रत्नेश्वर महादेव मंदिर, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
मणिकर्णिका घाट पर मणिकर्णिका कुंड के ठीक सामने स्थित रत्नेश्वर महादेव मंदिर की वास्तुकला अलौकिक है। यह मंदिर सैकड़ों सालों से एक तरफ काफी झुका हुआ है। इसके झुके होने को लेकर कई तरह की दंत कथाएं प्रचलित हैं। फिर भी यह रहस्य ही है कि पत्थरों से बना वजनी मंदिर टेढ़ा होकर भी आखिरकार सैकड़ों सालों से खड़ा कैसे है।
मणिकर्णिका घाट के अन्य मंदिरों की तरह रत्नेश्वर महादेव मंदिर भी काफी प्राचीन है। गंगा घाट पर जहां सारे मंदिर घाट के ऊपर बने हैं वहीं यह अकेला ऐसा मंदिर है जो घाट के नीचे बना है। इस वजह से यह छह से आठ महीनों तक पानी में डूबा रहता है। गुजरात शैली में बना यह मंदिर करीब 40 फीट ऊंचा है। बाढ़ में गंगा का पानी मंदिर के शिखर तक पहुंच जाता है। पानी उतरने के बाद मंदिर का पूरा गर्भगृह बालू और सिल्ट से भरा जाता है। इस वजह से बाकी मंदिरों की तरह यहां पूजा नहीं होती। स्थानीय पुजारी बताते हैं दो-तीन महीने में कुछ ही दिन साफ सफाई के बाद यहां पूजा होती है।
अहिल्याबाई होल्कर की दासी का मंदिर
स्थानीय तीर्थ पुरोहित श्याम सुंदर तिवारी बताते हैं, महारानी अहिल्याबाई होलकर ने काशी में कई मंदिरों और कुंडों का निर्माण कराया। उनके शासन काल में उनकी रत्ना बाई नाम की एक दासी ने मणिकर्णिका कुंड के सामने शिव मंदिर निर्माण की इच्छा जताई और यह मंदिर बनवाया। उसी के नाम पर इसे रत्नेश्वर महादेव मंदिर कहा जाता है। जनश्रुति है कि मंदिर बनने के कुछ समय बाद ही टेढ़ा हो गया। मंदिर के साथ पूरा घाट ही झुक गया था। राज्यपाल मोतीलाल वोरा की पहल पर घाट फिर से बनवाया गया, लेकिन मंदिर सीधा नहीं किया जा सका।
मंदिर के बारे में प्रचलित हैं दंत कथाएं
तीर्थ पुरोहित श्याम सुंदर तिवारी बताते हैं रत्नेश्वर महादेव मंदिर को लेकर कुछ दंत कथाएं प्रचलित हैं। लोग इसे काशी करवट बताते हैं। हालांकि काशी करवट मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर के पास नेपाली खपड़ा इलाके में है। इसे कुछ लोग मातृऋण मंदिर बताते हुए कहते हैं कि मंदिर को किसी ने अपनी मां के ऋण से उऋण होने के लिये निर्माण कराया, लेकिन यह मंदिर टेढ़ा हो गया तब कहा गया कि मां के ऋण से उऋण नहीं हुआ जा सकता।
पीसा की तरह रत्नेश्वर महादेव विश्व धरोहर क्यों नहीं
मणिकर्णिका घाट स्थित एक ओर झुके हुए रत्नेश्वर महादेव मंदिर की तुलना पीसा के मीनार से होती है। पीसा की मीनार से यह ज्यादा झुकी हुई है, बावजूद इसके यह विश्व धरोहर की सूची में शामिल नहीं है। वाराणसी के पुरातत्व विभाग के पुरातत्वविद सुभाष चन्द्र यादव कहते हैं, मंदिर का ढांचा काफी भारी भरकम है। यह मंदिर नीचे की ओर बना है, महीनों पानी में डूब जाता है। इसीलिए यह एक तरफ झुक गया। वे कहते हैं किसी चीज को विश्व धरोहर घोषित करने के कई मापदंड होते हैं। फिर भी मंदिर जिला प्रशासन द्वारा संरक्षित है।
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