हजूर साहिब (Hazur Sahib)
तख्त सचखंड श्री हुजूर साहिब : जहां तिनके-तिनके में बसे हैं गुरु गोबिंद सिंह ! (Gurudwara Hazur Sahib Nanded)
तख्त सचखंड साहिब, श्री हजूर साहिब और नादेड़ साहिब, सिखों के 5 पवित्र तख्तों (पवित्र सिंहासन) में से एक है। यह महाराष्ट्र के नान्देड नगर में गोदावरी नदी के किनारे स्थित है। इसमें स्थित गुरुद्वारा 'सच खण्ड' कहलाता है। पाँचों तख्त पुरे खालसा पंथ के लिए प्रेरणा के स्त्रोत तथा ज्ञान के केंद्र हैं।
अन्य चार तख़्त इस प्रकार हैं : -
1. श्री अकाल तख़्त अमृतसर पंजाब
2. श्री केशरगढ़ साहिब, आनंदपुर पंजाब
3. श्री दमदमा साहिब, तलवंडी, पंजाब
4. श्री पटना साहिब, पटना, बिहार
दक्षिण की गंगा कही जानेवाली पावन गोदावरी नदी के किनारे बसा शहर नांदेड़, महाराष्ट्र राज्य के मराठवाड़ा क्षेत्र का औरंगाबाद के बाद सबसे बड़ा शहर है, तथा 'हजूर साहिब सचखंड गुरूद्वारे' के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। यहां हर साल दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु आते हैं और मत्था टेककर स्वयं को धन्य समझते हैं।
नांदेड़ में हुजूर साहिब के अलावा कई अन्य ऐतिहासिक गुरुद्वारे भी हैं। ये सभी गोदावरी नदी के किनारे पर बने हुए हैं। तख्त सचखंड श्री हुजूर साहिब की खास बात यह है कि आसपास रहने वाले मराठी लोग भी गुरु गोबिंद सिंह जी के रंग में रंगे हुए हैं और दिन-रात यहां सेवा करते हैं। यहां तक कि गुरुद्वारे में कई पाठी और ग्रंथी मराठी हैं, जिनके बुजुर्गों ने सदियों पहले सिक्खी को अपना लिया था।
सिखों के दसवें गुरु ने यहां ली थी यहां अंतिम सांस
यहीं पर सन 1708 में सिक्खों के दसवें तथा अंतिम गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने प्रिय घोड़े दिलबाग के साथ अंतिम सांस ली थी। सन 1708 से पहले गुरु गोविंद सिंह जी ने धर्म प्रचार के लिए कुछ वर्षों के लिए यहाँ अपने कुछ अनुयायियों के साथ अपना पड़ाव डाला था। इससे पहले गुरु जी अपने पूरे परिवार को खो चुके थे। यहां उनके साथ काफी संगत जुड़ी थी। रोजाना कीर्तन-पाठ हुआ करता था।
यहीं पर कुछ धार्मिक तथा राजनैतिक कारणों से सरहिंद के नवाब वजीर शाह ने अपने दो आदमी भेजकर उनकी हत्या करवा दी थी। लेकिन गुरु साहिब ने उनका मुंह-तोड़ जवाब दिया और उन्हें अपनी तलवार से मार गिराया।
पवित्र ग्रंथ को उत्तराधिकारी मानने का दिया आदेश
अपनी मृत्यु को समीप देखकर गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में किसी अन्य को गुरु चुनने के बजाय सभी सिखों को आदेश दिया कि मेरे बाद आप सभी पवित्र ग्रन्थ को ही गुरु मानें और तभी से पवित्र ग्रन्थ को गुरु ग्रन्थ साहिब कहा जाता है। यह सुन संगत की आंखें भर आईं, लेकिन गुरु जी ने उन्हें आंसू न बहाने की सलाह दी।
गुरु गांबिंद सिंह जी का परलोक चलाणा
1765 में गुरु जी ने पांच पैसे और नारियल गुरु ग्रंथ साहिब जी के सम्मुख रख माथा टेका और श्रद्धा सहित परिक्रमा की। इस पवित्र दिन समूह सिख संगतों को साहिब श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी से जोड़कर और युग-युगों तक अटल गुरुता गद्दी अर्पण की।
गुरु जी ने श्रीगुरु ग्रंथ साहिब जी को गुरु गद्दी देकर दीवान में बैठी संगत को फरमाया :-
"आगिआ भई अकाल की तवी चलाओ पंथ,
सब सिखन को हुकम है गुरु मानियो ग्रंथ,
गुरु ग्रंथ जी मानियो प्रगट गुरां की देह,
जो प्रभ को मिलबो चहै खोज शब्द में लेह।"
इसके बाद गुरु साहिब ने सर्वत्र खालसा सिख संगत को भविष्य का मार्ग दिखाया और सदैव गुरु ग्रंथ साहिब जी के नियमों और मार्ग पर चलने का आदेश दिया।
गुरु साहिब अपने प्यारे नीले घोड़े दिलबाग को हमेशा अपने साथ रखते थे। दिलबाग नीले रंग का घोड़ा था और उस तरह का घोड़ा दोबारा कभी नहीं हुआ। संगत को आदेश देकर गुरु साहिब दिलबाग पर सवार होकर परलोक चलाणा कर गए। सिक्खों के अनुसार, गुरु गोबिंद सिंह जी ने जीवित परलोक चलाणा किया था इसलिए कोई यह न कहे कि गुरु साहिब की मृत्यु हो गई थी।
तख़्त के गर्भ गृह में रखे जाते हैं पवित्र ग्रंथ
परिसर में स्थित गुरूद्वारे को सचखंड (सत्य का क्षेत्र) नाम से जाना जाता है, यह गुरुद्वारा गुरु गोबिंद सिंह जी जहां ज्योति जोत समाये थे उसी स्थान पर ही बनाया गया है। गुरुद्वारे का आतंरिक कक्ष 'अंगीठा साहिब' कहलाता है, यह ठीक उसी स्थान पर बनाया गया है जहां गुरु गोविंद सिंह जी का दाह संस्कार किया गया था।
हुजूर साहिब का निर्माण
तख़्त के गर्भ गृह में गुरुद्वारा पटना साहिब की तर्ज़ पर श्री गुरु ग्रन्थ साहिब तथा श्री दश्म ग्रन्थ दोनों स्थापित हैं। गुरुद्वारे का निर्माण सन 1832 से 1837 के बीच पंजाब के शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह जी के द्वारा करवाया गया था।
19वीं सदी के पहले दशक में हैदराबाद के नवाब के कार्यकाल के दौरान गुरुद्वारा साहिब के गुंबद पर सोने की सेवा की गई थी। उसके बाद सोने की परत कभी नहीं हुई। लगभग दो सौ वर्ष के बाद यह सेवा गुरुद्वारा लंगर साहिब द्वारा की जाएगी।
गुरूद्वारा नांदेड़ साहिब का स्थापत्य
तख्त सचखंड साहिब का गुरूद्वारा 8 एकड़ में फैला हुआ है। गुरूद्वारे में प्रवेश के लिए 6 तरफ से विशाल द्वार बनाये गये है। सभी द्वार लगभग 40 फुट ऊंचे है और सुंदर वास्तुकला से सुसज्जित है। तख्त साहिब के चारों तरफ श्वेत संगमरमर के 160 वातानुकूलित कक्ष अतिथियों के ठहरने के लिए बनाये गये है। यह भवन दो मंजिला है, भूतल से 15 फुट ऊंचाई पर तख्त साहिब विराजमान है। गुरूद्वारे का मुख्य द्वार सोने का है, अन्य सभी द्वार चांदी के है। सम्पूर्ण सिंहासन साहिब सोने के पत्तरों से सुसज्जित है। छत, दीवारें, द्वार, श्री गुरू ग्रंथ साहिब का सिंहासन सब कुछ स्वर्ण मंडित है। गुम्बद का कलश भी स्वर्ण मंडित है। गर्भ गृह के चारों ओर परिक्रमा मार्ग है। सम्पूर्ण निर्माण श्वेत संगमरमर एवं ग्रेनाइट पत्थरों से किया गया है।
निरंतर चलता है लंगर
गुरु गोविंद सिंह जी की यह अभिलाषा थी कि उनके निर्वाण के बाद भी उनके सहयोगियों में से एक श्री संतोख सिंह जी (जो कि उस समय उनके सामुदायिक रसोईघर की देख-रेख करते थे), नांदेड़ में ही रहें तथा गुरु का लंगर (भोजन) को निरंतर चलाये तथा बंद न होने दें।
गुरु की इच्छा के अनुसार भाई संतोख सिंह जी के अलावा अन्य अनुयायी चाहें तो वापस पंजाब जा सकते हैं लेकिन अपने गुरु के प्रेम से आसक्त उन अनुयायियों ने भी वापस नांदेड़ आकर यहीं रहने का निर्णय लिया। गुरु की इच्छा के अनुसार यहां सालभर लंगर चलता है।
संगत ने गुरु गोबिंद सिंह जी की याद में छोटे से गुरुद्वारे का निर्माण किया था, जिसमें गुरु ग्रंथ साहिब जी की स्थापना की गई थी। आगे चलकर महाराजा रणजीत सिंह जी ने इस भव्य गुरुद्वारे का निर्माण करवाया।
गोदावरी से भरकर लाया जाता है मटका
गुरु साहिब जी अपने समय पर स्नान और अन्य कार्यों के लिए अमृत वेले (तड़के, सुबह पूजा-पाठ के समय) पास बहती गोदावरी नदी से गागर (मटका) भर कर लाया करते थे।
उनकी इस परंपरा को आज भी गुरुद्वारे में जीवित रखा गया है। आज भी तड़के लगभग ढाई से तीन बजे के बीच गोदावरी नदी से गागर को भर कर लाया जाता है, जहां गुरु गोबिंद सिंह जी ने आखिरी समय व्यतीत किया था, उस स्थान को गोदावरी के जल से धोया जाता है।
जो गोदावरी नदी से जल भरकर लाते हैं, उन्हें भाई गागरी का नाम दिया गया है। पानी भरते वक्त पहले वहां पाठ किया जाता है और फिर अरदास के बाद वहां से सचखंड साहिब में जल लाया जाता है।
दिलबाग की याद में रखे हैं घोड़े
गुरु साहिब हमेशा अपने अपने साथ प्रिय घोड़े दिलबाग को रखते थे। दिलबाग नीले रंग का घोड़ा था और उस तरह का घोड़ा दोबारा कभी नहीं हुआ। गुरुद्वारा साहिब के पास एक बहुत बड़ा अस्तबल बनाया गया है, जहां काफी सारे घोड़े रखे गए हैं।
सिख बुद्धिजीवियों का कहना है कि इन घोड़ों को गुरु साहिब के घोड़े दिलबाग की याद में रखा गया है। दिलबाग अपनी प्रजाति का एकमात्र घोड़ा था, जो गुरु साहिब के साथ ही परलोक चलाणा कर गया।
आज भी सुबह और शाम अस्तबल में से कुछ मुख्य घोड़ों को गुरुद्वारा साहिब के बाहर लाया जाता है और संगतों को दर्शन करवाए जाते हैं।
लेजर और फाउंटेशन शो से दिखाई जाती है गुरुओं की जीवन कथा
आज तख्त सचखंड श्री हुजूर साहिब बेहद बड़ी जगह पर बना हुआ है। यहां रोजाना हजारों लोग नतमस्तक होते हैं। इनमें पंजाब और दिल्ली से जाने वाली संगत की संख्या काफी अधिक होती है। गोदावरी नदी के किनारे पर जो गुरुद्वारे बने हैं, वहां भी गुरु साहिब के इतिहास को बखूबी लिखा गया है। वहां आने वाली संगत को प्रत्येक गुरुद्वारे के इतिहास के बारे में बताया जाता है। इतना ही नहीं, तख्त सचखंड श्री हुजूर साहिब से मात्र पांच मिनट की दूरी पर स्थित है गुरुद्वारा गोबिंद बाग। यहां रोजाना शाम को लेजर और फाउंटेन शो का आयोजन किया जाता है जिसमें संगत की हाजिरी देखने लायक होती है। इस शो में दस गुरुओं की जीवन कथा का बेहद खूबसूरत और अच्छे तरीके से वर्णन किया जाता है। यह शो सिर्फ सिक्खों ही नहीं, बल्कि सभी धर्म के लोगों को बेहद पसंद आता है।
गुरूद्वारा बोर्ड नांदेड के इतिहास से सम्बंधित यहां नौ अन्य गुरूद्वारे और है। बोर्ड उनका भी प्रबंधन देखता है। इन नौ गुरूद्वारे के दर्शन के लिए निशुल्क बस सेवा चलाई जा रही है। गुरूद्वारा बोर्ड की ओर से जनकल्याण के अनेकों कार्य किये जा रहे है। धार्मिक संगीत विद्यालय, प्राईमरी स्कूल, नर्सरी स्कूल, खालसा स्कूल, हजूर साहिब आई.टी.आई, सिलाई केन्द्र, सिख अस्पताल, गरीब छात्रो को आर्थिक मदद, गुरू गोविंद सिंह म्यूजियम, पुस्तकालय, यात्री निवास, दसमेश अस्पताल, धर्म प्रचार कार्य, मासिक पत्रिका, विधवा आश्रम, सामूहिक विवाह मेलो का आयोजन आदि अनेक जन सेवा के कार्य किए जा रहे है। तख्त सचखंड साहिब नांदेड़ में गुरू पर्वों के अलावा, दशहरा, होली वैशाखी, दिपावली , गुरुगद्दी, कार्तिक पूर्णिमा, आदि बड़ी धूमधाम से मनाये जाते है। शस्त्रो की सफाई की जाती है। और बड़े बड़े जूलूस, घोडों की सवारी निकाली जाती है।
ऐसे पहुंचे
गुरुद्वारा श्री हुजूर साहिब के लिए अमृतसर से नांदेड़ स्टेशन तक ट्रेन चलती है जो बीच में कई स्टेशनों पर रुकती हुई नई दिल्ली स्टेशन आकर रुकती है। इस ट्रेन में ज्यादातर सिख संगत होती हैं। अगर दिल्ली से नांदेड़ स्टेशन तक की बात करें तो इसमें आपका पूरा डेढ़ दिन यानी कि लगभग 27 से 28 घंटे लग जाते हैं। खास बात यह है कि इस ट्रेन में पूरे रास्ते लंगर की सुविधा रहती है। स्टेशनों पर गुरुद्वारे की तरफ जाने वाली संगत के अलावा हर व्यक्ति को लंगर दिया जाता है। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से यह ट्रेन लगभग दोपहर ढाई बजे चलती है और अगले दिन चार से पांच बजे तक नादेड़ स्टेशन पहुंचा देती है। स्टेशन से गुरुद्वारे जाने में लगभग 10 से 15 मिनट का समय लगता है। गुरुद्वारे पहुंचने के लिए स्टेशन पर गुरुद्वारे की ही तरफ से बसें चलाई जाती हैं। यदि आप अपनी गाड़ी करना चाहते हैं तो वह भी कर सकते हैं।
इन बड़े उत्सवों पर चमक उठता है गुरुद्वारा
यूं तो हर वक्त गुरुद्वारे की सुंदरता देखने लायक होती है, लेकिन गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश उत्सव, अन्य प्रकाश उत्सवों, शहीदी दिहाड़ों, बैसाखी, दिवाली आदि पर गुरुद्वारे का नजारा मन मोह लेता है। यहां दशहरे पर बहुत बड़े स्तर पर खास प्रोग्राम का आयोजन किया जाता है। इसमें नगर कीर्तन की ही तरह कीर्तन किया जाता है। इस दौरान वह सभी घोड़े कार्यक्रम में शामिल रहते हैं जिन्हें गुरुद्वारा साहिब की ओर से पाला जा रहा है। उस दिन इन घोड़ों की सुंदरता भी देखने लायक होती है।
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