यज़ीदी धर्म और हिन्दू धर्म
यज़ीदी धर्म क्या है? यज़ीदी शब्द, कुर्द से निकला है। जिसका अर्थ होता है "जिसने मुझे बनाया" अर्थात निर्माता और ईश्वर। यज़ीदीवाद एक ईश्वर यानी एकेश्वरवाद में विश्वास रखते हैं। यज़ीदी ईश्वर को खुदा कहते हैं। प्रत्येक यज़ीदी को, नैतिकता, सही - गलत, न्याय, सच्चाई, वफादारी, दया और प्रेम जैसे सिद्धांतों पर आधारित है। यज़ीदी खुद को सबसे पुराने धर्मों में से एक का सदस्य होने दावा करते हैं और मिथ्रावाद, यार्सन और ज़ारथ्रिस्ट्रा के साथ अपने संबंधों का विवरण देते हैं। यज़ीदियों का इतिहास एक मौखिक इतिहास है। यज़ीदी के बारे में बहुत ही कम दस्तावेज मिले हैं। यज़ीदी आमतौर पर मानते हैं कि, उनकी उत्पत्ति मिथरिक धर्म से 14वीं शताब्दी ई.पू. से है। 7वीं शताब्दी तक, यज़ीदी शब्द के ऐतिहासिक स्रोत के बारे में कोई उल्लेख नहीं मिलता है। ऐसा अनुमान है कि, सदी के अंत में मोस्लेम के मौलवियों और इतिहासकारों ने यज़ीदी शब्द का इस्तेमाल किया था। करीब पिछले 50 वर्षों में यज़ीदी वास्तविक संपर्क में आने लगे थे। जब उस्मान सम्राज्य का पतन हुआ था। तो कई यज़ीदी भाग गए और आकार अर्मेनियाई लोगों के साथ और सोवियत संघ के कारकेस क्षेत्रों में रहने लगे थे। प्रथम विश्व युद्ध के अंत में 1923 में जब तुर्की की नींव रखी गई तब इन यज़ीदीयों का विभाजन हो गया था। तब से यह यज़ीदी तुर्की, इराक, सीरिया और पूर्व सोवियत संघ में रह रहे हैं।
यज़ीदी समुदाय यज़ीदी कैलेण्डर के अनुसार, उनका नव वर्ष अप्रैल के पहले बुधवार को होता है और पैतृक कब्रों पर विलाप द्वारा इसे चिन्हित किया जाता है। वसंत के मौसम में ग्राम त्योहारों, जिसमें स्थानीय धार्मिक स्थलों पर दावत, संगीत और मन्नत शामिल है। प्रत्येक गांव का अपना - अपना अभियान होता है। जिन्हें अक्सर बड़ी बस्तियों में आयोजित किया जाता है। वर्ष का सबसे बड़ा त्यौहार "शरद जमुनिया" जिसे अक्टूबर के महीने में आयोजित किया जाता है। जब सभी "लालिश" तीर्थ यात्रा करने में सक्षम होते है। जहां सभी की उपस्थिति एक धार्मिक कर्तव्य माना जाता है।
दुनिया में सबसे लुप्तप्राय धार्मिक अल्पसंख्यक में एक यज़ीदी मुख्यतः हालहिं के वर्षों में सब की नजर में चढ़ गए हैं। 2014 में इस्लामिक स्टेट ने माउंट सिंजर के यज़ीदियों के प्राचीन समुदाय पर निर्ममता पूर्वक हमला किया। सैकड़ों पुरुषों का नरसंहार किया, महिलाओं और बच्चों को या तो मार डाला या उन्हें अपना गुलाम बना लिया और यह चौंका देने वाला नरसंहार हाल के वर्षों में चर्चा का विषय रहा है।
लेकिन क्या आप जानते हैं, हिन्दुओं और यज़ीदियों के बीच सांस्कृतिक रूप से कई समानताएं देखने को मिलते हैं। जैसे कि हम जानते हैं कि, हिन्दू धर्म में पुनर्जन्म का विशेष महत्व होता है। हमारे ग्रंथों - शास्त्रों में पुनर्जन्म की अवधारणाओं को स्पष्ट उल्लेख किया गया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि, पारगमन या पुनर्जन्म की यह अवधारणा यज़ीदी मान्यताओं में भी देखने को मिलती है। जीवन और मृत्यु के बाद का यह विचार दोनों धर्मों में एक समानता प्रकट करता है।
इसके अलावा हिन्दू धर्म में भौहों के मध्य तिलक करने का विशेष महत्व होता है। हिन्दू संस्कृति में इसे "टीका" भी कहते हैं। माथे के बीच में पवित्र चिन्ह के रूप में टीका लगाते हैं। यज़ीदी भी पवित्रता को विशेष महत्व देते हैं और वह भी भौहों के बीच तिलक करने के लिए जाने जाते है
यज़ीदियों और हिंदुओं के बीच एक प्रमुख समानता यह है कि, हिन्दू संस्कृति में भगवान शिव ने अपनी ऊर्जा की शक्ति से अपने पुत्र कार्तिकेय को बनाया है। वहीं यज़ीदी देवता तवसी मेलेक को भी उनके पिता ने ही बनाया है। जो यज़ीदियों के प्रमुख देव माने जाते हैं।
हमारे हिन्दू धर्म में भगवान के मंदिरों को एक प्रमुख स्थल माना जाता है। मंदिरों की कला, वहां उत्कीर्ण भित्ति चित्र का भी विशेष महत्व है। यज़ीदियों में भी मंदिरों का विशेष महत्व है। "लालिश" को यज़ीदियों का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है। इसके अतिरिक्त पारंपरिक हिन्दू तरीके, यहां की आरती और पूजा के कई धार्मिक तरीके भी
यज़ीदी रिवाजों में देखने को मिलते हैं। हिंदू संस्कृति में इस्तेमाल किए जाने वाले, आरती के थाल उनके लैंप भी काफी मिलते जुलते है। यज़ीदियों में इसे "संजकस" कहा जाता है। इस प्रकार आरती के रूप में अग्नि का प्रयोग, दोनों संस्कृतियों में समानताएं प्रकट करता है।
इस प्रकार कई धरातल पर, यज़ीदी संस्कृति हिन्दू संस्कृति में समानताएं देखने को मिलती है। भौगोलिक रूप से अलग - अलग होने के उपरांत भी, इन दोनों संस्कृति में महत्वपूर्ण समानताएं जुड़ी हुई है।
आद्य हिन्द-ईरानी धर्म से तात्पर्य हिन्द-ईरानी लोगों के उस धर्म से है जो वैदिक एवं जरुस्थ्र धर्मग्रन्थों की रचना के पहले विद्यमान था।
दोनों में अनेक मामलों में साम्य है। जैसे, सार्वत्रिक बल 'ऋक्' (वैदिक) तथा अवेस्ता का 'आशा', पवित्र वृक्ष तथा पेय 'सोम' (वैदिक) एवं अवेस्ता में 'हाओम', मित्र (वैदिक), अवेस्तन और प्राचीन पारसी भाषा में 'मिथ्र'भग (वैदिक), अव्स्तन एवं प्राचीन पारसी में 'बग'
ईरानी भाषा की गणना आर्य भाषाओं में ही की जाती है। भाषा-विज्ञान के आधार पर कुछ यूरोपीय विद्वानों का मत है कि आर्यों का आदि स्थान दक्षिण-पूर्वी यूरोप में कहीं था। इसी मत के अनुसार जब आर्य अपने-अपने अन्य बन्धुओँ का साथ छोड़कर आगे बढ़े तो कुछ लोग ईरान में बस गये तथा कुछ लोग और आगे बढ़कर भरत में आ बसे।
भारत और ईरान-दोनों की ही शाखा होने के कारण, दोनों देशों की भाषाओं में पर्याप्त साम्य पाया जाता है। इन देशों के प्राचीनतम ग्रन्थ क्रमश: 'ऋग्वेद' तथा 'जेन्द अवेस्ता' हैं। 'जेन्द अवेस्ता' का निर्माण-काल लगभग शती ई.पु. है, जबकि ऋग्वेद इससे सहस्रों वर्ष पूर्व रचा जा चुका था। 'जेन्द' की भाषा पूर्णत: वैदिक संस्कृत की अपभ्रंश प्रतीत होती है तथा इसके अनेक शब्द या तो संस्कृत शब्दों से मिलते-जुलते है अथवा पूर्णँत: संस्कृत के ही हैं। इसके अतिरिक्त 'अवेस्ता' में अनेक वाक्य ऐसे हैं, जो साधारण परिवर्तन से संस्कृत के बन सकते हैं, संस्कृत और जिन्द में इसी प्रकार का साम्य देखकर प्रो॰ हीरेन ने कहा है कि जिन्द भाषा का उद्भव संस्कृत से हुआ है।
भाषा के अतिरिक्त वेद और अवेस्ता के धार्मिक तथ्यों में भी पार्याप्त समानता पाई जाती है। दोनों में ही एक ईश्वर की घोषणा की गई है। उनमें मन्दिरों और मूर्तियों के लिए कोई स्थान नहीं है। इन दोनों में वरुण को देवताओं का अधिराज माना गया है। वैदिक 'असुर' ही अवेस्ता का 'अहर' है। ईरानी `मज्दा' का वही अर्थ है, जो वैदिक संस्कृत में 'मेधा' का। वैदिक `मित्र' देवता ही 'अवेस्ता' का `मिथ्र' है। वेदों का यज्ञ 'अवेस्ता' का `यस्न' है। वस्तुत: यज्ञ, होम, सोम की प्रथाएं दोनों देशों में थीं। अवेस्ता में 'हफ्त हिन्दु' और ऋग्वेद में 'आर्याना' का वर्णन मिलता है
पहलवी और वौदिक संस्कृत लगभग समान `मित्र' और 'मिथ्र' की स्तुतियां एक -से शब्दों में हैं। प्राचीन काल में दोनों देशों के धर्मो और भाषाओँ की भी एक-सी ही भूमिका रही है। ईरान में अखमनी साम्राज्य का वैभव प्रथम दरियस के समय में चरमोत्कर्ष पर रहा। उसने अपना साम्राज्य सिन्धु घाटी तक फैलाया। तब भारत-ईरान में परस्पर व्यापार होता था। भारत से वहां सूती कपड़े, इत्र, मसालों का निर्यात और ईरान से भारत में घोड़े तथा जवाहरात का आयात होता था। दरियस ने अपने सूसा के राजप्रासादों में भारतीय सागौन और हाथीदांत का प्रयोग किया तथा भारतीय शैली के मेराबनुमा राजमहलों का निर्माण करवाया।
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