मंगलवार, 9 जून 2020

चौसठ योगिनी मंदिर, मध्य प्रदेश


चौसठ योगिनी मंदिर, मध्य प्रदेश
Chausath Yogini Temple, Mitawali, Morena, Madhya Pradesh

भारत में बेशुमार मंदिर हैं लेकिन चौसठ योगिनी मंदिर अपने आकार की वजह से अन्य मंदिरों से अनोखे दिखते हैं। ये मंदिर गोलाकार होते हैं और इनका ऊपरी हिस्सा खुला रहता है। इनमें से जो थोड़े मंदिर रह गए हैं, उनमें से अधिकांश भारत के मध्य प्रदेश और ओडिशा में स्थित हैं।

चौसठ योगिनी मंदिर ग्वालियर से 40 किलोमीटर (25 मील) में मुरैना जिले के पडावली के पास, मितावली या मितौली गांव में है। इस स्थान पर पहुंचने के लिए ग्वालियर से मुरैना रोड पर जाना पड़ेगा। मुरैना से पहले करह बाबा से या फिर मालनपुर रोड से पढ़ावली पहुंचा जा सकता है।

चौसठ योगिनी मंदिर गोलाकार और छतविहीन मंदिर है, भारत में गोलाकार मंदिरों की संख्या बहुत कम है यह उन मंदिरों में से एक है। वास्तुकला में हाइपीथ्रल शब्द ऐसे भवन के लिये इस्तेमाल किया जाता है जिसकी छत नहीं होती। भारत में चार चौसठ योगिनी मंदिर हैं, जो दो ओडिशा और दो मध्य प्रदेश में हैं। लेकिन मध्य प्रदेश के मुरैना में स्थित चौसठ योगिनी मंदिर सबसे प्रमुख और प्राचिन है। यह भारत के उन चौसठ योगिनी मंदिरों में से एक है जो अभी भी अच्छी दशा में बचे हैं।

चौसठ योगिनी मंदिर, मुरैना, लगभग सौ फीट ऊँची एक अलग पहाड़ी के ऊपर खड़ा है, यह गोलाकार मंदिर नीचे खेती किए गए खेतों का शानदार दृश्य प्रस्तुत करता है। बरसात में पहाड़ी के अलावा चारों ओर दिखने वाली हरियाली पयर्टकों को अपनी ओर आकर्षित करती है।

मंदिर के मध्य में है खुला मण्डप
इसलिए पड़ा चौसठ योगिनी मंदिर

चौसठ योगिनी मंदिर बालूपत्थर का बना हुआ है और इसका अहाता गोलाकार है। इसमें 64 प्रकोष्ठ हैं और प्रत्येक प्रकोष्ठ के बाहर एक खुला मंडप है जो भित्ति स्तंभों पर टिका है। इन प्रकोष्ठों और मंडप की छतें अब सपाट हैं। प्लिंथ पर मध्य में एक गोलाकार मंडप है। इस मंडप में खंबों के दो बाड़े हैं और इसमें शिव का मुख्य मंदिर है। छतविहीन और गोलाकार ढ़ांचे के कारण, ऐसा माना जाता था कि यहां एक समय खगोलशास्त्र और गणित का अध्ययन किया जाता था। मगर इसका कोई सबूत नहीं है।

करीब 200 सीढ़ियां चढ़ने के बाद चौसठ योगिनी मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। यह बाहरी रूप से 170 फीट की त्रिज्या के साथ आकार में गोलाकार (वृत्तीय) है और इसके आंतरिक भाग के भीतर 64 कमरे (छोटे कक्ष) हैं। हर कमरे में एक-एक शिवलिंग बना हुआ है। मंदिर के मध्य में एक खुला हुआ मण्डप है, जिसमें एक विशाल शिवलिंग है।

कमरे में शिवलिंग के साथ देवी योगिनी की मूर्ति साथ थीं। लेकिन कुछ मूर्तियां चोरी हो गईं, जिसकी वजह से अब मूर्तियों को दिल्ली के संग्राहलय में रखा गया है। अब इसमें से केवल 35 ही बाकी हैं। इसी वजह से इसी मंदिर का नाम चौसठ योगिनी मंदिर पड़ा। यह मंदिर 101 खंभों पर टिका हुआ है।

मंदिर में एक महाकाली की मूर्ति मौजूद है बाकी में काली की सहचर अन्य चौसठ योगिनियों की मूर्तियां पतिष्ठित की गयी है। चंदेल राजाओं के समय यहां तांत्रिको द्वारा अनुष्ठान किये जाते थे।

ये मंदिर इकत्तरसो (इकंतेश्वर) महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। ये नाम शायद इसलिये पड़ा है क्योंकि मंदिर के प्रमुख प्रकोष्ठ में शिव मंदिर है और मंदिर के अन्य प्रकोष्ठों में कई शिवलिंग हैं।

मुख्य केंद्रीय मंदिर में स्लैब के आवरण हैं जो एक बड़े भूमिगत भंडारण के लिए वर्षा जल को संचित करने के लिए उनमें छिद्र हैं। छत से पाइप लाइन बारिश के पानी को स्टोरेज तक ले जाती है।

प्रतिहार क्षत्रिय राजाओं ने कराया था निर्माण

मितावली का चौसठ योगिनी मंदिर, इन मंदिरों का एक शानदार उदाहरण है। यहां मिले शिला-लेख (विक्रम संवत 1380 यानी सन 1323) के अनुसार इस मंदिर का निर्माण कच्छपघात राजवंश के राजा देवपाल ने अपने शासनकाल में करवाया था। देवपाल ने सन 1055- सन 1075 के बीच शासन किया था। कच्छपघात मूलत: पहले मध्य भारत के गुर्जर-प्रतिहार (8वीं-11वीं शताब्दी) और बाद में चंदेला राजवंश (9वीं-13वीं शताब्दी) में जगीरदार हुआ करते थे। कच्छपघात 10वीं शताब्दी के अंतिम दशक में शक्तिशाली बन गए थे और फिर मध्य भारत के एक महत्वपूर्ण शासक बन गए। उनका मध्यप्रदेश के ग्वालियर, दूबकुंड और नरवर पर 12वीं शताब्दी के अंत तक शासन था। कच्छपघात वास्तुकला के बड़े संरक्षक थे।अपने शासनकाल के दौरान उन्होंने कई मंदिर बनवाए जिनमें ग्वालियर का सास-बहू मंदिर (या सहस्त्रबाहु मंदिर) सबसे अधिक प्रसिद्ध है।

गुर्जर प्रतिहारों और चंदेलों का तंत्र संप्रदाय से संबंध था जिसका पता खजुरहो के मंदिरों से चलता है। कच्छपघात चूंकी उनके शासनकाल में जागीरदार रह चुके थे इसलिये हो सकता है कि उन पर तंत्र संप्रदाय का प्रभाव पड़ा हो। इस क्षेत्र में चौसठ योगिनी मंदिर तंत्र संप्रदाय को कच्छपघात राजाओं से मिलने वाले प्रश्रय पर इशारा कर सकते हैं।

मितावनी के चौंसठ योगिनी मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में तत्कालीन प्रतिहार क्षत्रिय राजाओं ने कराया था।

इतिहासकार इस मंदिर को गुर्जर और कछप कालीन मानते हैं। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि करीब सात सौ साल पहले, 1323 ई (विक्रम संवत 1383) में कच्छप राजा देवपाल ने तंत्र साधना के शिक्षा केन्द्र के रूप में चौंसठ योगिनी मंदिर का निर्माण कराया होगा। (आरसी 1055 - 1075)। कहा जाता है कि मंदिर सूर्य के गोचर के आधार पर ज्योतिष और गणित में शिक्षा प्रदान करने का स्थान था।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इस मंदिर को प्राचीन ऐतिहसिक स्मारक घोषित किया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने मंदिर को 1951 के अधिनियम संख्या LXXI, dt. 28/11/1951 के तहत एक प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक घोषित किया है।

मंदिर की तर्ज पर है संसद का निर्माण

ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस ने इस मंदिर को आधार मनाकर दिल्ली के भारतीय संसद भवन (संसद भवन) (जो 1920 में बना) का निर्माण करवाया था। जिसकी चर्चा ना तो किताबों में कहीं है और ना ही संसद की वेबसाइट पर है। मंदिर न केवल बहार से संसद भवन से मिलता जुलता है बल्कि अंदर भी खभों का वैसा ही ढ़ांचा है।

चौसठ योगिनियों को किया जाता है जागृत

स्थानिय निवासी आज भी मानते हैं कि यह मंदिर आज भी शिव की तंत्र साधना के कवच से ढका हुआ है। यहां आज भी रात में रुकने की इजाजत नहीं है, ना तो इंसानों को और ना ही पंक्षी को। तंत्र साधना के लिए मशहूर इस मंदिर में शिव की योगनियों को जागृत किया जाता था।

माता काली से है संबंध

सामान्यतः योगाभ्यास करने वाली स्त्री योगिनी या योगिन कहलाती है। परन्तु शाक्त मत तथा तांत्रिक परम्पराओं में योगिनी देवीरूपा हैं जो सप्तमातृकाओं से सम्बद्ध हैं। इनकी संख्या 64 है। आपने अष्ट या चौंसठ योगिनियों के बारे में सुना होगा। दरअसल ये सभी आदिशक्ति मां काली का अवतार है। घोर नामक दैत्य के साथ युद्ध करते हुए माता ने ये अवतार लिए थे। यह भी माना जाता है कि ये सभी माता पार्वती की सखियां हैं। इन चौंसठ देवियों में से दस महाविद्याएं और सिद्ध विद्याओं की भी गणना की जाती है। ये सभी योगिनी तंत्र तथा योग विघा से संबंध रखती हैं। ये सभी आद्या शक्ति काली के ही भिन्न-भिन्न अवतारी अंश हैं। कुछ लोग कहते हैं कि समस्त योगिनियों का संबंध मुख्यतः काली कुल से हैं और ये सभी तंत्र तथा योग विद्या से घनिष्ठ सम्बन्ध रखती हैं।

माना जाता है कि इन मंदिरों की मुख्य देवी योगिनी के पास बहुत सी शक्तियां हैं और वे योगाभ्यास करती हैं। इसके अलावा इनका संबंध शाक्त और तंत्र संप्रदाय से है। संस्कृत साहित्य के अनुसार योगिनी मां काली दुर्गा का अवतार हैं। योगिनी की तांत्रिक देवी के रुप में भी उपासना की जाती है। तांत्रिक देवी शिव की सहचारी शक्ति के विभिन्न रुपों का प्रतिनिधित्व करती हैं। कभी कभी इनका संबंध सप्त मातृका जैसी देवियों के विभिन्न समूहों से भी संबंध रहता है। सप्त मातृका सात देवियों का एक समूह है जिसका संबंध शक्ति और स्कंद (युद्ध देवता) से है।

भारत में आठ या 9 प्रमुख चौसठ योगिनी मंदिर का उल्लेख मिलता है। समस्त योगिनियां अलौकिक शक्तिओं से सम्पन्न हैं तथा इंद्रजाल जादू वशीकरण मारण स्तंभन इत्यादि कर्म इन्हीं की कृपा द्वारा ही सफल हो पाते हैं। प्रमुख रूप से आठ योगिनियों के नाम इस प्रकार हैं -
1- सुर-सुंदरी योगिनी
2- मनोहरा योगिनी
3- कनकवती योगिनी
4- कामेश्वरी योगिनी
5- रति सुंदरी योगिनी
6- पद्मिनी योगिनी
7- नतिनी योगिनी
8- मधुमती योगिनी

चौंसठ योगिनियों के नाम :-

1.बहुरूप, 3.तारा, 3.नर्मदा, 4.यमुना, 5.शांति, 6.वारुणी 7.क्षेमंकरी, 8.ऐन्द्री, 9.वाराही, 10.रणवीरा, 11.वानर-मुखी, 12.वैष्णवी, 13.कालरात्रि, 14.वैद्यरूपा, 15.चर्चिका, 16.बेतली, 17.छिन्नमस्तिका, 18.वृषवाहन, 19.ज्वाला कामिनी, 20.घटवार, 21.कराकाली, 22.सरस्वती, 23.बिरूपा, 24.कौवेरी, 25.भलुका, 26.नारसिंही, 27.बिरजा, 28.विकतांना, 29.महालक्ष्मी, 30.कौमारी, 31.महामाया, 32.रति, 33.करकरी, 34.सर्पश्या, 35.यक्षिणी, 36.विनायकी, 37.विंध्यवासिनी, 38. वीर कुमारी, 39. माहेश्वरी, 40.अम्बिका, 41.कामिनी, 42.घटाबरी, 43.स्तुती, 44.काली, 45.उमा, 46.नारायणी, 47.समुद्र, 48.ब्रह्मिनी, 49.ज्वाला मुखी, 50.आग्नेयी, 51.अदिति, 51.चन्द्रकान्ति, 53.वायुवेगा, 54.चामुण्डा, 55.मूरति, 56.गंगा, 57.धूमावती, 58.गांधार, 59.सर्व मंगला, 60.अजिता, 61.सूर्यपुत्री 62.वायु वीणा, 63.अघोर और 64. भद्रकाली।

चौंसठ योगिनी मंत्र :-

1. ॐ काली नित्य सिद्धमाता स्वाहा
2. ॐ कपलिनी नागलक्ष्मी स्वाहा
3. ॐ कुला देवी स्वर्णदेहा स्वाहा
4. ॐ कुरुकुल्ला रसनाथा स्वाहा
5. ॐ विरोधिनी विलासिनी स्वाहा
6. ॐ विप्रचित्ता रक्तप्रिया स्वाहा
7. ॐ उग्र रक्त भोग रूपा स्वाहा
8. ॐ उग्रप्रभा शुक्रनाथा स्वाहा
9. ॐ दीपा मुक्तिः रक्ता देहा स्वाहा
10. ॐ नीला भुक्ति रक्त स्पर्शा स्वाहा
11. ॐ घना महा जगदम्बा स्वाहा
12. ॐ बलाका काम सेविता स्वाहा
13. ॐ मातृ देवी आत्मविद्या स्वाहा
14. ॐ मुद्रा पूर्णा रजतकृपा स्वाहा
15. ॐ मिता तंत्र कौला दीक्षा स्वाहा
16. ॐ महाकाली सिद्धेश्वरी स्वाहा
17. ॐ कामेश्वरी सर्वशक्ति स्वाहा
18. ॐ भगमालिनी तारिणी स्वाहा
19. ॐ नित्यकलींना तंत्रार्पिता स्वाहा
20. ॐ भेरुण्ड तत्त्व उत्तमा स्वाहा
21. ॐ वह्निवासिनी शासिनि स्वाहा
22. ॐ महवज्रेश्वरी रक्त देवी स्वाहा
23. ॐ शिवदूती आदि शक्ति स्वाहा
24. ॐ त्वरिता ऊर्ध्वरेतादा स्वाहा
25. ॐ कुलसुंदरी कामिनी स्वाहा
26. ॐ नीलपताका सिद्धिदा स्वाहा
27. ॐ नित्य जनन स्वरूपिणी स्वाहा
28. ॐ विजया देवी वसुदा स्वाहा
29. ॐ सर्वमङ्गला तन्त्रदा स्वाहा
30. ॐ ज्वालामालिनी नागिनी स्वाहा
31. ॐ चित्रा देवी रक्तपुजा स्वाहा
32. ॐ ललिता कन्या शुक्रदा स्वाहा
33. ॐ डाकिनी मदसालिनी स्वाहा
34. ॐ राकिनी पापराशिनी स्वाहा
35. ॐ लाकिनी सर्वतन्त्रेसी स्वाहा
36. ॐ काकिनी नागनार्तिकी स्वाहा
37. ॐ शाकिनी मित्ररूपिणी स्वाहा
38. ॐ हाकिनी मनोहारिणी स्वाहा
39. ॐ तारा योग रक्ता पूर्णा स्वाहा
40. ॐ षोडशी लतिका देवी स्वाहा
41. ॐ भुवनेश्वरी मंत्रिणी स्वाहा
42. ॐ छिन्नमस्ता योनिवेगा स्वाहा
43. ॐ भैरवी सत्य सुकरिणी स्वाहा
44. ॐ धूमावती कुण्डलिनी स्वाहा
45. ॐ बगलामुखी गुरु मूर्ति स्वाहा
46. ॐ मातंगी कांटा युवती स्वाहा
47. ॐ कमला शुक्ल संस्थिता स्वाहा
48. ॐ प्रकृति ब्रह्मेन्द्री देवी स्वाहा
49. ॐ गायत्री नित्यचित्रिणी स्वाहा
50. ॐ मोहिनी माता योगिनी स्वाहा
51. ॐ सरस्वती स्वर्गदेवी स्वाहा
52. ॐ अन्नपूर्णी शिवसंगी स्वाहा
53. ॐ नारसिंही वामदेवी स्वाहा
54. ॐ गंगा योनि स्वरूपिणी स्वाहा
55. ॐ अपराजिता समाप्तिदा स्वाहा
56. ॐ चामुंडा परि अंगनाथा स्वाहा
57. ॐ वाराही सत्येकाकिनी स्वाहा
58. ॐ कौमारी क्रिया शक्तिनि स्वाहा
59. ॐ इन्द्राणी मुक्ति नियन्त्रिणी स्वाहा
60. ॐ ब्रह्माणी आनन्दा मूर्ती स्वाहा
61. ॐ वैष्णवी सत्य रूपिणी स्वाहा
62. ॐ माहेश्वरी पराशक्ति स्वाहा
63. ॐ लक्ष्मी मनोरमायोनि स्वाहा
64. ॐ दुर्गा सच्चिदानंद स्वाहा

मंदिर और संप्रदाय

चौसठ योगिनी संप्रदाय मध्यकालीन भारत, ख़ासकर 9वीं और 12वीं सदी के बीच, सबसे गूढ़ संप्रदायों में से एक संप्रदाय था। इसी अवधि के दौरान ज़्यादातर चौसठ योगिनी मंदिरों का निर्माण हुआ था। आदिवासी संभवत: इनकी पूजा वन आत्मा या देवी के रुप में करते थे। बाद में इसका हिंदू देवी-देवता के समूह में समावेष हो गया। माना जाता है कि इन देवियों का आदिवासियों से तांत्रिक संप्रदाय में समावेष 8वीं सदी में हुआ था। लेकिन 17वीं सदी के आते आते योगिनी संप्रदाय और उनकी पूजा लगभग ख़त्म हो गई थी। तंत्रमंत्र की वजह से योगिनी और उनके मंदिरों को लेकर हमेशा से ही रहस्य बना रहा है।

योगिनियों को ज़्यादातर सुंदर महिला के रुप में दिखाया जाता है। ये महिला मोतियों और फूलों का हार पहने रहती हैं। इसके अलावा ये बाज़ूबंद, कंगन, कानों की बालियां भी पहने रहती हैं और सुंदर तरीक़े से केशविन्यास किया होता है। योगिनी देवियों का समूह है जो 64, 42 या फिर 81 का समूह होता है लेकिन चौसठ योगिनी समूह सबसे अधिक लोकप्रिय हुआ है। योगिनी के साथ शिव के रुप भैरव को भी दिखाया जाता है जो अक्सर आक्रामक मुद्रा में होते हैं। इसके अलावा योगिनियों को नृत्य करते, तीर और त्रिशूल से शिकार करते और नगाड़ा बजाते भी दर्शाया गया है।

कभी था तंत्र-मंत्र का विश्वविद्यालय
विदेश भी करते थे तंत्र-मंत्र

एक जमाने में चौसठ योगिन मंदिर तंत्र-मंत्र के लिए काफी प्रसिद्ध था, इसलिए इस मंदिर को तांत्रिक यूनिवर्सिटी भी कहा जाता था। कभी इस मंदिर में तांत्रिक सिद्धियां हासिल करने के लिए तांत्रिकों का जमावड़ा लगा रहता था। विदेश नागरिक भी यहां तंत्र-मंत्र की विघाएं हासिल करने आते थे। आज भी कुछ तांत्रिक, सिद्धियां प्राप्त करने के लिए यज्ञ करते हैं।

मंदिर की संरचना इस प्रकार है कि इस पर कई भूकम्प के झटके झेलने के बाद भी यह  मंदिर सुरक्षित है । यह भूकंपीय क्षेत्र तीन में है।

मंदिर के आस-पास अवैध खनन जारी

चौंसठ योगिनी मंदिर का निर्माण लाल-भूरे बलूना पत्थरों से किया गया है, जो मितावली क्षेत्र में पाए जाते हैं। फिलहाल भारतीय संसद का यह बेजोड़ नमूना पूरी तरह बदहाली की स्थिति में हैं। मितावली गांव की ऊंची पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर पूर्व में हुए अवैध खनन के चलते जीर्ण-शीर्ण हो चुका है। जबकि पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित स्मारकों से 300 मीटर के दायरे में खनन प्रतिबंधित है। बावजूद खनन चोरी-छिपे जारी है।

नहीं मिल पाई पहचान

मितावली की चौंसठ योगिनी मंदिर अपनी पहचान को अब भी तरस रहा है। अगर सरकारें थोड़ा सा प्रयास करें तो इस अद्भुत धरोहर को विश्व के मानचित्र पर स्थान मिल सकता है। यहां देशी-विदेशी पर्यटकों की संख्या बड़ सकती है।

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