मतंगेश्वर महादेव मंदिर, खजुराहो, छतरपुर जिला, मध्यप्रदेश
मध्यप्रदेश का खजुराहो बहुप्रसिद्ध टूरिस्ट स्पॉट माना जाता है। यह टूरिस्ट स्पॉट होने के साथ-साथ तीर्थ स्थल के रुप में भी प्रसिद्ध है।
मान्यता है कि खजुराहो में मंदिर केवल आराधना के उद्देश्य से ही नहीं बनवाए गए थे। बल्कि इनका उद्देश्य आम लोगों को यौन शिक्षण देने के साथ साथ तांत्रिक पूजा संपन्न कराना था। लेकिन यहां का मतंगेश्वर मंदिर आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है।
चमत्कारिक है यह शिवलिंग
खजुराहों में मतंगेश्वर महादेव मंदिर लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। मंदिर में स्थित शिवलिंग 9 फीट जमीन के अंदर और उतना ही बाहर भी है। मतंगेश्वर शिवलिंग का आकार धरती के ऊपर और नीचे हर साल एक इंच लंबाई बढ़ जाता है। धरती के अंदर तो इस शिवलिंग की वृद्धि की पुष्टि करना संभव नहीं। लेकिन धरती के ऊपर हर साल की कार्तिक पूर्णिमा के दिन पर्यटन विभाग के कर्मचारी आकर बकायदा इंची टेप से इस शिवलिंग की माप करते हैं। जिससे पता चलता है कि इस शिवलिंग का आकार हर साल बढ़ रहा है। वहीं मंदिर के पुजारी के अनुसार प्रति वर्ष कार्तिक माह की शरद पूर्णिमा के दिन शिवलिंग की लंबाई एक तिल के आकार के बराबर बढ़ जाती है। मंदिर की विशेषता यह है की यह शिवलिंग जितना ऊपर की तरफ बढ़ता है उतना ही नीचे की तरफ भी बढ़ता है। शिवलिंग का यह अद्भुत चमत्कार देखने के लिए लोगों का सैलाब मंदिर में उमड़ता है। वैसे तो यह मंदिर भक्तों से सालभर भरा रहता है लेकिन सावन माह में यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। दर्शन करने के लिए लोग लंबी लाइनों में लगे रहते हैं।
खजुराहो का सबसे ऊंचा मंदिर
लक्ष्मण मंदिर के पास स्थित यह मंदिर 35 फीट के वर्गाकार दायरे में है। इसका गर्भगृह भी वर्गाकार है। प्रवेश द्वार पूरब की ओर है। सादा- सा दिखाई देने वाले यह मंदिर अधिक अलंकृत नहीं है।
मंदिर के गर्भगृह में विशाल शिवलिंग है जो 8.5 फीट ऊंचा है। इसका घेरा तकरीबन 4 फीट का है। इस शिवलिंग को मृत्युंजय महादेव के नाम से भी लोग जानते हैं।
त्रिरथ प्रकृति का यह मंदिर भद्र छज्जों वाला है। इसकी छत बहुमंजिली तथा पिरामिड आकार की है। इसकी कुर्सी इतनी ऊँची है कि अधिष्ठान तक आने के लिए अनेक सीढियां चढ़नी पड़ती है। मंदिर खार- पत्थर से बनाया गया है। भद्रों पर सुंदर रथिकाएँ हैं और उनके ऊपरी भाग पर उद्गम है। इसका कक्षासन्न भी बड़ा है। इसके अंदर देव प्रतिमाएँ भी कम संख्या में है।
गर्भगृह सभाकक्ष में वतायन छज्जों से युक्त है। इसका कक्ष वर्गाकार है। मध्य बंध अत्यंत सादा, मगर विशेष है। इसकी ऊँचाई को सादी पट्टियों से तीन भागों में बांटा गया है। स्तंभों का ऊपरी भाग कहीं- कहीं बेलबूटों से सजाया गया है। वितान भीतर से गोलाकार है।
मंदिर की छत वर्माकार सुंदर और विशाल है। गर्भगृह के तीन और अहातेदार झरोखे हैं, जिनमें से उत्तरी झरोखे से होकर नीचे की ओर सीढ़ियां बनी हैं। मंदिर का एक ही शिखर पिरामिड शैली का है। प्रवेश द्वार के ऊपर शिखर पर गड़े हुए मुकुट से शिखर का सौंदर्य देखते ही बनता है।
छतरपुर जिले के खजुराहो में किसी समय 85 मंदिर होते थे, लेकिन अब सिर्फ कुछ ही मंदिर बचे हैं। खजुराहो के मंदिरों में पवित्रतम माना जाने वाले, इस मंदिर की वर्तमान में भी पूजा- अर्चना की जाती है। अरब यात्री इब्न बतूता भी इस मंदिर के बारे में लिखता है कि यहां पूजा होती थी। यह अलग बात है कि यह मंदिर इतिहास का भाग है, लेकिन यह आज भी हमारे जीवन से जुड़ा हुआ है। मतंगेश्वर महादेव मंदिर को खजुराहो में सबसे ऊंचा मंदिर माना जाता है।
मतंगेश्वर मंदिर खजुराहो के सभी मंदिरों में सबसे पवित्र माना जाता है। इस मंदिर के स्तंभ और दीवारों पर यहां के बाकी मंदिरों की तरह कामुक मूर्तियां आदि नहीं उकेरी गई हैं। बालू पत्थर से बना हुआ यह मंदिर शिल्पकारी की दृष्टि से बहुत ही साधारण है। रचना की दृष्टि से ब्रम्हा मंदिर का ही विशाल रूप है।
मान्यता है कि इस शिवलिंग को छूकर सच्चे हृदय से की गई कामना को भगवान शिव अवश्य पूरी करते हैं। यह मंदिर खजुराहो के तीन मंदिर समूहों में से सबसे विशाल और प्रसिद्ध पश्चिमी मंदिर समूह के गेट के पास ही स्थित है, जिसके सामने खजुराहो का प्राचीन तालाब भी है।
सदियों से चली आ रही ये परंपरा
खजुराहो में भगवान मतंगेश्वर की बड़ी महिमा है। यहां के घरों में मंतगेश्वर की बहुत महत्ता है, यहां लोग इनकी पूजा किए बिना किसी भी प्रकार का कोई शुभ कार्य नहीं करते। लोकमत के अनुसार, यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। यही कारण है कि महादेव का मंदिर सबसे ऊंचा है।
चंदेल वंश के राजाओं ने बनवाया था मंदिर
इस मंदिर का निर्माण चंदेल राजाओं द्वारा 900 से 925 ई (9वीं सदी) में करवाया गया था। चंदेल शासक हर्षदेव के काल में इस मंदिर का निर्माण हुआ। खजुराहो का इतिहास लगभग एक हजार साल पुराना है। यह शहर चंदेल साम्राज्य की प्रथम राजधानी था। चंदेल वंश और खजुराहो के संस्थापक चन्द्रवर्मन थे। चंद्रवर्मन मध्यकाल में बुंदेलखंड में शासन करने वाले राजपूत राजा थे। वे अपने आप को चन्द्रवंशी मानते थे।
मतंग ऋषि से संबंधित है यह मंदिर
शिवलिंग के नीचे मणि स्थापित होने की है मान्यता
इस मंदिर का निर्माण एक विशेष मणि रत्न के उपर कराया गया है। जो कि इसके चमत्कारिक होने का कारण है। यह मरकत मणि स्वयं भगवान शिव ने पांडवों के सबसे ज्येष्ठ भाई सम्राट युधिष्ठिर को प्रदान की थी। जो कि हर मनोकामना पूरी करती थी। बाद में संन्यास धारण करते समय युधिष्ठिर ने इसे मतंग ऋषि को दान में दे दिया था। मतंग ऋषि के पास से यह मणि राजा हर्षवर्मन के पास आई। जिन्होंने लोक कल्याण के लिए (सुरक्षा की दृष्टि से) इस मणि को धरती के नीचे दबाकर उसके उपर इस मंदिर का निर्माण कराया। सबकी मनोकामना पूरी करने वाली इस मणि के कारण ही यहां आने वाले हर व्यक्ति के मन की इच्छा पूरी होती है। चूंकि यह मणि मतंग ऋषि द्वारा प्रदान की गई थी। इसलिए इस मंदिर को मतंगेश्वर महादेव (मतंग के ईश्वर) का नाम मिला।
मान्यता है कि मतंग ऋषि इस शिवलिंग की पूजा करते थे। इसलिए स्वयं भगवान श्री राम ने मतंग ऋषि के नाम पर इसका नाम मतंगेश्वर रखा था।
वैसे तो यह स्थान अति प्राचीन बताया जाता है। क्योंकि आदिकाल में यहां शिव पार्वती का पाणिग्रहण हुआ था। लेकिन इस मंदिर परिसर का निर्माण महाभारत काल का माना जाता है। लेकिन इसका वर्तमान स्वरुप 9वीं शताब्दी में हुए जीर्णोद्धार के तहत कराया गया। तब से यह मंदिर इसी रुप में है।
प्रेम के देवता हैं मतंगेश्वर
यहीं पर हुआ था शिव पार्वती का विवाह
कहा जाता है कि इस मंदिर में शिव और पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। जिसकी वजह से यह मंदिर आदि देव और आदिशक्ति के पवित्र प्रेम का प्रतीक माना जाता है।
मनोकामना पूर्ति लिंग है मतंगेश्वर
मतंगेश्वर महादेव का यह मंदिर मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए जाना जाता है। यहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। मान्यता है कि यहां सच्चे दिल से मांगी गई हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है। इस मंदिर में प्रतिदिन नियमपूर्वक पूजा अर्चना की जाती है।
महाशिवरात्रि पर्व पर शिव-पार्वती विवाह आयोजित होता है। यहां शिव बारात 105 वर्ष से निकाली जाता है। लोग उल्टे हाथे लगाकर अपनी मनोकामना व्यक्त करते है। मनोकामना पूर्ण होने के बाद सीधे हाथे लगाते है। तो आपकी मनोकामना पूर्ण होगी।
कैसे पहुंचें
खजुराहो जाने के लिए दिल्ली से सीधी ट्रेन और हवाई सुविधा उपलब्ध है।
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