों में से एक है जिसमें किसी भी तरह का दान नहीं लिया जाता। जिससे इसकी ख्याति पूरे विश्व में है। आपको यहां कोई दान पेटी या हुंडी नहीं मिलेगी। इस मंदिर का रख-रखाव और खर्च यहां आनें वाले भक्तों से ली गई पार्किंग फीस से किया जाता है। साथ ही मंदिर की एक मैगजीन चलती है जो 5 रूपए की होती है।
मंदिर प्रबंधन का मानना है कि श्रद्धालुओं पर यह पैसा मंदिर की दानपेटी में डालने की जगह गरीबों और जरूरतमंदों को खर्च करना चाहिए। इससे ज्यादा पुण्य मिलेगा। यहां प्रसाद के रूप में भी केवल मिश्री दी जाती है, पारम्परिक रूप से लड्डू नहीं।
मिनिस्टर ऑफ ओवरसीज इंडियन अफेयर्स (MOIA) के अनुसार, जनवरी 2015 में 5,42,10,052 इंडियन दूसरे देशों में थे इनमें से ज्यादातर लोग आंध्रप्रदेश के थे। इस मंदिर में आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु के लोग रेग्युलर आते हैं।
इस मंदिर में नहीं है वीआईपी दर्शन की व्यवस्था
चिलकुर बालाजी एक ऐसा मंदिर है जहां पर वीआईपी लोगों के लिए कोई जगह नहीं है। भगवान की नजर में सारे लोग बराबर है। इस कारण महत्वपूर्ण व्यक्तियों के लिए यहां अलग से कोई व्यवस्था नहीं की जाती। इसलिए अन्य मंदिरों की तरह यहां कोई स्पेशल एंट्री गेट नहीं है। यह जानकर आश्चर्य होता है, लेकिन लेकिन यह सच है।
यह मंदिर राज्य सरकार या केन्द्र सरकार के नियंत्रण में नहीं है। चिलकुर बालाजी का मंदिर भारत में केवल दूसरा ऐसा मंदिर है जो सरकार के नियंत्रण के बाहर है।
भारत में चिलकुर बालाजी के अलावा गुजरात के राजकोट ज़िले में स्थित जलाराम मंदिर ही ऐसा मंदिर है जहाँ कोई भेंट या चढ़ावा नहीं लिया जाता।
चिल्कुर बालाजी मंदिर में ही साल 2011 भारत में मंदी के दौरान पूजा-पाठ किया गया था। उस समय यह मंदिर काफी चर्चा में रहा था।
हवाई जहाज का चढ़ाव
चिल्कुर बालाजी का ये मंदिर अपने चढ़ावे के लिए भी मशहूर है क्योंकि यहां पर 'हवाई जहाज' का चढ़ावा चढ़ाया जाता है। लोगों का कहना है कि हवाई जहाज चढाने से वीजा मिलना और आसान हो जाता है। लोगों का तो यहां तक कहना है कि वीजा के लिए दूतावास के चक्कर लगाने से अच्छा है आप चिल्कुर बालाजी मंदिर के चक्कर लगाएं। इसलिए बड़ी संख्या में यहां लोग भगवान को कागज या खिलौने वाला हवाई जहाज चढ़ाते हैं।
दिलाते हैं नौकरी भी
कुछ सालों पहले तक लोग यहां नौकरी की मन्नतें लेकर भी आते थे और उनकी मनोकामना जल्दी पूरी हो जाती थी।
राक्षस मंत्रों का जप और धार्मिक शिक्षित पुजारियों की धार्मिक लेकिन जीवंत बातचीत के बीच किया जाता है, जो अंग्रेजी और तेलुगू में भक्तों को बोलते हैं और प्रेरित करते हैं। यह मंदिर व्यावसायिक दृष्टि से दूर अपने सकारात्मक और शांतिपूर्ण माहौल के लिए जाना जाता है।
चिलकुर बालाजी मंदिर दर्शन समय सुबह 5 बजे से रात 8 बजे तक है। यह पूरे सप्ताह खुला रहता है। सुबह से देर तक भक्तों को प्रधक्षिना कर देखा जा सकता है। मंदिर के बाहर भी कई छोटे होटल हैं। आवास के लिए आप तेलंगाना पर्यटन द्वारा हरिथा होटल जा सकते हैं जो कि चिलकुर बालाजी मंदिर के बहुत पास स्थित है।
चिलकुर बालाजी मंदिर प्रवेश शुल्क
प्रवेश शुल्क: नि: शुल्क
चिलकुर बालाजी मंदिर फोन
08417 235933
रेटिंग: | 5 सितारों में से 4 सितारे
कुल 30 समीक्षाओं के आधार पर
चिलकुर बालाजी मंदिर का पता
चंदा नगर गांव, टेंपल रोड, हैदराबाद, तेलंगाना, 501504, भारत
चिलकुर बालाजी मंदिर समय
सोमवार 05:00 पूर्वाह्न - 8:00 बजे
मंगलवार 05:00 पूर्वाह्न - 8:00 बजे
बुधवार 05:00 पूर्वाह्न - 8:00 बजे
गुरुवार 05:00 पूर्वाह्न - 8:00 बजे
शुक्रवार 05:00 पूर्वाह्न - 8:00 बजे
शनिवार 05:00 पूर्वाह्न - 8:00 बजे
रविवार 05:00 पूर्वाह्न - 8:00 बजे
कैसे पहुंचे
By Air - यहां का नजदीकी एयरपोर्ट हैदराबाद का बेगमपेट एयरपोर्ट (HYD) है जो मंदिर से 20 किमी दूर है। यहां सभी बड़ी सिटी से फ्लाइट्स आती हैं।
By Train - यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन है लिंगमपल्ली जो यहां से 14 किमी दूर है। यहां सभी बड़ी सिटी से ट्रेन आती हैं।
By Road - यहां के लिए आंध्रप्रदेश की सभी सिटी से बस (APSRTC) मिलती हैं।
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