दक्षिण का शिवालय : मैसूर के नंजनगुड में है करीब एक हजार साल पुराना श्रीकांतेश्वर मंदिर, सात मंजिला है इसका मुख्य द्वार
कर्नाटक की तीर्थनगरी नंजनगुड में भगवान शिव का बहुत पुराना मंदिर है। नंजनगुड प्राचीन तीर्थनगर है। जो कि कर्नाटक में मैसूर से 26 किलोमीटर दक्षिण में है। ये तीर्थ कावेरी की सहायक नदी काबिनी के तट पर है। नंजनगुड नगर 10वीं और 11वीं शताब्दी में गंग तथा चोल वंश के समय से ही प्रसिद्ध है। यहां भोलेनाथ की पूजा श्रीकांतेश्वर नाम से होती है।
भगवान शिव के इस खूबसूरत मंदिर को नंजनगुड मंदिर और श्रीकांतेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह द्रविड़ शैली में बना है और 147 स्तम्भों पर खड़ा है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान शिव का वास था। यह मंदिर करीब एक हजार साल पुराना है। बाहर भगवान शिव की बहुत बड़ी मूर्ति है। यहां पर स्थापित शिवलिंग के विषय में यह माना जाता है कि इसकी स्थापना गौतम ऋषि ने की थी। गेहुएं रंग के पत्थर से बने इस मंदिर के गोपुरम और बहुत बड़ी चारदीवारी के ऊपर की गई शिल्पकारी में गणेशजी के अलग-अलग युद्धों की झलकियां हैं। इसकी शिल्पकारी देखने लायक है।
सात मंजिला है मुख्यद्वार
इस मंदिर में गणेशजी, शिवजी और पार्वतीजी के अलग-अलग गर्भगृह हैं। बड़े अहाते में एक किनारे पर 108 शिवलिंग हैं। इस बहुत बड़े मंदिर में एक जगह ऐसी भी है, जहां ऊंची छत से सुबह सूर्य की पहली किरण आती है। यह मंदिर करीब 50 हजार वर्ग फीट में फैला हुआ है। मंदिर का मुख्यद्वार लोगों को बहुत ही पसंद आता है। इसे महाद्वार के नाम से जाना जाता है। 7 मंजिला इस दरवाजे में सोने से मढ़वाए हुए 7 कलश हैं। इन कलश की ऊंचाई करीब तीन मीटर है।
रथयात्रा है खास
स्थानीय लोगों का यह मानना है कि इस मंदिर के दर्शन से भक्तों के दुख खत्म होते हैं। यहां साल में दो बार रथोत्सव मनाया जाता है। इसे दौड़ जात्रे भी कहा जाता है। इस जात्रा में भगवान गणेश, श्री कांतेश्वर, सुब्रमन्य, चंद्रकेश्वर और देवी पार्वती की मूर्तियों को अलग-अलग रथों में स्थापित कर पूजा अर्चना कर रथोत्सव की शुरुआात होती है। इस महोत्सव को देखने के लिए हजारों की भीड़ में लोग इकट्ठे होते हैं।
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