मंगलवार, 26 मई 2020

श्रीकांतेश्वर मंदिर, कर्नाटक


श्रीकांतेश्वर मंदिर ‘नंजनगुड मंदिर’ (Nanjangud Temple)

नंजनगुड मंदिर को ‘नंजेश्वर मंदिर’ या ‘श्रीकांतेश्वर मंदिर’ (Srikanteshwara Mandir) के नाम से भी जाना जाता है। यह शिव मंदिर है और यह द्रविड़ शैली में बना है। पूर्वजों के अनुसार इस मंदिर में भगवान शिव का वास था। मंदिर कर्नाटक राज्य में मैसूर शहर के नंजनगुड में स्थित है। यह शहर केले की पैदावर के लिए भी प्रसिद्ध है। यह मैसूर से 22 किलोमिटर की दूरी पर काबिनी नदी की सहायक नदी कपिला के किनारे राजमार्ग 17 पर स्थित है।

यह एक प्राचीन मंदिर है, जहां भोलेनाथ की पूजा श्रीकांतेश्वर नाम से होती है। भोलेनाथ का यह मंदिर भी दक्षिण काशी के नाम से जाना जाता है। नंजू एक कन्नड शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ विष यानी जहर है। नंजुदेश्वर का मतलब, वो भगवान जिसने विष पान किया हो। नगर का नाम नंजनगुड भी भगवान शिव पर आधारित है।

श्रीकांतेश्वर मंदिर का इतिहास (Nanjangud Srikanteshwara Temple History)

नंजनगुड मंदिर लगभग एक हज़ार वर्ष पुराना है। बाहर भगवान शिव की विशाल प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर को गंगा शासनकारों ने बनाया था और इसकी देख रेख होय्सला राजाओं ने की थी। भगवान गणेश के विभिन्न देवताओं से हुए युद्ध की स्मृति में यह मंदिर बनवाया गया है। उस समय नंजनगुड का राजपरिवार इसी मंदिर में आया करता था।

दक्षिण की काशी कही जाने वाली इस जगह पर स्थापित शिवलिंग के विषय में यह माना जाता है कि इसकी स्थापना गौतम ऋषि ने की थी। मंदिर के मुख्य द्वार पर खड़ा हाथी सामंती प्रथा को दर्शाता है। गेहुएँ रंग के पत्थर से बने इस मंदिर के गोपुरम और विशाल चारदीवारी के ऊपर की गई शिल्पकारी में गणेश जी के विभिन्न युद्धों की झलकियाँ हैं। इसकी शिल्पकारी देखने योग्य है।

मंदिर में गणेश, शिव और पार्वती जी के अलग-अलग गर्भ गृह हैं। बड़े अहाते में एक किनारे पर 108 शिवलिंग हैं। पत्थरो से निर्मित इस विशाल मंदिर में एक स्थान ऐसा भी है, जहाँ ऊँची छत से सुबह के समय सूर्य की पहली किरण आती है। नंजनगुड मंदिर की बनावट आज भी इतनी सुन्दर है कि यह हज़ार साल पुराना नहीं लगता।

इतिहासकारों का यह कहना है कि नंजुंडेश्वर मंदिर पर अर्पित कई प्रार्थनाओं के बाद टीपू सुल्तान का बीमार हाथी ठीक हो गया। इसलिए टीपू सुल्तान और हैदर अली को नंजूनडेशवर मंदिर पर अटूट विश्वास था।

स्थानीय लोगों का यह मानना है कि इस मंदिर के दर्शन से भक्तों के कष्टों का निवारण होता है। यहाँ साल में दो बार रथोत्सव मनाया जाता है। जिस दौड़ जात्रे भी कहा जाता है। इस जात्रा में भगवान गणेश, श्री कंट॓श्वर, सुब्रमन्य,चंद्रकेश्वर और देवी पार्वती की मूर्तियों को अलग अलग रथों में स्थापित कर पूजा अर्चना कर के रथोत्सव की शुरुवात होती है। इस महोत्सव को देखने के लिए हजारों की भीड़ में लोग इखटा होते हैं। सच में यह मंदिर देखने योग्य है। यहाँ करने यात्रा का सबसे अच्छा समय “दोद्दा जाठ्रे” त्यौहार के दौरान होता है जब राठ बीडी के भक्त 5 रथों को खींचते  हैं।


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