गुरुवार, 28 सितंबर 2023

बालजेनैक द्वीप (Baljenac Island) (Fingerprint Island) फिंगरप्रिंट आइलैंड

आसमान से फिंगरप्रिंट (अंगूठे या उंगली की छाप) जैसा दिखता है ये आइलैंड जिसे फिंगरप्रिंट द्वीप (Fingerprint Island) या मेज़ द्वीप (Maze Island) भी कहा जाता हैं।

दुनिया में हजारों आइलैंड हैं, जो किसी न किसी वजह से मशहूर हैं। वैसे आमतौर पर आइलैंड अपनी खूबसूरती के लिए जाने जाते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी आइलैंड हैं, जो सिर्फ खूबसूरती ही नहीं बल्कि अनोखी वजहों से भी मशहूर हैं। ऐसा ही एक आइलैंड क्रोएशिया में भी है, जो सबसे अनोखा है और वो इसलिए कि यह आसमान से बिल्कुल किसी बड़े से फ़िंगरप्रिंट जैसा दिखता है। जो गूगल अर्थ (Google Earth) की पिक्चर्स में साफ तौर पर अंगूठे की छाप जैसा नज़र आ रहा है।

क्रोएशिया आइलैंड

भारत से लगभग 7800 km दूर हैं एक island द्वीप जो कि अपनी आकृति के कारण काफी सुर्खियों में रहता हैं। इसकी आकृति arial view से किसी व्यक्ति के फिंगरप्रिंट के समान दिखती हैं।

क्रोएशिया कुदरती चमत्कार का नमूना है। यहां अगर दिल के आकार का आइलैंड है, तो वहीं उंगलियों की छाप जैसा भी एक द्वीप है। एड्रियाटिक समुद्र में स्थित क्रोएशियाई द्वीपसमूह में 79 द्वीप, 525 आइलेट्स ओर लगभग 642 पत्थर हैं और आसपास के 1246 द्वीप को मिलाया जाए तो यह 3300 वर्ग किमी का भूभाग में स्थित हैं।

ये आइलैंड समुद्र के चारों तरफ से घिरा हुआ है। एड्रियाटिक सी (Adriatic Sea) पर बने इस आइलैंड को बैव्लजेनिक (Bavljenac) या बैल्जेनिक (Baljenac) द्वीप के नाम से जाना जाता है। 0.14 वर्ग किलोमीटर के इलाके में बसे इस आइलैंड के बारे में कहा जाता है कि इसका इस्तेमाल खेती के लिए किया जाता था।

ओवल शेप के इस पूरे आइलैंड पर पत्थर की दीवारों का जाल बिछा हुआ है और यहीं वजह है कि ऊपर से देखने पर यह ऐसा लगता है जैसे फिंगरप्रिंट हो। कहते हैं कि इस आइलैंड पर मौजूद पत्थर की दीवारों को अगर एक साथ मिला दिया जाए, तो यह करीब 23 किलोमीटर लंबी हो सकती है।

18वीं शताब्दी की दीवारें

क्रोएशियन नेशनल टूरिस्ट बोर्ड (Croatian National Tourist Board) के अनुसार इस द्वीप का इस्तेमाल पड़ोस के कैप्रिजे आइलैंड (Kaprije island) के किसान खेती के लिए करते थे। यहां रहने वाले लोग पूरी तरह से वेजिटेरियन होते थे। Kaprije द्वीप के किसानों ने Baljenac को साफ़ किया और फ़िग और साइट्रस फलों के पेड़, अंगूर के बाग लगाए। हवा से फसल को बचाने के लिए और ज़मीन को विभाजित करने के लिए उन्होंने पत्थर की दीवारें बनाईं।

कहा जाता है कि पत्थर की इन दीवारों का निर्माण नेबरिंग और कैप्रीसिया के किसानों द्वारा (19वी सदी) सन् 1800 में किया गया है। जो कि भूल भुलैया का भी कम करती हैं। कोई पर्यटक अगर कुछ समय टहल ले तो वह अपने रास्ते से भटक जाएगा। ड्राई स्टोन वॉलिंग टेक्निक से बनाई गई इन दीवारों को बड़ी ही सावधानी से एक दूसरे से लॉक किया गया है। पत्थरों की स्टैकिंग और इंटरलॉकिंग करके ये दीवारें खड़ी की गईं। आज इस द्वीप पर फलों के पेड़ नहीं बचे लेकिन वो दीवारें बच गईं।

इस आइलैंड को साल 2018 में संरक्षित कर दिया गया था। यह यूनेस्को की धरोहर स्थलों की सूची (इंटैंजिबल कल्चरल हैरिटेज ऑफ़ ह्यूमैनिटी सूची) में शामिल है। Baljenac, Sibenik Archipelago के 249 द्वीपों में से एक है। यहां टूरिस्ट बोर्ड पर लिखा गया है कि ये जगह कठिन परिश्रम और सभ्यता का नमूना है।

अब यहां काफी लोग घूमने के लिए आते हैं और इस जगह को देख कर और यहां के इतिहास को जानकर हैरान रह जाते हैं। ये आइलैंड पर्यटकों के पहली पसंद बन चुका है। घूमने आने वाले लोग इस खूबसूरत से आइलैंड कि सुंदरता को अपने कैमरे में कैद करके अपने साथ अपने देश ले जाते हैं।


कोट्टनकुलंगरा श्रीदेवी मंदिर, केरल

कोल्‍लम में है यह विशेष मंदिर

केरल के कोल्‍लम जिले में स्‍थापित ‘कोट्टनकुलंगरा श्रीदेवी’ में देश के अन्‍य मंदिरों की अपेक्षा पूजा करने का नियम पुरुषों के लिए बिल्‍कुल ही अलग है। यहां पर किसी भी पुरुष को मंदिर में तभी प्रवेश दिया जाता है जब वह स्‍त्री की ही तरह 16 श्रृंगार करके आता है। यह ध्‍यान देने वाली बात है कि मंदिर में किसी एक या दो श्रृंगार करने से भी प्रवेश नहीं मिलता है। पूरे 16 श्रृंगार करने का सख्‍त नियम है।

वर्षों से चली आ रही है परंपरा

मंदिर में पुरुषों के लिए देवी की आराधना करने का यह अनोखा नियम वर्षों से चला आ रहा है। मंदिर में प्रत्‍येक वर्ष ‘चाम्‍याविलक्‍कू’ पर्व का आयोजन किया जाता है। इस दिन हजारों की संख्‍या में पुरुष 16 श्रृंगार करके पहुंचते हैं। मंदिर में मेकअप रूम की भी व्‍यवस्‍था की गई है। जहां पर पहुंचकर पुरुष 16 श्रृंगार कर सकते हैं।

अच्‍छी नौकरी और मिलती है अच्‍छी पत्‍नी

कहते हैं कि पुरुष यहां पर अच्‍छी नौकरी और अच्‍छी पत्‍नी की मुराद लेकर आते हैं और मंदिर के नियमों के अनुसार पूजा करने से उनकी यह इच्‍छा पूरी हो जाती है। यही वजह है कि पुरुष यहां भारी संख्‍या में महिलाओं के वेश में पहुंचते हैं। साथ ही मां की आराधना करके उनसे मनोवांछित नौकरी और पत्‍नी का आर्शीवाद प्राप्‍त करते हैं।

स्‍वयंभू है मां की प्रतिमा

कहते हैं कि मंदिर में स्‍थापित मां की म‍ूर्ति स्‍वयंभू है। इसके अलावा यह केरल प्रांत का इकलौता ऐसा मंदिर है, जिसके गर्भगृह के ऊपर किसी भी प्रकार की कोई भी छत नहीं है।

चरवाहों को मिलता है श्रेय

कहते हैं कि सालों पहले कुछ चरवाहों ने मंदिर के स्‍थान पर ही महिलाओं की तरह कपड़े पहनकर पत्‍थर पर फूल चढ़ाए थे। इसके बाद पत्‍थर से शक्ति का उद्गम हुआ। धीरे-धीरे आस्‍था बढ़ती ही चली गई और इस जगह को मंदिर में परिवर्तित कर दिया गया। मंदिर के बारे में एक और कथा प्रचलित है कि हर साल मां की प्रतिमा कुछ इंच तक बढ़ जाती है।


रविवार, 24 सितंबर 2023

कुट्टू (Kuttu)

कुट्टू का आटा (Kuttu Atta)

कुट्टू एक प्रकार का पौधा है, जिसके बीजों को पीस कर आटा बनाया जाता है। इसका उपयोग कई स्वादिष्ट और पौष्टिक व्यंजनों में किया जाता है, जैसे कुट्टू के पराठे, पूरी, पकोड़े, खिचड़ी, हलवा, दोसा, इत्यादि। कुट्टू का आटा स्वास्थ्य के लिए भी काफी फायदेमंद होता है, क्योंकि इसमें फाइबर, प्रोटीन, मैग्नीशियम, कैल्शियम, आयरन, विटामिन-बी, और अन्य महत्वपूर्ण पोषक तत्व पाए जाते हैं।

कुट्टू के सेवन से कुछ स्वास्थ्य समस्याओं में सुधार हो सकता है, जैसे :

* वजन कम करने में :- कुट्टू में मौजूद फाइबर पेट को भरा हुआ महसूस कराता है, जिससे भूख कम होती है।
* मधुमेह की रोकथाम में :- कुट्टू में मौजूद एंटी-डायबिटिक प्रभाव रक्त में शर्करा के स्तर को संतुलित करने में मदद करता है।
* स्तन कैंसर के लिए :- कुट्टू में मौजूद एंटी-तुमर प्रपर्टी स्तन कैंसर को बढ़ने से रोकने में सहायक हो सकती है।
* ह्रिदरोग से सुरक्षा में :- कुट्टू में मौजूद महत्वपूर्ण पोसक (Nutrients) रक्त वाहिकाओं को स्वस्थ रखने और कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करते हैं।

कुट्टू का सेवन करने से पहले इस बात का ध्यान रखें कि आपको कुट्टू से कोई एलर्जी तो नहीं है, क्योंकि कुछ लोगों को कुट्टू से एलर्जी हो सकती है, जिससे उन्हें त्वचा पर रैशेज, सूजन, और सांस लेने में परेशानी हो सकती है।

कुट्टू का अतिसेवन भी हानिकारक हो सकता है, क्योंकि इससे पेट में दर्द, ऐंठन, गैस, और कब्ज की समस्या हो सकती है।

कुट्टू का पुराना आटा भी सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे फूड पाइजनिंग (Food Poisoning) की समस्या हो सकती है।


शनिवार, 9 सितंबर 2023

देश बदल चुके हैं अपने नाम

90 साल में इन देशों ने बदल चुके हैं अपने नाम, मार्केटिंग से इतिहास प्रेम तक रही वजहें

इस वक्त विश्व में 195 देश हैं। ये वे देश हैं जिन्हें संयुक्त राष्ट्र से मान्यता हासिल है। कई देश ऐसे हैं जिन्होंने अपने नाम बदले हैं। इसके पीछे सीमा रेखा में बदलाव, युद्ध, आजादी, नेता के सम्मान में, इतिहास और भाषा जैसी तमाम वजहें रही हैं। इसके अलावा राजनीतिक कारणों से भी देश अपना नाम बदले रहे हैं। अधिकांश देशों ने नया नाम अतीत को को मिटाने के लिए अपनाया। कुछ ने तो पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए ही अपने नाम बदल लिए।

30 से 60 के दशक में बदले 3 देशों के नाम

फ़ारस से बना ईरान (Iran)
ईरान एक शिया बहुल देश है और यहां के लोग इस्लाम धर्म को मानते हैं। साल 1935 से पहले तक ईरान नाम ही अस्तित्व में नहीं था। इस देश को पर्शिया या फिर फ़ारस के नाम से जाना जाता था। हालांकि, जब देश की सत्ता पर मोहम्मद रजा पहलवी (मोहम्मद रजा शाह) काबिज हुए तो उन्होंने पर्शिया का नाम बदलकर ईरान कर दिया। भले ही इसकी संस्कृति के पहलुओं जैसे भोजन, कला और साहित्य को फ़ारसी के रूप में लेबल किया जाना जारी है। फ़ारसी भाषा में इसे ईरान कहा जाता है। साल 1935 में सरकार ने उन देशों से अपने देश को ‘ईरान’ कहकर संबोधित करने को कहा, जिनके साथ उनके राजनयिक संबंध थे।

आईरिश फ्री स्टेट से बना आयरलैंड
साल 1937 में आईरिश फ्री स्टेट (आयरिश मुक्त राज्य) के लोगों ने यूनाइटेड किंगडम से सभी संबंधों को तोड़ने के लिए देश का नाम बदलकर आयरलैंड कर लिया। साथ ही यूनाइटेड किंगडम यानी यूके से सारे समझौते खत्म कर लिए। इसके बाद दो साल तक यूके साथ भीषण युद्ध हुआ।

सियाम से बना थाइलैंड (Thailand)
थाइलैंड दक्षिण एशिया के उन गिने-चुने देशों में से है जो कभी ब्रिटिश या फ्रेंच उपनिवेश नहीं रहा। वहां राजा का शासन हुआ करता था। जिसे सियाम कहा जाता था। थाईलैंड का पुराना नाम सियाम था। लोकल भाषा में इस देश को ‘Prathet Thai’ कहते हैं, जिसका मतलब होता है 'आज़ाद लोगों का देश'। क्योंकि यह लोगों के लिए ट्रिब्यूट हैं जो सबसे पहले यहां बसे थे। उन्होंने इस देश में चीन से आज़ाद होकर शरण ली थी। 1939 में थाइलैंड में कॉन्स्टीट्यूशनल मोनार्की आई तो नाम बदलकर थाइलैंड कर दिया गया। हालांकि, बीच में 1946 से 1948 की एक अवधि में सियाम नाम की वापसी हुई, लेकिन बाद में आधिकारिक तौर पर देश को थाईलैंड नाम दिया गया।

20वीं सदी तक बदले कई देशों ने नाम

सिलोन से बना श्रीलंका (Sri Lanka)
वैसे तो श्रीलंका का इतिहास हजारों साल पुराना है। श्रीलंका को पुर्तगालियों ने 1505 में नाम दिया था Ceilão (Ancient Ceylon)। इसके बाद 19वीं सदी में ब्रिटिश साम्राज्य ने इसका नाम बदलकर सिलोन कर दिया। साल 1948 में ब्रिटिश शासन से इसे आज़ादी मिली। हालांकि, तब तक भी इसे सीलोन ही कहा जाता था। लेकिन साल 1972 में जब सीलोन एक गणतंत्र देश बना, तब यहां की सरकार ने इसका नाम सीलोन से बदलकर श्रीलंका रख दिया। द्वीप राज्य ने अपनी सांस्कृतिक पहचान को रेखांकित करने, पुर्तगाली और ब्रिटिश उपनिवेशवाद की विरासत से दूरी बनाने के लिए खुद को श्रीलंका के रूप में पुनः ब्रांड किया। हालांकि सीलोन नाम का उपयोग आधिकारिक तौर पर 2011 तक किया जाता था, लेकिन तब से सभी आधिकारिक दस्तावेजों और अन्य चीजों से पुराने नाम के रेफ़्रेन्स हटा दिए गए। श्रीलंका में हिंदू और बौद्ध धर्म की अच्छी खासी तादात है।

रोडेशिया से बना जिम्बाब्वे
रोडेशिया एक औपनिवेशिक नाम था। साल 1953 और 1963 के बीच दक्षिणी रोडेशिया ने उत्तरी रोडेशिया और न्यासालैंड के साथ फेडरेशन ऑफ रोडेशिया एंड न्यासालैंड में शामिल हो गया। अप्रैल 1980 में जिम्बाब्वे गणराज्य बना।

बर्मा से बना म्यांमार (Myanmar)
एक समय था जब म्यांमार अखंड भारत का हिस्सा था, लेकिन कई दौर आए और गए। यहां की सत्ता भी बदलती रही है। 1988 में एक सैन्य शासन द्वारा लोकतंत्र समर्थक आंदोलन को कुचलने के बाद, साल 1989 मे सैन्य नेताओं (मिलिट्री जुंटा शासन) ने बर्मा नाम से जाने वाले देश को नया नाम म्यांमार दिया। शुरूआत में इसका काफ़ी विद्रोह हुआ और इसके एक साल बाद विद्रोह के चलते यहां हज़ारों लोग मारे गए थे। इस देश का इतिहास हिंसा से भरा रहा है, लेकिन अब यही नाम यहां की पहचान है। और अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि सुधारने के लिए देश की सेना ने इसका नाम बर्मा से बदलकर म्यांमार रख दिया था। हालांकि सेना द्वारा दिए गए नए नाम को संयुक्त राष्ट्र और फ्रांस और जापान जैसे देशों द्वारा मान्यता दी गई थी, लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका और यूके ने अभी तक भी स्वीकार नहीं किया है। वॉशिंगटन आज भी इस देश को बर्मा ही कहता है। बर्मा देश के प्रमुख जातीय समूह, बर्मन से जुड़ा नाम था।

डेमोक्रेटिक कंपूचिया से बना कंबोडिया
कंबोडिया देश ने बीते सात दशकों में कई बार अपना नाम बदला है। साल 1953 से 1970 के बीच देश का नाम किंगडम ऑफ कंबोडिया रहा। इसके बाद 1975 तक इसका नाम खामेर रिपब्लिक रहा। 1975 से 1979 तक साम्यवादी (कम्युनिस्ट) शासन के तहत इसे डेमोक्रेटिक कंपूचिया कहा जाता था। 1989 से 1993 तक संयुक्त राष्ट्र संक्रमण प्राधिकरण (यूएन ट्रांजिशन अथॉरिटी) के तहत, यह कंबोडिया राज्य (स्टेट ऑफ कंबोडिया) बन गया। 1993 में राजशाही (मोनार्की) की बहाली के बाद, इसका नाम बदलकर कंबोडिया साम्राज्य (किंगडम ऑफ कंबोडिया) कर दिया गया।

कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य
वर्षों से कांगो फ्री स्टेट, बेल्जियन कांगो, कांगो- लियोपोल्डविले और ज़ैरे गणराज्य सहित कई नामों से जाना जाने वाले इस राष्ट्र ने 1997 में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में अपना नाम अंतिम रूप दिया।

2000 से लेकर अब तक कई ने बदले नाम

केप वर्डे से बना काबो वर्डे गणराज्य
2013 में, केप वर्डे ने काबो वर्डे गणराज्य के पूर्ण पुर्तगाली शीर्षक का उपयोग करना शुरू कर दिया |

चेक गणराज्य से बना चेकिया (Czechia)
सोवियत संघ के विघटन के बाद चेकोस्लोवाकिया को 1993 में स्लोवाकिया और चेक गणराज्य नाम के दो देशों में विभाजित किया गया। जिसके बाद यूरोप में स्थित चेक गणराज्य के शासक ने मार्केटिंग को ध्यान में रखते हुए इस देश का नाम साल 2016 में बदलकर चेकिया कर दिया ताकि कंपनियों के व्यापार, स्पोर्ट्स इवेंट्स में भागीदारी में देश के नाम को सुविधापूर्ण बनाने के लिए आसानी हो। फिलहाल इसका ऑफ़िशियल नाम चेक गणराज्य ही रहेगा। लेकिन इसका शॉर्ट ऑफ़िशियल नाम चेकिया रख दिया गया है।

स्वाज़ीलैंड से बना इस्वातिनी (Eswatini)
वैसे तो राजशाही व्यवस्था ज़्यादातर पूरी दुनिया से ख़त्म हो चुकी है। लेकिन अफ़्रीका में एक ऐसा देश है, जहां राजशाही सत्ता चलती है। और यह देश है स्वाज़ीलैंड। इस देश की आज़ादी को 54 साल पूरे हो चुके हैं। अप्रैल 2018 में अपनी आजादी के 50वें उत्सव पर यहां के राजा मस्वाती ने देश का नाम बदलकर इस्वातिनी (एस्वातीनी) कर लिया। हालांकि स्थानीय लोग पहले से ही स्वाजीलैंड को इस्वातिनी ही संबोधित करते थे। दरअसल स्थानीय भाषा में स्वाजीलैंड शब्द इस्वातिनी का अनुवाद है। जिसका मतलब होत है कि स्वाजी लोगों की भूमि।

मैसेडोनिया से बना रिपब्लिक ऑफ नॉर्थ मैसेडोनिया (Republic of North Macedonia)
रिपब्लिक ऑफ नॉर्थ मैसेडोनिया (उत्तरी मेसेडोनिया गणराज्य) के पुराने नाम 'मैसेडोनिया' को लेकर ग्रीस के साथ चला आ रहा एक लंबा विवाद उस समय थमा। जब देश के पुराने नाम मैसेडोनिया को साल 2019 में बदल दिया गया और इसे नया नाम रिपब्लिक ऑफ नॉर्थ मैसेडोनिया मिला। बताया जाता है कि इसके पीछे की वजह NATO का हिस्सा बनना था और ग्रीस देश से अपने संबंध सुधारना चाहता था। इसके पीछे बड़ी वजह यह है कि ग्रीस देश में मैसिडोनिया नाम का राज्च भी है। ऐसे में मैसिडोनिया एक प्राचीन ग्रीक साम्राज्य का भी नाम था, इसलिए इसका नाम बदला गया।

हॉलैंड से बना नीदरलैंड (Netherlands)
जनवरी 2020 में हॉलैंड नीदरलैंड (द नीदरलैंड्स) के रूप में एकीकृत हुआ। इसके दो भाग थे दक्षिण हॉलैंड और नॉर्थ हॉलैंड। नाम बदलने का डच उद्देश्य देश के नवाचार, खुलेपन और समावेशिता के गुणों को उजागर करना है। और ऐसा करने की वजह कोई मार्केटिंग मूव बताई जा रही है। उनका कहना है कि वे अपने देश को प्रगतिशील और लिबरल देश के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं।

अफगानिस्तान से बना इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान
2021 में अफगानिस्तान का नाम बदलकर इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान कर दिया गया है।

तुर्की से बना तुर्किये (Turkiye)
तुर्किये (तुर्किए) को पहले टर्की अथवा तुर्की नाम से जाना जाता था। बताया जा रहा है कि साल 1923 में पश्चिमी देशों के कब्ज़े से आज़ाद होने के समय इस देश को ‘तुर्किये’ के नाम से ही जाना जाता था। लेकिन बाद में कुछ कारणों से इसका नाम तुर्की कर दिया गया। तुर्की गणराज्य की स्थापना 29 अक्टूबर 1923 को हुई। 2022 में, तुर्किए ने संयुक्त राष्ट्र को सूचित किया कि उसने औपचारिक रूप से तुर्की से अपना नाम अपडेट कर लिया है। तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोआन साल 2021 में तुर्की का नाम बदलकर तुर्किए रख दिया। उन्होंने इस बदलाव के पीछे तर्क देते हुए कहा था कि तुर्किए तुर्की के लोगों की संस्कृति, सभ्यता और मूल्यों का सबसे अच्छा प्रतिनिधित्व और अभिव्यक्ति है। कहा जाता है कि तुर्की नाम की चिड़िया है, जिसकी वजह से इसका नाम तुर्किए कर दिया गया।


बुधवार, 6 सितंबर 2023

क्षुद्रग्रह : 16 साइकी

16 साइकी : एक रहस्यमयी क्षुद्रग्रह

चर्चा में क्यों?

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) द्वारा किये गए एक हालिया अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि मंगल और बृहस्पति ग्रह के बीच मौजूद क्षुद्रग्रह ‘16 साइकी’ (16 Psyche) पूरी तरह से धातु (Metal) से बना हो सकता है और इसकी अनुमानित कीमत पृथ्वी की समग्र अर्थव्यवस्था से भी कई गुना अधिक है।

प्रमुख बिंदु

नासा के हबल स्पेस टेलीस्कोप (HST) से प्राप्त जानकारी के मुताबिक, इस रहस्यमय क्षुद्रग्रह की सतह पर पृथ्वी के कोर के समान लोहा और निकेल (Nickel) की मौजूदगी हो सकती है।

‘16 साइकी’ के बारे में

पृथ्वी से लगभग 370 मिलियन किलोमीटर की दूरी पर स्थित ‘16 साइकी’ हमारे सौरमंडल की क्षुद्रग्रह बेल्ट (Asteroid Belt) में सबसे बड़े खगोलीय निकायों में से एक है।नासा के मुताबिक, आलू के जैसे दिखने वाला इस क्षुद्रग्रह का व्यास लगभग 140 मील है।

खोज

इस रहस्यमयी क्षुद्रग्रह की खोज इतालवी खगोलशास्त्री एनीबेल डी गैस्पारिस द्वारा 17 मार्च, 1852 को की गई थी और इसका नाम ग्रीक की प्राचीन आत्मा की देवी साइकी (Psyche) के नाम पर रखा गया था। चूँकि यह वैज्ञानिकों द्वारा खोजा जाने वाला 16वाँ क्षुद्रग्रह है, इसलिये इसके नाम के आगे 16 जोड़ा गया है।

अधिकांश क्षुद्रग्रहों (Asteroids) के विपरीत, जो कि चट्टानों या बर्फ से बने होते हैं, वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि ‘16 साइकी’ क्षुद्रग्रह एक बहुत बड़ा धातु निकाय है जिसे पूर्व के किसी ग्रह का कोर माना जा रहा है, जो कि पूर्णतः ग्रह के रूप में परिवर्तित होने में सफल नहीं हो पाया था।

‘16 साइकी’ का हालिया अध्ययन

नवीनतम अध्ययन में साउथवेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोधकर्त्ताओं ने हबल स्पेस टेलीस्कोप के माध्यम से क्षुद्रग्रह ‘16 साइकी’ के रोटेशन के दौरान इसके दो विशिष्ट बिंदुओं का अध्ययन किया ताकि इसका समग्र रूप से मूल्यांकन किया जा सके।

इस अध्ययन में पहली बार ‘16 साइकी’ क्षुद्रग्रह का पराबैंगनी अवलोकन (Ultraviolet Observation) भी किया गया है, जिससे पहली बार इस क्षुद्रग्रह की संरचना की एक तस्वीर प्राप्त की जा सकी है।

अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि जिस तरह ‘16 साइकी’ क्षुद्रग्रह से पराबैंगनी प्रकाश परावर्तित हुआ वह उसी प्रकार था जिस तरह से सूर्य का प्रकाश लोहे से परावार्तित होता है, हालाँकि शोधकर्त्ताओं का मत है कि यदि इस क्षुद्रग्रह पर केवल 10 प्रतिशत लोहा भी उपस्थित होगा तो भी पराबैंगनी प्रकाश का परावर्तन ऐसा ही होगा।

ध्यातव्य है कि धातु के क्षुद्रग्रह आमतौर पर सौरमंडल में नहीं पाए जाते हैं और इसलिये वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि ‘16 साइकी’ क्षुद्रग्रह का अध्ययन किसी भी ग्रह के भीतर की वास्तविकता को जानने में काफी मदद कर सकता है।

‘16 साइकी’ क्षुद्रग्रह का वास्तविक मूल्य

नासा के वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि ‘16 साइकी’ क्षुद्रग्रह तकरीबन पूरी तरह से लोहा, निकेल और कई अन्य दुर्लभ खनिज जैसे- सोना, प्लैटिनम, कोबाल्ट और इरिडियम आदि से मिलकर बना है। ऐसे में नासा की गणना के अनुसार, यदि ‘16 साइकी’ क्षुद्रग्रह को किसी भी तरह पृथ्वी पर लाया जाता है तो इसमें मौजूद धातु की कीमत ही अकेले 10000 क्वाड्रिलियन डॉलर से अधिक होगी, जो कि पृथ्वी की संपूर्ण अर्थव्यवस्था से काफी अधिक है।

हालाँकि नासा अथवा किसी अन्य अंतरिक्ष एजेंसी के पास अभी तक ऐसी कोई तकनीक नहीं है, जिसके माध्यम से इस विशाल क्षुद्रग्रह को पृथ्वी पर लाया जा सके और न ही कोई अंतरिक्ष एजेंसी ऐसी किसी परियोजना पर कार्य कर रही है।

प्रभाव : 

यदि धातु से निर्मित इस विशालकाय क्षुद्रग्रह को किसी तरह पृथ्वी पर लाया जाता है और इस पर मौजूद दुर्लभ संसाधनों का खनन किया जाता है तो इससे पृथ्वी के खनिज बाज़ार का पतन हो जाएगा और सभी धातुएँ तुलनात्मक रूप से कम कीमत पर मिलने लगेंगी, हालाँकि निकट भविष्य में ऐसा संभव नहीं है।

नासा का ‘साइकी मिशन’

नासा ने इस अद्भुत और रहस्यमयी क्षुद्रग्रह का अध्ययन करने के लिये ‘साइकी मिशन’ की शुरुआत की है, जिसके तहत नासा द्वारा वर्ष 2022 में एक मानवरहित अंतरिक्ष यान भेजा जाएगा, जो कि काफी नज़दीक से इस क्षुद्रग्रह का अध्ययन कर इसकी संरचना और इसके उद्गम को जानने का प्रयास करेगा।

नासा द्वारा लॉन्च किया जाने वाला मानवरहित अंतरिक्षयान वर्ष 2026 में इस ‘16 साइकी’ क्षुद्रग्रह के पास पहुँचेगा और फिर तकरीबन 21 महीनों तक ‘16 साइकी’ क्षुद्रग्रह का चक्कर लगाएगा। ‘साइकी मिशन’ का प्राथमिक उद्देश्य धातु से निर्मित इस क्षुद्रग्रह की तस्वीर खींचना है, क्योंकि वैज्ञानिकों के पास अभी तक इस क्षुद्रग्रह की कोई वास्तविक तस्वीर उपलब्ध नहीं है।

इस मिशन के माध्यम से वैज्ञानिक यह जानने का भी प्रयास करेंगे कि क्या यह क्षुद्रग्रह वास्तव में किसी पूर्व ग्रह का हिस्सा है अथवा नहीं। साथ ही एकत्र किये गए आँकड़ों के आधार पर वैज्ञानिक इस क्षुद्रग्रह की आयु और उत्पत्ति का भी पता लगाएंगे।

‘16 साइकी’ क्षुद्रग्रह के अध्ययन का महत्त्व

‘16 साइकी’ क्षुद्रग्रह का अध्ययन करने से पृथ्वी और पृथ्वी जैसे अन्य ग्रहों के कोर की उत्पत्ति के बारे में पता चल सकेगा। इस क्षुद्रग्रह का अध्ययन हमें यह जानने में मदद कर सकता है कि किसी ग्रह के भीतर का हिस्सा वास्तव में किस प्रकार का होता है।

चूँकि हम पृथ्वी के कोर में नहीं जा सकते, इसलिये ‘16 साइकी’ क्षुद्रग्रह के माध्यम से इसे जानने का एक अच्छा अवसर प्राप्त हो सकता है।ज्ञात हो कि पृथ्वी का कोर लगभग 3,000 किलोमीटर की गहराई पर स्थित है और शोधकर्त्ता केवल 12 किलोमीटर तक ही पहुँच सके हैं। वहीं पृथ्वी के कोर का तापमान लगभग 5,000oC है, इसलिये वहाँ पहुँचना लगभग असंभव है।