सोमवार, 25 मई 2020

रानी की वाव, गुजरात


अपनी अद्भुत कलाकृति और अद्धितीय संरचना के लिए मशहूर ”रानी की वाव” (Rani Ki Vav)

अपनी अद्भभुत वास्तुशैली और बेमिसाल खूबसूरती के लिए विश्व भर में विख्यात रानी की वाव भारत के गुजरात शहर के पाटन गांव में स्थित है। यह भारत की सबसे प्राचीनतम और ऐतिहासिक धरोहरों में से एक है। गुजरात में सरस्वती नदी के तट पर बना यह एक भव्य सीढ़ीनुमा कुआं है, जिसकी इमारत सात मंजिला है।

अपने प्रकार की यह इकलौती बावड़ी ”रानी की वाव” चारों तरफ से बेहद आर्कषक कलाकृतियों और मूर्तियों से घिरी हुई है। यह अपने आप में एक अद्धितीय और अनूठी संरचना है, जो कि भूमिगत पानी के स्त्रोतों से थोड़ी अलग है।

अपनी अनूठी संरचना और अद्भुत बनावट के लिए पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध गुजरात की यह बावड़ी भूमिगत जलसंसाधन एवं भंडारण प्रणाली का एक उत्कृष्ट नमूना है।

जल संग्रह प्रणाली के इस नायाब नमूने रानी की वाव को साल 2018 में RBI द्धारा जारी 100 रुपए के नए नोट पर प्रिंट किया गया है।

रानी की वाव का निर्माण एवं इसका इतिहास (Rani Ki Vav History)

इस भव्य बावड़ी का निर्माण सोलंकी वंश के शासक भीमदेव सोलंकी (सोलंकी राजवंश के संस्थापक) की पत्नी उदयमति ने 10वीं-11वीं सदी में अपने स्वर्गवासी पति की स्मृति में करवाया था। करीब 1022 से 1063 के बीच इस 7 मंजिला बावड़ी का निर्माण किया गया था।

आपको बता दें कि सोलंकी राजवंश के शासक भीमदेव ने वडनगर गुजरात पर 1021 से 1063 ईसवी तक शासन किया था। अहमदाबाद से करीब 140 किलोमीटर की दूरी पर बनी यह ऐतिहासिक धरोहर रानी की वाव प्रेम का प्रतीक मानी जाती है।

ऐसा माना जाता है कि इस सात मंजिली सीढ़ीनुमा अनोखी बावड़ी के निर्माण पानी का उचित प्रबंध करने के लिए किया गया था, क्योंकि इस क्षेत्र में वर्षा बेहद कम होती थी, जबकि कुछ लोककथाओं के मुताबिक रानी उदयमती ने जरूरतमंद लोगों को पानी प्रदान कर पुण्य-धर्म कमाने के उद्देश्य से इस विशाल बावड़ी का निर्माण करवाया था।

सरस्वती नदी के तट पर स्थित यह विशाल सीढ़ीनुमा आकार की बावड़ी कई सालों तक इस नदीं में आने वाली बाढ़ की वजह से धीमे-धीमे मिट्टी और कीचड़ के मलबे में दब गई थी, जिसके बाद करीब 80 के दशक में भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण विभाग (ASI) ने इस जगह की खुदाई की। काफी खुदाई करने के बाद यह बावड़ी पूरी दुनिया के सामने आई। और अच्छी बात यह रही कि सालों तक मलबे में दबने के बाद भी रानी की वाव की मूर्तियां, शिल्पकारी काफी अच्छी स्थिति में पाए गए।

रानी की वाव की अद्भुत बनावट एवं संरचना (Rani Ki Vav Architecture)

गुजरात में स्थित ”रानी की वाव” 11वीं सदी की वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। इस बावड़ी का निर्माण मारू-गुर्जर स्थापत्य शैली का इस्तेमाल कर किया गया है। इस जल संग्रह प्रणाली के इस नायाब नमूने को इस तरह बनाया गया है कि इसमें यह जल संग्रह की उचित तकनीक, बारीकियों और अनुपातों की अत्यंत सुंदर कला क्षमता की जटिलता को बेहतरीन ढंग से प्रदर्शित करती हैं।

यह अपने समय की सबसे प्राचीनतम और अद्भुत स्मारकों में से एक है। सीढ़ियों वाली इस भव्य बावड़ी की पूरी संरचना भू-स्तर के नीचे बसी हुई है, जिसकी लंबाई करीब 64 मीटर, चौड़ाई करीब 20 मीटर है, जबकि यह 27 मीटर गहरी है। जो कि करीब 6 एकड़ के क्षेत्रफल में फैली हुई है।

यह अपने प्रकार की सबसे विशाल और भव्य संरचनाओं में से एक है। इस बावड़ी की दीवारों और खंभों पर बेहतरीन शिल्पकारी और सुंदर मूर्तियों की नक्काशी की गई है। इसके साथ ही इस विशाल बावड़ी की सीढ़ियों पर बनी उत्कृष्ट आकृतियां यहां आने वाले सैलानियों का मन मोह लेती हैं। आपको बता दें कि अपने प्रवेश द्धारा से लेकर अपनी गहराई तक यह अनूठी बावड़ी पूरी तरह से उत्कृष्ट शिल्पकारी से सुसज्जित है। इस विशाल बावड़ी की अद्भुत संरचना और अद्धितीय शिल्पकारी अपने आप में अनूठी है।

सबसे खास बात यह है कि यह बावड़ी बाहरी दुनिया के कटे होने की वजह से काफी अच्छी परिस्थिति में है।

भगवान विष्णु से संबंधित है बावड़ी की मूर्तियां और कलाकृतियां :

सीढ़ियों वाली सात मंजिलीं इस अनूठी बावड़ी की दीवारों पर सुंदर मूर्तियां और कलाकृतियों की अद्भुत नक्काशी की गई है। इस विशाल ऐतिहासिक अनूठी बावड़ी में 500 से भी ज्यादा विशाल मूर्तियां और करीब एक हजार से ज्यादा छोटी मूर्तियां पत्थरों पर बेहद शानदार ढंग से उकेरी गई हैं।

11वीं सदी की वास्तुशैली की इस उत्कृष्ट ऐतिहासिक कृति के अंदर भगवान विष्णु से संबंधित बहुत सारी कलाकृतियां और सुंदर मूर्तियां बनी हुई हैं। औधें मंदिर के रुप में डिजाइन की गई इस बावड़ी में भगवान विष्णु के दशावतारों की मूर्तियां बेहद आर्कषक तरीके से उकेरी गईं हैं, जिनमें से मुख्य रुप से नरसिम्हा, कल्कि राम, वाराही, कृष्णा समेत अन्य प्रमुख अवतार की कलाकृतियां उकेरी गईं हैं। इसके अलावा इस विशाल बावड़ी में मां दुर्गा, माता लक्ष्मी, पार्वती, भगवान गणेश, ब्रह्रा, कुबेर, भैरव और सूर्य समेत तमाम देवी-देवताओं की कलाकृति भी देखने को मिलती है।

इसके अलावा इस भव्य बावड़ी पर भारतीय महिलां के परंपरागत सोलह श्रंगार को भी मूर्तियों के जरिए बेहद शानदार तरीके से प्रदर्शित किया गया है। यहीं नहीं इस बावड़ी के अंदर कुछ नागकन्याओं की भी अद्भुत प्रतिमाएं देखने को मिलती है। इस ऐतिहासिक ‘रानी की वाव’ में हर स्तर पर स्तंभों से बना हुआ एक गलियारा है, जो कि वहां के दोनों तरफ की दीवारों को जोड़ता है।

वहीं इस आर्कषक गलियारे में खड़े होकर रानी के वाव की अद्भुत सीढ़ियों का नजारा ले सकते हैं। अपने प्रकार की इस इकलौती बावड़ी को कलश के आकार में ढाल दिया है। इस अद्भुत बावड़ी की दीवारों पर बने ज्यामितीय और रेखाचित्र देखते ही बनते हैं।

रानी की वाव का गहरा कुंआ (Rani Ki Vav Step Well)

गुजरात में सरस्वती नदी के तट के किनारे स्थित विश्व प्रसिद्ध रानी की वाव के सबसे अंतिम स्तर पर एक गहरा कुआं है, जिसे ऊपर से भी देखा जा सकता है। इस कुएं के अंदर गहराई तक जाने के लिए सीढ़ियां निर्मित की गई हैं, लेकिन अगर इसे ऊपर से नीचे की तरफ देखते हैं तो यह दीवारों से बाहर निकले हुए कुछ कोष्ठ की तरह नजर आते हैं, जिनका पहले कभी किसी तरह की वस्तु आदि रखने के लिए उपयोग किया जाता था।

इस अनूठी बावड़ी की सबसे खास बात यह है कि इस वाव के गहरे कुएं में अंदर तक जाने पर शेष शैय्या पर लेटे हुए भगवान विष्णु की अद्भूत मूर्ति देखने को मिलती है, जिसे देखकर यहां आने वाले पर्यटक अभिभूत हो जाते हैं एवं इसे धार्मिक आस्था से भी जोड़कर देखा जाता है।

विश्व ऐतिहासिक धरोहर के रुप में रानी की वाव (Rani Ki Vav World Heritage Site)

सात मंजिला इस ऐतिहासिक और दुनिया की ऐसी इकलौती विशाल बावड़ी को इसकी अनूठी शिल्पकारी, अद्भुत बनावट एवं इसकी भव्यता के साथ भूमिगत जल के उपयोग एवं बेहतरीन जल प्रबंधन कि व्यवस्था के चलते इसकोे वर्ल्ड हेरिटेज साइट यूनेस्कों ने 22 जून, 2014 में इसे विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल किया है। यही नहीं विश्व प्रसिद्ध यह वावड़ी इस बात का भी प्रमाण है कि प्राचीन भारत में वॉटर मैनेजमेंट सिस्टम कितना बेहतरीन और शानदार था।

रानी की वाव से जुड़े कुछ रोचक तथ्य (Facts About Rani Ki Vav)

* यह विश्वप्रसिद्ध सीढ़ीनुमा बावड़ी के नीचे एक छोटा सा गेट भी है, जिसके अंदर करीब 30 किलोमीटर लंबी एक सुरंग बनी हुई है। ऐसा माना जाता है कि, इस रहस्यमयी सुरंग पाटन के सिद्धपुर में जाकर खुलती है। पहले इस खुफिया रास्ते का इस्तेमाल राजा और उसका परिवार युद्ध एवं कठिन परिस्थिति में करते थे। फिलहाल अब इस सुरंग को मिट्टी और पत्थरों से बंद कर दिया गया था।

* विश्व प्रसिद्ध रानी की वाव के बारे में सबसे ऐतिहासिक और रोचक तथ्य यह है करीब 50-60 साल पहले इस बावड़ी के आसपास तमाम तरह के आयुर्वेदिक पौधे थे, जिसकी वजह से रानी की वाव में एकत्रित पानी को बुखार, वायरल रोग आदि के लिए काफी अच्छा माना जाता था। वहीं इस बावड़ी के बारे में यह मान्यता भी है कि इस पानी से नहाने पर बीमारियां नहीं फैलती हैं।

* 7 मंजिला इस बावड़ी का चौथा तल सबसे गहरा बना हुआ है, जिसमें से एक 9.4 मीटर से 9.5 मीटर के आयताकार टैंक तक जाता है।

* अपनी अनूठी मूर्तिकला के लिए विश्व भर में विख्यात इस अद्भुत बावड़ी में 11वीं और 12वीं सदी में बनी दो मूर्तियां भी चोरी कर ली गईं थी, इनमें से एक मूर्ति गणपति और दूसरी ब्रह्म-ब्रह्राणि की थीं।

* सात मंजिला इस अनूठी बावड़ी में पहले सीढि़यों की कतारों की संख्या 7 हुआ करती थीं, जिसमें से अब 2 गायब हो चुकी हैं।

* इस ऐतिहासिक बावड़ी की देखरेख का जिम्मा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की है। यह भव्य रानी की वाव गुजरात के भूकंप वाले क्षेत्र में स्थित है, इसलिए भारतीय पुरातत्व को इसके आपदा प्रबंधन को लेकर हर समय सतर्क रहना पड़ता है।

* अपनी कलाकृति के लिए मशहूर इस विशाल ऐतिहासिक रानी की वाव को साल 2016 में दिल्ली में हुई भारतीय स्वच्छता सम्मेलन (इंडियन सेनीटेशन कॉन्फ्रेंस) में ”क्लीनेस्ट आइकोनिक प्लेस” पुरस्कार से नवाजा गया है। और भारत का सबसे स्वच्छ एवं प्रतिष्ठित स्थान का भी दर्जा मिला था।

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